रामचंद्र कह गए सिया से मेरी फ़िल्मी गीत सुनने और गुनगुनाने की आदत से तंग आकर सासू माँ एक भजन की cd ले आयीं और बोली “लो बहु आज से भजन सुनना ...
रामचंद्र कह गए सिया से
मेरी फ़िल्मी गीत सुनने और गुनगुनाने की आदत से तंग आकर सासू माँ एक भजन की cd ले आयीं और बोली “लो बहु आज से भजन सुनना और गाना शुरू करो थोड़े लक्षण सुधरेंगे तुम्हारे ,भगवान् भी प्रसन्न होकर तुम्हे सद्बुद्धि देंगे “फिर उनका मन रखने को और सद्बुद्धि प्राप्त करने को हमने भजन का पहिया यानि cd चालू कर दी उसमे प्रथम भजन गोपी फिल्म का था “रामचन्द्र कह गए सिया से” भजन के हर बोल के साथ सासू माँ अपने लम्बे चौड़े व्याख्यान दिए जा रहीं थी और हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हम कॉलेज में किसी प्रोफ़ेसर का बोरिंग लेक्चर सुन रहे हों। ठीक भी है जैसे कॉलेज में प्रोफ़ेसर उसकी बकबास ना सुनने पर क्लास से बाहर कर देता था यहाँ सासू माँ के ऐसा करने की सम्भावना थी। खैर हमें बेघर नहीं होना था इसलिए मरता क्या ना करता की तर्ज पर उनका प्रिय भजन झेल रहे थे। भजन की पहली दो पंक्तियों का हमारी ज्ञानी सासुजी ने अर्थ कुछ यूँ समझाया –देखो बहु कितनी सत्यता है पहले बढ़िया लड़कों के लिए बढ़िया बधू मिल जाती थीं मगर अब उल्टा हो रहा है “उनका इशारा मेरी तरफ था जिसे भांप में मन ही मन जलभुन गयी। फिर भी खुद को संयत रख पूछ लिया “उल्टा कैसे मांजी ?”वह मुस्कुराते हुए बोलीं ’मेरे हंस जैसे सीधे साधे लड़के को तुम कौअन जैसी मुन्ह्फट,कर्कश, असुशील बहु जो मिल गयी”उनकी इस व्याख्या को सुन मन हुआ यह भजन cd तोड्मारोड़कर कहीं फेंक दूं पर श्रीराम जी का वन निष्कासन मुझे ना झेलना पड जाए इसलिए कैकयी माता की आज्ञा का पालन निरंतर इस लम्बे भजन को सुनकर करती रही। मगर मेरे दिमाग के घोड़े अलग ही दिशा
में दौड़ रहे थे। इस भजन में जैसे प्रथम लाइन से स्पष्ट होता है कि सारा ज्ञान रामजी ने अपने श्रीमुख से सीताजी को प्रदान किया है। आखिर एक पति अपने मन की बात अपनी अर्धांगिनी से ही करता है उसी के सामने अपना क्षोभ प्रकट कर सकता है तो श्रीराम जी भी तो एक आम मानव अवतार ठहरे वह इस भजन के माध्यम से अपने ही सतयुग को कोस रहे थे। सीधी –सीधी कहना उन दिनों भी टेढी खीर साबित होता होगा इसलिए कलयुग को बलि का बकरा बनाकर वह शायद अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे। सच है भैया युग कोई भी हो खरी खरी कहने वाले को लोगों की आँख का किरकिरा बनना ही पड़ता है। और श्री रामजी तो ज्ञानी आदमी थे, इस सत्य से भलीभांति परिचित। भजन में एक जगह कहा गया है –“
धर्म भी होगा कर्म भी होगा ,
लेकिन शर्त नहीं होगी,
बात बात पर मात पिता को ,
बेटा आँख दिखाएगा “
अब अगर माँ बाप गलत हैं तो बेटा क्यों ना आँख दिखाए। गलती चाहे छोटा करे या बड़ा गलती ही होती है। रामचंद्र जी का दुःख: कितना उमड रहा है इन पंक्तियों में सोचिये जिसके पिता ने स्वंय तीन सुन्दर पत्नियों के साथ विवाह किया और अपनी एक रम्भा जैसी पत्नी के कहने में आकर बेटे को उसकी नई नवेली दुल्हन के साथ वनवास काटने की घनघोर सजा दे दी। क्या बीत रही होगी उस पुत्र के दिल पर ?तभी तो श्री राम घुमा फिराकर कलयुग के बच्चों को समझा रहे हैं कि सीनीयर सिटीजंस की हर बेवकूफी भरी बात को आंख बंद कर नहीं मानना चाहिए। हमारे पिताजी को ही देखो खुद तो सठियाये बुड़ाऊ ने वैवाहिक जीवन का पूरमपटट आनंद लिया और हमारी बारी आई तो ससुर जीव जिनावर से भरे पड़े जंगल में भेज दिया कि “जा बेटा राम मना हनीमून ,एक तरफ तो तुझे ये जीव जंतु चैन से रहने नहीं देंगे उनसे बच भी गया तो हर समय यह लक्ष्मण है ना कबाब की हड्डी “और लक्ष्मण तो जैसे कसम खाकर आया था मोदी की तरह कि-“ ना खायेंगे ना ही खाने देंगे “ससुर का नाती जब देखो तब पैर दबाने के बहाने आस पास मंडराता रहता और जब तक हमें नींद ना आ जाए खिसकता ही नहीं था। आगे के गीत में रामजी कहते हैं –
राजा और प्रजा में निशदिन होगी खींचातानी ,
कदम कदम पर करेंगे दोनों अपनी अपनी मनमानी “
तो भैया यहाँ भी रामजी बेचारे अपना ही अनुभव साझा कर रहे है। कि कैसे प्रजा उनके इतनी विरुद्ध हो गयी की तमाम खून खराबे और मेहनत के बाद मिली घरवाली से उन्हें तलाक लेना पड़ गया। उधर रावण ने एक गलती पर विभीषण को थप्पड़ क्या लगा दिया उसने दूसरी पार्टी को अपनी पार्टी के सीक्रेट बताकर पोल के नतीजे ही गड्ड-मड्ड कर डाले और राम की सरकार में केबिनेट मंत्री बन बैठा यह सरकार और आवाम की खींचातानी कोई नयी थोड़े ही बहुत ही पुरानी है। इस भजन में रामजी ने बड़ी ज्ञान वर्धक बातें कही हैं जैसे-“जिसके हाथ में होगी लाठी भैंस वही ले जाएगा “
रामचंद्र जी ने प्रत्यक्ष अनुभव किया कि कैसे बाली ने लाठी के दम पर छोटे भाई की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया और सबसे बड़ा लाठीबाज रावण दुनिया भर की भैंस चुराकर अपने तबेले में बांधने का उसका हुनर किसी और में कहाँ? सतयुग के बुरे कर्मों पर कलयुग को निशाना बनाकर राम ने व्यंग्य किया मगर वाह री छोटी बुद्धि उसका मर्म नहीं समझ पाए। इस भजन को मैंने सुना तो यही प्रतीत हुआ कि भैया बड़ी आग धधक रही है रामजी के सीने में और वह किसी भी कीमत पर चुप नहीं बठेंगे ,सतयुग को गधे पर बैठाकर उसका मुंडन कर ,उसके मुंह पर कालिख पोत कर ही उन्हें चैन आएगा। आगे सुनिए राम जी का दंश-
”जो होगा लोभी और भोगी वही जोगी कहलायेगा “
यहाँ इशारा विश्वामित्र की तरफ है रूप के पुजारी ने मेनका के लिए तपस्या भंग कर डाली मगर जोगी सन्यासी कहलाये और बेचारे लक्ष्मण ने पहले वनवास और फिर जल समाधि लेकर भोगवृत्ति से दूरी बनायीं उसे किसी ने जोगी नहीं माना। आगे रामजी का यह कहना कि –“
मंदिर सूने सूने होंगे भरी रहेंगी मधुशाला “
तो यहाँ पर भी वह अपने सतयुग की ही गौरव गाथा बयान कर रहे हैं। जहाँ राजा महाराजा अपने रंगमहल में अंगूर की बेटी को सुड़कते ,कन्याओं को हीरे जवाहरात फेंक फेंककर नचाते रहे हैं। यहाँ तक की इंद्र खुद दिन रात टकीला के शॉट लगाता और मुसीबत पड़ने पर विष्णु जी के पैर पकड़ लेता। स्वर्ग में भी आये दिन कोकटेल पार्टी चलती रहती जिससे हमारे भ्रमचारी नारद बाबा का मन भी डोल जाता और वो फिर खुन्नस निकलने को रंग में भंग करने पहुँच जाते। उन्होंने तो जीवन पर्यंत खाया नहीं तो लुढ्काया सही की कहावत को चरितार्थ किया.आगे कहते हैं -
.”कैसा कन्यादान पिता ही कन्या का धन खायेगा “
तो भैया यह भी सतयुग की ही परंपरा का बखान है। कलयुग में तब भी बाप बेटी को पढाता लिखाता काबिल बनाता है मगर सतयुग में तो बेटी को पैदा होते ही दूसरे शक्तिशाली राजाओं से उनका ब्याह करके अपने राज्य की सुरक्षा के लिए उनसे मदद मांग सके और उसका राज्य उन राज्यों के आक्रमण से सुरक्षित रह सके अरे भाई सीधी सी बात जवाई कितना भी खुर्रेट हो ससुराल पर आक्रमण नहीं करता। उदाहरण के लिए द्रुपद ने द्रौपदी को पैदा ही इसलिए किया कि उसे पांच पांडवों से ब्याह महाभारत का कारण बनाया जा सके और द्रोणाचार्य से बदला लिया जा सके। अब तुम ही बताओ देशवासियों कौन सा बाप ज्यादा गिरा हुआ है कलयुग का या सतयुग का?
इस पूरे गीत में काम की बात रामजी ने अंतिम लाइनों में कही है –
“काजल की कोठरी में कैसा ही जतन करो
काजल का दाग भाई लागे ही लागे,
कितना ही जती हो कोई कितना ही सती हो कोई ,
कामनी के संग काम जागे ही जागे “
तो भैया सतयुग,द्वापर ,त्रेता कोई भी युग हो लम्पट आदमी साधू के वेश में दिखाई देंगे और माता बहन कहकह्कर उनपर झपट्टा भी मारेंगे ठीकरा फूटेगा माँ बहनों की सुन्दरता और वस्त्रों पर ,मगर इन साधुओं की जयजयकार में कोई कमी नहीं आयेगी। बेशक सतयुग की काजल वाली कोठरी दाग लगाती हो मगर कलयुग में विज्ञान इतनी तरक्की कर चूका है कि काजल की कोठरियां अब दाग प्रूफ हो चुकी है। और इनदिनों यह कोठरी दाग लगाने के बजाय खुश्बू फैलाने का कार्य ज्यादा कर रही हैं।
सपना मांगलिक
कमला नगर आगरा
ईमेल –sapna8manglik@gmail.com
सपना मांगलिक का परिचय यहाँ देखें
Ye likhi huyi kahani maine puri पढ़ी meri to hsi hi nhi ruk rahi😂😂😂😂🤣🤣🤣🤣🤣
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