बसंत पंचमी पर्व पर विशेष निराश मन में उल्लास का संचार करने वाला पर्व है-बसंतोत्सव ० मौसमों का राजा है बसंत का मौसम भारतवर्ष की छह ऋतुओं में...
बसंत पंचमी पर्व पर विशेष
निराश मन में उल्लास का संचार करने वाला पर्व है-बसंतोत्सव
० मौसमों का राजा है बसंत का मौसम
भारतवर्ष की छह ऋतुओं में सबसे खुशगवार मिजाज रखने वाले बसंतोत्सव का आगमन हर प्राणी के जीवन में राग, रंग और उल्लास का संचार करने वाला माना जाता है। यूं तो प्रत्येक ऋतु अपनी एक पहचान रखती है, किंतु बसंत की महीना जहां एक ओर ठंड से कड़कड़ाती काया को गर्म कपड़ों से छुटकारा दिलाता है, तो दूसरी ओर युवाओं और युवतियों के ह्दय में प्रेम की पींगें बढ़ाना वाला भी होता है। भारतवर्ष के लोक गीतों में भी बसंत की खुमारी अपना रंग जमाती देखी और सुनी जा सकता है। यही वह मौसम है जब पलाश के सुर्ख फूलों से आच्छादित वृक्ष पवित्र अग्नि का दर्शन करता प्रतीत होता है। पूरी धरती सरसों के पीले फूलों के आवरण से नववधु सी सजी संवरी दिखाई पड़ती है। बाग बगीचों में गुलाबों की अटखेलियां ऐसा दृश्य निर्मित करती है, मानो वे पर्व मनाने एकत्रित हुई हो। हर प्राणी की मन ऐसे मनोरम दृश्य देखकर खुशी से नाचने और झूमने लगता है। शरीर में एक नई ऊर्जा का आभाष होने लगता है। प्रकृति परिवर्तन का यह पर्व सभी ओर सुस्वागतम की मुद्रा लिये खड़ा होता है। कई महीनों से सोई हुई प्रकृति मानो अचानक ही निद्रा से जाग उठती है और फिर पूरे दो माह आनंद और उल्लास का वातावरण सभी वर्गों को प्रसन्नचित, गुलाबी मौसम में विचरने का अवसर प्रदान करता है।
बसंत का मौसम जहां ऋतु परिवर्तन का सूचक है वहीं दूसरी ओर संगीत और सुर-ताल की देवी सरस्वती के उद्भव का पौराणिक महत्व भी प्रतिपादित करता है। सर्द मौसम से मुक्त समशीतोष्ण वातावरण में मां के आराधक अपनी आराध्य देवी की अर्चना में मस्त हो जाते है। सृष्टि रचयिता ब्रम्हा पुत्री वाग्देवी की पूजा अर्चना भी मौसम के अनुकुल पीले वस्त्र धारण कर पीले फूलों और पीले चावलों से की जाती है। पीले-पीले बेर फल, आम की बौर और सुंदर पीले कदली फल मां के श्री चरणों में अर्पित कर आराधक मनचाही विद्या के लिये प्रार्थना करते है। बसंतोत्सव का यह पर्व विरह गीत की याद दिलाने वाला भी है। ऐसे प्रेमी-प्रेमिका जो लंबे समय से एक दूसरे से दूर है। उन्हें निकट लाने बसंत की हवाएं उन तक गुनगुनाती पहुंचती प्रतीत होती है। हवाओं में झूमते और लहराते फूलों समीप की डालों में रहते हुए आपस में मिल नहीं पाते, और ऐसा लगता है मानो वे विरह की डाली में झूमते माली से कह रहे हो कि हमें एक दूसरे में घुल मिल जाने दो। ऐसे ही बसंतोत्सव के दृश्य कवि मन को कलम चलाने की प्रेरणा भी प्रदान कर जाते है।
ऋतुराज बसंत के स्वागत में स्वर लहरियों से लेकर लोक गीतों की सुमधुर पंक्तियां कवियों की रचनाओं को नया जीवन दे जाती है। होली पर्व के आगमन का सूचक बसंत पंचमी का पर्व फाग गीतों की रचना करने लोक गीतकारों को विवश कर जाता है। बसंत का मौसम ऋतुराज के स्वागत का अवसर होता है। शताब्दियों से भारत वर्ष के रसिक कवियों और संतों के ह्दय, ऋतु चक्र के जान की तरह बसंत का भावभीने गीतों और पदों की रचना के साथ अभिनंदन आतुर दिखाई पड़ते है। बसंत ऋतु के पूर्ण रूप से छा जाने पर धरती में नये प्राण का संचार जान पड़ने लगता है। ऋतु राज बसंत के आगमन के साथ प्रकृति भी अपने धर्म कर्म के निर्वाह में लग जाती है। असंख्य फूलों के साथ कई कोपलें और सुगंधित हवा के साथ मानो हृदय को सुख का अनुभव होने लगता है। सुबह से लेकर शाम तक पेड़ों की सुकोमल हरी पत्तियां, रसीले फल पकने की तैयारी का नजारा दिखाते हैं, तो रात स्वच्छ चांदनी की आंचल में मचलती दिखाई पड़ती है। आम के पेड़ों पर कोयल की मीठी कुक कानों में रस घोल जाती है। बसंत का पर्व राधा कृष्ण की रास का पर्व भी है। होली के आगमन की सूचना देने वाला बसंतोत्सव का पर्व फाग गीतों और ढोल मंजीरों की सुमधुर आवाज का संगम भी माना जाता है।
बसंत ऋतु में बसंत पंचमी सहित महाशिवरात्रि तथा होली जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाते है। यही कारण है कि भारतीय संगीत और साहित्यकला में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पर्व की महत्ता को स्वीकार करते हुए भी संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर भी बनाया गया है, जिसे राग बसंत के नाम से जाना जाता है। संगीतकारों और स्वर साधकों द्वारा यह माना जाता है कि बसंत का उत्सव अमर आशावाद का संचार करने वाला होता है। एक उदास मन भी बसंत के आगमन पर उसके राग रंग के साथ प्रफुल्लित हो उठता है। बसंत का सच्चा पुजारी जीवन में कभी भी निराश नहीं होता और न ही कभी सपने में भी ऐसी कल्पना करता है। जिस प्रकार पतझड़ में वृक्ष के पत्ते झड़ जाते है, उसी प्रकार बसंत का पुजारी अपने जीवन और मन से निराशा को झटक देता है। निराश हुए जीवन और मन को बसंत की बहारे नई आशा से भर देती है। यह कहा जा सकता है कि बसंत का तात्पर्य ही आशा व सिद्धि का सुंदर संयोग, कल्पना और वास्तविकता का सुभग समन्वय है। हिंदू धर्म संस्कृति के अनुसार कार्तिक माह की देवी उठनी एकादशी अर्थात तुलसी विवाह से त्यौहार की धमाचौकड़ी बंद हो जाती है, किंतु ठीक तीन माह के बाद पड़ने वाला बसंत पंचमी का पर्व लोगों को पुनः त्यौहार की खुशी से भर देता है। ऐसा अनुभव होने लगता है मानो बसंत के रूप में त्यौहार अंगड़ाई ले रहे हो और होली का रंग बसंत के उत्सव को पूरी उमंग प्रदान कर दिखाता है।
विद्या के मंदिरों में बसंत पंचमी का पर्व बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। विद्या की देवी मां वीणा-वादिनी की पूजा अर्चना के साथ विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट जाते है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि बसंत पंचमी का पर्व विद्या का पर्व है। विद्या अधिष्ठात्री देवी सरस्वती अपने आराधकों पर विशेष कृपा बरसाती है। एक ओर जहां शालाओं में शिक्षण सामग्रियों को पूजा जाता है, वहीं दूसरी ओर बच्चों का विद्यारंभ संस्कार भी इसी दिन शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी पर्व के दिन से परीक्षा के दिनों की दूरी बहुत कम होती है। विद्यार्थियों के लिये यह विद्या का अवसर होने के साथ ही परीक्षा की तैयारी का उत्तम समय कहा जा सकता है। मौसम में कड़कड़ाती ठंड की बिदाई और अच्छी लगने वाली हवा का संचार सभी वर्गों को सुकून देने लगता है।
प्रस्तुतकर्ता
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
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