हमारे ऋषि-मुनियों ने नदी की महता को प्रतिपादित करने हुए कहा है कि नदी में स्नान मात्र से प्रसन्नता का अनुभव होता है, इतना ही नहीं शीतल जल...
हमारे ऋषि-मुनियों ने नदी की महता को प्रतिपादित करने हुए कहा है कि नदी में स्नान मात्र से प्रसन्नता का अनुभव होता है, इतना ही नहीं शीतल जल में भीतर डुबकी लगानेवाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्गलोक को जाता हैं. उन्होंने नदियों को माँ के सदृश्य मानकर उनकी पूजा-अर्चना की. वेद-पुराणॊं में विभिन्न नदियों के महात्मय को उन्होंने विस्तार से वर्णित किया है. और यहाँ तक उल्लेखित किया है कि किस तिथि को, किस माह में स्नान करने से कौन-कौन से पुण्योदय होते हैं. यही कारण है कि हमारे देश में नदियों को सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ विधिवत पूजन और अर्चन किया जाता है.
स्नान-ध्यान को लेकर माघ माह में प्रयाग स्नान को लेकर गोस्वामी तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस में लिखते हैं-
माघ मकरगत रबि जब होई * तीरथपतिहिं आव सब कोई देव दनुज किंनर नर श्रेनीं * सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं पूजहिं माधव पद जलजाता * परसि अखय बटु हरषहिं गाता
पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघमास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नानमात्र से होती है. इसलिए स्वर्गलाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघस्नान करना चाहिए
व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरिः * माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशवः प्रीयते वासुदेवस्य सर्वपापापनुत्तये * माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः (पद्मपुराण)
मत्स्यपुराण ( 53/35) के अनुसार माघमास की पूर्णिमा को जो व्यक्ति नदी में नहाकर स्नान –दान कर, ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है.
माग मास =भारतीय संवत्सर का ग्यारहवाँ चान्द्रमास और दसवाँ सौरमास “माघ” कहलाता है. इस महिने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम “मघ” पडा. धार्मिक दृष्टिकोण होने से इस माह का बहुत अधिक महत्व है. इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में जाते है= ”माघे निमग्नाः सलिले सुनीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति”
महाभारत के अनुशासनपर्व में इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है=
दशतीर्थसहस्त्राणि तिस्त्रः कोट्यस्तथा परा *समागच्छन्ति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ मघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः *स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात हे भरतश्रेष्ठ ! माघमास की अमावस्या की प्रयागराज में तीन करोड दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है. जो नियमापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघमास में प्रयाग स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है.
महाभारत के अनुशासन पर्व श्लोक 66/8, 106/21, 109/5 के अनुसार जो माघमास में ब्राह्मणॊं को तिल का दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता. जो नियमपूर्वक एक समय के भोजन से व्यतीत करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर कुटुम्बीजनों में महत्त्व को प्राप्त होता है. माघमास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके “श्री माधव” की पूजा करता है, उसे राजसूययज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है.
माघ मास में ऎसी विशेषता है कि इसमें प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बडा महत्व है. पद्मपुराण में माघ मास की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए एक कथा आती है. वह इस प्रकार है=
प्राचीन काल में नर्मदाजी के सुन्दर तट पर एक सुव्रत नामक ब्राहमण निवास करते थे. वे ज्योतिष, गजविद्या, अश्वविद्या, मन्त्रशास्त्र, सांख्यशास्त्र, योगशास्त्र के ज्ञाता थे और चौंसठ कलाओं का भी उन्होंने अध्ययन किया था. साथ ही वे अनेक देशों की भाषाएँ और लिपियाँ भी जानते थे. इतना सब कुछ होने पर भी उन्होंने कभी धर्म कार्यों में धन खर्च न करते हुए लोभ ही में फ़ंसे रहे. और इस तरह उन्होंने लाखों स्वर्णमुद्राएँ अर्जित कर लीं. कुछ समय पश्चात उन्हें वृद्धावस्था ने आ घेरा. सारा शरीर जर्जर होने लगा और काल के प्रवाह से सारी इन्द्रियाँ शिथिल होने लगीं. स्थिति यहाँ तक आन पडी कि वे कहीं आने-जाने में भी अपने आपको असमर्थ पाने लगे. सहसा उनके मन में विचार आया कि सारा जीवन तो धन अर्जन में लगा दिया पर परलोक सुधारने के लिए तो कुछ भी नहीं किया. एक दिन चोरों ने उनके जमा धन को चुरा लिया. धन के चोरी हो जाने पर उन्हें धन की नश्वरता का भी बोध हुआ. अब उन्हें केवल एक चिन्ता थी तो केवल परलोक सुधारने की. व्याकुलचित्त होकर वे उपाय सोच रहे थे कि अचानक उन्हें आधा श्लोक स्मरण में आया. माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति..सुव्रत को अपने उध्दार का मूल मन्त्र मिल गया था. उन्होंने माघ-स्नान क संकल्प लिया और चल दिये नर्मदा में स्नान करने के लिए. वे नौ दिन तक प्रातः नर्मदा जल में स्नान करते रहे. दसवें दिन स्नान के बाद वे अशक्त हो गए और शीत से पीड़ित हो अपने प्राण त्याग दिए. उन्होंने जीवन भर कोई सत्कर्म नहीं किया था, लेकिन माघ मास में स्नान मात्र से उनका मन निर्मल हो गया था. देहत्याग के समय एक दिव्य विमन स्वर्ग से आया और वे उसमें आरुढ़ हो स्वर्ग चले गए.
माघ मास में श्रद्धालुजन बडी संख्या में पवित्र नदियों में स्नान करने और पुण्य लाभ लेने के लिए निकल पड़ते हैं.
--
103 कावेरी नगर ,छिन्दवाडा,म.प्र. ४८०००१
श्रीयुत श्रीवास्तवजी
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार
आलेख प्रकाशन के लिए धन्यवाद.