एलर्जी..नये साल से / प्रमोद यादव नए साल का स्वागत हर कोई अपने-अपने अंदाज में करता है..कोई परिवार के साथ लजीज डिनर का आनंद लेते टी.वी.और बी...
एलर्जी..नये साल से / प्रमोद यादव
नए साल का स्वागत हर कोई अपने-अपने अंदाज में करता है..कोई परिवार के साथ लजीज डिनर का आनंद लेते टी.वी.और बीबी के संग बारह बजाता है तो कोई यार-दोस्तों के संग डांस-म्यूजिक के बीच रात गुजारता है..कोई भगवानजी के सामने नतमस्तक हो प्रार्थना करता है कि पुराना साल रो-धोकर गुजारा ..अब दया करो...कुछ भी बुरा न हो और नया साल सुखमय-मंगलमय हो..तो कोई विनती करता है कि नए साल में पुराने साल के मुनाफे से दुगुना मुनाफा हो.. मंत्री-संत्री अखबारों के माध्यम से क्षेत्र की जनता को नए साल की बधाई देते उनके उज्जवल भविष्य की कामना तो करते हैं पर मन ही मन अपने लिए दुआ माँगते हैं कि पुराने साल की तरह इस साल भी उसकी कुर्सी सलामत रहे..जो निपट गए होते हैं वे नए साल में पुनः एक अदद कुर्सी की कामना बड़ी शिद्दत से करते हैं..कुल मिलाकर देखा जाए तो नए साल से हर कोई हाथ जोड़ भिखारियों की तरह कुछ न कुछ मांगता ही दीखता है..पर मेरे एक पुराने मित्र हैं जो माँगना तो दूर की बात , नए साल का जिक्र करते ही झिटक देते हैं.. बौरा जाते हैं..भड़क जाते हैं..एक अदद बीबी और बाल-बच्चेवाले हैं पर हर नए साल में वो सबको कहीं रिश्तेदारी में बाहर भेज नए साल की पूर्व संध्या रात आठ बजे ही गहरी नींद के आगोश में समा जाते हैं..दूसरे दिन आफिस नहीं जाते...’ हैप्पी न्यू ईयर’ सुनना उसे कतई पसंद नहीं..यह सिलसिला कबसे चल रहा है,मुझे नहीं मालूम..ना ही नए साल से उसकी एलर्जी की कहानी मुझे मालूम..चार-पांच सालों से देख रहा हूँ जब पूरा संसार नए साल के स्वागत के धूम-धडाके में होता है तो ये महाशय चिरनिद्रा में लीन किसी और ही दुनिया में होता हैं..
इस साल मैंने ठान लिया था कि चाहे कुछ हो जाए इस रहस्य से तो पर्दा उठाकर ही रहूँगा कि नए साल से उसे इतनी ‘एलर्जी‘ क्यों ? आखिरकार मैं एक शाम एक अध्धी को पेंट में खोंच उसके घर गया..सौभाग्य से वह अकेला ही था..बीबी-बच्चे दो –तीन दिनों के लिए नाना के घर गए थे..दोस्त को मुफ्त की दारु पीने का ( और नानवेज खाने का ) बड़ा ही शौक....कई पार्टियों में उसे खाते देखा ..बस ..चिकन ही चिकन खाता..नो रोटी-नो दाल..इतना खाता कि उसका प्लेट हड्डियों से भर जाता..कई बार उसे छेड़ा भी कि बीस मुर्गियों की हड्डी इकट्ठी हो गई है..कुछ को उड़ा दे..नहीं तो पार्टी का आयोजक देखेगा तो तुझे उड़ा देगा..पर वह ‘हें-हें’ करते हँसता और फिर चिकन कार्नर की ओर बढ़ जाता..मुफ्त की दारु का शौक ऐसा कि कोई जानीवाकर की बोतल में पेशाब भरकर पिला दे तो पी ले..खैर इन बातों को छोडिये..रहस्य की बातों पर आते हैं..तो उस दिन उसका मूड काफी अच्छा था..जब अध्धी की बोतल दिखाया तो उसके मुंह में पानी आ गया..पहली बार उसने कहा कि चिकन उसकी तरफ से..और पूछा कि हाफ प्लेट में दोनों का हो जायेगा न? उसकी कंजूसी को देखते मैंने जवाब दिया- ‘ ज्यादा हो जाएगा यार..फिर भी..ले आ..कोशिश करेंगे..’ वह मुझे एक मैगजीन थमा मिनटों में ही पास के ढाबे से हाफ चिकन ले आया..दारू का दौर शुरू हुआ तो उसे ही ज्यादा पिलाया..और नीट ही पिलाया ( अकसर नीट ही पीता था )..खुद छोटा पैग ले पानी मिलाकर घूँट-दो घूँट ही पिया..अलबत्ता उसका हाफ प्लेट चिकन मैं अकेले ही चट कर गया.. वह थोडा शुरुर में आया और कुछ झूमने सा लगा तब मैंने धीरे से पूछा कि यार एक-दो दिन में नया साल आनेवाला है..कोई ऐसे ही पार्टी-वारटी हो जाए तो मजा आ जाये.. मेरा कहना भर था कि एकाएक वो रोने लगा..मुझे लगा था कि मेरी बात सुन वह भड़क जाएगा पर दारु ने शायद कमाल कर दिखाया..वह बिना किसी संकोच के एक लार्ज पैग के घूँट के साथ अपनी कहानी सुनाने लगा..उसकी कहानी उसकी ही जुबानी सुनिए..
बरसों पहले मैं भी काफी जोर-शोर से न्यू ईयर मनाता था यार ..आफिस के कई दोस्त मिलकर सेलीब्रेट करते थे..हर साल किसी एक दोस्त के घर में आयोजन होता..जिसकी बारी होती वो अपने परिवार को एक दिन के लिए कहीं बाहर भेज देता फिर पूरी रात हम उसके घर जश्न मनाते..खूब पीते.. खाते..नाचते-गाते..आज से सात साल पहले जब नया साल आने को था तो मेरी बारी थी.. मेरे घर में नए साल का जश्न होना था लेकिन उन्हीं दिनों मेरे बाबूजी मोतियाबिंद का आपरेशन कराने यहाँ आ गए .. तुम्हें तो मालूम है..मेरा होम टाउन तीस किलोमीटर दूर है और वहां वैसी फैसिलिटी नहीं जो यहाँ कंपनी के हास्पीटल में है..और वो भी एकदम मुफ्त सो मैंने ही उन्हें कहा था कि कभी यहाँ आओ तो करा दूँ..लेकिन वे आये भी तो दिसंबर के आखिरी दिनी में..फिर भी उम्मीद थी कि नए साल के पहले ही वे रुखसत हो जायेंगे.. वे आपरेशन के सिलसिले में पूरे दस दिन रहे..तुम तो जानते हो ..श्रीमती भी जॉब वाली है..हम दोनों दिन भर बाहर रहते..लड़का भी पूरे दिन स्कूल में होता ..सभी शाम को ही मिलते..दिन भर बाबूजी घर पर अकेले ही रहते...
हफ्ते-दो हफ्ते में एक बार होम टाउन जाना होता ही है..श्रीमती का मायका भी वहीँ है इसलिए दोनों का आना-जाना लगा रहता है..उसकी बड़ी इच्छा थी कि वहीँ एक छोटा सा नया घर किसी कालोनी में बनाए.. सो घर वालों को बिना बताये हमने एक प्लाट खरीदी और चुपके-चुपके मकान का काम शुरू कर दिया.. मकान तेजी से बनने लगा..माँ-बाबूजी को हवा तक नहीं लगने दी..मैं हर हफ्ते जाता और नए घर का काम देख,पेमेंट दे लौट आता..कई बार तो माँ-बाबूजी के पास भी नहीं जा पाता ....आफिस के दोस्तों को पता था कि घर बनवा रहे क्योंकि ठेकेदार एक-दो बार पैसा माँगने आफिस आया .. कई बार इस बात को सोच डर जाता कि किसी दिन माँ-बाबूजी को पता चलेगा तो क्या होगा ? बाबूजी से मुझे काफी डर लगता .. खैर.... मकान लगभग अंतिम चरण तक पहुँच गया था..और उन्ही दिनों बाबूजी यहाँ ईलाज के लिए आये.. स्वस्थ होने के बाद एक दिन बोले..आज सन्डे है न..चल मुझे घर छोड़ दे..एक-दो दिन में नया साल लग जाएगा..मुझे गाँव भी जाना है ..तब मैंने कहा कि आज आफिस में कुछ काम है,नहीं जा पाऊँगा..बोलो तो बस में बिठा देता हूँ.. वो क्या कहते? बोले-‘चल बिठा दे’ मैंने स्कूटर निकाली उन्हें पीछे बिठाया और बस स्टैंड जा पहुंचा..आधे घंटे तक खड़ा रहा पर कोई बस नहीं मिली..तब बाबूजी ने कहा-‘जा...तू निकल ..जब बस आएगी..मैं बैठ कर चला जाऊँगा..’ और वे सड़क किनारे के पुलिए में बैठ गए..मैं लौट आया..
दो घंटे बाद ठेकेदार का फोन आया कि तुरंत पहुँचो..निगम के कुछ अफसर आये हैं..आपको बुला रहे हैं..मैं बिना कुछ खाए-पिए तुरंत ही हेलमेट पहन स्कूटर से निकला..ज्यों ही बस स्टैंड के पास पहुंचा एक पुराने परिचित ने हाथ देकर रोका और कहा-‘ यार..कोरबा जा रहे हो ना..हमारे बाबाजी को ले जाओ ..बहुत देर से बैठे हैं..उन्हें वहां उतर देना..’ मैंने कहा-‘भेजो..’ वह मिनटों में ही बाबाजी को लाकर पीछे की सीट में लाद दिया..दोस्त ने धन्यवाद कहा और मैं स्कूटर को दौडाते आगे बढ़ गया.. अपनी धुन में सोचता चला जा रहा था कि निगम वाले क्यों आये होंगे तभी बीस किलोमीटर बाद एकाएक दर्पण में देखा कि पीछे की सीट में जो बाबाजी बैठे हैं वो बाबूजी जैसे दिख रहे..एकबारगी मैं काँप सा गया..फिर ध्यान से देखा...वो मेरे बाबूजी ही थे..मुझे काटो तो खून नहीं..उधेड़बुन में रहा कि क्या करूँ क्या न करूँ..आख़िरकार बोला- ‘अरे..बाबूजी..आप ? ’
सुनना भर था कि बाबूजी का पारा चढ़ गया..बोले-‘ तू तो कहता था..आज इधर नहीं जाना..आफिस में काम है..फिर कैसे जा रहा ?’
‘ वो क्या है बाबूजी कि काम जल्दी ख़तम हो गया तो यहाँ का एक काम याद आ गया..बताईये.. आपको कहाँ छोडू ? काकाजी के यहाँ या अपने घर..? ‘
‘ तू..मुझे कृष्णा नगर वाले नए घर में छोड़..देखूँ तो सही..क्या-क्या गुल खिलाया है..’
बाबूजी की बातें सुन मेरे पैरों की जमीन खिसक गई..मैं अकबका गया कि नए मकान के बारे में इन्हें कैसे मालूम ? चुपचाप स्कूटर चलाते उन्हें अपने सपनों के महल तक ले गया..वहां पहुंचते ही उसने जोर से चिल्लाया- ‘ रामलाल....तुम तो कहते थे नए साल के पहले ही मकान तैयार हो जाएगा फिर इतनी देरी कैसे ? तुम लोग ठीक से काम नहीं कर रहे..अब मैं आ गया हूँ..देखता हूँ नए साल तक कैसे नहीं बनता..मुझे तो एक जनवरी को हर हाल में गृह प्रवेश करना है..समझे? ‘
बाबूजी की बातें सुन मैं फिर सकपका गया..वे तो ठेकेदार के नाम से भी परिचित थे .. बहुत बाद में जाना कि जब आपरेशन कराने आये थे तो एक दिन ठेकेदार पेमेंट लेने घर आया और उनके हत्थे चढ़ गया और तब बाबूजी ने उनसे सब उलटी करवा लिया..और चुप बैठे रहे जैसे कुछ जानते नहीं....मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करू ? कहाँ जाऊं ? उन्होंने साफ़ कह दिया कि अब बार-बार यहाँ आने की जरुरत नहीं..आगे का काम मैं देख लूंगा..वैसे भी पुराना घर तो गोदाम जैसे हो गया है..ढोलूमल सिन्धी कब से उसे गोदाम के लिए किराये से माँग रहा है..अब उसे दे ही देता हूँ..अब नए साल से नए घर में रहेंगे..
मैं चुपचाप लौट आया..मेरे सपनों का महल मिनटों में खंडहर में तब्दील हो गया..नए साल में बाबूजी नए घर में शिफ्ट हो गए..श्रीमती को जब इस हादसे से अवगत कराया तो उसने आसमान सर पर उठा लिया..और सारा दोष मुझ पर ही मढ दिया.कि डरपोक हो इसलिए ये सब हुआ.. दोस्तों को नए साल की पार्टी कैंसिल करने की बात कही तो वे हंगामा करने लगे..कुल मिलाकर नया साल मुझे जबरदस्त घाल गया..तबसे नए साल के नाम से डर लगता है..इसलिए हर नए साल के आगमन के पूर्व ही तीन पैग मार आठ बजे सो जाता हूँ..
तो ये है दास्तान एक दोस्त का.. नये साल से एलर्जी का..पर यह बहुत ही कम लोगों को होती है..ईश्वर करे किसी को ऐसी एलर्जी न हो..सब धूमधाम से नए साल का स्वागत करें..नए साल में नये सपने देखें और उसे साकार करने का यत्न करें ..नए साल की अनेकानेक शुभकामनाएं....
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प्रमोद यादव
गया नगर , दुर्ग, छत्तीसगढ़
प्रिय प्रमोद जी नव वर्ष मंगलमय हो आपका व्यंग "नए साल की एलर्जी " अच्छा लगा .. बधाई
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