12 दिसंबर-109वीं जयंती पर विशेष - मुल्कराज आनंद : दलितों-पिछड़ों के रचनाकार मुल्कराज आनंद को अंग्रेजी भाषा में भारतीय उपन्यास के सं...
12 दिसंबर-109वीं जयंती पर विशेष - मुल्कराज आनंद : दलितों-पिछड़ों के रचनाकार
मुल्कराज आनंद को अंग्रेजी भाषा में भारतीय उपन्यास के संस्थापकों में से एक माना जाता है। इंडो-आंग्ल भाषा साहित्य को मुल्कराज आनंद ने उंचाई पर पहुंचाया। मुल्कराज आनंद ने अपना विपुल साहित्य गुलामी के काल में रचा लेकिन उनकी रचनात्मकता कुछ ऐसी थी कि भारत पर शासन करने वाले अंग्रेज भी उनकी लेखनी का लोहा मानते थे, उनके साहित्य को विश्वव्यापी सराहना मिली। आर के नारायण और राजा राव के साथ मिलकर इंडो-आंग्ल साहित्य की जो त्रयी बनी वह न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में प्रसिद्ध हुइ।
उपन्यासों, निबंध, कविता, लघुकथा के लिए प्रसिद्ध मुल्कराज आनंद का आंग्ल साहित्य आधुनिक भारतीय अंग्रेजी साहित्य का शास्त्रीय रचनाएं मानी जाती है। उन्होंने पिछड़ों, दलितों, हरिजनों, गरीबों और उनके गर्दिश और शोषण की कहानियाँ लिखा।
12 दिसंबर 1905 को पेशावर में जन्में मुल्कराज आनंद की प्रारंभिक शिक्षा खालसा कॉलेज अमृतसर में हुई, उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज, लंदन चले गए, जहां से उन्होंने 1929 में स्नातक की डिग्री हासिल किया।
जाति प्रथा के दंश को मुल्कराज आनंद ने बड़ी नजदीक से महसूस किया। अपने ही परिवार में उनकी चाची को एक मुस्लिम महिला के साथ खाना खाने के जुर्म में बहिष्कृत किया गया परिणामस्वरूप उनकी चाची ने आत्महत्या कर लिया। एक मुस्लिम लड़की के प्यार में मुल्कराज आनंद को तब धक्का लगा जब उस लड़की का ब्याह किसी और से कर दिया गया। प्यार का गम गलत करने के लिए मुल्कराज आनंद ने कविता का सहारा लिया और कविता के सहारे प्यार में मिले गम से उबर पाये। ये अलग बहस का मूद्दा है कि क्या कविता हमारे गम का मुदावा भी हो सकती है ? इस पर बहस फिर कभी ।
मुस्लिम लड़की से प्यार और चाची द्वारा आत्महत्या किये जाने का मुल्कराज आनंद के ह्दय को गहरा जख्म दिया, इसी जख्म को अपने सीने में दबाए मुल्कराज आनंद ने 'अनटचेबल' नामक कालजयी उपन्यास की 1935 में रचना की। यह उपन्यास एक शौचालय साफ करने वाले अछूत व्यक्ति 'बाका' की सिर्फ एक दिन की मर्मस्पर्शी कहानी है और इस उपन्यास को पढ़ने से दलित लेखकों का यह तर्क कि दलित की कहानी सिर्फ दलित ही लिख सकते है, को झूठलाता है। उपन्यास के अंत में लेखक ने अपना मत व्यक्त किया है कि 'यह तकनीक ही है जिसके मदद से 'फ्लश शौचालय' बनाया जाना चाहिए, जो शौचालय साफ करने वाले अछूत जाति का अंत कर सकता है। यह दिगर बात है कि आज भी भारत में शौचालय साफ करने वाले अछूतों को हम सामज के मुख्यधारा में नहीं ला पाए हैं। निसंदेह गरीबी और आत्मग्लानि का दंश झेलते अछूत जाति की एक मर्मस्पर्शी कालजयी उपन्यास है 'अनटचेबल'। इस उपन्यास ने मुल्कराज आनंद को इस कदर प्रसिद्धी दिलायी कि वे भारत के 'चार्ल्स डिकेंस' कहे जाने लगे। इस उपन्यास की प्रस्तावना मुल्कराज आनंद के अंग्रेज मित्र ई एम फोस्टर ने लिखा, जिनसे मुल्कराज आनंद की मुलाकात टीएस ईलियट की पत्रिका 'क्रायटेरियोन' में कार्य करते वक्त हुई थी, जो कलांतर में प्रगाढ़ मित्रता में तब्दिल हो गयी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बतौर पत्रकार मुल्कराज आनंद ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी लेखनी चलाई। उन्होंने 'गुलामी' का विरोध विश्वव्यापी तरीके से किया। वे स्पेन गृहयुद्ध में बतौर पत्रकार भाग लेने गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मुल्कराज आनंद ने बीबीसी के लिए लंदन में स्क्रीप्ट राइटर का भी कार्य किया, जहाँ उनकी मित्रता प्रसिद्ध उपन्यासकार जार्ज ऑरवेल से हुई। जार्ज ऑरवेल ने मुल्कराज आनंद के दूसरे उपन्यास 'दी सोर्ड एंड दी सिकेल' की समीक्षा भी किया जिसमें ऑरवेल ने मुल्कराज आनंद के लिखने की शैली एवं उपन्यास के कथ्य की भूरी-भूरी प्रशंसा भी किया था।
इंग्लैंड में रहते हुए मुल्कराज आनंद ने 'दी वीलेज, एक्रास दी ब्लैक वाटर, तथा दी सोर्ड एंड दी सिकेल' नामक उपन्यास लिखा। दक्षिण एशिया के संस्कृति पर कई पुस्तके यथा, पार्शियन पेंटिंग, करीस एंड अदर इंडियन डीसेस, दी हिन्दु वियू ऑफ आर्ट, दी इंडियन थीयेटर तथा सेवन लिटिल-नोन वर्डस ऑफ दी इनर आई' लिखा, जिसे भारी संख्या में पाठक मिले और अंग्रेजों के देश में एक भारतीय द्वारा अंग्रेजी में लिखकर प्रशंसा बटोरने का कार्य किया मुल्कराज आनंद ने, यह अपने आप में कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी।
1946 में भारत लौटने के बाद मुल्कराज आनंद ने अपना बहुचर्चित उपन्यास 'दी कूली' लिखा जिसमें एक पंद्रह वर्षीय गरीब भारतीय की बाल मजदूरी के मकड़जाल में फंसे रहकर गुलामी का दंश झेलता यक्ष्मा से ग्रसित होकर अंतत काल का ग्रास बन जाने की बेहद मर्मस्पर्शी कहानी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'दी प्राइवेट लाइफ ऑफ एन इंडियन प्रिंस' आत्मकथात्मक र्शली में लिखा। वैसे उनका आत्मकथात्मक उपन्यास 'सेवन एजेज ऑफ मैन' है जो चार खंड़ों में क्रमशः 'सेवन समर्स', मोर्निंग फेस, कनफेशन ऑफ अ लभर एवं दी बबल' प्रकाशित हुआ। 'मोर्निंग फेस' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से नावाजा गया था। 'दी लीफस एंड अ वर्ड, दी बीग र्हार्ट, दी गोल्डन ब्रेथ, लैमन्ट ऑन डेथ ऑफ अ मास्टर ऑफ दी आर्टस, इंडिया स्पीक्स, माया ऑफ मोहनजोदाड़ो सहित सैकड़ों उपन्यास और निबंध उन्होंने लिखा। उन्होंने 'मार्ग' नामक एक साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी किया। परतंत्र राष्ट्रों के सांस्कृतिक अस्मिता विषय पर सत्तर के दशक में मुल्कराज आनंद आइपीओ यानी अंर्तराराष्ट्रीय प्रगतिशील संगठन से जुड़े तथा आस्ट्रिया के इन्सबर्ग में दिया गया उनका वक्तव्य 'डॉयलग एमोंग सिविलायजेशन' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू तथा रवीन्दनाथ टैगोर के मानवतावादी विचारों की मूल्यपरक व्याख्या भी मुल्कराज आनंद ने किया। बर्ल्ड पीस काउंसिल द्वारा उन्हें अंर्तराराष्ट्रीय पीस प्राइज भी मिला तथा भारत सरकार ने उन्हें पदमभूषण सम्मान से विभूषित किया था।
विचारों के इतिहास, कला एवं साहित्य, राजनीति, सामाजिक विडम्बनाएं और विद्रूपताओं पर मुल्कराज आनंद ने विपुल आंग्ल साहित्य रचा, जिसे न सिर्फ देशव्यापी अपितू विश्वव्यापी प्रसिद्धि और सम्मान प्राप्त हुआ। पूणे में 28 सितंबर, 2004 को मुल्कराज आनंद का निधन हुआ।
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरंगडा
गिरिडीह-815301
झारखंड
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