भूपेन्द्र मिश्रा 'सूफी' का दार्शनिक आलेख - “जय जीव”

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“जय जीव” "२१ वीं शताब्दी : जीव -पालन की शताब्दी" एक नम्र निवेदन प्रोफेसर भूपेन्द्र मिश्रा ' सूफी ' हम आप सभी जीव हैं।...

“जय जीव”

"२१ वीं शताब्दी : जीव -पालन की शताब्दी"

एक नम्र निवेदन

प्रोफेसर भूपेन्द्र मिश्रा 'सूफी'

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हम आप सभी जीव हैं। जन्म क्षण में होता हैं , मृत्यु भी क्षण में होती हैं। मध्य में जीवन का लम्बा अंतराल और विस्तार हैं। जीना सभी चाहतें हैं , मरना कोई नहीं चाहता।

अतः हमारी आपकी सनातन शाश्वत इच्छा यही रही हैं की जिये ; सुख से जिये ; सर्वोत्तम ढंग से जिये . परम शक्ति “माँ” हैं . ये सभी जीवों का शिशुवत पालन करती हैं .मातृत्व ही नारीत्व की चरम परिणती हैं . माँ की प्रकृति hi ऐसी है कि वे जीवों का कष्ट सहन नहीं कर सकती हैं .वे सभी को कुछ देना ही चाहती हैं , किसी से कुछ लेना नहीं चाहती . जन्म निश्चित है , मृत्यु भी निश्चित है . लेकिन जीव जबतक जिये , शांति , सुख , प्रेम से जिये , परम शक्ति की यही परमाकांछा हैं.

उसके लिए जीवपालन आवश्यक हैं . जीवपालन सारे धर्मों , सारी राजनीती , सम्पूर्ण ज्ञान –विज्ञान , कला –कौशल , व्यवसाय –व्यापार आदि एवं मानव –जाति की अतीत की सारी उपलब्धियों , उसके सभी वर्तमान प्रयासों एवं झिलमिलातें हुए स्वर्णिम सपनों का सार तत्त्व हैं .हमें इस सार तत्व को ग्रहण करना चाहिए क्योंकि शास्त्रोक्ति हैं कि :

अनन्त शास्त्र बहुलास्च विद्या ,स्वल्पोहिकालो बहुविघ्नताच .

यत् सार भूतं तादुपासनीयँ , हंसोंयथाक्षीर भिवाम्बुमध्यात्.

जीवपालन में आद्याशक्ति “माँ” का असीम वात्सल्य , भगवान बुध्ध एवं महावीर की असीम करुणा , पिता ईसा मसीह का बलिदान , मुहम्मद साहब का त्याग एवं बलिदान , राष्ट्रपिता पूज्य बापू महात्मा गाँधी का सत्य- अहिन्सा एवं समस्त ऋषि – मुनियों . साधु –संतों , सूफिओं – फकीरों , मनीषियों , चिन्तकों , राजनीतिज्ञों एवं वैज्ञानिकों ,अर्थशास्त्रियों , समाजशास्त्रियों एवं इतिहासकारों , त्रिकालदर्शियों आदि के सबसे सुन्दर सपने एवं सर्वोच्च आदर्श समाहित हैं .

 

 

जीव –जीव सब एक हैं , सब में एक हीं प्राण .

अतः जीव को जो पाले , वही मनुज भगवान .

राजा – मन्त्री सब बड़े , धनवाला बड होए ,

पर जो परपीड़ा हरे, उससे बड़ा न कोय .

तन की पीड़ा सब हरे , मन की हरे न कोय ,

जो मन की पीड़ा हरे , वैसा वैद्य न कोय .

पौधों को जल, पशुओं को तृण, शिशु को फल ,देवी को फूल ,

चतुर्दान यह जो करै, विधि उसके अनुकूल .

 

 

 

अतः आइये , हम अपने सारे प्रयासों , सम्पूर्ण चिन्तन –मनन एवं अध्ययन , आध्यात्म एवं विज्ञान , आदर्शतम संस्कृति एवं उच्चतम प्रौद्योगिकी , ज्ञान , कला और कौशल , उद्योग , व्यवसाय ,व्यापार आदि को ‘जीव पालन’ के महानतम लक्ष्य को समर्पित कर एवं नित्य निरन्तर अहर्निश चलनेवाले जय ‘जीवपालन’ महायज्ञ में अपनी पूर्णाहुति अर्पित करें .

 

· विश्व मानवता का लक्ष्य हो ------ ‘जीवपालन’

· अंतरराष्ट्रीय , राष्ट्रीय संस्थाओं का आदर्श हो ------- ‘जीवपालन’

· सभी सरकारी एवं सार्वजनिक संस्थाओं का परम कर्तव्य हो ------- ‘जीवपालन’

· सामाजिक संस्थाओं की नीति हो -------- ‘जीवपालन’

· सांस्कृतिक केन्द्रों एवं धार्मिक संस्थाओं का ध्येय हो -------- ‘जीवपालन’

· प्रत्येक परिवार का परम उद्देश्य हो ------ ‘जीवपालन’

· व्यक्तियों का नैतिक दायीत्व हो ---- ‘जीवपालन’

· गाँव – गाँव में , डगर –डगर में कर उच्चारण , ‘जीवपालन’ , ‘जीवपालन’, ‘जीवपालन’, ‘जीवपालन’ , ‘जीवपालन’,

· प्रदुषण से मुक्ति एवं पर्यावरण शुद्धी किस लिए -------- ‘जीवपालन के लिए’

· भ्रस्टाचार से मुक्ति एवं सदाचार किस लिए ------- ‘जीवपालन के लिए’

· हर युद्ध से मुक्ति एवं विश्व शान्ति किसलिये ------- ‘जीवपालन के लिए’

· राजनीतिक संगठन एवं प्रशासन किसलिये ------- ‘जीवपालन के लिए’

· आध्यात्मिक उत्थान एवं सांस्कृतिक उन्नयन किसलिये --- ‘जीवपालन के लिए’

· सारा आर्थिक विकाश एवं अति उन्नत तकनीकी किस लिए ---- ‘जीवपालन के लिए’

· कला, कौशल ,विज्ञान किस लिए ---- ‘जीवपालन के लिए’

· रामायण , गीता , बाइबिल ,कुरान, गुरुग्रंथ साहिब किसलिये --- ‘जीवपालन के लिए’

· राम ,कृष्णा , हनुमान , अंगद किस लिए --- ‘जीवपालन के लिए’

· मुहम्मद , फकीर , पैगम्बर किस लिए ----- ‘जीवपालन के लिए’

· गुरु नानक , गोविन्द सिंह , गुरु तेग बहादुर किस लिए ----- ‘जीवपालन के लिए’

· गाँधी , पटेल , मोदी किस लिए -------- ‘जीवपालन के लिए’

 

जीव पालन के महानतम लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि एक नयी विश्व –व्यापी जैव संस्कृति , जैव दर्शन एवं जीवन पद्धति की आधारशिला रखी जाये . इसके लिए जीव तत्व से संबंधित आध्यात्मिक , मनोवैज्ञानिक , शारीरिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों का गहन चिंतन , मनन , विवेचन ,विश्लेषन एवं अध्ययन अध्यापन किया जाये एवं इससे अद्भुत सैद्धांतिक ढांचे को ‘जीव पालन विद्या’ या ‘संजीवनी विद्या’ या ‘अमृत विद्या’ की संज्ञा दी जाये. साथ ही सैद्धांतिक ढांचे पर आधारित जीव पालन से संबंधित कार्यक्रमों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गाँव – गाँव , नगर –नगर में विभिन्न जिवपालन परियोजनाओं के द्वारा लागु किया जाये जिससे दरिद्रता , कुपोषण , बेकारी , मंहगाई , अभाव ,अशिक्षा , भ्रस्टाचार से जीवों को मुक्ति मिले एवं प्रकृति प्रदुषण मुक्त हो . एक राष्ट्रव्यापी कालबध्ध जीव पालन परियोजना बनायीं जाये .

जीव पालन हीं हमारी भारतीय संस्कृति रही हैं . अंग्रेजी में Agriculture, Horticulture, Pisciculture, Sericulture, Babyculture, Apiculture को हिंदी में क्रमशः कृषि , पौधा पालन , मत्स्य पालन , लाहकीट पालन , शिशु पालन एवं मधुमक्खी पालन कहते हैं .अतः अंग्रेजी में ‘Bio-culture’ शब्द का अनुवाद हमारी संस्कृति एवं हिन्दी में ‘जीव पालन’ होगा .

आज भारत हीं नहीं , दुनिया के तमाम देशों में जनता एवं सरकारों की मूल समस्या आय की कमी एवं व्यय का ज्यादा होना हैं . इस असंतुलन एवं वैषम्य को जीव पालन कार्यक्रम के निम्नलिखित विकास सूत्र के द्वारा ही दूर किया जा सकता हैं .

“समय ,शक्ति ,साधन , सत्ता का सदुपयोग ही तो विकास है ,और अंततः दुरूपयोग इन सबका ही आखिर विनाश हैं .

 

 

अंततः इसका सार –सूत्र जीवन –संहार की समाप्ति यानि युध्दों की समाप्ति एवं जीव पालन यानि विकास की नयी विश्वव्यापी प्रक्रिया का सूत्रपात है . अगर ऐसा होना है तो इक्कीसवीं शताब्दी को जीव पालन की शताब्दी होना हैं .

राष्ट्रीय एवं विश्व –व्यापी स्तर पर जीव –पालन के महाभियान को लागू करने का स्वाभाविक निष्कर्ष एवं अर्थ होगा. आय एवं उत्पादन में अधिकतम वृद्धि , युद्ध व्यय में कमी ,भोग का क्षय, योग का जय , पाप की क्षय एवं पुण्य की जय . स्वाभाविक रूप से सभी देशों की सरकारों की समस्याएं कम होंगीं एवं सभी जीवों के द्वारा जीव पालन के द्वारा ‘माँ’ की सर्वोत्तम आराधना सफल होगी .

परम शक्ति का परमादेश है कि पाप से बचे और पुण्य करें .

“पुरुषार्थ और परमार्थ दोनों करें”.

“जीव –पालन के लिए जहाँ भी हो , जैसे भी हो , कर्तव्य पालन अवश्य करे”.

एक श्लोकीय योग वशिष्ठ में राजा रामचन्द्र को आदेश देते हुए गुरु वशिष्ठ कहते हैं :---

“तत्वोऽपी हि जीवन्ति मृग पक्षिणः

सजीवती मनोयस्य मननेनोप जीवतिः”.

यानि जीवन तत्त्व (प्राण तत्व ) जिसे कहते हैं , वह मानव ,पशु , पक्षी ,आदि सबों में साधारण तथा समान है किन्तु मनुष्य को पशु –पक्षियों से विभक्त करने वाली मनन –शक्ति ही हैं जिसके विकसित होने पर ही प्राणी ‘मानव’ कहला सकता है. महर्षि यास्क ने भी निरुक्त में “मत्वाकर्माणि सीन्यन्ति” कहकर वशिष्ठ उक्ति का समर्थन किया हैं , जो विशिष्ट है , वही तो वशिष्ठ है और जो जीव पालक है , वे ही वैष्णावतार श्री राम है .

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी एवं सोवियत नेता श्री गोर्वाचोव द्वारा हस्ताक्षरित ‘दिल्ली घोषणा पत्र’ में ‘जय जीव’ –‘जय जीवन’ ‘जय जगत’ के इन्हीं जीव पालन मूल मन्त्रों पर, जिसमे जीव – रक्षा एवं विकास दोनों सन्निहित हैं , की ओर संकेत किया गया है .

प्रकृति नहीं तो जड़ – जीव नहीं , जीव नहीं तो वनस्पति नहीं , वनस्पति नहीं तो पशु नहीं , पशु नहीं तो मनुष्य नहीं , और मनुष्य नहीं तो कुछ भी नहीं , - हमें इस पर्यावरणीय चक्रसूत्र को ध्यान में रखना ही होगा .

साथ ही प्रकृति में जड़ से जीव श्रेष्ठ है , जीवों में वनस्पति श्रेष्ठ है , वनस्पतियों से पशु श्रेष्ठ हैं , पशु से मनुष्य श्रेष्ठ है और मनुष्यों में भी जीव पालक वैष्णव तो श्रेष्ठातिश्रेष्ठ है क्योंकि ऐसे जीवोत्तम वैष्णवों के आराध्य वैष्णावतार श्री राम है . जीव पालक इन्सान सही अर्थों में देव –मानव या फ़रिश्ता होते हैं , जो स्वयं कष्ट सहकर भी अन्य जीवों को सुख देते हैं , इसीलिए रास्ट्रपिता पूज्य बापू गाते हैं :----

“वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीड पराई जाने रे .

पर दुखे उपकार करे तोय, मन अभिमान न आने रे” .

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इसीलिए महर्षि वेद व्यास ने अठारहों पुराणों के सार तत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है की :----

अष्टादस पुरानेषु , व्याशस्य वचनम् द्वयं ,

परोपकारः पुण्याय पापाय पड़पीड़नम्.

इसीलिए राम चरित मानस में तुलसी बाबा ने कहा हैं ----

“जय जीव “

“परहित सरिस धरम नहीं भाई ,

पड़ पीड़ा सम नहीं अधमाई” .

और इसीलिए संत कबीर ने चुनौती देते हुए और ललकारते हुए कहा :----

“कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीड़.

जो पर पीड न जानई , सो काफ़िर वे पीड”.

यही परमार्थ , यही जीव पालन तो भारतीय संस्कृति एवं जीवन पद्धति का सर्वोच्च मूल आदर्श है . तब तो श्लोक कहते है :---

“खादन्ति फलानि न स्वयंवृक्षा ,

पिवन्ति नद्यः न स्वयं नाभः .

नादंती शस्यँ खलुवारिवाहा ,

परोपकारस्य सदा विभूति”.

वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते , नदियाँ स्वयं अपना जल नहीं पीती , मेघ अपने लिए नहीं बल्कि फसलों के लिए बरसते हैं , परोपकार ही धर्म है लेकिन मनुष्य ? यही बात निम्नलिखित दोहे में कही गयी हैं :-----

“वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखै , नदी न संचे नीर .

परमारथ के कारने साधून धरा शरीर”.

कभी न कभी पश्चिम की भोगवादी सभ्यता को भारत की योगवादी संस्कृति से निम्नलिखित सीख लेनी होगी :-----

“Things for being, not being for things,

Every thing for every being,

So let’s come dance and sing,

Being and thing for well –being”.

--------- Professor Bhupendra Mishra ‘Sufi”

(Quoted from his poem ‘well being’)

पश्चिम की भोगवादी सभ्यता समय रहते यह जन लें :----

“साधु भूखा भाव का , धन का भूखा नाहीं,

धन का भूखा जी फिरै , सो तो साधु नाहीं” .

तभी जीव , जीवन और जगत सुरक्षित रह सकेंगे और हम सभी विकसित , प्रफुल्लित और आनन्दित होने में समर्थ हो सकेंगे .

 

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BIOCULTURE

----- Professor Bhupendra Mishra ‘Sufi”

Gone are the days of agriculture,

What we need is bioculture,

We plants, animals and men,

We all have a common future,

Which lies in Ecoculture,

So nurse, nourish and nurture nature,

War is vulture: peace is culture

Be free from tension and pressure,

Human nature is like Nature

Don’t talk of this, that culture,

What we need is Bioculture

All agree: non- disagreed

Life is peace, Love , Service.

 

हम सबका है एक भविष्य

हम ,पौधों , पशुओं , मनुष्यों का सदा रहा हैं एक भविष्य ,

मार- काट, आतंक युद्ध का हमको होना नहीं हविष्य .

विकृति सारी दूर करेंगे ,

संस्कृति को अपनाएंगे .

अपनी प्यारी धरती को हम ,

कंचनवत चमकाएंगे .

एक हमारी धरती माँ हैं ‘

हम सब हैं जिसकी संतान .

कभी नहीं हैवान बनेंगे ,

हमको बनना है इन्सान .

कविता उठी पुनः ललकार ,

जाग हमारे हिंदुस्तान .

समय मांगता लहू – पसीना ,

सिध्दि मांगती है बलिदान .

बहुत हुआ मुद्रा निर्माण ,

अब कुछ हो मानव निर्माण .

जागो सारे विश्ववाशियों ,

जागो ऐ मजदूर किसान .

 

प्रोफेसर भूपेन्द्र मिश्रा 'सूफी'

जय जीव संस्थान ,

बखरा (पोस्ट)

जिला – मुजफ्फरपुर (बिहार)

पिन -८४३१०१

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रचनाकार: भूपेन्द्र मिश्रा 'सूफी' का दार्शनिक आलेख - “जय जीव”
भूपेन्द्र मिश्रा 'सूफी' का दार्शनिक आलेख - “जय जीव”
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