यूजिन आयनेस्को का नाटक पाठ एक प्रहसन (मूल रूसी से अनुवाद - नरेन्द्र जैन) पात्र प्रोफे़सर : पचपन से साठ उम्र के दरमियान छात्रा : ...
यूजिन आयनेस्को का नाटक
पाठ
एक प्रहसन
(मूल रूसी से अनुवाद - नरेन्द्र जैन)
पात्र
प्रोफे़सर : पचपन से साठ उम्र के दरमियान
छात्रा : अठारह वर्षीय
नौकरानी : पैंतालिस से पचास की उम्र के दरमियान
दृश्य : (बूढ़े प्रोफ़ेसर का अध्ययन कक्ष जो उनका भोजन कक्ष भी है। मंच के बायीं ओर सीढ़ियों की तरफ़ खुलने वाला द्वार है। पिछले हिस्से में, दायीं तरफ़, बरामदे की ओर खुलता द्वार है। मंच के सामने थोड़ा बायीं तरफ़ खिड़की है जिस पर सादा परदा डला है और उसके बाहर पत्थर पर फूलों के गमले रखे हैं। कुछ दूरी पर नीची लाल छतों वाले घर देखे जा सकते हैं।
वह छोटा क़स्बा भी और नीला भूरा आकाश। बायीं ओर एक सादा ड्रेसिंग टेबल है। मेज़ जो एक डेस्क का काम भी देती है, कमरे के मध्य में रखी है। मेज़ के इर्द-गिर्द तीन कुर्सियाँ, खिड़की के आजू बाजू दो कुर्सियाँ, दीवार पर मढ़ा गया रंगीन काग़ज़ और अलमारी में कुछ किताबें हैं।)
(जब परदा उठता है, मंच ख़ाली नज़र आता है। लेकिन देर तक वह ख़ाली नहीं रहेगा। अभी द्वार की घंटी बजी है और मंच के पार्श्व से नौकरानी की आवाज़ सुनायी दे रही है)
आवाज़ : हाँ हाँ, मैं सुन रही हूँ (उसके दौड़ने की ध्वनि सुनायी देती है और वह प्रकट होती है। नौकरानी का जिस्म गठा हुआ, चेहरा लाल, सिर पर कास्तकारों जैसी टोपी, उम्र पैंतालिस से पचास के बीच। वह हवा के तेज़ झोंके की तरह आती है, अपने पीछे दरवाजे़ को भड़भड़ाती हुई अपने एप्रन से हाथ पोंछती, बायीं ओर के द्वार की तरफ़ भागती है। तभी उसे दूसरी घंटी सुनायी देती है।)
नौकरानी : ठीक है बाबा, ठीक है, मैं आ ही रही हूँ।
(वह दरवाज़ा खोलती है। दरवाजे़ पर एक अठारह साला छात्रा, भूरी पोशाक, सफे़द कॉलर पहने, हाथ में ब्रीफकेस लिये नमूदार होती है।)
नौकरानी : सुप्रभात, मदाम, सुप्रभात!
छात्रा : सुप्रभात! क्या प्रोफ़ेसर घर में हैं?
नौकरानी : क्या आप अपने पाठ के सिलसिले में आयी हैं मदाम?
छात्रा : हाँ, यही बात है।
नौकरानी : वे आपकी ही प्रतीक्षा में हैं। यहाँ कुछ देर बैठें। मैं जाकर उन्हें ख़बर करती हूँ।
छात्रा : बहुत शुक्रिया!
(वह दर्शकों के सम्मुख होती हुई मेज़ के क़रीब बैठ जाती है। दायीं ओर का द्वार उसके पीछे है जिससे गुज़रकर नौकरानी चिल्ला रही है)
नौकरानी : महोदय, क्या आप नीचे आयेंगे? आपकी छात्रा आ चुकी है।
(प्रोफ़ेसर की सीटीभरी आवाज़ सुनायी देती है)
आवाज़ : तुम्हारा शुक्रिया! मैं आ रहा हूँ। बस दो ही मिनट में पहुँच रहा हूँ।
(नौकरानी बाहर चली गयी है। छात्रा एक अच्छी लड़की की तरह कुर्सी के भीतर दोनों पांव सिकोड़कर, घुटनों पर ब्रीफकेस रखे, एक या दो नज़र कमरे, फर्नीचर और छत पर डालती प्रतीक्षा करने लगती है। फिर वह ब्रीफकेस से अपनी नोटबुक निकालती है और पृष्ठ पलटती है। कुछ देर वह एक पृष्ठ पर ठिठकी रहती है, गोया, पाठ याद कर रही हो। फिर पृष्ठों पर एक आखि़री नज़र डालती है। वह एक नम्र और बेहतर ढंग से पली बढ़ी लड़की की तरह नज़र आती है। और वह बेहद चुस्त दुरुस्त और ख़ुशमिजाज़ क़िस्म की लड़की है। उसकी मुस्कान चमकदार है। जैसे-जैसे नाटक अपनी गति से बढ़ता है, लड़की के सारे क्रियाकलाप और उसकी चालढाल अपना प्रभाव खोने लगते हैं। एक खु़शगवार लड़की से वह धीरे-धीरे एक उदास और जड़ लड़की में तब्दील होने लगती है। एक प्रभावी शुरुआत के बाद अपने पाठ के दौरान वह और ज़्यादा थकानग्रस्त और उनींदी नज़र आने लगती है। नाटक के अंत के क़रीब उसके हावभाव से साफ़-साफ़ ‘डिप्रेशन' झलकने लगता है और यह उसके बोलने के ढंग, जीभ के लड़खड़ाने, शब्दों के तकलीफदेह ढंग से उसके दिमाग़ में आने और उसी तकलीफदेह ढंग से उसकी जु़बान पर आने, गोया उसे कोई लकवा मार गया हो, से दिखलाई देने लगता है। शुरुआत के आक्रामक ढंग से अंत में वह बेहद ग़मगीन हो जाती है, जब तक कि वह एक ‘चीज़' में नहीं बदल जाती। गोया वह प्रोफ़ेसर के हाथ में कोई ‘बेजान चीज़' हो, और जब प्रोफ़ेसर शुरुआत के लिये प्रस्तुत होते हैं, छात्रा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती। बेजान-सी उसकी छवि में कोई हरकत नहीं होती। सिर्फ़ उसकी आँखें उसके अवर्णनीय सदमे और ग़म को व्यक्त कर रही होती हैं। एक मनःस्थिति से दूसरी में प्रविष्ट होना, यह गोत्रांतर, धीमी गति से घटित हो रहा होता है)
(प्रोफ़ेसर प्रवेश कर रहे हैं, नुकीली सफ़ेद दाढ़ी, नाक पर अटकी बग़ैर फ्रेम की ऐनक, काली टोपी से ढँकी खोपड़ी, शिक्षक द्वारा पहना जानेवाला लंबा काला गाऊन, काली पतलून, काले जूते, कड़क सफ़ेद कॉलर और काली टाई पहने एक छोटे कद के बूढ़े व्यक्ति, बेहद नम्र, बेहद शर्मीले, कायरता से ओतप्रोत एक आवाज़, बेहद दुरुस्त, बेहद अध्यवसायी। वे लगातार अपने हाथों को रगड़ते रहते हैं। अभी और दोबारा कोई कौंध जो सहसा लुप्त हो जाती है, उनकी आँखों में झलकती है। नाटक के दौरान उनकी कायरता का भाव धीमे-धीमे सूक्ष्म तरीके से अदृश्य हो जाता है। आँखों की कामुक चमक किसी आग्रही, लंपट और निगल जाने को आतुर लपटों में ख़त्म हो जाती है। स्पष्टतया शुरुआत में वे अनाक्रामक हुआ करते हैं लेकिन धीमे-धीमे अपने आपमें दृढ़निश्चयी, उत्तेजित, आक्रामक और प्रभुत्वशाली होते जाते हैं, जब तक कि वे अपनी छात्रा के संग वही कुछ कर सकते हैं जिसे करने में उन्हें खु़शी महसूस होती है क्योंकि छात्रा अब तक उनके हाथों में मिट्टी का एक लोंदा भर है। स्वाभाविक तौर पर प्रोफ़ेसर की आवाज़ शुरुआत में महीन और सीटीभरी आवाज़ से भारी और गंभीर आवाज़ में तब्दील होती चली जाती है। जबकि छात्रा की आवाज़ जो शुरुआत में बेहद साफ़ और गुंजायमान रही है, धीमे-धीमे इस तरह हो जाती है कि उसे सुनना मुश्किल जान पड़ता है। नाटक के खुल रहे परिदृश्य में प्रोफ़ेसर थोड़ा बहुत हकलाते हैं)
प्रोफ़ेसर : सुप्रभात! सुप्रभात! तुम हो․․․ तुम हो․․․ मेरा मतलब है तुम वास्तव में एक नयी छात्रा हो?
(छात्रा तेज़ी से और सहज ढंग से घूमती है। वह युवा है। वह उठती है और अपना एक हाथ बढ़ाये प्रोफ़ेसर की जानिब बढ़ती है)
छात्रा : हाँ, महोदय, सुप्रभात! आप देख रहे हैं कि मैं वक़्त पर आयी हूँ। मैं कोई विलंब करना नहीं चाहती थी।
प्रोफ़ेसर : बहुत बढि़या। हाँ, ये बहुत बढि़या है। शुक्रिया। लेकिन तुम्हें इतनी जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं थी। मैं वाक़ई नहीं समझ पा रहा कि इतना इंतज़ार करवाने के लिये कैसे तुमसे क्षमायाचना करूं? मैं बस कुछ काम निपटा ही रहा था। तुम समझ रही हो न․․․ मैं बस कुछ यूं ही․․․ मुझे मुआफ़ करना, मुझे उम्मीद है तुम मुझे माफ़ करोगी।
छात्रा : ओह, लेकिन महोदय, आपको यह सब नहीं कहना चाहिये। यह सब तो एकदम दुरुस्त ही है महोदय!
प्रोफ़ेसर : मेरी क्षमायाचना स्वीकार करो। क्या घर खोजने में तुम्हें कोई दिक़्क़त पेश आयी?
छात्रा : बिल्कुल नहीं। एकदम बिल्कुल ही नहीं। लेकिन मैंने रास्ता पूछ लिया था। यहाँ हरेक शख़्स आपको जानता है।
प्रोफ़ेसर : हाँ, तीस बरसों से मैं इस शहर का बाशिंदा हूँ। मुझे लगता है तुम काफ़ी अर्से से यहाँ नहीं रही हो। तुम्हें यह शहर कैसा लगता है?
छात्रा : ओह, मैं इसे बिल्कुल भी नापसंद नहीं करती। यह एक खू़बसूरत शहर है। वाक़ई दिलफ़रेब। एक सुंदर पार्क, लड़कियों का छात्रावास और एक पादरी भी है और प्यारी दुकानें, गलियाँ और चौराहे।
प्रोफ़ेसर : एकदम ठीक। वाक़ई तुम एकदम ठीक हो। फिर भी तुम जानती हो कि मैं जल्द ही कहीं और बसना चाहूँगा। मिसाल के तौर पर पेरिस या कम से कम बोर्डेक्स जैसी जगह।
छात्रा : क्या आपको बोर्डेक्स पसंद है महोदय?
प्रोफ़ेसर : पक्के तौर पर मैं बतला नहीं सकता। मैं वाक़ई नहीं जानता।
छात्रा : लेकिन आप पेरिस को जानते हैं?
प्रोफ़ेसर : जैसे कि बोर्डेक्स, वैसे तो पेरिस को नहीं जानता लेकिन यदि तुम मुझे अनुमति दो, शायद तुम मुझे बतला सको कि पेरिस किस देश का मुख्य शहर है?
(छात्रा कुछ देर के लिये खोजती है फिर उत्तर मिल जाने पर खु़श होती है)
छात्रा : पेरिस फ्रांस का एक मुख्य शहर है।
प्रोफ़ेसर : लेकिन․․․ हाँ․․․ वाक़ई हाँ․․․ शाबाश․․․ ये बहुत उम्दा है। यह सब सर्वश्रेष्ठ है। मैं तुम्हें मुबारकबाद पेश करता हूँ। अपने देश का भूगोल गोया तुम्हारी अंगुलियों पर है। तुम्हारे तमाम भव्य शहर․․․
छात्रा : ओह, अभी मैं उन सबके बारे में नहीं जानती महोदय। यह सब उतना आसान भी नहीं है। यह सब सीखना ख़ासा मुश्किल है।
प्रोफ़ेसर : यह सब अपने वक़्त पर होगा ही। सब्र रखें मदाम! मुझे मुआफ़ करें․․․ थोड़ा सा सब्र․․․ धीमे-धीमे यह सब होगा ही। तुम देखोगी कि वह सब होगा। ये मौसम कितना खु़शनुमा है․․․ या शायद नहीं है․․․ और․․․ लेकिन, आखि़रकार क्यों नहीं? कम से कम वह इतना खराब भी नहीं है और․․․ कि बरसात नहीं हो रही है। वास्तव में बर्फ़ भी नहीं गिर रही है।
छात्रा : गर्मी के मौसम में बर्फ़बारी एक हैरतअंगेज़ बात होगी महोदय!
प्रोफ़ेसर : मुआफ़ करें मदाम, मैं यह कहने ही जा रहा था लेकिन तुम सीख जाओगी कि हमें किसी भी चीज़ के लिये तैयार रहना ही चाहिए।
छात्रा : हाँ महोदय, यह तो ज़ाहिर है।
प्रोफ़ेसर : हमारी इस दुनिया में, मदाम, हम किसी भी चीज़ को यक़ीनी तौर पर नहीं मान सकते।
छात्रा : जाड़ों में बर्फ़ गिरती है। चार मौसमों में से एक इसका भी मौसम हुआ करता है। दूसरे तीन मौसम हैं․․․ हैं․․․ हैं․․․ हैं․․․
प्रोफ़ेसर : हाँ, हाँ बतलाओ!
छात्रा : बसंत और उसके बाद ग्रीष्म और उसके बाद․․ उसके बाद․․ उसके बाद․․․
प्रोफ़ेसर : मदाम, वह मौसम आटोमोबाइल जैसे नाम वाला है।
छात्रा : हाँ, हाँ, याद आया पतझर, ऑटम․․․ ।
प्रोफ़ेसर : यह दुरुस्त है मदाम! बेहद दुरुस्त उत्तर। वास्तव में सर्वोत्तम। मैं यक़ीनी तौर पर कह सकता हूँ कि तुम एक शानदार छात्रा साबित होओगी। तुम्हारी प्रगति तारीफ़ के क़ाबिल है। तुम बुद्धिमान हो। तुम्हारी जानकारियाँ और तुम्हारी याददाश्त शानदार है।
छात्रा : मैं वाक़ई अपने मौसमों के बारे में जानती हूँ। जानती हूँ न महोदय?
प्रोफ़ेसर : बेशक, मदाम, तुम जानती ही हो। मैं तो कहूँगा कि सब जानती हो लेकिन वह सब अपने वक़्त पर आयेगा। वैसे भी ये वाक़ई बुरा भी नहीं है। उन तमाम मौसमों के बारे में तुम एक दिन में जान जाओगी। तुम्हारे सारे मौसम, मदाम, मेरी तरह आँखें बंद किये तुम जान जाओगी।
छात्रा : वह सब बेहद मुश्किल है।
प्रोफ़ेसर : वाक़ई ऐसा नहीं है। बस थोड़ी सी कोशिश, थोड़ी सी ख़्वाहिश मदाम, तुम देखोगी वह सब होगा। मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ।
छात्रा : ओह महोदय, मुझे यही उम्मीद है। मैं ज्ञान की भूखी हूँ और मेरे अभिभावक भी चाहते हैं कि अपने अध्ययन में मैं डूबी ही रहूँ․․․ वे चाहेंगे कि मैं किसी भी विषय में दक्षता हासिल करूं। वे मानते हैं कि इस दौर में मेहनत से सीखा गया थोड़ा बहुत सांस्कृतिक बोध हमें ज़्यादा दूर तक नहीं ले जा सकता।
प्रोफ़ेसर : मदाम, आपके अभिभावक एकदम सही हैं। तुम्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी ही चाहिये। यह कहने के लिये मुझे मुआफ़ करना लेकिन यह वाक़ई बेहद जरूरी है। आधुनिक जि़ंदगी बेहद पेचीदा हो गयी है।
छात्रा : पेचीदा और उलझन भरी। मैं खु़शनसीब हूँ कि मेरे अभिभावक ग़रीब नहीं हैं। अपने काम में वे मेरी हरचंद मदद करेंगे और ऊँचा से ऊँचा पायदान मैं हासिल करूंगी।
प्रोफ़ेसर : और तुम किसी साक्षात्कार के लिये आवेदन देना चाहोगी?
छात्रा : जितनी जल्दी हो सके मैं डाक्टरेट पाने के लिये अपना काम शुरू करना चाहूँगी। तीन हफ्तों में ही।
प्रोफ़ेसर : चलो अब देखते हैं मदाम, क्या तुम मुझे प्रश्न करने दोगी? तुम्हारे पास तुम्हारा स्कूल छोड़ने विषयक प्रमाणपत्र तो है ही।
छात्रा : हाँ महोदय, कला और विज्ञान विषयों के लिये।
प्रोफ़ेसर : ओह, लेकिन तुम्हारी उम्र के लिहाज़ से तुम बेहद विकसित नज़र आती हो। और किन विषयों में तुम डाक्टरेट हासिल करना चाहती हो? भौतिक विज्ञान या साधारण दर्शनशास्त्र?
छात्रा : मेरे अभिभावक तो चाहते हैं कि मैं तमाम डाक्टरेट हासिल करूं। अगर महोदय, आप सोचते हैं कि इतने कम वक़्त में मैं यह सब कर लूंगी?
प्रोफ़ेसर : तमाम विषयों में डाक्टरेट? तुम तो बेहद साहसी हो मदाम, मैं दिल की गहराइयों से तुम्हारा अभिनंदन करना चाहता हूँ। ठीक है, अब हम कोशिश करेंगे मदाम, और हम तुम्हारे लिये सब कुछ बेहतर ही करेंगे। दूसरी बात ये कि तुम बेहद ज्ञानसंपन्न हो मदाम और बेहद जवान भी हो․․․
छात्रा : ओह․․․ महोदय!
प्रोफ़ेसर : तो ठीक है। खोने के लिये हमारे पास वक़्त नहीं है। यदि तुम मुझे माफ़ करो। यदि तुम्हारी कृपा हो, हम शुरुआत कर सकते हैं।
छात्रा : क़तई नहीं महोदय, कृपया माफ़ी न माँगें। मैं तो शुरू करने के लिये बेताब हूँ।
प्रोफ़ेसर : शायद मैं तुमसे कहूं कि मेहरबानी करके उस कुर्सी पर बैठ जाओ। वह कुर्सी․․․ और मुझे आज्ञा दो मदाम, ग़र कोई एतराज़ न हो तो मैं तुम्हारे सामने बैठ जाऊँ?
छात्रा : बेशक महोदय? लेकिन ख़ैर․․․ आप शुरू करें।
प्रोफ़ेसर : धन्यवाद मदाम․․․
(वे दोनों एक दूसरे के सामने मेज़ के क़रीब बैठ जाते हैं। दर्शकों की तरफ़ मुख़ातिब होते हुए)
प्रोफ़ेसर : तो अब हम यहाँ हैं। तुम अपनी पाठ्यपुस्तक और नोटबुक अपने संग लायी हो?
(छात्रा ब्रीफकेस से निकालती है)
छात्रा : हाँ महोदय, मैं आपके लिये तैयार हूँ․․․
प्रोफ़ेसर : बढि़या, बहुत बढि़या मदाम! और अग़र तुम्हें कोई एतराज़ न हो तो हम शुरू करें।
छात्रा : हाँ महोदय, मैं एकदम तैयार हूँ आपके लिए।
प्रोफ़ेसर : मेरे लिये तैयार हो? (आँखों में एक चमक कौंधती है और उसी पल ग़ायब हो जाती है) यह तो मैं हूँ मदाम, जो तुम्हारे लिये तैयार हूँ। मैं तुम्हारी खि़दमत में हूँ।
छात्रा : ओह वाक़ई․․․ महोदय!
प्रोफ़ेसर : तक ठीक है․․․ अगर तुम․․․ हम․․․ हम․․․ यानि मेरा मतलब है कि मैं शुरुआत में एक छोटा सा इम्तहान लूंगा जो तुम्हारे अब तक हासिल किये गये ज्ञान पर केंद्रित होगा। उससे मुझे अंदाज़ होगा कि आगे किस दिशा में हमें बढ़ना है। बेहतर है, तो बहुवचन के विषय में तुम क्या जानती हो?
छात्रा : मेरी समझ थोड़ी भ्रामक और उलझी हुई है।
प्रोफ़ेसर : बढि़या है। हम इस पर रौशनी डालेंगे।
(वह अपने हाथ रगड़ता है। नौकरानी कमरे में प्रवेश करती है और इससे प्रोफ़ेसर बेचैन हो उठता है। नौकरानी दराजों में कुछ ढूंढती हुई वहीं मंडराती है)
ठीक है मदाम, थोड़े बहुत अंकगणित के बारे में क्या ख़्याल है? यानि मेरा मतलब है अगर तुम्हें एतराज़ न हो․․․
छात्रा : बेशक महोदय, मैं राज़ी हूँ, इससे बेहतर तो कोई चीज़ है ही नहीं।
प्रोफ़ेसर : यह विषय विशु( रूप से एक नया विज्ञान है। एक आधुनिक विज्ञान। खुले शब्दों में मैं उसे विज्ञान के बजाय एक विधि कहना चाहूँगा। यह एक क़िस्म की चिकित्सा भी है। (नौकरानी से) ․․․मैरी, क्या तुम्हारा काम ख़त्म हुआ?
नौकरानी : हाँ महोदय, मैं जिस तश्तरी को ढूंढ रही थी वह मिल गयी है। मैं जा ही रही हूँ।
प्रोफ़ेसर : जल्दी करो, पीछे रसोई में चली जाओ।
नौकरानी : हाँ महोदय, मैं जा रही हूँ (जाने लगती है फिर․․․) मुझे मुआफ़ करें महोदय, कृपया सावधानी बरतें और उत्तेजित न हों।
प्रोफ़ेसर : मैरी, इतनी बेतुकी मत बनो। चिंता की कोई बात नहीं है।
नौकरानी : लेकिन यह सब आप कहते ही रहते हैं।
प्रोफ़ेसर : तुम्हारी धारणाएँ पूरी तरह आधारहीन हैं। आखिरकार मैं इतना उम्रदराज़ हूँ कि मैं बेहद दुरुस्त तरीक़े से पेश आ सकता हूँ।
नौकरानी : यह तो है ही महोदय, बेहतर होगा कि मदाम के साथ आप अंकगणित की शुरुआत न करें। अंकगणित से किसी का भला नहीं हुआ है। वह आपको थका देता है और अस्तव्यस्त कर देता है।
प्रोफ़ेसर : इसके लिये अब मैं काफ़ी पुराना हो चुका हूँ और वैसे भी यह सब तुम्हारे कार्यक्षेत्र से बाहर की चीज़ है। यह मेरा पक्ष है और मैं जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ? तुम्हें कोई हक़ नहीं कि तुम अपनी टांग अड़ाओ।
नौकरानी : बेहतर है महोदय, लेकिन मुझसे बाद में मत कहियेगा कि मैंने आपको आगाह नहीं किया।
प्रोफ़ेसर : तुम्हारी चेतावनियों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है मैरी!
नौकरानी : महोदय, वही करें जो आपको दुरुस्त लगता है। (वह चली जाती है)
प्रोफ़ेसर : इस फूहड़ रुकावट के लिये मुझे बेहद अफ़सोस है मदाम। तुम्हें समझना चाहिये कि यह बेचारी औरत हमेशा भयभीत रहती है कि मैं अपने आपको थका लूंगा। वह मेरी सेहत के लिये फिक्रमंद है।
छात्रा : ओह, महोदय, कोई बात नहीं। इससे पता चलता है कि वह आपके प्रति समर्पित है। वह आपको बेहद पसंद करती है। आजकल अच्छी बाइयाँ मिलना बेहद मुश्किल है।
प्रोफ़ेसर : वह बेहद ज़्यादती कर देती है। इतना घबराना एक फूहड़ बात है। चलो, हम अपनी अंकगणित की भेड़ों की तरफ़ चलते हैं।
छात्रा : मैं आपके पीछे ही हूँ महोदय!
प्रोफ़ेसर : (मज़ाक़ में) लेकिन देखता हूँ कि तुम अब तक बैठी ही हो।
छात्रा : (मज़ाक़ की तारीफ़ करते हुए) आप भी महोदय, खू़ब हैं!
प्रोफ़ेसर : ठीक है। क्या हम थोड़ा सा अंकगणितीय हो लें?
छात्रा : मुझे ख़ुशी होगी महोदय!
प्रोफ़ेसर : तब शायद तुम्हें उत्तर देने में एतराज़ न होगा?
छात्रा : एकदम नहीं महोदय, कृपया आगे बढ़ें।
प्रोफ़ेसर : एक और एक कितने होते हैं?
छात्रा : एक और एक दो होते हैं।
प्रोफ़ेसर : (छात्रा की विद्वत्ता से चकित होते हुए) यह बेहद दुरुस्त है। तुम अपने अध्ययन में काफ़ी आगे हो। तुम्हें अपनी तमाम डाक्टरेट की परीक्षाओं में ज़रा भी दिक़्क़त पेश नहीं आयेगी।
छात्रा : महोदय, यह सुनकर मैं बेहद खु़श हूँ खासतौर से आपसे․․․
प्रोफ़ेसर : हम थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। दो और एक कितने होते हैं?
छात्रा : तीन।
प्रोफ़ेसर : तीन और एक?
छात्रा : चार।
प्रोफ़ेसर : चार और एक?
छात्रा : पांच।
प्रोफ़ेसर : पांच और एक?
छात्रा : छह।
प्रोफ़ेसर : छह और एक?
छात्रा : सात।
प्रोफ़ेसर : सात और एक?
छात्रा : आठ।
प्रोफ़ेसर : सात और एक ?
छात्रा : अब भी आठ ही हुए।
प्रोफ़ेसर : बेहद दुरुस्त जवाब दिया फिर से सात और एक?
छात्रा : फिर से आठ।
प्रोफ़ेसर : शानदार! दुरुस्त सात और एक।
छात्रा : चौथी बार आठ ही हुए। किसी किसी बार नौ भी होते हैं।
प्रोफ़ेसर : अद्भुत है। तुम शाहकार हो, शानदार हो, उत्कृष्ट हो। मेरी हार्दिक बधाइयाँ मदाम। अब आगे बढ़ने में कोई तुक नहीं है। संख्याओं को जोड़ने में तुम अव्वल हो। अब हम संख्याओं को घटाने का पाठ देखें। बस इतना बतलाओ, अगर तुम थक नहीं गयी हो तो चार में से तीन घटाने पर क्या बचता है?
छात्रा : चार में से तीन․․․․․ चार में से तीन ․․․․
प्रोफ़ेसर : हाँ यही प्रश्न है, मेरा मतलब है कि चार में से तीन घटाने पर क्या बचा है?
छात्रा : वह संख्या सात है।
प्रोफ़ेसर : मुझे बेहद अफ़सोस है कि मैं तुम्हारी बात काट रहा हूँ मदाम, लेकिन चार में से तीन घटाने पर सात नहीं बचता। तुम घालमेल कर रही हो। तीन और चार का जोड़ सात होता है। चार में से तीन घटा दो क्या बचता है? पर जोड़ने का नहीं घटाने का प्रश्न है।
छात्रा : (प्रश्न समझने की माथापच्ची करती है) हाँ ․․․ मैं देख रही हूँ महोदय।
प्रोफ़ेसर : चार में से तीन, चार में से तीन क्या बचता है? कितना ? कितना?
छात्रा : चार
प्रोफ़ेसर : नहीं मदाम, उत्तर यह नहीं है।
छात्रा : तब तीन बचता है।
प्रोफ़ेसर : मदाम, यह भी नहीं है। मैं वाक़ई मुआफ़ी चाहता हूँ मदाम, वह तीन नहीं होगा, मुझे बेहद अफ़सोस है।
छात्रा : चार में से तीन घटाओ। चार में से तीन हटा दो ․․․․ चार से तीन ․․․․ मुझे लगता है․․․․ क्या वह दस होगा?
प्रोफ़ेसर : ओह मेरी प्यारी मदाम, लेकिन तुम्हें अंदाज़ से ही काम नहीं चलाना चाहिए। पक्के तौर पर जानना चाहिये। क्या हम कोशिश करें और साथ-साथ उत्तर ढूंढें? क्या तुम संख्याओं को गिन सकती हो?
छात्रा : हाँ महोदय, एक दो तीन․․․․
प्रोफ़ेसर : तुम्हें पता है कि संख्या कैसे गिनी जाती है। ठीक है तुम किस संख्या तक गिन सकती हो?
छात्रा : मैं अंतिम संख्या तक गिन सकती हूँ।
प्रोफ़ेसर : यह तो नामुमकिन है।
छात्रा : अच्छा तो मैं सोलह तक ही गिन सकती हूँ।
प्रोफ़ेसर : यह तो बहुत है। हम सबको अपनी सीमाओं का पता होना ही चाहिए। कृपया गिनना शुरू करो।
छात्रा : एक, दो, और फिर दो के बाद तीन चार ․․․․
प्रोफ़ेसर : यहीं रुको मदाम। कौन सी संख्या बड़ी है। तीन या चार?
छात्रा : ओह तीन या चार? कौन सी बड़ी है? तीन और चार में सबसे बड़ी? लेकिन किस लिहाज़ से बड़ी महोदय?
प्रोफ़ेसर : कुछ संख्याएं दूसरी से छोटी होती हैं। बड़ी संख्या में छोटी संख्या के मुकाबले ज़्यादा इकाइयाँ होती हैं।
छात्रा : फिर छोटी संख्याओं में?
प्रोफ़ेसर : हाँ, छोटी संख्याओं में छोटी इकाई होती है। यदि सारी इकाइयाँ छोटी हैं तो उनमें बड़ी संख्या की अपेक्षा ज़्यादा इकाइयाँ होती हैं। यानि यदि वे एक सी इकाइयाँ न हों तो।
छात्रा : इस दृष्टि से छोटी संख्या बड़ी संख्या से भी बड़ी हो सकती है।
प्रोफ़ेसर : हां ठीक है, हम उसमें नहीं जायेंगे, वह हमें बहुत दूर तक ले जायेगा। मैं सिर्फ़ यह अहसास तुम्हें करवाना चाहता हूँ कि संख्याओं से परे भी दूसरी चीज़ें हुआ करती हैं। वहाँ आकार भी हुआ करते हैं। जोड़ होते हैं, समूह होते हैं, ढेरियाँ होती हैं जैसे नर-मादा, बत्तखें, गोभी के फूल और बादशाह वग़ैरह वग़ैरह। चलो सरलीकरण के लिए हम मान लेते हैं कि जिन संख्याओं पर हम काम कर रहे हैं वे सब एक ही प्रकार की हैं। फिर सबसे बड़ी संख्याएं वे होंगी जिनमें सबसे ज़्यादा इकाइयाँ होंगी।
छात्रा : वह संख्या जिसमें सबसे ज़्यादा इकाइयाँ हैं वह सबसे बड़ी है। मैं अब समझ गयी महोदय कि आप मात्रा और गुणवत्ता का समीकरण बिठा रहे हैं।
प्रोफ़ेसर : यह थोड़ा ज़्यादा ही सैद्धांतिक है मदाम! बेहद सैद्धांतिक। तुम्हें इसकी फ़िक्र नहीं करनी चाहिये। अब हम एक उदाहरण लें और एक ख़ास पक्ष पर विचार करें। हमारे सामान्य उत्तर बाद में आयेंगे। हमारे पास चार और तीन की संख्या है। हरेक के पास उनकी इकाइयाँ हैं। कौन सी संख्या बड़ी होगी? छोटी संख्या या बड़ी संख्या?
छात्रा : मुझे अफ़सोस है महोदय लेकिन बड़ी संख्या से आपका क्या आशय है? क्या वह ऐसी संख्या है जो दूसरी संख्या से थोड़ी छोटी है?
प्रोफ़ेसर : हाँ, वही बात है मदाम, एकदम यही बात है। तुम सही ढंग से समझ गयी हो।
छात्रा : तब तो वह संख्या चार है।
प्रोफ़ेसर : चार क्या है? तीन से बड़ी या छोटी?
छात्रा : छोटी․․․․ नहीं ․․․․․ बड़ी
प्रोफ़ेसर : दुरुस्त जवाब है मदाम! तीन और चार के बीच कितनी इकाइयाँ ग़ायब हैं?
छात्रा : कोई इकाई ग़ायब नहीं है महोदय। चार तीन के एकदम बाद आता है। तीन और चार के बीच कुछ भी नहीं है।
प्रोफ़ेसर : मैं खु़द ही सही तरीक़े से अपने आपको समझा नहीं पाया हूँ। बगैर शक़ के यह मेरा ही दोष है मदाम! मैं खु़द ही अपने आपमें स्पष्ट नहीं हूँ।
छात्रा : ओह, नहीं नहीं महोदय, दोष तो सारा मेरा ही है।
प्रोफ़ेसर : सुनो, यहाँ तीन माचिसें हैं और यह एक और माचिस है। ये मिलकर चार हुई। अब ध्यान से देखो ये अब चार हैं। मैं इनमें से एक माचिस उठा लेता हूँ। अब तुम्हारे पास कितनी माचिसें बची हैं?
(न ही माचिसें और न ही कोई चीज़ दिखलायी दे रही है। प्रोफ़ेसर मेज़ से उठकर एक काल्पनिक ब्लैकबोर्ड पर काल्पनिक चाक से लिखने लगते हैं।)
छात्रा : पांच। यदि तीन और एक चार होते हैं तो चार और एक पांच होते हैं।
प्रोफ़ेसर : नहीं यह सही नहीं है। बिल्कुल भी सही नहीं है। तुम पर संख्याओं को जोड़ने का फितूर सवार है। लेकिन घटा देना भी जरूरी है। चीज़ों का एकीकरण ही काफ़ी नहीं है मदाम। उनका विघटन भी जरूरी है। और जिंदगी क्या है? और दर्शनशास्त्र? वह विज्ञान है, प्रगति है, सभ्यता है।
छात्रा : हाँ महोदय।
प्रोफ़ेसर : हम अपनी माचिसों की तरफ़ चलें। तो मेरे पास चार माचिसें हैं। तुम देख सकती हो कि वे चार हैं। उनमें से एक मैं उठाता हूँ। अब बचती हैं?
छात्रा : मुझे पता नहीं महोदय!
प्रोफ़ेसर : अच्छा आओ, ज़रा सोचो। यह सब सरल नहीं है, यह मैं मानता हूँ, फिर भी उसे समझने के लिये तुममें पर्याप्त बौद्धिक समझ है। अच्छा फिर?
छात्रा : मुझे ऐसा नहीं लगता महोदय, मैं वाक़ई नहीं जानती।
प्रोफ़ेसर : ठीक है, हम कुछ सरल उदाहरण लेंगे। यदि तुम्हारे चेहरे पर दो नाक होतीं और एक मैं उखाड़ लेता, तब तुम्हारे पास कितनी नाक रह जाती?
छात्रा : एक भी नहीं।
प्रोफ़ेसर : तुम्हारा क्या मतलब है कि एक भी नहीं?
छात्रा : क्योंकि एक नाक आप उखाड़ चुके हैं और एक अब भी बची हुई है। यदि आपने वह भी ले ली तो कुछ भी नहीं बचेगा।
प्रोफ़ेसर : तुम मेरा प्रश्न ठीक से नहीं समझ रही हो। मान लो कि तुम्हारे पास सिर्फ़ एक कान है।
छात्रा : अच्छा फिर?
प्रोफ़ेसर : मैं एक दूसरा कान लगा देता हूँ तब तुम्हारे पास कितने कान हो गये?
छात्रा : दो ।
प्रोफ़ेसर : बहुत बढि़या, उन पर मैं एक और कान लगा देता हूँ। अब कितने हुए?
छात्रा : तीन कान
प्रोफ़ेसर : तीन में से एक कान मैं ले लेता हूँ। अब तुम्हारे कितने कान हैं?
छात्रा : दो
प्रोफ़ेसर : ठीक है, उनमें से एक और कान मैं ले लेता हूँ अब कितने बचे?
छात्रा : दो
प्रोफ़ेसर : नहीं, तुम्हारे पास दो कान हैं एक मैं ले लेता हूँ। एक कान मैं कुतर देता हूँ। अब कितने बचे?
छात्रा : दो!
प्रोफ़ेसर : उनमें से एक कान मैंने कुतर दिया।
छात्रा : दो!
प्रोफ़ेसर : एक!
छात्रा : दो!
प्रोफ़ेसर : एक!
छात्रा : दो!
प्रोफ़ेसर : नहीं नहीं, नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उदाहरण उतना विश्वसनीय नहीं है॥ तुम सुनो!
छात्रा : हाँ महोदय!
प्रोफ़ेसर : तुम्हारे पास․․․․ तुम्हारे पास ․․․․․․
छात्रा : दस अंगुलियाँ हैं।
प्रोफ़ेसर : ठीक है, यदि तुम यही चाहती हो। बढि़या है। तुम्हारे पास दस अंगुलियाँ हैं।
छात्रा : हाँ महोदय!
प्रोफ़ेसर : यदि उनमें से पांच अंगुलियाँ ले लो तब कितनी बचेगी?
छात्रा : दस!
प्रोफ़ेसर : नहीं, यह ग़लत है।
छात्रा : लेकिन महोदय․․․․
प्रोफ़ेसर : मैं कहता हूँ कि तुम ग़लत हो।
छात्रा : लेकिन अभी आपने मुझसे कहा कि मेरे पास दस अंगुलियाँ हैं।
प्रोफ़ेसर : लेकिन तत्काल मैंने यह भी कहा कि अब वे पांच हैं।
छात्रा : लेकिन मेरे पास पांच नहीं दस अंगुलियाँ हैं।
प्रोफ़ेसर : अच्छा, हम एक दूसरे ढंग से आगे बढ़ें, घटाने के मक़सद से हम एक से पांच तक हो जायेंगे। थोड़ा धैर्य रखो मदाम, और तुम देखोगी कि समझने में मैं तुम्हारी मदद करूंगा। (प्रोफ़ेसर काल्पनिक ब्लैकबोर्ड पर लिखना शुरू करता है। वह बनायी हुई आकृति छात्रा तक ले जाता है, वह मुड़कर देखती है) अब देखो, मदाम (ब्लैकबोर्ड पर कुछ रेखाएं खींचने का उपक्रम करता है। एक लकड़ी, दो लकड़ी, तीन लकड़ी और चार लकड़ी) तुम यह ठीक से देख रही हो मदाम?
छात्रा : हाँ, महोदय!
प्रोफ़ेसर : मदाम, ये सब लकडि़याँ हैं (एक दो-तीन, चार और पाँच लकडि़याँ। ये संख्याएं हैं जब तुम इन्हें गिनती हो हर लकड़ी एक इकाई है। मदाम, दोहराओ जो मैंने कहा है-
छात्रा : एक इकाई मदाम, दोहराओ जो मैंने कहा है।
प्रोफ़ेसर : यह आकृतियाँ या संख्याएं, एक, दो, तीन, चार, पांच अंकों के तत्व हैं मदाम-
छात्रा : (सकुचाते हुए) हाँ महोदय, तत्व आकृतियाँ, संख्याएं जो लकडि़यां हैं, इकाई हैं, संख्याएं हैं।
प्रोफ़ेसर : और किसी एक ख़ास बिन्दु पर कटना चाहिये। समूचा अंकगणित यहां समाहित हो जाता है।
छात्रा : हाँ महोदय, बहुत बढि़या महोदय, शुक्रिया महोदय।
प्रोफ़ेसर : चीज़ें इसी तरह हुआ करती हैं मदाम, इसे समझाया नहीं जा सकता। उसे तुम अपने भीतर के गणितीय बोध से ही समझ सकती हो। जो तुम्हारे भीतर भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है।
छात्रा : तब कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता।
प्रोफ़ेसर : सुनो मदाम, यदि तुम अंकगणित के इन आदर्श सिद्धांतों को समझने में कामयाब नहीं हुई तो तकनीकी विशेषज्ञ के अपने काम को सफल तरीक़े से कभी नहीं कर पाओगी। और तो और, कोई तुम्हें पॉलीटेक्नीक, स्कूल में भी दाखि़ला नहीं देगा। या कि छोटे बच्चों की देखरेख करने वाले संस्थान में। मैं कबूल करता हूँ कि ये सब आसान नहीं है। ये स्वाभाविक ही है कि ये सब बेहद अमूर्त्त है। लेकिन यदि तुम इन प्रारंभिक सिद्धांतों में महारथ हासिल नहीं करोगी तो अपने दिमाग़ से इस तरह की गणना कैसे कर पाओगी? और यह सब एक सामान्य इंजीनियर को आंख मारने जैसा आसान है। मिसाल के लिये तीन अरब सात हजार पांच सौ पचास लाख, नौ सौ अट्ठावन हज़ार, दो सौ इक्यानबे का गुणा पांच अरब एक हजार छह सौ बीस लाख, तीन सौ तीन हजार पांच सौ आठ से करने पर क्या संख्या आयेगी?
छात्रा : (बेहद तेजी से) वह होगी उन्नीस खरब, तीन सौ नब्बे अरब दो सौ करोड़।
प्रोफ़ेसर : (चकित होते हुए) नहीं, मुझे लगता है कि ऐसा नहीं है।
छात्रा : नहीं, पांच सौ आठ।
प्रोफ़ेसर : (ज़्यादा और ज़्यादा चकित होते और अपने दिमाग़ में गुणा करते हुए) हाँ तुम सही हो। खुदा की कसम तुम्हारा जवाब सही है। (इस तरह बुदबुदाते हुए कि सुना न जा सके) खरब, अरब, करोड़, लाख, हज़ार और सैकड़ा, लेकिन यह संख्या तुमने कैसे हासिल की? यदि तुम अंकगणित के सिद्धांतों को समझती नहीं हो?
छात्रा : ओह, यह सब बेहद सरल है वाक़ई। चूंकि मैं तार्किक ढंग से नहीं सोच पाती इसलिये मैंने सारे संभव गुणनफल अपने दिल से रट डाले हैं।
प्रोफ़ेसर : लेकिन गुणनफल तो असीम हुआ करते हैं।
छात्रा : लेकिन मैंने वह सब कर ही लिया।
प्रोफ़ेसर : यह काफ़ी अचरज की बात है। लेकिन फिर भी यदि तुम मुझे इजाज़त दो तो मैं कहूं कि मैं किसी भी तरह, संतुष्ट नहीं हूँ और मदाम, मेरी बधाइयों के बग़ैर ही तुम्हें गणित और ख़ास तौर पर अंकगणित में काम करना होगा, और अंकगणित में तुम गिनने से नहीं बच सकती और जो चीज़ मानी रखती है वो ये कि अपने किये गये काम को समझने की तुममें योग्यता हो। तुम्हें जोड़ और घटाने की दोहरी पद्धति को समझकर ही सारे जवाब ढूंढने होंगे। याददाश्त तो गणित के लिये एक भयावह दुश्मन है। हालांकि उसके कुछ फायदे भी हैं। अंकगणितीय दृष्टि से याददाश्त एक बुरी चीज़ है। इसलिये मैं तुमसे क़तई ख़ुश नहीं हूँ। यह सब नहीं चलेगा।
छात्रा : (निढाल पड़ती हुई) नहीं․․․ महाशय!
प्रोफ़ेसर : एक पल के लिये हम वह सब भूल जायें। हम अब दूसरे अभ्यास की तरफ़ बढ़ते हैं।
छात्रा : हाँ, महाशय!
नौकरानी : (जैसे ही वह भीतर आती है), हूं․․․ हूं․․․․ महोदय․․․․
प्रोफ़ेसर : मदाम, मुझे तरस आता है कि गणित के विशेष अध्ययन में तुम ज़रा भी आगे नहीं बढ़ पा रही हो।
नौकरानी : (अपनी बाहें चढ़ाती हुई) महोदय, महोदय․․․
प्रोफ़ेसर : मुझे भय है कि संपूर्ण डॉक्टरेट की उपाधियों के लिये तुम सोच भी नहीं सकती।
छात्रा : ओह महोदय, कितने शर्म की बात है।
प्रोफ़ेसर : कम से कम, यदि तुम․․․ (नौकरानी से) मुझे अकेला छोड़ दो मैरी। आखिर तुम चाहती क्या हो? रसोई में जाओ और धुलाई का काम करो। जाओ․․․ जाओ․․․ (छात्रा से) फिर भी हम कोशिश करेंगे कि तुम्हें आंशिक डाक्टरेट मिल ही जाये।
नौकरानी : महोदय, महोदय․․․ (उसकी बाहें झिंझोड़ती है)
प्रोफ़ेसर : (नौकरानी से) खुदा के लिये मुझे जाने दो। मुझे अकेला छोड़ दो। आखिर इस सबसे तुम्हारा क्या मतलब है? (छात्रा से) मुझे लगता है कि यदि तुम आंशिक डाक्टरेट के लिये ख्वाहिशमंद हो तो हम ओग बढ़ सकते हैं।
छात्रा : ओह महोदय, जरूर, जरूर।
प्रोफ़ेसर : भाषा विज्ञान और भाषा शास्त्र के प्रमुख तत्वों के बारे में․․․
नौकरानी : नहीं, महोदय, नहीं․․․ यदि मैं आपकी जगह होती तो यह सब नहीं करती।
प्रोफ़ेसर : मैरी, मुझे लगता है कि तुम अपनी हदें पार कर रही हो।
नौकरानी : सारे विषयों में भाषाशास्त्र नहीं, महोदय, भाषाशास्त्र तो सबसे घटिया विषय है।
छात्रा : (चकित होते हुए) सबसे रद्दी (फूहड़ ढंग से मुस्कराते हुए) क्या बेहूदी बात है।
प्रोफ़ेसर : (नौकरानी से) बहुत हो चुका, कमरे से दफ़ा हो जाओ।
नौकरानी : ठीक है महोदय, ठीक है, लेकिन अब मुझसे न कहना कि मैंने आगाह नहीं किया था। भाषाशास्त्र तो सबसे रद्दी विषय है।
प्रोफ़ेसर : मैरी, मैं इक्कीस की उम्र पार कर आया हूँ।
छात्रा : हाँ, महोदय।
नौकरानी : महोदय, वही करेंगे जो दुरुस्त समझते हैं (वह बाहर चली जाती है)
प्रोफ़ेसर : क्या हम लोग बढ़ें मदाम?
छात्रा : कृपया बढ़ें महोदय!
प्रोफ़ेसर : तब मैं चाहूंगा मदाम कि तुम मेरे द्वारा तैयार किया गया पाठ ध्यान से पढ़ो।
छात्रा : हाँ, महोदय।
प्रोफ़ेसर : शुक्र है कि तुम पंद्रह मिनटों में ही नव स्पानी भाषाओं के तुलनात्मक और मूलभूत सिद्धांतों को समझ जाओगी।
छात्रा : और महोदय, यह कितना अद्भुत है (तालियाँ बजाती है)
प्रोफ़ेसर : (दबदबे से) ख़ामोश! यह सब क्या है?
छात्रा : मुझे खेद है महोदय, (धीरे-धीरे वह अपने हाथ मेज़ पर रखती है)
प्रोफ़ेसर : ख़ामोश! (वह उठकर चलने लगता है पीछे-पीछे हाथ बांधे चलता हुआ वह ठहरता है) कमरे के मध्य या छात्रा के करीब, हाथों के रुकने से अपने शब्दों को जैसे गति प्रदान करता है) हाँ तो मदाम, स्पानी वास्तव में मातृभाषा है जिसने तमाम नवस्पानी भाषाओं को जन्म दिया है। इनमें हम स्पैनिश, लैटिन, इतालियन और फ्रेंच भाषा समेत रूमानियाई, पोर्तुगीज़ और सार्दिनियन का शुमार भी करते हैं। मदाम, कृपया नोटबुक में दर्ज़ करती रहें।
छात्रा : (घबराई आवाज़ में) हाँ․․․․ महोदय!
प्रोफ़ेसर : लेकिन, खै़र हम सामान्यीकरण के पचड़े में नहीं पड़ते हैं।
छात्रा : ओह, महोदय!
प्रोफ़ेसर : तुम इन सबमें दिलचस्पी ले रही हो, बेहतर है।
छात्रा : हाँ महोदय, हाँ․․․․ हाँ․․․․
प्रोफ़ेसर : मदाम, चिंता न करें हम इस विषय पर बाद में आयेंगे जब तक कि वाक़ई हम इस पर नहीं आते। कौन कह सकता है?
छात्रा : (ख़ुशी का इज़हार करती) हाँ․․․ हाँ․․․ महोदय!
प्रोफ़ेसर : हरेक भाषा मदाम, इसे सावधानीपूर्वक नोट कर लो, और मरते दम तक इसे याद कर लो।
छात्रा : हाँ, महोदय, मेरे मरने के दिन तक हाँ․․․․ हाँ․․․․
प्रोफ़ेसर : और फिर यह एक मूलभूत सिद्धांत है। हर भाषा कुल मिलाकर बोलने का माध्यम है जो अंततः बतलाती है कि वह ध्वनियों से बनी हुई है या ․․․․․
छात्रा : ध्वनिविज्ञान․․․․․․․․․
प्रोफ़ेसर : यह मैं कहने जा ही रहा था। मदाम, अपना ज्ञान मत बघारो, बेहतर होगा कि तुम सुनो।
छात्रा : ठीक है महोदय, ठीक है।
प्रोफ़ेसर : ध्वनियाँ, मदाम, उनकी उड़ान के दौरान उनके पंखों से पकड़ी जानी चाहिये। नतीजतन जब तुमने तय कर ही लिया हो, जहाँ तक मुमकिन हो अपनी ठोढ़ी और गर्दन को ऊपर उठाओ और अपनी एडि़यों पर खड़े रहो देखो इस तरह․․․․
छात्रा : हाँ, महोदय!
प्रोफ़ेसर : शांत रहो। जहाँ बैठी हो वहीं बैठी रहो। दख़ल मत दो और ध्वनियों को पूरे वेग से अपने तक आने दो। तुम्हारे फेफड़ों की समूची शक्ति के संग अपने कंठसंगीत के साथ देखो इस तरह। मुझे देखो बटरफ्लाय, यूरेका, त्रफलगार, पेपरपॉट इस तरह ध्वनियाँ आसपास की हवा से हल्की होती हुई लगातार तैरती ही रहती हैं। और उन्हें ख़तरा नहीं होता कि वे किन्हीं बहरे कानों तक पहुंचेंगी।
छात्रा : बहरे कानों तक․․․
प्रोफ़ेसर : एकदम सही․․․ लेकिन बीच में दख़ल मत दो, मदाम․․․․․ (छात्रा ऐसे दिखलायी देती है गोया वह तकलीफज़दा हो)
छात्रा : महोदय, मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : कोई बात नहीं। इस तरह की छोटी सी चीज़ के कारण हम नहीं रुक सकते। चलो शुरू करते हैं।
छात्रा : (जिसके दांतों का दर्द और बढ़ जाता है) हाँ महोदय, मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : शुरू करें?
छात्रा : हाँ!
प्रोफ़ेसर : तब सारी बातों का निचोड़ यह है। सीखने में बरसों लग जाया करते हैं। विज्ञान का शुक्रिया कि हम कुछ ही मिनटों में ये कर सकते हैं। यानि हम ध्वनि और शब्द और जो तुम चाहो मुकम्मिल कर सकते हैं।
छात्रा : मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : आखिरकार शब्द नाक से, मुंह से, कान से और हमारी त्वचा के रोम-रोम से निकलते हैं।
छात्रा : हाँ, महोदय! मेरे दांतों में दर्द है ।
प्रोफ़ेसर : हम बढ़ते हैं, हम आगे बढ़ते हैं।
छात्रा : हाँ महोदय, मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : (तेज़ी से अपने स्वर को बदलते हुए) चलो हम आगे बढ़ें, पहले हम समता के बिंदुओं को परख लें। ताकि बाद में हम इन भाषाओं को एक दूसरे से अलग जाँच सकें।
छात्रा : हाँ महोदय! मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : आखिरकार तमाम भाषाओं को एक दूसरे से अलहदा जानने के लिये, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, अभ्यास से बढ़कर कुछ भी नहीं है। हम व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ते हैं। मैं ‘चाकू' शब्द के तमाम संभावित अनुवादों के बारे में तुम्हें बताना चाहूँगा।
छात्रा : ठीक है, यदि आप चाहते हैं तो, आखि़रकार․․․
प्रोफ़ेसर : (नौकरानी को पुकारते हुए) मैरी․․․ मैरी․․․ वह मुझे नहीं सुन पा रही। मैरी मैरी․․․․ ओह वाक़ई․․․․․ मैरी․․․․․ (वह दायीं ओर का द्वार खोलता है) मैरी (वह बाहर जाता है। छात्रा कुछ देर अकेली रह जाती है। वह शून्य में ताक रही है) (बाहर से तेज़ आवाज़ आती है) मैरी, इस सबका क्या मतलब है? जब मैंने तुम्हें पुकारा तुम क्यों नहीं आई? तुम्हें मालूम होना चाहिये कि मेरे पुकारने पर तुम्हें आना ही चाहिये। (प्रोफ़ेसर लौटता है, नौकरानी पीछे आती है) वह मैं ही हूँ जो यहाँ आदेश देता है तुम समझ रही हो? (छात्रा की ओर संकेत करता है) यह लड़की कुछ भी नहीं समझ रही है। कोई चीज़ भी नहीं।
नौकरानी : इसे इस तरह न लें महोदय, सोचें कि इसका हश्र क्या होगा? आप चाहते हो उससे भी आगे यह आपको ले जायेगा। आप बहुत आगे जाओगे आप जानते हो।
प्रोफ़ेसर : मैं ठीक वक़्त पर सब समेट लूंगा।
नौकरानी : यह मैंने पहले भी सुना है। मैं वह सब घटित होते देखना चाहती हूँ।
छात्रा : मेरे दांतों में दर्द है।
नौकरानी : मैंने आपसे क्या कहा था? यह शुरुआत है। यह एक संकेत है।
प्रोफ़ेसर : कैसा संकेत? तुम्हारा क्या मतलब है? तुम किस चीज़ के बारे में कह रही हो?
छात्रा : हाँ, तुम किस चीज़ के बारे में कह रही हो? मेरे दांतों में दर्द है।
नौकरानी : यह अंतिम लक्षण है। भयावह लक्षण!
प्रोफ़ेसर : बकवास! बकवास! बकवास! (नौकरानी जाने लगती है) इस तरह मत जाओ। मैंने तुम्हें बुलाया था कि तुम चाकुओं, को देखो। स्पेनिश चाकू, नवस्पानी चाकू, पोर्तुगीज़ चाकू, फ्रेंच चाकू, पूर्वी चाकू, रोमानियाई चाकू, लैटिन चाकू वग़ैरह․․․
नौकरानी : (गंभीरता पूर्वक) आप मुझ पर निर्भर नहीं रह सकते। (वह चली जाती है। प्रोफ़ेसर विरोध प्रकट करता है। फिर अपने आपको संयत करता है। एकाएक उसे याद आता है)
प्रोफ़ेसर : आह․․․ (वह तेज़ी से दराज़ की तरफ़ जाता है और एक काल्पनिक चाकू उठाता है। वह उसे हाथों में थाम लेता है) मदाम, यहाँ एक चाकू है। यह एक चाकू है। खेद है कि यह एक ही है लेकिन हम सभी भाषाओं में इसका उपयोग देखेंगे। सिर्फ़ हमें यह करना है कि तमाम भाषा में ‘चाकू' का उच्चारण करना है। जबकि तुम्हें चाकू को देखते रहना है और कल्पना करना है कि जिस भाषा में तुम उसका जि़क्र कर रही हो वह उस भाषा से संब( है।
छात्रा : मेरे दांतों में दर्द है।
प्रोफ़ेसर : (एकदम मगन होते हुए) आओ मेरे संग कहो, ‘चाकू' और इस चाकू को ग़ौर से देखो और अपनी नज़रें इससे मत हटाओ।
छात्रा : यह क्या है? फ्रेंच, इतालवी या स्पानी?
प्रोफ़ेसर : इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, कहो - ‘चाकू'
छात्रा : चा․․․
प्रोफ़ेसर : कू ․․․ देखो ․․․ (वह काल्पनिक चाकू छात्रा के चेहरे की ओर लहराता है)
छात्रा : कू ․․․․
प्रोफ़ेसर : फिर से इसे देखो।
छात्रा : नहीं․․․ नहीं․․․ अब नहीं․․․ बहुत हो चुका। और फिर मेरे दांतों में दर्द है। मेरे पैर दुख रहे हैं और मेरे सिर में भी दर्द है।
प्रोफ़ेसर : चाकू․․․ इसे देखो․․․ चाकू ․․․ देखो चाकू ․․․ देखो․․․
छात्रा : आप मेरे कानों में भी तकलीफ़ पहुँचा रहे हैं। कैसी आवाज़ है आपकी? कैसी छेदने वाली आवाज़?
प्रोफ़ेसर : कहो․․․․ चाकू․․․․
छात्रा : नहीं ․․․․ मेरे कानों में दर्द है․․․ मेरे पूरे जिस्म में दर्द है․․․
प्रोफ़ेसर : मेरी प्यारी! मैं जल्द ही तुम्हारे कान उखाड़ लूंगा ताकि वे तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं देंगे।
छात्रा : ओह, आप मुझे तकलीफ़ पहुंचा रहे हैं। यह आप ही हो जो तकलीफ़ दे रहा है।
प्रोफ़ेसर : देखो आओ․․․․ जल्दी से कहो ‘चाकू'।
छात्रा : ओह, यदि मैं कहूँ․․․ चा․․․ चाकू․․․ यह नवस्पानी में होगा।
प्रोफ़ेसर : यदि तुम चाहो तो नवस्पानी में होगा। लेकिन जल्दी करो। तुम्हारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। अब तुम क्या सोच रही हो? तुम अपनी जूतियों से ज़्यादा बड़ी होने की कोशिश कर रही हो। (छात्रा ज़्यादा से ज़्यादा थकानग्रस्त, शोकग्रस्त और आंसुओं से लबरेज़ हो जाती है।
छात्रा : आह․․․
प्रोफ़ेसर : दोबारा कहो, देखो (बच्चे की तरह) चाकू․․․ चाकू․․․ चाकू․․․
छात्रा : ओह मेरा सिर, मेरे सिर में दर्द है․․․
प्रोफ़ेसर : (बच्चे की तरह बोलता है) चाकू, चाकू चाकू․․․ दोबारा कहो चाकू, चाकू चाकू․․․
छात्रा : मेरे पूरे बदन में दर्द है। मेरे गले, मेरी गर्दन, मेरे कंधों और मेरे स्तनों में चाकू․․․․․․
प्रोफ़ेसर : चाकू․․․ चाकू․․․ चाकू ․․․․
छात्रा : मेरे कूल्हों ․․․․ चाकू ․․․․ मेरी जांघों ․․․ चाकू․․․․
प्रोफ़ेसर : साफ-साफ कहो ․․․․ चाकू ․․․․ चाकू ․․․․
छात्रा : चाकू․․․․ मेरा गला ․․․․
प्रोफ़ेसर : चाकू ․․․․ चाकू ․․․․
छात्रा : चाकू ․․․․ मेरे कंधे, मेरी बाहें, मेरे स्तनों, मेरे कूल्हे․․․ चाकू ․․․ चाकू ․․․․
प्रोफ़ेसर : यह ठीक है। अब तुम सही ढंग से बोल रही हो।
छात्रा : चाकू ․․․ मेरा वक्ष ․․․․
प्रोफ़ेसर : (बदली हुई आवाज़ में) सावधानी बरतो। मेरी खिड़कियों के शीशे मत तोड़ो। चाकू हत्या कर सकता है।
छात्रा : (कमज़ोर आवाज़ में) हाँ․․․․ हाँ․․․ चाकू हत्या कर सकता है। (प्रोफ़ेसर अपने काल्पनिक चाकू से छात्रा की हत्या कर देता है।)
प्रोफ़ेसर : आह ․․․․
(छात्रा चीखती है और गिर जाती है। प्रोफ़ेसर दोबारा उसे काल्पनिक चाकू मारता है)
प्रोफ़ेसर : (हकलाते हुए) इसने यही चाहा था। अब मैं बेहतर महसूस कर रहा हूँ। आह ․․․ मैं थक गया हूँ। मुश्किल से साँस ले पा रहा हूँ, आह․․․․ मैंने क्या कर दिया? अब मेरा क्या होगा? इसका नतीजा क्या होगा? ओह प्यारी․․․․ ओह प्यारी ․․․․ कितना दुखद है ये मदाम ․․․ उठो मदाम, उठो․․․․ पाठ अब पूरा हो चुका है। अब तुम घर जा सकती हो। दूसरी बार तुम आ सकती हो। ओह․․․ यह मर चुकी है। मेरे ही चाकू से। यह मर चुकी है। यह भयावह है। (वह नौकरानी को पुकारता है) मैरी․․․․ मैरी․․․․ आह मैरी ․․․․ जल्द आओ। आह ․․․․ आह․․․․ (दायीं तरफ़ का द्वार आधा खुलता है। नौकरानी प्रवेश करती है) नहीं मैरी, यहाँ मत आना। मुझसे एक ग़लती हो गई है। मैं नहीं चाहता मैरी कि तुम आओ, मुझे तुम्हारी क़तई ज़रूरत नहीं। तुम समझ रही हो ना? (मैरी प्रवेश करती है। वह बेहद गंभीर है। वह मृत शरीर को देखती है और ख़ामोश रहती है)
(प्रोफ़ेसर की आवाज़) मुझे वाक़ई तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।
नौकरानी : (व्यंग्यपूर्वक कहती है) तो अब आप अपनी छात्रा से खु़श हैं? अब तो इसने अपना पाठ सीख लिया!
प्रोफ़ेसर : (चाकू अपनी पीठ के पीछे छिपाते हुए) हाँ, पाठ पूरा हो चुका है। लेकिन यह अब भी यहीं है। यह अब नहीं जायेगी।
नौकरानी : (बग़ैर सहानुभूति के) ठीक है․․․․ ठीक है ।
प्रोफ़ेसर : (घबराते हुए) वह मैं नहीं था, यह मैंने नहीं किया मैरी ․․․․ मैं वादा करता हूँ कि यह मैं नहीं था। मैरी ․․․․ मैरी मेरी प्यारी मैरी․․․․
नौकरानी : तब वह कौन था? कौन था? क्या वह मैं थी?
प्रोफ़ेसर : मैं नहीं जानता। शायद․․․․
नौकरानी : यह वह एक बिल्ली थी?
प्रोफ़ेसर : शायद वही रही हो। मुझे नहीं पता।
नौकरानी : और ये सब आज चालीसवीं बार घटित हुआ है। हर दिन यही कहानी हुआ करती है। हर दिन। क्या आपको इससे कोई शर्मिन्दगी नहीं होती? और वह भी इस उम्र में? लेकिन आप यही सब करेंगे और अपने आपको बीमार बना लेंगे। अब तो वहां कोई छात्रा बचेगी ही नहीं और यह भी ठीक-ठाक ही है।
प्रोफ़ेसर : यह मेरा दोष नहीं है। यह कुछ भी सीखना ही नहीं चाहती थी। यह आज्ञाकारी ही नहीं थी। यह एक खराब छात्रा थी। वह सीखना ही नहीं चाहती थी।
नौकरानी : आप झूठे हैं।
प्रोफ़ेसर : (नौकरानी की तरफ़ बढ़ते हुए, उसका काल्पनिक चाकू उसकी पीठ के पीछे है) इस सबसे तुम्हारा कोई वास्ता नहीं है।
(वह तेज़ी से चाकू चलाता है लेकिन नौकरानी उसकी कलाई थाम लेती है और उसे मोड़ देती है। प्रोफ़ेसर अपना चाकू नीचे गिरा देता है) मुझे मुआफ़ करना मैरी।
(नौकरानी प्रोफ़ेसर पर प्रहार करती है और वह फर्श पर गिर पड़ता है)
नौकरानी : आप हत्यारे हो। सुबह आप मेरे संग भी वही सब करना चाहते थे लेकिन मैं तुम्हारी छात्रा नहीं हूँ। (वह प्रोफ़ेसर का कॉलर पकड़कर उसे उठाती है) अपना चाकू वहीं रखो जहाँ से तुमने उसे उठाया है। और मेरे संग आओ। मैंने कुछ देर पहले ही आपको आगाह किया था कि अंकगणित भाषाशास्त्र की तरफ़़ जाता है और भाषाशास्त्र अपराध की तरफ़़।
प्रोफ़ेसर : तुमने कहा था कि भाषाशास्त्र सबसे वाहियत विषय है।
नौकरानी : अंत में वह सब ऐसा ही होता है।
प्रोफ़ेसर : मैं ठीक से समझ नहीं पाया। मैंने सोचा जब तुम कह रही थी कि भाषा शास्त्र वाहियात है तब मुझे लगा कि तुम्हारा संकेत उसके कठिन होने की तरफ़ है।
नौकरानी : झूठे कहीं के! आप बूढ़े लोकड़! आपके जैसा काइयाँ आदमी शब्दों के अर्थ को लेकर कोई भूल नहीं करता। आप मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते।
प्रोफ़ेसर : (सिसकते हुए) मैंने जान बूझकर उसकी हत्या नहीं की।
नौकरानी : मुझे आपसे सहानुभूति है। आखिरकार आप कोई शोहदे नहीं हो। हम कोशिश करेंगे कि चीज़ों की ठीक-ठीक करने के लिये क्या किया जा सकता है। लेकिन अब दोबारा यह सब आप मत करना। आखिरकार इससे आपको दिल का दौरा पड़ सकता है।
प्रोफ़ेसर : हाँ, मैरी, अब हमें क्या करना चाहिये?
नौकरानी : हम इसे दफन कर देंगे। उसी वक़्त पर जब पहले हमने उन्तालीस छात्राओं को दफ़न किया। कुल शवपेटिकाएं चालीस हो चुकी हैं। हम शवों को दफ़नाने वाले शख़्स और पादरी को बुलवा लेंगे। शवों के लिए फूलों के गुलदस्तों का इंतज़ाम कर लेंगे।
प्रोफ़ेसर : फूलों का इंतज़ाम इतना महंगा नहीं होगा, हालांकि, इस छात्रा ने अपनी फीस जमा नहीं की थी।
नौकरानी : चिंता न करें, फूलों के बजाय इसे एक कपड़े से ढंक दें। वैसे भी यह ठीक-ठाक छात्रा नहीं थी और फिर हम उसे ले जायेंगे।
प्रोफ़ेसर : हाँ मैरी, ठीक है। (वह शव को ढंकता है) इस सबसे जेल हो सकती थी। तुम्हें ज्ञात है, चालीस शव पेटिकाएं ज़रा इस बारे में सोचो। लोग-बाग अचरज से भर उठेंगे अगर किसी ने पूछा कि इनके भीतर क्या है? हम क्या जवाब देंगे?
नौकरानी : आप चिंतित न हों, हम कहेंगे कि ये शवपेटिकाएं ख़ाली हैं और फिर कोई कुछ नहीं पूछेगा। यह सब लोगों की आदत में शुमार हुआ करता है।
प्रोफ़ेसर : फिर भी ․․․
नौकरानी : (बांह में बांधने वाला ‘स्वस्तिक' का चिह्न उसे देना है) इसे बांह में बांध लें, यदि आप भयभीत हैं तो और इसे बांधने के बाद आपको डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं रहेगी (वह स्वस्तिक का चिह्न उसकी बांह में बांधती है) यह एक राजनैतिक चिह्न है!
प्रोफ़ेसर : शुक्रिया! शुक्रिया! दयावान मैरी! अब मैं बेहद सुरक्षित महसूस कर रहा हूँ। तुम एक अच्छी लड़की हो मैरी! एक उमदा लड़की और बेहद भरोसेमंद।
नौकरानी : वह सब ठीक है महोदय, खै़र, क्या अब आप तैयार हैं।
प्रोफ़ेसर : हाँ, मैरी मैं तैयार हूँ। (नौकरानी और प्रोफ़ेसर, छात्रा को कंधों और पैरों से उठाते हुए दायीं ओर के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हैं) आराम से, एकदम आराम से इसे तकलीफ़ न हो।
(वे बाहर चले जाते हैं, कुछ देर लिये मंच वीरान हो जाता है․․․․ बायीं तरफ़ के दरवाज़े पर घंटी बज उठती है)
(नौकरानी की आवाज़) मैं आ रही, बस आ ही रही हूँ।
(वह प्रकट होती है और दरवाज़े की ओर बढ़ती है। घंटी दोबारा बज उठती है।
नौकरानी : (अपने आप से) बहुत जल्दी है। आ रही हूँ। (दरवाज़ा खोलती है)
सुप्रभात मदाम! क्या तुम नयी छात्रा हो? तुम अपना पाठ सीखने आयी हो? प्रोफ़ेसर तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं जाकर उनसे कहती हूँ कि तुम आ चुकी हो। वे एकाध मिनट में नीचे आ ही रहे हैं। कृपया अंदर आओ मदाम!
---- पर्दा गिरता है ---
उम्दा नाटक है
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