सावित्री काला की कहानी - शकुन

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"शकुन " केंद्रीय विद्यालय में वरिष्ठ शिक्षिका होने के कारण मुझे कई बार कार्य वाहक प्राचार्य बनने का अवसर मिलता ही रहता था। क्यो...

"शकुन "

केंद्रीय विद्यालय में वरिष्ठ शिक्षिका होने के कारण मुझे कई बार कार्य वाहक प्राचार्य बनने का अवसर मिलता ही रहता था।

क्योंकि मैं प्रशिक्षण कालेज से आई थी। तथा मुझे ग्यारह वर्ष का अनुभव था। इसलिए कहीं भी किसी कालेज मैं सभी प्राचार्य समकक्ष अवस्था होने के कारण भरोसा भी करते थे व सम्मान भी देते थे।

देहली केंद्रीय विद्यालय आरके पुरम में मैंने करीब पंद्रह वर्ष कार्य किया। देहरादून भी मैं अपनी इच्छा से ट्रांसफर ले कर आई। वहां एक स्कूल केवल आठवीं तक था हमने ही उसे बारहवीं तक पहुंचाया। अब तो वह कहीं और स्थानांतरित कर दिया गया है ऐसा सुनने मैं आया है।

एक दिन मैं अपने ऑफिस मैं जरुरी फाइलें निबटा कर बैठी ही थी ,की एक शिक्षिका घबराई हुई मेरे पास आकर बोली दीदी आपको पता है शकुन स्टाफ रूम में बड़ी देर से रो रही है।

क्यों क्या हुआ ,उसकी तबीयत ख़राब है ,उसे पास के हॉस्पिटल में जा कर दिखा लाओ।

नहीं दीदी लगता है आज भी उसके जालिम पति ने उसे बहुत मारा है। क्यों, मैंने पूछा

पता नहीं वह बोली

तुमने उससे पूछा नहीं। वह कुछ भी नहीं बता रही है ,बस रोये जा रही है ,रीता उसके पास बैठी है ,उसे भी कुछ नहीं पता।

मेरा काम निबट ही गया था ,लंच का भी समय हो रहा था ,मैंने अपना बैग उठाया और स्टाफ रूम में आई तो देखा चार शिक्षिकाएं शकुन को घेरे बैठी थीं। मुझे देख कर चारों एक तरफ हो गयीं। मैंने इशारे से सबको बाहर जाने को कहा।

| कुछ देर मैं शकुन का हाथ पकडे बैठी उसे रोता देखती रही। जब वह कुछ शांत हुई तो पूछा क्यों रो रही हो ,घर में क्या बात हुई है।

वह मेरे और निकट आकर मुझ से लिपट गई ,मैंने उसे आश्वस्त किया।

वह रोते रोते बोली ,दीदी मेरा पति अपनी माँ और बहिन के कहने पर मुझे मारता है। वह रोज शराब पी कर आता है ,उसने अपने शरीर के नीले निशान भी दिखाए।

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कुछ देर मैं शकुन का हाथ पकडे बैठी उसे रोता देखती रही। जब वह कुछ शांत हुई तो पूछा क्यों रो रही हो ,घर में

क्या बात हुई है।

वह मेरे और निकट आकर मुझ से लिपट गई ,मैंने उसे आश्वस्त किया।

वह रोते रोते बोली ,दीदी मेरा पति अपनी माँ और बहिन के कहने पर मुझे मारता है। वह रोज शराब पी कर आता

है ,उसने अपने शरीर के नीले निशान भी दिखाए।

मैं उसकी बातें सुनतीं रही ,सयुंक्त परिवार में रहने वाली कामकाजी महिलाओं को कितना बर्दाश्त करना पड़ता है

मैं मन में सोचती रही ,फिर उससे पूछा ,तुम्हारे पति को कोई घर में समझाता या मारने से रोकता नहीं।

वह बोली ,जब हमारा झगड़ा होता है तो मेरी सास और ननद खूब खुश होती हैं ,तथा पति को मेरे खिलाफ भड़काती रहती हैं ,कुछ देर चुप रहकर वह आगे बोली ,इतना कमाती हूँ ,उन दोनों की सारी फरमाइशें पूरी करती रहती हूँ ,पांच वर्ष हो चुके हैं यह सब सहते सहते। अब और नहीं सहा जाता। मुझे बच्चा भी तो नहीं हुआ ,उसके लिए भी ही कोसती रहती है मुझे ,बाँझ कहती हैं। मैं जब भी मेडिकल चैक अप कराने को कहती हूँ तो किसी डाक्टर से फर्जी रिपोर्ट बनवा कर दिखाता है। कहता है मेरे मैं ही कमी है ,इन लोगों के ताने सुन सुन कर दीदी मैं बहुत परेशान हो चुकी हूँ। फिर बोली माँ बाप के घर भी नहीं जा सकती वे भी तो भाई भाभी पर ही तो निर्भर हैं ,आप ही बताओ मैं क्या करूँ।

कुछ समझ में नहीं आता शकुन की आप बीती सुन कर मुझे अपनी बचपन की सहेली सुधा की याद आई।

उसके साथ भी ऐसा ही हुआ था ,उसका पति नामर्द था। उसे भी उसकी सास तथा परिवार वाले ऐसे ही ताने दे कर सताते रहते थे ,लेकिन जब उन्होंने दस वर्ष बाद डाक्टर के कहने तथा किसी परिजन की सलाह पर परिवार के ही एक बच्चे को गोद लिया तो उनका आपसी मन मुटाव भी समाप्त हो गया ,आज वे सुख पूर्वक अपना जीवन जी रहे हैं।

शकुन को भी मैंने यही सलाह दी ,तुम भी अपने ही परिवार का कोई बच्चा गोद ले लो ,इतना कमाती हो तुम्हें आसानी से मिल जायेगा। अगर तुम्हारा पति साथ देता है तो ठीक है ,वरना कुछ महीनों के बाद डिपार्टमेंट की प्रमोशन की लिस्ट आने वाली है तुम अपना ट्रांसफर ऐसी जगह करवा लो जहाँ टीचर्स के लिए क्वार्टर की व्यवस्था हो ,तुम्हारे लिए मैं भी कोशिश करूंगी। तुम हिम्मत करके उस परिवार को कुछ दिन छोड़ कर के तो देखो। उन्हें भी तो सबक मिलना चाहिए ,कि पढ़ी लिखी कमाऊ महिला जो घर कि सारी जिम्मेदारियों को निभाती है उसके साथ ऐसा अमानुषिक व्यवहार होता है। वह आज के युग में अबला नहीं है ,उसे भी सबला बन कर जीने का पूरा अधिकार है।

उस दिन बड़ी मुश्किल से मैंने उसे समझाया ,कुछ महिलाओं के उदाहरण भी दिए ,कई केंद्रीय विद्यालयों में टीचर्स के लिए क्वार्टर थे ,यह भी कहा कि जब तुम्हारे पति को अपनी गलती का अहसास होगा तभी वह तुम्हारे साथ रह सकता है। शकुन को मेरी सलाह समझ में आ गई ,कुछ दिन तो उसने उस नरक में काटे ,प्रमोशन लिस्ट में उसका नाम था| अब वह पी.जी .टी .बन गई थी। उसने अपनी बड़ी बहिन कि पांच वर्ष की छोटी बेटी को साथ लिया ,और दूसरे शहर जहाँ क्वार्टर थे अपना ट्रांसफर करा दिया। उसका भाई साथ आया उसने ही सारी व्यस्था की। शकुन अब सुख पूर्वक अपना जीवन जीने लगी। उसकी बहिन तथा भाई उससे मिलने आते ही रहते थे। पांच वर्ष की बेटी अब दस वर्ष की हो चुकी थी ,वह शकुन को ही अपनी माँ समझती थी। दोनों माँ बेटी खूब खुश थीं।

इस बीच मेरा भी ट्रांसफर उसी शहर में हो गया ,कालेज अलग अलग ही थे ,पर हम दोनों मिलते ही रहते थे। तभी एक दिन शकुन से पता चला कि उसका शराबी पति उसका पता पूछता पूछता उसके क्वाटर के सामने खड़ा है। सभ्यता वश शकुन ने उसे अंदर बिठाया ,पर कोई बात नहीं की दो कमरों के क्वाटर की साज सज्जा तथा व्यवस्था को निहारता रहा। बोला कुछ नहीं ,मन ही मन पछताता भी रहा कि उसने शकुन जैसी कुशल कमाऊ पत्नी कि कद्र नहीं की तभी उसकी आज ऐसी दशा हो गई है। बेटी नौकरानी के साथ बाजार गई हुई थी ,वह किसी अजनबी को देख माँ से पूछने लगी पर माँ ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बाहर खेलने चली गई, नौकरानी चाय नाश्ता लाई ,उसने केवल चाय का प्याला उठाया ,नाश्ता नहीं खाया। उसके साथ आये आदमी ने चाय नाश्ता दोनों खाया। शकुन के पति ने कोई बात भी नहीं की ,न शकुन ने ही उसके आने के विषय में कुछ पूछा ,दोनों मौन बने रहे। वह शकुन से पूछता भी क्या ,जब उसने पति का घर छोड़ा था उस समय वह नशे में धुत्त पड़ा था ,उसे तो दो दिन बाद पता चला कि शकुन उसका घर छोड़ कर जा चुकी है। उसकी माँ बहिन ने न जाने क्या क्या उलटी बातें उसे बताईं होंगी। उनकी बातों को ही सच मान कर उसने शकुन कि तब कोई खोज खबर नहीं की ,आज पांच वर्ष बाद अपने किये पर पछता रहा है ,पर कोई बात भी नहीं कर पा रहा है। शकुन ने उसके घर से कुछ भी नहीं उठाया ,बस एक अटैची में अपने कपडे रखे और घर छोड़ दिया ,फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा ,आज उसके पास सब कुछ है वह भी व्यवस्थित रूप से। वह सुखी भी है और प्रसन्न भी ,अपनी बेटी के साथ इज्जत से जी रही है। आज पांच वर्ष बाद उसका पति उसके घर में बैठा है ,जिसने इतने वर्ष शकुन की कोई खोज खबर नहीं की। शकुन ने भी उसके परिवार के विषय में जानने की कोई इच्छा प्रकट नहीं की ,बस दोनों ही चुप चाप बैठे रहे। काफी देर बाद उसका पति बिना कुछ बोले उठ कर चला गया। दूसरे दिन उसके पति का रिश्तेदार फिर आया। उससे ही शकुन को पता चला कि उसके शराबी पति ने अपनी माँ और बहिन को भी घर से निकाल दिया था। वे दोनों इसकी हरकतों से भी परेशान हो गई थीं। वे अपने गांव चली गई ,वहीँ माँ ने बेटी कि शादी वहीँ के किसी व्यापारी से कर दी ,और अपने आप भी बेटी के साथ ही रहती हैं ,उनकी भी बड़ी बुरी दशा है। शकुन ने सोचा सबको अपने कर्मों का दंड इसी जनम में ही भोगना पड़ता है। वह आगे बोला इसके साथ इसकी एक सहयोगी रहती थी ,उसने भी अपना समय निकाला उसके दो बच्चे थे ,ये दोनों साथ साथ ही रहते थे , तब इसे अपनी कमजोरी का पता चला। वह औरत भी इसे छोड़ कर अपने पूर्व पति के साथ विदेश चली गई। वह इसका सारा बैंक बैलेंस खत्म कर गई ,बस नौकरी बची रह गई। एक बात अच्छी यह रही कि इसकी शराब छूट गई।

उसने यह भी बताया कि अब यह अपने किये पर बहुत शर्मिंदा है। भाभी जी अगर इसे माफ़ करने कि कोई गुंजाईश हो तो इसे माफ़ कर दीजियेगा ,यह अब पूरी तरह ठोकरें खा खा कर सुधर गया है। यह सब राम कहानी सुना कर मेरा देवर जिसे मैंने भी पहिली बार ही देखा था ,कैसे उसकी बात पर विश्वास कर पाती। शकुन ने यह सारी बातें मुझे बताई ,मैंने उसे फिर समझाया की अगर तुम्हारे पति को इतने वर्षों बाद अपनी गलती का अहसास हो गया है ,और अपने किये पर तुमसे माफ़ी मांगता है तो एक बार उसे माफ़ करके देखो।

वह बोली दीदी मुझे उससे डर लगता है।

मैंने कहा अब वह किस्मत का मारा है ,अकेला है तुम्हें उससे डरने की कोई जरुरत नहीं है ,तुम अब समर्थ हो सबल हो ,अगर वह फिर कोई ऐसी वैसी हरकत करता है तो तुम उसे धक्के मार कर बाहर कर सकती हो ,डरो मत कुछ दिन उसका व्यवहार देखो। शकुन ने ऐसा ही किया ,उसके पति ने भी अपना अपराध स्वीकार कर के उससे लिखित माफ़ी मांगी। वह अब हर शुक्रवार की शाम आता और रविवार की शाम चला जाता। उसमें अब काफी परिवर्तन आ गया था ,वह शकुन की हर काम में मदद करता था। एक दिन वह शकुन से बोला तुम अपना ट्रांसफर अपने घर में करवा लो। शकुन ने साफ मना कर दिया ,बोली दुनिया की नज़रों में हम पति पत्नी हैं बस इससे अधिक हमारा कोई सम्बंध नहीं है।

जैसा चल रहा है ,इसी तरह अगर तुम आना व रहना चाहते हो तो ठीक है। इससे अधिक मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी।

शकुन का पति समझ चुका था कि अब शकुन बहुत बदल चुकी है ,वह अबला नहीं रही सबला बन चुकी है। वह उसकी नामर्दी पर भी उसे घर से निकाल सकती है। करीब एक वर्ष तक शकुन का पति आता जाता रहा। एक दिन जब किसी जगह बच्चों के कार्यक्रम में हम दोनों मिली ,तो बातों ही बातों में मैंने शकुन से कहा जब तुम दोनों को ही बच्चों से इतना प्यार है तो तुम उसका इलाज क्यों नहीं करा लेती। एक बार अपने पति से कह कर के तो देखो।

इस बार जब शकुन का पति आया तो उसने मेरी कही बात पति से कही ,वह फ़ौरन तैयार हो गया। वह शकुन के व्यवहार तथा शालीनता पर बहुत खुश था। दोनों ने अपना टेस्ट करवाया ,डाक्टर की सलाह के अनुसार पूरी सतर्कता बरती ,शकुन की बहन ने उसका पूरा साथ दिया। ठीक समय पर शकुन के दो जुड़वां बच्चे पैदा हुए।

उसके पति ने कई महीने की छुट्टी ले कर शकुन तथा अपने बच्चों की खूब सेवा की ठीक तीन महीने बाद शुभ दिन पंडित जी ने नाम करण के लिए बताया। खूब धूमधाम से नामकरण की तैयारी की गयी। पूरा स्टाफ आया ,खूब जश्न मनाया गया। शकुन और उसका पति हाथ जोड़ जोड़ कर सबका स्वागत सत्कार कर रहे थे। पालने में दो प्यारे प्यारे बच्चे किलकारी मार रहे थे। सब लोग शकुन तथा उसके पति को बधाई दे रहे थे .स्टाफ की महिलाएं खूब गा बजा रहीं थीं। इस ख़ुशी के अवसर पर शकुन का पूरा परिवार आया हुआ था। सब खुश थे ,तभी शकुन मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई ,और मुझ से चिपट कर रोने लगी मैं उसका हाथ पकड़ कर उसे चुप करा रही थी ,वह बोली दीदी यह सब आपके आशीर्वाद का ही फल है। आज शकुन की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे। मैं उसे चुप करा कर बाहर लाई और कहा हमारी बातें तो होती ही रहेंगी। इस समय मेहमानों का स्वागत सत्कार करो। शकुन के मुंह पर छाई मुस्कान देख कर मैं निहाल थी। घर आते समय मैं सोचती रही कि समय पर शकुन ने मेरी सलाह मानी अच्छा किया ,आज एक बिछुड़ा परिवार एकता के सूत्र में बंध गया। शकुन को तथा उसके परिवार को खूब आशीर्वाद दे कर मैं अपने घर लौट रही थी।

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रचनाकार: सावित्री काला की कहानी - शकुन
सावित्री काला की कहानी - शकुन
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