राजेश कुमार पाठक की कहानी - पुनर्जन्म

SHARE:

पुनर्जन्म     श्रीधर सरकारी सेवा में रहकर भी भ्रष्ट सरकारी सेवकों के कुप्रभावों से अपने को दूर रखकर बड़ी ही ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा के साथ स...

पुनर्जन्म
    श्रीधर सरकारी सेवा में रहकर भी भ्रष्ट सरकारी सेवकों के कुप्रभावों से अपने को दूर रखकर बड़ी ही ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा के साथ सरकारी कामकाज एवं दायित्वों को ससमय पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था


    वह अपने बचे समय का उपयोग घर के लोगों को सदआचरण एवं कर्तव्यबोध से सराबोर कारनामें में किया करता था। उसके ही साथ सरकारी सेवा में आए मित्र रामदीन की माली हालत श्रीधर से कहीं ज्यादा अच्छी थी, जिसे देख उसकी पत्नी और बच्चे मन ही मन श्रीधर की नेक नियति को कोसा करते थे पर श्रीधर हर रोज की तरह आत्मविश्वास से लबरेज हो अपनी दिनचर्या का अनुसरण करता। उसे रामदीन की ठाटबाट से कभी भी ईर्ष्या नहीं होती। इसके विपरीत वह रामदीन को ही समझाता रहता कि वह अपने बाल बच्चों पर कम से कम अपना प्रभाव ना छोड़े वरना जब सच्चाई सामने आयेगी तब उनके बेटे-बेटियों भी कहीं उससे नफरत ना करने लगे। रामदीन को श्रीधर की बातें अटपटी लग रही थीं। वह कहता-आखिर तुम्हारे ईमानदार बने रहने से भ्रष्टाचार तो नहीं मिट सकते। फिर तुम इस आचरण को अपनाने में परहेज क्यों करते हो ? जहाँ उपर से नीचे भ्रष्टाचार का बोलबाला हो वहाँ सिर्फ तेरे और सिर्फ तेरे भ्रष्टाचारी नहीं होने से क्या मानते हो सिस्टम सुधर जाएगा ? कभी नहीं !


    किसने कहा मैं सिस्टम में सुधर की बात करता हूँ-श्रीधर ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा। मैं तो वही करता हूँ जो सिस्टम कहता है, चाहता है।
    मैं तुम्हीं से पूछता हूँ कि क्या सिस्टम यह कहता है कि किसी व्यक्ति का काम हो भी जाए और जबतक उससे कुछ रूपये पैसे ना मिले तब तक यह कहो कि उसका तो काम हुआ ही नहीं, श्रीधर ने बेबाक लहजे में कहा।


    अब छोड़ो भी, कहो कैसा चल रहा है ? बच्चे सब ठीक-ठाक तो है ना ? रामदीन बड़े व्यंग्य के लहजे में पूछा।
    सब ठीक-ठाक है। बस चाहता यही हूँ कि इसी तरह बाकी बची सेवा कट जाए फिर तो सेवानिवृति के दौरान आयी व्यस्तता में कमी को दूर करने के लिए अभी से ही कुछ साहित्यिक अभिव्यक्ति देने और उसे लिखने की आदत डालने की सोच रहा हूँ, श्रीधर ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा।
    मेरे पास तो तुम्हारे जैसा लिखने-पढ़ने का वक्त बचता ही नहीं है। अब देखो सीनियर आफीसर तो सभी लोगों से सीधे मुँह बात तो कर नहीं सकते। उनकी भी प्रतिष्ठा है। वे रिजर्व रहना ही ज्यादा पसंद करते हैं और इधर लोगों का काम भी होना है। आफीसर कब अंदर और कब बाहर है, इसकी तो मुझे ही जानकारी रखनी पड़ती है। लोगों के पेडिंग काम हो उसे भी आफीसर को देखते हुए मुझे ही खड़े होकर कराना पड़ता है। अगर इस एवज में कोई व्यक्ति मुझे उपकृत करता है तो इसमें किसका नफा और किसका नुकसान ?


    मेरा तो सारा समय समाज के लोगों के काम निवटाने में ही गुजर जाता है। यूं कहो कि समय ही कम पड़ जाता है।
    श्रीधर से रहा नहीं गया। वर्षों से वह रामदीन से एक सवाल पूछना चाहता था। आज उसे उस सवाल पूछने का अच्छा अवसर मानों मिल ही गया था। वह रामदीन से पूछ ही बैठा-अच्छा रामदीन बताओ, तुम जो कुछ भी करते हो चाहे वह अपने अफसरों की झूठी चापलूसी हो या फिर अवसरवादी बन सामान्य लोगों से रूपये-पैसे ऐंठने के काम, क्या यह सब अपने बाल बच्चों से या फिर अपनी पत्नी से कभी साझा करके देखा है ?


    अरे, क्या कहते हो ? यह सब भला घर के लोगों के साथ साझा करने की बातें होती हैं ? वह विस्मय में आकर बेल उठा।
    क्यों ? आफीसरों से मिलकर उसकी काली कमायी में साझेदार बनकर हर रोज रूपये घर लाते हो और बड़े ही मासूमियत से उन पर झूठी सफेद चादर डाल अपनी भोली-भाली पत्नी के हाथों में डाल जाते हो और बड़े ही गर्व से कमाऊ पति होने का अहसास करा जाते हो। वह भी भोली सूरत लिए बिना कोई प्रश्न किये, पूछने की जरूरत भी नहीं समझती कि तुम रूपये लाए कहाँ से ?


    मुझे अब भी याद है कि एक बार भाभी के द्वारा इस पर सवाल किये जाने से तुमने उसे सदा के लिए छोड़ देने की धमकी तक दे डाली थी। उस दिन से भाभी तेरी आदत को नियति मान कर हर चीज स्वीकारती आ रही है। तेरी हरकतों का विरोध करने से ज्यादा उसे असहजता से ही सही पर सह लेना उसकी भी मानों नियति बन गई थी।


    रामदीन की पत्नी राधा अपने पति की काली कमाई का उपयोग भूल से भी अपने बाल-बच्चों की भलाई में खर्च नहीं करती। रामदीन भले ही अपने मन से जो कुछ उपयोग की वस्तुएं घर लाता, वह अलग बात होती। पर महीने के अंत पर मिलने वाली पगार पर उसका ध्यान बरबस टिका रहता। कभी-कभी माहवारी वेतन देर से मिलने पर उसे असहजता का भी अनुभव होता पर उसे वह ये सोच सहजता से झेल जाती कि देर भले हो पर उसे मिलने में अंधेर तो नहीं ही थी। कुछ दिनों आगे-पीछे वह उसे रामदीन के माध्यम से मिल जाता था और वह महीने भर के बजट को अतिबुद्धिमता से व्यय करने में अपने आप पर गर्व महसूस करती। पर उसका मन हमेशा उद्धिग्न रहता। यह सोच कि कहीं वह भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहते-रहते कानून की गिरफ्त में ना आ फंसे। तब क्या वह समाज में उसी तरह मुँह दिखाने के काबिल रह पायेगी ? क्या उसके भोले-भाले बच्चे अपने साथियों के बीच उसी स्वाभिमान के साथ अपने सर उठाकर समाज और दुनिया में रह सकेंगे ? मैं सोचती हूँ, रामदीन क्यों नहीं सोच पाता ? मैं तो उससे कब का कह चुकी हूँ कि मुझे उसकी काली कमायी के रूपये नहीं चाहिए। मैं वैसे भी साधारण परिवार से ताल्लुकात रखती हूँ, पर प्रतिष्ठा की पूछो तो भूल से भी उस पर आँच न लगने दूँ। मैं तो घोर अचरज में पड़ जाती हूँ तब रामदीन अपने बेटों से बड़ी-बड़ी बातें करता है। बडे-बड़े सपने दिखाता है उसे कि वह मन से पढ़ाई कर देश और दुनिया का नाम रौशन करे। बुरी आदतें ना पालें वगैरह-वगैरह। बच्चों को रामदीन समझाने एवं अच्छी शिक्षा देने में कोई कंजूसी नही करता पर खुद वो वैसा करने में क्यों अपने को असहज पाता है, यह सब बातें उसकी पत्नी को हमेशा सालती रहती।


    सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के वर्षों से खाली पड़े विभिन्न पदों की भर्ती का विशेष अभियान चला रखा था। सरकारी दफ्तरों में जाति प्रमाण पत्रों के बनवाने की मानो होड़ सी लग गयी थी। रिक्तियां जो ढ़ेर सारी थीं। इधर प्रमाण पत्र बनाने वालों की संख्या में सभी दफ्तरों में कमी देखी जा रही थी। कुछ लोग अगल-बगल तो कुछ नजदीक संबंधों की दुहाई देकर दफ्तरों में अपना काम समय रहते निकलवाने की जुगत में भिड़े थे। उसी जुगत में रामदीन के बड़े लड़के के दोस्त का बड़ा भाई रमेश भी था जिसने चार दिन पहले अपनी जाति का प्रमाण पत्र लेने के लिए दफ्तर में अर्जी दी थी परंतु अब तक उसे प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया था। आज जब उसने दफ्तर में अपने प्रमाण पत्र के बारे में तहकीकात की तो उसे दफ्तर के ही एक कर्मचारी ने 200 रूपये की मांग की थी तो वह ठिठक गया था। उसे याद आया कि क्यों नहीं वह अपने छोटे भाई के दोस्त अनिल से इसमें मदद ली जाए। उसके पिता तो सुना है इसी दफ्तर में काम करते हैं। पर मैं उसे और वे मुझे पहचानेंगे कैसे, उस पर जब प्रमाण पत्र बनवाने वालों की इतनी भीड़ हो। और तो और दो सौ रूपये के लिए अगर मैं पने छोटे भाई का सहारा ले, थोड़ी बहुत पैरवी भी कराउं तो कहीं वे लोग ऐसा ना चोच लें कि हमारी औकात भी क्या इतनी नहीं ? फिर कहीं मेरे छोटे भाई की उस परिवार से सहज और प्राकृतिक रूप से उपजी दोस्ती की फसल कहीं ना उजड़ जाए।


    सुरेश का ह्दय जरूर विशाल था परंतु जीवन उतना ही कंटकपूर्ण। उसने मन बना ही लिया कि वह अपनी माँ के उसी दफ्तर से प्राप्त बृद्धापेंशन की राशि, जो अब तक पूरी तौर पर खर्च नहीं हो पायी थी, से दो सौ रूपये लेकर कल दफ्तर खुलते ही समय पर वहाँ पहुंचकर अपना काम करवा ही लेगा। सुरेश ने अपने मन की सारी बातें माँ से कह डाली। उधर उसका छोटा भाई पढ़ाई करने के साथ-साथ भाई और माँ के बीच हुए बार्तालाप को सुनता जा रहा था। उसने भी यह ठान लिया कि दोस्ती रहे या जाए पर वह माँ के पेंशन के रूपयों को यूं बर्बाद होने नहीं देगा।


    सच कहा गया है कि मजबूरी इंसान को समय से पहले परिपक्व कर देती है जैसे एथीलीन कच्चे फलों को पका देता है।
    नौकरी के लिए दी जाने वाली अर्जी की अंतिम तिथि भी नजदीक आ चुकी थी। सुरेश माँ के बृद्धापेंशन के दौ सौ रूपये अपनी जेब में लिये पूरे आत्मविश्वास के साथ दफ्तर की ओर कूच कर चुका था। उधर उसका छोटा भाई भी अपनी योजनानुसार माँ के पेंशन के रूपये को बचाने की जुगत में जुट गया था। सुरेश दफ्तर पहुंचता है। जिस व्यक्ति ने उससे प्रमाण पत्र के एवज में रूपये मांगे थे, उसे ईमानदारी से रूपये थमाते हुए ज्यों ही प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उसकी रजिस्टर में अपना हस्ताक्षर बना रहा था, उसका छोटा भाई देख रहा था। वह और कोई नहीं उसी के दोस्त का पिता था जिसने प्रमाण पत्र के एवज में उसे बडे भाई से दो सौ रूपये लिये थे। सुरेश की नजर अपने लक्ष्य पर थी वह प्रमाण पत्र को अपने सीने से यूं लगाते दफ्तर छोड़ चुका था मानों वह जाति प्रमाण पत्र नहीं उसकी अंतिम नियुक्ति का प्रमाण पत्र रहा हो।


    इधर सुरेश के छोटे भाई का दोस्त अनिल उसके छोटे भाई के साथ अपने ही बाप की इस करतूत पर थू-थू कर रहा था। उसकी नजरें जमीन में गड़ी जा रही थीं। वह असहज महसूस कर रहा था मानों उसके पांव तले जमीन खिसक गई हो। वह अपने को कोसता हुआ अपने दोस्त के साथ घर वापस आ गया और सदा के लिए उस दोस्त से अलविदा कहने के अंदाज में अपने दिल की बात कह डाली-'मुझे भूल जाओ मेरे दोस्त। किसी ने सच कहा है-दोस्ती बराबर वालों में टिकती है। तुम, तुम्हारा परिवार मुझसे कहीं ज्यादा महान है। तेरी और मेरी दोस्ती बराबरी की नही। मैं तुच्छ, तू श्रेष्ठ है।''


    उसे अपने दोस्त से यह सब सुन कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
    उधर रामदीन की पत्नी की तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी और फिर प्रमाण पत्रों के बनाने की भीड़ भी कम होने के चलते रामदीन वक्त से पहले, अपने आफिसर से छुट्टी ले घर लौट आया। घर पर उन बच्चों को देख सहज भाव से पूछ बैठा-अरे, तुमलोग आज स्कूल नहीं गए ? इम्तिहान भी तो तुम लोगों के नजदीक हैं। यूं ही वक्त जाया नहीं करते। यह तो संयोग है कि मैं आज सबेरे ही आफिस से चला आया और तेरी चोरी पकड़ी गई। अभी से संभल जाओ वरना इम्तिहान में अच्छा ना कर पाओ तो हमें नहीं कोसना।


    सच कहा बापू। यह संयोग है कि मेरी चोरी पकड़ी गई। पर उससे भी बड़ा संयोग....यह कहते उसने दफ्तर की सारी घटना उसे सुना दी। रामदीन को मानो सांप सूंघ गया हो। वह जितना अपने सर को छिपाना चाहता उतना ही बेपर्द होता जा रहा था। वह अपने किये पर खुद को धिक्कार रहा था। उसे रह-रह कर श्रीधर की बातें झकझोरती जा रही थी। उसने प्रायश्चित करने का ठान लिया कि वह तब तक दफ्तर नहीं जाएगा जब तक कि इस शहर से उसका स्थानांतरण ना हो जाए। उसने अपने बेटे और उसके दोस्त को गले लगा लिया और माफ कर देने एवं विनती के लहजे में, आँखों में प्रायश्चित के आंसुओं का समुद्र संजोये, अपनी पत्नी के कंधे पर अपना सिर इस तरह रख डाला मानों वह पुनर्जन्म की तलाश कर रहा हो।
   


राजेश कुमार पाठक
पॉवर हाउस के नजदीक
गिरिडीह-815301
झारखंड़

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. श्री राजेश पाठक जी की कहानी अति सुन्दर और सारगर्भित है काश सभी रामदीनो का पुनर जन्म हो जाये और वे भी श्रीधर बन जाएँ तो इस प्यारे देश की अवस्था सुधरने में देर नहीं लगेगी रामदीनो को समझना चाहिये की पाप की कमाई दुःख, क्लेश , बदनामी और बर्बादी लाती है और सजा केवल रामदीन नहीं पूरा परिवार भोगता है

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: राजेश कुमार पाठक की कहानी - पुनर्जन्म
राजेश कुमार पाठक की कहानी - पुनर्जन्म
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9lEfzFAyPosDqMvq-mJcUQDR-_obXJTc7D_K94hKG86YnzDS7wHvvFkA4tWMCt24P5qo4JJMp049FW7mPxF75a8zyzeBCsQVnrl8VE46zgfOV1GBsqhH7kG5GEmzSIYwr9KGm/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9lEfzFAyPosDqMvq-mJcUQDR-_obXJTc7D_K94hKG86YnzDS7wHvvFkA4tWMCt24P5qo4JJMp049FW7mPxF75a8zyzeBCsQVnrl8VE46zgfOV1GBsqhH7kG5GEmzSIYwr9KGm/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/12/blog-post_46.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/12/blog-post_46.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content