कालू शिमला क्लब से थोड़ा आगे जहां हिमाचल हाई कोर्ट के पास से सड़क मालरोड के साथ मिलती है और एक सड़क स्कूल के पास से यू एस क्लब की और जाती है ...
कालू
शिमला क्लब से थोड़ा आगे जहां हिमाचल हाई कोर्ट के पास से सड़क मालरोड के साथ मिलती है और एक सड़क स्कूल के पास से यू एस क्लब की और जाती है वहां एक चौराहा है इस स्थान को शिल्ली चौक के नाम से जाना जाता है । वहीं एक पुलिस की काफी बड़ी गुमटी है जहाँ आठों पहर यानि रात दिन पुलिस कर्मचारी तैनात रहते हैं । वैसे तो यहाँ तक भी प्रतिबन्धित मार्ग है और आम वाहनों के आने जाने पर रोक है केवल विशेष आज्ञापत्र लेकर ही वाहन आ जा सकते है लेकिन इस से आग तो गिनीचुनी गाड़ियां ही जा सकती हैं जैसे रोगी वाहन, अग्निशमन या इंदिरागांधी खेल परिसर तक कुछ मंत्रियों या सचिवालय की गाड़ियाँ। इसके अतिरिक्त मुख्य मंत्री आवास भी यहाँ से थोड़ी ही दूर है। यहाँ वीडियो कैमरे व गाड़ियों को रोकने के लिए बेरियर भी लगा हुआ है। इस मार्ग पर पर्यटकों और स्थानीय लोगों का पैदल आना जाना सदा ही लगा रहता है। यही रहता है शेरू। उसका रंग काला है इसलिए पुलिस के जवान उसे कालू कहते है। वैसे नाम से होता भी क्या है नाम और गुणों का मेल तो कम ही दिखाई देता है। कहते भी हैं ‘ आँखी को कानो नाम नैनसुख, घर में औरत दुखिया नाम चैन सुख,।
तो हम भी उसे शेरू न कह कालू कह कर सम्बोधित करेंगे । वह इस स्थान पर तब आ गया था जब वह अभी माँ का दूध ही पीता था और उसकी माँ उसे असहाय छोड़ एक दो दिन पहले कही चली गयी थी। उस समय वह मरियल सा था उस पर दो महिला आरक्षी उसे उठाकर ले आई थीं। विभाग चाहे कोई भी हो पुलिस कर्मी हैं तो इंसान ही वे भी नारी सुलभ स्वभाव के कारण उसे उस दशा में तड़फता नहीं देख सकी थी और अपने पल्लू में लपेट अपने साथ ले आईं थी। फिर एक जाकर दूध और बोतल खरीद कर ले आई कई दिनों तक इसे तक इसे कपड़ों में लपेटकर रखा गया तथा बोतल से दूध पिलाकर जीवन दान देने का प्रयास किया जिसमें अंततोगत्वा उन्हें सफलता भी मिली। लेकिन कालू अहसान फरामोश नहीं है मेरा मन कहता है कि शायद वह उस दिन को आज भी भूला नहीं है और यही कारण है वह आज भी इस स्थान पर डटा हुआ है । समय निकलते देर नहीं लगती यह धीरे-धीरे वह बड़ा होने लगा। वहाँ तैनात सभी पुलिस कर्मियों के साथ उसका मेलजोल बढ़ने लगा। अपनी अठखेलियों से उसने उन सब का दिल जीत लिया और सबका प्यारा बन गया । बड़ा होने पर सब उसके साथ अपना भोजन सांझा करने लगे। उन लोगों के स्नेह और दुलार के परिणाम स्वरूप वह आज तक वहीं है और कभी भी जाने का नाम नहीं लेता। उसने उसी स्थान को उन जवानों के साथ अपनी कर्मस्थली मान लिया है।
अब जवानों का भोजन खा वह भी मरियल नहीं रहा उसमें जान आ गई देखने में बड़ा प्यारा दिखने लगा। उन महिला कर्मचारियों की नियुक्ति किसी अन्य स्थान पर हो गई कुछ दिनों तक वह उनकी रह देखता रहा एक दो रोज तो उसने खाया भी कुछ नहीं किन्तु धीरे धीरे दूसरे जवानों के साथ मस्त हो गया । वह यातायात पुलिस के जवानों की गतिविधियों को देखता रहता और धीरे धीरे उनके हाथ के इशारे ,सीटियों की आव़ाज तथा बोलने के ढंग से वह परिस्थितियों का अनुमान लगाने में सक्षम हो गया। अब जब कभी कोई गाड़ी वाला उनकी सीटी की आवाज सुन नहीं रुकता है तो यह भौंकता है और दो पंजों के बल ड्राईवर की खिड़की के सामने खुदा हो जाता है। यदि कभी कोई उनके साथ बदसलूकी करता है भले ही राहगीर उनका पक्ष न लें परन्तु यह सदैव उनके पक्ष में मुस्तैद रहता है इसी कारण सब उसके लिए भोजन पानी साथ लेकर आते है फिर भी यदि कभी याद न रहे तो उसके लिए दूध बिस्कुट का प्रबंध कर देते हैं । वह समझदार है वह भले ही भूखा रह जाए पर दर-दर माँगने नहीं जाता हाँ कभी कभार वहाँ से गुजरने वाले राहगीर भी उसके लिए भोजन लेकर आते है।
रात को पुलिस कर्मी उसको अपने पास गुमटी में ही जगह देते हैं परन्तु यदि कोइ अजनबी गुमटी की और आने का प्रयास करता है तो यह उनसे पहले सजग हो जाता है थोड़ी सी आहट होने पर उसकी अपनी नींद तो हराम हो जाती है लेकिन औरों को भी सोने नहीं देता। वह किस प्रकार पुलिस के जवानों की मदद करता है उस से सम्बन्धित अनेक प्रसंग है। एक प्रसंग मैं आपको बताता हूँ –
दिन ढल रहा था अभी सूर्य पूर्णरूपेंण अस्त नहीं हुआ था मैं गुमटी के साथ लगे बैंच पर एक कोने में बैठा था। साथ लगे बैंचों पर कुछ लोग और बैठे थे और ढलते सूर्य की धूप का आनंद ले रहे थे। बीच बीच में गाड़ियां आ जा रही थी। कुछ गाड़ियां जिन पर यहाँ से गुजरने के विशेष आज्ञापत्र चिपके हुए थे और प्रतिदिन वहां से गुजरते थे उन्हें वहां तैनात जवान रोकते नहीं थे लेकिन दूसरे वाहनों के विशेष आज्ञापत्र जांचे जा रहे थे। कालू गुमटी के बाहर शांत बैठा था। उसी समय एक फ़ौजी गाड़ी आई वहां खड़े सहायक उप निरीक्षक ने गाड़ी को रोका और वाहन चालक से विशेष आज्ञापत्र दिखाने की मांग की। यह देख पीछे बैठे कर्नल महोदय गुस्से में गाड़ी से नीचे उतर आए और जोर दे कर कहने लगे मिलिट्री अधिकारी के लिए कोई आज्ञापत्र नहीं होता। पुलिस अधिकारी ने उनसे कहा हमने दो तीन दिन तक आपको नहीं रोका लेकिन विशेष आज्ञापत्र के बिना अब आप आगे नहीं जा सकते। इस पर कर्नल साहब को गुस्सा आ गया और वे पुलिस कर्मी पर दबाव डालते आगे बढ़े। कालू इस समय तक निकट आ चुका था जैसे ही उसने कर्नल साहब को पुलिस अधिकारी की और आगे बढ़ते देखा तो भौंकते हुए दोनों पंजे पर खडा हो झपट पड़ा। कर्नल साहब को जल्दी में कुछ भी न सूझा और उससे जान बचाने के लिए गुमटी में घुस गए और अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया । यह देख सभी आने जाने वाले हैरान थे और कई तो मुस्कुराने भी लगे थे । कालू अब भी दरवाजे के पास आ जोर जोर से भौंकने रहा था । ये दृश्य देख उत्सुकतावश आने जाने वाले लोगों की की भीड़ ही लग गई थी।
कर्नल साहब मन ही मन शर्मिंदगी भी महसूस कर रहे थे तथा उस कुत्ते को पकड़ने के लिए सिपाही तथा अपने ड्राईवर की और को इशारा कर रहे थे। सिपाही ने कालू कहकर उसे पुकारा तो वह उसके निकट आ अपने नथुने से उसके बूट सूंघने लगा। फिर उसने उसे बालों से पकड़ा और सहायक उप निरीक्षक उसे पुचकारने लगा । कर्नल साहब ने डरते डरते दरवाजा खोला थोड़ा आश्वस्त होने पर जल्दी से बाहर आए और चुपचाप गाड़ी में बैठ गए। उसके बाद उन्होंने ड्राईवर से कुछ कहा । ड्राईवर ने वापिस गाड़ी मोड़ी और जिस मार्ग से गाड़ी लाया था उसी मार्ग से उसे वापिस ले गया। मेरे विचार से जो कार्य उस दिन कालू ने अपने साथियों के लिए किया उनके उच्च अधिकारी भी शायद उनके लिए नहीं कर सकते थे। शायद कर्नल साहब के पद के दबाव में आकर वे अपने ही कर्मचारियों से जवाब मांग लेते ।
आज भी कालू वहीं गुमटी के अन्दर बाहर ही दिखाई देता है तथा उसी प्रकार अपने साथियों की मदद के लिए तैयार रहता है। आते जाते उस स्थान पर मेरी नज़रें उसे अब भी ढूंढ़ लेती है। आज संतानें भी अपने पालन करने वालों के अहसान को भूल जाते हैं लेकिन वह अभी तक उसी प्रकार अपने नमक का फर्ज अदा कर रहा है। यदि आपको विश्वास न हो तो आप स्वयं जाकर उसे देख सकते हैं तथा वहाँ ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों से उसके बारे में पूछ सकते हैं ।
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