प्रमोद भार्गव का आलेख - विश्व पटल पर योग को मान्यता

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विश्व पटल पर योग को मान्यता प्रमोद भार्गव     यह शायद पहला अबसर है,जब पूरब के योग से जुड़े  ज्ञान को पश्चिम समेत दुनिया के ज्यादातर देशों न...

विश्व पटल पर योग को मान्यता

प्रमोद भार्गव

    यह शायद पहला अबसर है,जब पूरब के योग से जुड़े  ज्ञान को पश्चिम समेत दुनिया के ज्यादातर देशों ने मान्यता दी है।  वह भी इतने बड़े बहुमत से कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्य किसी प्रस्ताव को पहले कभी इतना सर्मथन नहीं मिला। 177 देशों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है। यह दिन उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबा दिन होता है इसलिए दुनिया के अधिकांश देशों में इस दिन का विशेष महत्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी दिन योग दिवस मनाने का सुझाव संयुक्त राष्ट्र महासभा में सितंबर 2014 में रखा था। अब इस दिन को वैश्विक स्वास्थ्य और विदेश नीति के अजेण्डे के तहत योग दिवस के रुप में मंजूरी मिल गई है। प्रस्ताव में कहा गया है कि योग स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सभी प्रकार की उर्जाएं प्रधान करता है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के बावत इसी साल सिंतबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने पहले भाषण में योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव की पुरजोर पैरवी करते हुए कहा था कि योग जीवनशैली को बदलकर और मस्तिष्क की चेतना को जगाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है। याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। दुनिया के देशों ने इस समस्या को समझा और योग को इससे निपटने का आसान और सर्वसुलभ माध्यम माना। वैसे भी योग में मानवता को एकजुट करने की अद्भुत शक्ति है क्योंकि योग में झान, कर्म और भक्ति का समन्वय एवं समागम है।
योग शब्द अपने भावार्थ में आज अपनी सार्थकता पूरी दुनिया में सिद्ध कर रहा है। योग का अर्थ है जोड़ना। वह चाहे किसी भी धर्म जाति अथवा सम्प्रदाय के लोग हों,योग का प्रयोग सभी को शारीरिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक रूप से सकारात्मक सोच विकसित करता है। योग भारत के किसी ऐसे धर्म ग्रन्थ का हिस्सा भी नहीं है, जो बाइबिल और कुरान की तरह पवित्र आस्था का प्रतीक हो। योग की आसनें प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृत ग्रंथ पतंजली योग सूत्र के प्रयोग हैं। जो हिंदु अथवा अन्य भारतीय धर्मों में धर्म ग्रन्थों की तरह पूज्य नहीं है। पतंजली योग सूत्र का सार इस एक वाक्य ''योगश्तिवृत्ति निरोधः'' में निहित है। इसका भावार्थ है चित्त अथवा मन की चंचलता को स्थिर करना अथवा रखना। जिससे मन भटके नहीं और इन्द्र्रियों के साथ वासनाएं भी नियंत्रित हों। लेकिन योग केवल वासनाओं को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं है। योग के नियमित प्रयोग से मधुमेह, रक्तचाप तो नियंत्रित होते ही हैं,कमोवेश मोटापा भी दूर होता है। यदि बाबा रामदेव की बात पर विश्वास करें तो कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों को भी योग नियंत्रित करता है। शायद इसीलिए मोदी ने योग को जीवन की चेतना का मंत्र और जीवनशैली बताया है।
हालांकि योग शिक्षा को लेकर एक समय अमेरिका और ब्रिटेन के धर्मगुरुओं में भय व्याप्त हो गया था, क्योंकि वे योग को धार्मिक शिक्षा के रुप में देखते हैं। उन्हें आशंका थी कि यदि योग की शिक्षा दी जाती रही तो उनके बच्चे भारतीय धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इसी शंका के चलते केलिफोर्निया नगर के विद्यालयों में तो योग की शिक्षा से जुड़े पाठों को हटाने की मांग भी की जा चुकी हैं। अकेले इस शहर की पाठशालाओं में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे योग सीखकर स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे है। योग को अब वैश्विक मान्यता मिलने से दुनिया के लोगों की मानसिकता में भी बदलाव आएगा। क्योंकि यह शायद पहला अवसर है जब भारत की किसी शैक्षिक व सांस्कृतिक से जुड़ी पारंपरिक मान्यता को अंधविश्वास से मुक्त रखते हुए झान के परिप्रेक्ष्य में अंतरर्राष्ट्रीय मान्यता मिली है।
        योग के रहस्यों को स्वास्थ लाभ से जोड़कर बाबा रामदेव ने जब से सार्वजानिक करना शुरू किया है,तभी से योग की महत्ता को पूरे विश्व ने स्वीकारा, न कि किसी धार्मिक प्रचार प्रसार के चलते ? योग ध्यान,और प्राणायाम के मार्फत मस्तिष्क को एकाग्र कर शरीर को चुस्त - दुरूस्त व निरोग बनाए  रखने की धर्मनिरपेक्ष वैज्ञानिक आसनें हैं, न कि हिंदु धर्म के विस्तार के उपाय। यदि दुनिया के लोग योग की आसनों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाते हैं तो रोग निरोगी तो होंगे ही दवाओं के अनावश्यक खर्च से भी बचेंगे।
        दरअसल भारत के झान को मिथकीय कहकर इसलिए नकारा जाता रहा है जिससे उसकी महत्ता स्थापित न होने पाए। इसीलिए पूर्वी देशों से जो भी ज्ञान यूरोपीय देशों में पहुंचता है, तो इन देशों की ईसाइयत पर सकंट के बादल मंडराने लगते हैं। भगवान रजनीश ने जब अमेरिका में गीता और उपनिषदों को बाइबिल से तथा राम,कृष्ण, बुद्ध और महावीर को जीसस से श्रेष्ठ घोषित करना शुरू किया और धर्म तथा अधर्म की अपनी विशिष्ट शैली में व्याख्याएं कीं तो रजनीश के आश्रमों में अमेरिकी लेखक ,कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक और प्राध्यापकों के साथ आमजनों की भीड़ भी उमड़ने लगी थी। उनमें यह जिज्ञासा भी पैदा हुई कि पूरब के जिन लोगों को हम हजारों ईसाई मिशननरियों के जरिए शिक्षित करने में लगे हैं, उनके ज्ञान का आकाश तो कहीं बहुंत ऊंचा है। यही नहीं जब रजनीश ने व्हाइट हाउस में राष्ट्र्र्रपति रोनाल्ड रीगन, जो ईसाई धर्म को ही एक मात्र धर्म मानते थे और वेटीकन सिटी में पोप को धर्म पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी तो ईसाइयत पर संकट छा गया और देखते ही देखते रजनीश को उनके तामझाम समेत अमेरिका से बेदखल कर दिया गया।
    लेकिन अब लगता है मोदी के प्रभाव के चलते दुनिया में सद्भाव और सहिष्णुता का वातावरण नये ढंग से निर्मित हो रहा है। वरना महज 90 दिन के भीतर योेग को अंतरर्राष्ट्रीय मान्यता नही मिलती। संयुक्त राष्ट्र में भारत की यह बड़ी सफलता है। भारत को अब इसी क्रम में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने की पैरवी करने की जरुरत है। ऐसा होता है तो कालांतर में हिन्दी को भी अंतरर्राष्ट्रीय मान्यता मिल जाएगी, वैसे भी चीन की भाषा मंदारिन के बाद हिन्दी दूसरी ऐसी भाषा है जो दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाती है।

 

प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
   
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।

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