88वीं जयंती स्मृति डॉ. धर्मवीर भारती : साहित्यिक पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ धर्मवीर भारती हिन्दी साहित्य के वैसे प्...
88वीं जयंती स्मृति
डॉ. धर्मवीर भारती : साहित्यिक पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ
धर्मवीर भारती हिन्दी साहित्य के वैसे प्रगतिशील लेखक थे जिनके लेखन में सिद्धांत और व्यवहार दोनों ही दृष्टियों में प्रगतिशीलता दृष्टिगोचर होती है. एक सामंती परिवार में 25 दिसंबर, 1926 को जन्मे धर्मवीर भारती सामंती व्यवस्था के हमेशा खिलाफ रहे, जिसकी तसदीक भारतीय दर्शन, चिन्तन और मानवतावादी परंपराओं के प्रति आस्था से ओतप्रेात उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है.
धर्मवीर भारती का समय हिन्दी उपन्यासों का ऐसा समय था जब सामाजिक यथार्थ और मानसिक यथार्थ पर उनके समकालीन लेखक लिख रहे थे. सामाजिक यथार्थ पर यशपाल जैसे सशक्त लेखक कलम चला रहे थे वहीं मन की गहराई में उतरकर जैनेंद्र कुमार मनोवैज्ञानिक रचना कर रहे थे. धर्मवीर भारती की रचनाओं में सामाजिक यथार्थ और मानसिक यथार्थ दोनों ही धाराओं का समावेश देखा जा सकता है. उन्होंने जहां 'गुनाहों का देवता' में एक उत्कृष्ट प्रेम कहानी मन की गहराई में उतर कर लिखी वहीं 'ग्यारह सपनों का देश' में मानसिक और सामाजिक यथार्थ का मिला जुला रूप देखने को मिलता है. धर्मवीर भारती ने साहित्य की लगभग सभी विद्याओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया. ठोस सामाजिक यथार्थ में गहरे जाकर धर्मवीर भारती ने कहानियां लिखी जो 'मुर्दों का गांव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान', साँस की कलम से' कहानी संग्रह में प्रकाशित है.
धर्मवीर भारती प्रगतिशील चिंतन से प्रभावित थे और जनजीवन के विविध स्तरों से तन-मन की गहराई से घुले-मिले थे. उनके सभी उपन्यासों की कथा-शिल्प और पात्र इस बात की तसदीक करते हैं. समाज की बात करते हुए वे उलझे हुए पात्रों की गहराईयों में दूर तलक चले जाते थे. इसका उदाहरण 'गुनाहों का देवता' उपन्यास है, जो मघ्यवर्गीय लोगों की कहानी है और जिसे पाठकों ने काफी सराहा भी. ये अलग बात है कि इस उपन्यास के नये संस्करण में धर्मवीर भारती ने स्वयं लिखा है कि 'मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसंद किया है.' सुधा और चन्दर नामक इस उपन्यास के पात्रों से पाठकों ने एक रिश्ता-सा कायम कर लिया जो आज भी कायम है. आज भी प्रेम कथाओं पर आधारित उपन्यासों में 'गुनाहों का देवता' सर्वाधिक पढ़े जाने वाला उपन्यास है.
धर्मवीर भारती प्रयोगवादी युग के साहित्यकार होते हुए भी प्रगतिशीलता का साथ नहीं छोड़ा. 'अन्धा युग' उनका एक प्रतीकात्मक नाटक है, जिसमें उन्होंने द्वितीय महायुद्ध के पश्चात राजनीति और साहित्य में छाए हुए अन्धकार को अत्यंत मर्मस्पर्शी ढ़ंग से उभारा है. 'अन्धा युग' नाटक के माध्यम से धर्मवीर भारती ने समाज में फैली विकृति, विद्रूपताओं, असंतुलन और मानवीय मूल्यों के प्रति फैले अंधेपन पर कुठाराघात तो किया ही है वहीं मानवीय मूल्यों की स्थापना और कल्याण की सृष्टि भी करना चाहते हैं.
धर्मवीर भारती की कविताओं यथा, 'कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत-वर्ष, आद्यन्त तथा सपना अभी भी' में उल्लास के स्थान पर उदासी और सूनापन के साथ-साथ भावुकता की गहराई है. कुछ व्यंग्यात्मक कविताएं भी इन्होंने लिखीं.
धर्मवीर भारती का बचपन दुख में बीता. आठंवी कक्षा में थे तभी पिता का देहांत हो गया, उसके बाद जिंदगी गरीबी में बीती. ट्यूशन कर प्रथम श्रेणी से एमए किया, पीएचडी किया. यह वही समय था जब धर्मवीर भारती साहित्यिक पत्रकारिता की शुरूआत 'अभ्युदय' नामक पत्रिका से किया. श्री इलाचंद्र जोशी के संपादन में प्रकाशित 'संगम' नामक पत्र के वे सहकारी संपादक नियुक्त हुए. बाद में धर्मवीर भारती ने 'निकष' नामक पत्रिका भी निकाला तथा 'आलोचना' का संपादन भी किया. टाइम्स ऑफ इंडिया समूह द्वारा 1950 में प्रारम्भ 'धर्मयुग' सप्ताहिक पत्रिका के धर्मवीर भारती प्रधान संपादक बने और 1987 में इस पद से अवकाश ग्रहण किया. धर्मवीर भारती के संपादन काल में 'धर्मयुग' हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ सप्ताहिक पत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ. 'धर्मयुग' के माध्यम से धर्मवीर भारती ने अनेक लेखकों को सामने लाया और उन्हें प्रतिष्ठित भी किया. प्रयाग विश्वविद्यालय के अध्यापन के दौरान 'हिन्दी साहित्य कोश' के सम्पादन में सहयोग दिया. साहित्यिक पत्रकारिता में धर्मवीर भारती ने जो कृतिमान स्थापित किए, ऐसा शायद कभी किसी पत्रकार ने नहीं किया. भातर-पाक युद्ध में 1971 के दौरान भारतीय स्थल सेना के साथ वास्तविक युद्धस्थल पर निरंतर उपस्थित रहकर युद्ध के वास्तविक घटनाओं की रिपोर्टताज तैयार किया. सितंबर 1971 में मुक्तिवाहिनी के साथ बांग्ला देश की गुप्त यात्रा की तथा वहां का आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया. 1974 में भारतीय मूल के मारिशस में रहने वाले लोगों की समस्याओं का अध्ययन करने मारिशस गए तथा 1978 में चीन की सिनुआ संवा समिति के आमंत्रण पर भारत सरकार के डेलीगेशन के सदस्य के रूप में चीन गए.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी धर्मवीर भारती साहित्य की लगभग सभी विद्याओं में लिखा. आलोचना पर उन्होंने प्रगतिवाद-एक समीक्षा, 'मानव मूल्य और साहित्य' दो ग्रंथ लिखे.'ठेले पर हिमालय, पश्यंती, कहनी अनकहनी, शब्दिता, कुछ चेहरे कुछ चिंतन' उनके प्रमुख निबंध है. उन्होंने इक्कीस देशों की आधुनिक कहानियों तथा आस्कर वाइल्ड की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद भी किया. 'अक्षर अक्षर यज्ञ' उनके पत्रों का संकलन है. 'सिद्ध साहित्य' नामक उन्होंने शोध प्रबंध भी लिखे. धर्मवीर भारती को यायावरी भी बहुत पंसद थी, उन्होंने अपनी यात्रा संस्मरण 'यात्रा चक्र' में लिखा है. उनका एकांकी संग्रह 'नदी प्यासी थी' है.
1972 में भारत सरकार ने डॉ. धर्मवीर भारती को 'पद्यश्री' से अलंकृत किया। इसके अतिरिक्त उन्हें व्यास सम्मान, संगीत नाटक अकादमी द्वारा सर्वश्रेष्ठ नाटककार सम्मान, भारत भारती पुरूस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरूस्कार, उतर प्रदेश गौरव सम्मान से नवाजा गया. 4 सितंबर 1997 को मुम्बई में ह्दयाघात से उनका देहावसान हो गया. उनकी 88वीं जयंती पर हमारा नमन.
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301
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