संसार को देह और शब्दों को आत्मा देकर चल बसे भाषा सम्राट महरोत्रा डॉ.चन्द्रकुमार जैन प्रख्यात भाषाविद डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा अब हमारे बी...
संसार को देह और शब्दों को आत्मा देकर
चल बसे भाषा सम्राट महरोत्रा
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
प्रख्यात भाषाविद डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने अपनी नश्वर देह का त्याग तो किया ही, साथ ही मानवता की भलाई के लिए पहले ही अपनी देह दान कर दिया था। उनकी देह को रायपुर मेडिकल कॉलेज को सौप दिया गया। भाषा के वैभव और शब्दों की यायावरी की आजीवन पड़ताल करते रहे डॉ. साहब बिलासपुर के बिनोबा नगर में रह रहे थे।
शब्द ज्ञान दिया, देह दान किया
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पिछले ही वर्ष उनकी पत्नी उमादेवी ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया था। उन्होंने ने भी अपना देह रायपुर मेडिकल कॉलेज को दान कर एक आदर्श स्थापित किया था। इस तरह अगर देखें तो शब्द संसार की अखंड सम्पदा को आजीवन समृद्ध बनाकर मेहरोत्रा दंपत्ति ने अपने जीने के साथ जाने को भी नया अर्थ दे दिया। गौरतलब है कि डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा भारत सरकार की हिन्दी साहित्यकार विवरणी में छत्तीसगढ़ के केवल दो लेखकों और हिन्दी प्रचारकों में से एक रहे हैं। उन्हें हिन्दी अकादमी, हैदराबाद ने 1996 में शब्द सम्राट की उपाधि से नवाज़ा था। उन्होंने एक तरफ भाषा विज्ञान जैसे दुरूह विषय के कई अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया, दूसरी ओर शब्दों के सही प्रयोग को सीधी-सादी भाषा-शैली में अभिव्यक्त कर अपनी गहरी पकड़ का परिचय दिया। छत्तीसगढ़ वासियों के विशेष सन्दर्भ में आंचलिकता के प्रभाव की दृष्टि से हिन्दी प्रयोग की अशुद्धियों को उन्होंने अनेक बार भली भाति समझकर शुद्ध हिन्दी बोलने की प्रेरणा दी। मिलते जुङते शब्दों के अर्थ व प्रयोग के महीन अंतर को सधी हुई सुन्दर शैली में समझाकर आपने हिन्दी शब्द संसार के मानक और प्रामाणिक अनुप्रयोग को बल दिया। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता ही नहीं, विशेषज्ञ थे।
जी भर लिखा,शब्दों को जीवन दिया
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अपने कर्म स्थल छत्तीसगढ़ का नाम दिगंत तक पहुँचाने वाले डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा का जन्म 17 अगस्त 1934 में उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में हुआ था। उन्होंने 1956 में आगरा से हिन्दी में एम.ए. किया था. उसके बाद उन्होंने पीएचडी तथा डी लिट किया था. रमेश चंद्र महरोत्रा 1959 से लेकर 1966 तक सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे। उसके बाद उन्होंने 1978 तक रायपुर में रीडर के तौर पर अपनी सेवाएं दी थी। 1994 तक उन्होंने प्रोफेसर के तौर पर रायपुर में काम किया। सेवानिवृत्ति के बाद से वे अवैतनिक मानसेवी प्रोफसर, रायपुर थे। साधु स्वभाव के सरल व्यक्तित्व डॉ.मेहरोत्रा की भाषा सेवा एक महान भाषा विज्ञानी की अंतर्दृष्टि के अमिट कोश से काम नहीं है। उनके जैसा समर्पण आज के युग में दुर्लभ ही कहा जा सकता है। वह जीवन भर लिखकर शब्दों को नया जीवन देते रहे। उनकी कृतियों में रचनात्मक लेखन से लेकर प्रेरणास्पद निबंध और भाषा विज्ञानं से लेकर व्याकरण तक लेखन की अनेक छवियाँ देखी जा सकती हैं। उनके अक्षर योगदान पर एक दृष्टि डालें।
कृतियों का अम्बार, सृजन संसार
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डॉ.रमेशचन्द्र महरोत्रा जी की प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं -भाषैषणा, हिन्दी ध्वनिकी एवं ध्वनिमी, अशुद्ध हिन्दी: विशेषकर छत्तीसगढ़ के संदर्भ में (मन्नू लाल यदु सहलेखक), हिन्दी में हिन्दी का नवीनतम बीज व्याकरण (चित्तरंजन कर सहलेखक), मानक हिन्दी का शुद्धिपरक व्याकरण, हिन्दी का शुद्ध प्रयोग, मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग,मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग, मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग-3,मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग-4 (खंड1, खंड 2), मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग-5 (खंड1, खंड 2), भाषिकी के दस लेख (हीरालाल शुक्ला सहसंपादक), भाषाविज्ञान का सामान्य ज्ञान (मन्नू लाल यदु सहसंपादक), छत्तीसगढ़ी-संदर्भ-निदर्शनी (भागवत प्रसाद साहू सहसंपादक), छत्तीसगढ़ी-शब्दकोश (प्रेमनारायण दुबे सहसंपादक), रविशंकर विश्वविद्यालय भाषाविज्ञान-शोधसार 1968-’85 (भागवत प्रसाद साहू सहसंपादक), कोशविज्ञान: सिद्धांत और प्रयोग (आचार्य रामचंद्र वर्मा जन्मशती ग्रंथ) (हरदेव बाहरी के साथ संपादक), छत्तीसगढ़ी-मुहावरा-कोश (भागवत प्रसाद साहू आदि सहसंपादक), छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी: भाषायी कार्य (संपादक), मानक हिन्दी लेखन-नियमावली (पुस्तिका),(पुनर्नव) अपनी हिन्दी सुदृढ़ कीजिए, जनशाला दर्शन, साक्षरता भवन, अँ के प्रयोग के लिये अपील: औचित्य और सूची, तमिल भाषा का इतिहास (अनुवादक), टेढ़ी बात (चित्तरंजन कर संपादक), आड़ी-टेढ़ी बात (चित्तरंजन कर संपादक), टेढ़ी-बात पर खूबसूरत नज़रें (संपादक), लवशाला (रमेश नैयर संपादक), लवशाला का मूल्यांकन (संपादक), अच्छा बनने की चाह, खंड-1, सच, बड़ा सच और संपूर्ण सच, अच्छा बनने की चाह, खंड-2, सुख, समृद्धि की राहें, सुख की राहें (रमेश नैयर संपादक), सफलता के रहस्य (रमेश नैयर संपादक), छत्तीसगढ़ी: परिचय और प्रतिमान, छत्तीसगढ़ी को शासकीय मान्यता, एक दिल हज़ार अफसाने (संपादन)(रमेश नैयर संकलन एवं रूपांतर), छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-शब्दकोश (संपादन-सहयोग)(पालेश्वर प्रसाद शर्मा संपादक), छत्तीसगढ़ी मुहावरे और लोकोक्तियाँ, मानक हिन्दी का (व्यवहारपरक) व्याकरण, छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण, मानक छत्तीसगढ़ी का सुलभ व्याकरण (सुधीर शर्मा सहलेखन), मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग।
कई उपाधियाँ दिलाई,गरिमा बढ़ाई
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जहां तक प्रकाशित लेख एवं संदर्भिका का प्रश्न है इनकी संख्या दो सौ के आस पास है। आपके निर्देशन में पूर्ण करवाए गए शोधकार्य तो स्मरणीय है ही, उपाधिधारी भी नामचीन व्यक्तित्व हैं। मिसाल के तौर पर डॉ.साहब के निर्देशन में डी.लिट् करने वालों में स्वनामधन्य डॉ .विनय कुमार पाठक,डॉ .चित्तरंजन कर,डॉ.ए.एस.झाड़गांवकर,डॉ .मंजु अवस्थी,डॉ .यज्ञ प्रसाद तिवारी शामिल हैं। आपने 39 पी-एच.डी.,24 एम.फिल के अलावा छह परियोजनाएं संपादित कीं।
संस्थाओं से विविधस्तरीय कम या अधिक संबद्धता की दृष्टि से भी डॉ.महरोत्रा की जीवन यात्रा अत्यंत संपन्न कही जा सकती है। इन संस्थाओं में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,संघ लोकसेवा आयोग,केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय,वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली का स्थायी आयोग -परामर्शदात्री समिति,राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र परिषद्,केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल,पर्यावरण एवं वन मंत्रमानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्,लिंग्विस्टिक सोसायटी आफ इंडिया,हिन्दी साहित्य सम्मेलन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान,भारत सरकार कर्मचारी चयन आयोग (मध्य क्षेत्र),भारतीय भाषा परिषद,हरियाणा साहित्य अकादमी,बिहार राज्य सहायक सेवा चयन मंडल,राजस्थान लोक सेवा आयोग,मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा अनुदान आयोग,मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग,मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी-प्रबंधक मंडल एवं कार्यसमिति,मध्य प्रदेश साहित्य परिषद्,मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम,मध्य प्रदेश भाषाविज्ञान परिषद्,आकाशवाणी परामर्शदात्री समिति,22 विश्वविद्यालयों के शोध-अनुभाग।
और सम्मानों को किया सम्मानित
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डॉ.रमेशचन्द्र महरोत्रा को प्राप्त अलंकरण और सम्मान की सूची भी उनके योगदान की तरह विशाल है। वह भारत सरकार की हिन्दी साहित्यकार विवरणी में छत्तीसगढ़ के केवल दो लेखकों और हिन्दी प्रचारकों में से एक रहे। इसके अलावा शब्द सम्राट, हिन्दी अकादमी, हैदराबाद (1996),छत्तीसगढ़-विभूतिअलंकरण, महाकवि कपिलनाथ साहित्य-समिति, बिलासपरु (1997),महाकोशल कला परिषद् सम्मान, रायपुर (1998),मायाराम सुरजन फाउंडेशन सम्मान, रायपुर (1998),विद्यासागर (मानद् डी.लिट्.), विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर (1999),बिलासा साहित्य सम्मान, बिलासा कला मंच, बिलासपुर (2000),नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम) कोलकाता सम्मान (2001),राज्य स्तरीय प्रथम विश्वविद्यालयीन शिक्षक-सम्मान, रायपुर (2001), संस्कार भारती साहित्य सम्मान, रायपुर (2002),हिन्दी गौरव सम्मान, रायपुर (2003) सहित पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्मान, छत्तीसगढ़ राज्य शासन से विभूषित किये गए।
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लेखक छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण से सम्मानित
और दिग्विजय कालेज,राजनांदगांव में प्रोफ़ेसर हैं।
डॉ चंद्र कुमार जैन जी,
जवाब देंहटाएंरचनाकार में प्रकाशित आपके लेख प्रायः सूचनापरक ही होते हैं. मैं आपसे कुछ अधिक की अपेश्क्षा करता हूँ.
प्रखर साहित्यकार मुक्तिबोध संभवतः इसी कॉलेज में अध्यापन करते थे.
मुक्तिबोध अभी भी हिंदी साहित्य में दुरूह कवि माने जाते हैं. उनके काव्य पर जितनी समालोचनाएँ मेरे देखने में आई हैं उसमें समालोचकों ने लगभग अपनी ही बुद्धि की भड़ाँस निकाली है, मेरी समझ में. मुक्तिबोध के काव्य का मर्म कहीं खो गया लगता है.
उन्होंने बहुत सारी कविताएँ राजनाँदगाँव के वातावरण में भी लिखी हैं. वे सन् 1943 ई से पहले से कविता लिखते रहे हैं. यह वह समय था जब भारतीय प्रायद्वीप स्वतंत्रता की जिजीविषा से आलोड़ित था. जहाँ पश्चिम द्वितीय विश्वयुद्ध से आक्रांत और संत्रस्त था वहाँ भारत में उन्हीं दिनों भारत छोड़ो का उद्दाम उद्घोष हुआ था. समस्त भारतीय परिवेश के हर कोने में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध स्वतंत्रताकामियों के रक्त में आवेग और आवेश का ज्वार उबल रहा था, वे आर या पार की लड़ाई लड़ रहे थे वहीं मुक्तिबोध इस परिवेश से अनजान से बने थे. पराधीनता में होने की पीड़ा से वह व्यथित नहीं थे, उनमें दूर देश के लोगों का संत्रास और पीड़क परिस्थिति प्रभावित कर रही थी.
---शेषनाथ प्र श्रीवास्तव ई-मेल sheshnah250@gmail.com
आ.शेषनाथ जी,
हटाएंआपकी टिप्पणी व सुझाव दोनों स्वागतेय हैं।
रचनाकार,वास्तव में सृजन-कर्म के वैविध्य का
एक विशाल मंच है। मैं समझता हूँ कि इस में विविध विधाओं व आयामों के
सृजनरत, सृजनोत्सुक और सृजन स्नेही वर्ग का समवेत योगदान है।
सब की रूचि भिन्नता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
तदनुरूप अनेक अन्य लेखक मित्रों के सदृश मेरा भी
यही प्रयास रहता है कि प्रस्तुत की गई सामग्री
सूचनापरक,ज्ञानवर्धक और आवश्यकतानुरूप विश्लेष्य भी रहे।
फिर भी, आपकी अपेक्षा पर भी खरा उतरना मुझे उपयुक्त प्रतीत होता है।
जहां तक, मुक्तिबोध जी का प्रश्न है, मैंने पूर्व में रचनाकार में
कुछ आलेख दिए है, जिनमें मुक्तिबोध के राजनांदगांव के सृजन पर
एकाग्र लेख भी शामिल है।
सचमुच यह गर्व का विषय है मेरे लिए कि
मैंने उसी दिग्विजय महाविद्यालय में पढ़ाई के बाद अध्यापन का सौभाग्य भी
प्राप्त किया है जहां मुक्तिबोध, बख्शी जी जैसे साहित्य विभूतियों के चरण पड़े थे।
आज यह जिले व प्रदेश का अग्रणी उच्च शिक्षा संस्थान है।
बहरहाल, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धक है।
रचनाकार के सम्मानित पृष्ठों को
ऎसी टिप्पणियाँ और प्रतिक्रियाएं
अधिक उर्वर बना सकती हैं।
यह सिलसिला आगे बढे,
यही शुभ भावना है।
साभार
आपका
चन्द्रकुमार जैन