यह कविता सन् 1994 में एक कुत्ते की मौत की सच्ची घटना पर आधारित है। 1-:: इन्सानियतःः एक कुत्ते की कहानी इंसान क...
यह कविता सन् 1994 में एक कुत्ते की मौत की सच्ची घटना पर आधारित है।
1-::इन्सानियतःः
एक कुत्ते की कहानी
इंसान की जुबानी।।
एक कुत्ते ने एक औरत को, जरा सा काट खाया।
उसे देखकर औरत के, पति को गुस्सा आया।।
उसने एक पत्थर कुत्ते के सिर में दे मारा।
उसकी मार से कुत्ता, बेहोश हो गया बेचारा।।
मोहल्ले वालों ने उसको मरा हुआ जान लिया था।
एक अच्छे भले कुत्ते को पागल कुत्ता मान लिया था।।
जब कुत्ते को होश आया।
तो उसके सामने था उसी दृष्ट आदमी का साया।।
एक तरफ थी कुत्ते की आंखों में जिन्दगी की भीख।
परन्तु इन्सान सुनना चाहता था, उसके मरने की चीख।।
वह आदमी अपनी भुजाओं का बल मोहल्ले को
दिखाना चाहता था।
अरे। इन्सान भी एक कुत्ती चीज है, यह कुत्ते को
बताना चाहता था।।
जब उस आदमी ने पहला लट्ठ घुमाया।
कुत्ते के सर से, खून का फव्वारा निकल आया।।
खून के साथ एक चीख मोहल्ले में गूंजने लगी।
बेचारे जीव को आत्मा मददगार ढूंढने लगी।।
मोहल्ले वाले इस दृश्य को फिल्म को तरह देख रहे थे।
एक कुत्ते की चीख पर हंसी के फव्वारे फेंक रहे थे।।
तब उस मानव ने एक जोर का प्रहार किया।
और बडे गर्व के साथ कुत्ते का संहार किया।।
सांत्वना बहुतों ने दी औरत की चोट पर।
परन्तु कोई रोने न आया, कुत्ते की मौत पर।।
1996-97 में हनुमानगढ में आई बाढ का वर्णन
2-::जल प्रलयःः
शान्त स्थिर चलने वाला, आज तनकर आ रहा।
जो जल कल तक जीवन था, वो मौत बनकर आ रहा।
तहस-नहस करता आ रहा मकान है।
कल तक के स्वर्ग को बना रहा शमशान है।
वर्षों के बने आशियों, पल में ही ढह गये।
सैकडों दिलों के अरमाँ लहरों में ही बह गये।
सबकी प्यास बुझाने वाला, अपनी प्यास बुझा रहा।
शान्त स्थिर चलने वाला, आज तनकर आ रहा।
जो जल कल तक जीवन था, वो मौत बनकर आ रहा।
उंचे महलों में रहने वाले जमीं पर धराशायी है
कहीं मनुष्य, कहीं जानवर की लाशें देती दिखायी है।
इस पानी ने देखी आज कैसी प्रलय मचायी है।
देखो ओ देखने वालों ये लाश किसकी है।
किसी बहन का भाई होगा।
सिन्दूर किसी का ये होगा।
किसी माँ का दुलारा होगा।
बुढापे का सहारा होगा।
इस रात बच्चे को देखो।
ललचायी है जिसकी आँखे उस माँ का दूध पी जाने को।
जिसे ले गया अपने साथ जल,
अपनी प्यास बुझाने को।
कल-कल की ध्वनि करने वाला, गरजन के गीत गा रहा।
शान्त स्थिर चलने वाला, आज तनकर आ रहा।
जो जल कल तक जीवन था, वो मौत बनकर आ रहा।
जल प्रलय के बाद, नेताओं की बाढ़ आयी।
जो प्रलय के समय न दिये थे दिखाई
जनता ने उन्हें जब अपनी आपबीती सुनाई
जनता के प्रति झूठी सहानुभूति जताई।
दे-दे कर हौसले जनता को खुश किया।
आगामी चुनावों के लिये, कुर्सी को मजबूत किया।
एक बाढ़ वो भी थी, एक बाढ़ ये भी है।
फर्क सिर्फ इतना है
वो तो आकर चली गयी
ये यूं ही मंडराते रहेंगे।
अपने लालच के लिये जनता को डुबाते रहेंगे।।
यह कविता जयपुर बम विस्फोट का मार्मिक वर्णन है जो कि जयपुर बम विस्फोट के बाद लिखी गयी थी।
3-::आंतकवादःः
सुधा युक्त थी, जो वसुधा,
नर लहू से लाल है वही धरा।।
गुलाबी नगरी, धमाकों से बेहाल हो गई।
अब नगरी गुलाबी न होकर, रक्त से लाल हो गई।।
खुली सुरक्षा की पोल,
माणक चौक, त्रिपोलिया में आतंक का जहर घोल,
दहलाकर चांदपोल, आतकवांद ने पीटा ढोल।।
आज इस नगरी में हर कोई बदहाल था।
किसी की कोई खता नहीं।
किसी के पिता-पति का पता नहीं।।
इस मंजर को देख, खुशी के गीत कोई गा रहा।
मेरा घर सुलगता देख, दीपक कोई जला रहा।।
कैसे रहूं चुप, मेरा घर कोई जला रहा।।
त्यौहारों की इस नगरी में दशहत का जहर घोलने लगे हैं।
बम-बम बोले की जगह, बम बोलने लगे है।।
भूल कर मीठी, प्यार की बोली।
खेलने लगा मनुज, खून की होली।।
शांतचित आम जन नहीं,
अमन में किसी का मन नहीं।।
देश की ऐसी गत है,
सभी को दौलत की लत है।
सभी नफरत में रत है।।
आमजन को मारकर, करते मानवता का खात्मा।
उनका भी तो कोई मरा होगा, शायद उनका जमीर या उनकी आत्मा।।
वक्त है पुकार रहा, अमन की बहार चाहिये।
हिंसा को समाप्त करने को, अहिंसा का हथियार चाहिये।।
सर नफरत के कट जाये, प्यार में वो धार चाहिये।।
आओ करे आज प्रण हम, आज न हम कमजोर बने।
ताकि हमारा प्यारा जयपुर भारत का सिरमौर बने।।
शहीद दिवस पर विशेष-भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी का वर्णन
4-::शहीदःः
मेरा यार बना है, दुल्हा,
आज मेरा यार बना है दुल्हा।
तन पर काले कपडे पहने, नहीं बदन पर गहने,
अंग्रेज बाराती पीछे-पीछे, मेरा यार के, वाह क्या कहने।
किया संघर्ष था अंग्रेजों से, जब जला नहीं कही चुल्हा,
मेरा यार बना है, दुल्हा।
आज मेरा यार बना है, दुल्हा।
हाथ बंधे होने पर भी, मंद-मंद मुस्कान थी मुख पे।
गौरे चाहे खुश हो जायें, नहीं रोक जनता के दुख पे।
मुख पे तेज, देख यार के, मेरा मन खुशी से फूला।
मेरा यार बना है, दुल्हा,
आज मेरा यार बना है, दुल्हा।
चूम ली हो वरमाला जैसे, फांसी को ऐसे चूमा।
यार मेरे को निर्भर देखकर, आम मेरा मन झूमा।
मुख पे थी मुस्कान तब भी, जब तन फांसी पे झूला।
मेरा यार बना है, दुल्हा,
आज मेरा यार बना है, दुल्हा।
5-::नशाःः
रंगों में खून बनकर दौड़ती है शराब है।
शराब जो खराब है, पीते बेहिसाब है।
आज का युवा, नशे में चूर,
मुरझाया हुआ चेहरा, खोया अपना नूर।
शून्य आंखे, पथराया चेहरा, युवा की तस्वीर है।
उजडा है वर्तमान, उजड रही तकदीर है।
आज के युवा के, बदले हुए विचार है।
बुढापे की लाठी, कमर तोडने को तैयार है।
क्या देंगे सहारा, खुद लड़-खडा रहे जनाब है।
रंगों में खून बनकर दौड़ती है शराब है।
शराब जो खराब है, पीते बेहिसाब है।
नशा, द्रौपति के चीर की तरह, बढ़ता ही जा रहा,
देखो ये किस कदर, अपने निर्माता को खा रहा।
चारों और फैला, काला धनघोर अंधेरा है।
हमारे इस देश को, नशे के दानव ने घेरा है।
इस देश की रंग-रंग में, नशे का सैलाब है।
रंगों में खून बनकर दौड़ती है शराब है।
शराब जो खराब है, पीते बेहिसाब है।
नशे के हालात में, इस देश का ये मंजर है।
मौत का देवता फिरता घर-घर है।
मिट रही है हस्ती, इस मस्त बहार चमन की,
उजड रही है बस्ती, इस देश के अमन की।
नशे का ये दानव और फैलने को बेताब है।
रंगों में खून बनकर दौड़ती है शराब है।
शराब जो खराब है, पीते बेहिसाब है।
है। ईश्वर हमें शक्ति दो।
हम सब होकर एक,
कुछ काम करें नेक।
हमें इस समाज से, नशे को मिटाना है।
नशा युक्त समाज को नशा मुक्त समाज बनाना है।
इस नशे के दैत्य को हमें, देना इक जवाब है।
रंगों में खून बनकर दौड़ती है शराब है।
शराब जो खराब है, पीते बेहिसाब है।
90 के दशक में भारत में आयोजित विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता पर
6-::विश्व सुन्दरीःः
ये कैसी सभ्यता।
ये कैसी आधुनिकता।
आधुनिकता के नाम पर सौंदर्य का व्यवसायीकरण क्यों?
सुन्दरता को ये सम्मान, ये प्रोत्साहन क्यो?
क्या औचित्य है। इस सौंदर्य के चुनाव का।
सारे कार्य छोड़कर इस एक ओर झुकाव का।।
क्यों इतना समय गंवाकर, पैसा लुटाकर।
चुनते है सुन्दरता को।
जो जुडी सीता, सरस्वती से,
भूले उस सभ्यता को।।
क्या योगदान देगी, ये सुन्दरियों समाज में।
खो जायेगी ये फिल्मों के सैलाब में।।
काश। ये सम्पत्ति व्यर्थ ना गंवायी होती।
सामाजिक कार्यों में लगायी होती।।
तो हमारी भारत माता भी आज।
विश्व सुन्दरी कहलायी होती।।
7-::26 जनवरीःः
26 जनवरी, 1950, इस देश का संविधान बना।
अंग्रेजी हुकूमत से लड़कर प्यारा हिन्दुस्तान बना।
क्यों लड़ रहे हैं आज हम
ईश्वर अल्लाह के नाम पर।
क्यों लगा रहे हैं ठेस हम
भारत के सम्मान पर।।
हमारी तमन्ना है यही,
आज यह दिवस अच्छा हो।
आगे बढे यह देश,
खुशहाल हर इक बच्चा हो।।
आओ खाए आज कसम हम
आगे हमको बढ़ना है
हम भविष्य है इस देश का
हमें बुराईयों से लड़ना है।।
ताकि हमारा प्यारा देश,
न कभी कमजोर बने
हमारा प्यारा भारत देश,
जगत का सिरमौर बने।।
8-::नेताःः
वादा कर मुकर गया
नेता दिल्लगी कर गया।
वो गद्दी से चिपक गया।
उसे ढूंढता मैं थक गया।
गली-गली वो घूमता था।
दर-दर को वो चूमता था।
पहले जो घर-घर गया।
अब न जाने किधर गया।
वादा कर मुकर गया
नेता दिल्लगी कर गया।
हमें छोड़कर दल-दल में।
तुं कभी इस दल में कभी उस दल में।
दल-बदल इक खेल है।
ये काम तेरा बे-मेल है।
जनता का वैसा चाट कर
आपस में बँदर बॉट कर।
धन से, दौलत से, पेट तेरा भर गया।
ईमान तेरा मर गया।
वादा कर मुकर गया
नेता दिल्लगी कर गया।
9-::कँवाराःः
मैं एक बेरोजगार कंवारा।
शादी के लिये फिर रहा मारा-मारा।
गाँव-गाँव भटक रहा, लड़की की तलाशी में।
बैठा-रहा कंवारा, कुशल रिश्ते की आस में।
एक दिन, घर से निकल रहा
गाते हुए गाना
गुनगुनाते हुए तराना।
''आप मेरे यार की शादी है''
दोस्ट ने टोंट मारा
कब तक यूं ही कंवारा भटकता जायेगा।
शादी यारों की ही होगी या अपनी भी करवायेगा।
मैंने गाना बदला
''सुहानी रात ढल चुकी,
ना जाने तुम कब आओगे।''
दोस्त ने फिर टोंट मारा
उमरिया ढल जायेगी तब आओगे।
ऐसा मजाक मुझे न था गंवारा।
एक बेरोजगार कंवारा।
शादी के लिये फिर रहा मारा-मारा।
एक दिन महाशय खीज कर
एक लड़की पर रीझकर
लड़की के पिता के पास खुद
रिश्ता लेकर चल दिये।
लड़की के पिता ने लात-घूसों
के फल दिये।
एक तमाचा जोर से मुंह पे ऐसा घर दिया।
न चार्ज लगा न साक्ष्य सफाई
सीधे फैसला ही कर दिया।
मार से चोटिल बांके टेढ़े चलते देख।
उमरिया ढलते देखे।
दोस्त ने फिर टोंट मारा।
ये बांका जवान कहाँ से हैं आ रहा।
मैंने कहा तू क्यों मेरे बांकपन से जलन खा रहा।
मेरा ये बांकपन ही है मेरा एक सहारा।
मैं एक बेरोजगार कंवारा
शादी के लिये फिर रहा मारा-मारा।
10-::कविःः
एक दिन हमने गर्ल्स कॉलेज में
कविता सुनाई।
कुछ पक्तियाँ इस तरह गुनगुनायी।
कि ''आह निकलेगी तो दूर तक जायेगी।''
जब हम घर पहुंचे पत्नी ने कहा आजकल बहुत गुनगुनाते हो।
गर्ल्स कॉलेज में, कविता सुनाते हो
फिर जो हमारी आह निकली
सचमुच दूर तक गयी।
पड़ोसियों ने भी सुनी,
पूरे मोहल्ले तक गयी।
हमने पत्नी जी को पद्य भाषा में
गाकर सफाई दी
''कभी-कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है''
पत्नी जी ने कहा
कभी-कभी तो क्या
कभी भी तेरे दिल में ख्याल आया
तो तू करेगा चाकरी
तेरा ख्याल होगा आखिरी।
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नामः- महेन्द्र बेनीवाल
पताःप्लॉट नं. 14, वार्डनं. 06, सेक्टर नं. 12, हनुमानगढ़ जंक्शन
उत्तम कवितायेँ श्री बेनीवाल जी की काव्य सामर्थ्य
जवाब देंहटाएंविषय पर पकड़ को रेखांकित करती हैं हमारी बधाई
अति सुन्दर कविताएं !! कभी हमारे ब्लोग पर भी चक्कर काटने आ जायें ! पता है http://www.izlaas.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंविभिन्न रसों की कवितायें अत्यंत ही उत्कृष्ट हैं। बहुत बहुत बधाई। मा सरस्वती आपकी लेखनी को और भी सबल बनायें, यही कामना है.
जवाब देंहटाएंअनुराग