"भूपेन्द्र मिश्रा की ग़ज़लें" भाग –२ भाग 1 यहाँ पढ़ें : - http://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_39.html औरों की नही...
"भूपेन्द्र मिश्रा की ग़ज़लें" भाग –२
भाग 1 यहाँ पढ़ें : -
http://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_39.html
औरों की नहीं है , ये सूफी की ग़ज़ल है।
बादल की कड़क इसमें , बिजली की तड़प है।।
मेरे तार -तार दिल की आवाज ग़ज़ल है।
मेरी आन ,मेरी शान , मेरी जान ग़ज़ल है।।
प्रोफेसर भूपेन्द्र मिश्रा “सूफी”
कवि - परिचय
जन्म - विजयादशमी १९३९ को मुजफ्फरपुर जिला के मानपुरा ग्राम में। पिता का नाम स्वर्गीय रामदेव मिश्रा तथा माता का नाम स्वर्गीया रामपरी देवी।
बाल्य परिवेश -शिक्षक परिवार एवं ग्रामीण परिवेश में पालन-पोषण। प्रारंभिक शिक्षा - दीक्षा राजकीय बुनियादी विद्यालय , बखरा में संपन्न एवं माध्यमिक शिक्षा मारवारी हाई स्कूल , मुज़फ्फरपुर में।
उच्च शिक्षा- लंगट सिंह कालेज मुजफ्फरपुर से इन्टर (कला ), अर्थशास्त्र में स्नातक (प्रतिष्ठा ) एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर।
ब्यवसाय - १९६२ से १९८० तक श्री राधा कृष्णा गोयनका महाविद्यालय , सीतामढ़ी में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक। १९८० से बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के श्री राघव प्रसाद सिंह महाविद्यालय , जैन्तपुर में अर्थशास्त्र के विश्वविधालय प्राध्यापक के पद पर कार्यरत। वर्ष १९९५ से प्राचार्य बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के श्री राघव प्रसाद सिंह महाविद्यालय , जैन्तपुर में। सन २००० में सेवानिवृत।
साहित्यिक अभिरुचि - बाल्यकाल से ही साहित्यिक विधाओ विशेष कर काव्य रचना में गहरी अभिरुचि , अनेक पत्र- पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन।
अन्य महत्वपूर्ण क्रिया कलाप - समाज सेवा में गहरी दिलचस्पी , मार्क्सवाद के ख्यातिप्राप्त समालोचक , बाद में जीवन के अध्यात्मिक पक्ष की ओर उन्मुख।
जय जीव दर्शन के प्रतिपादक एवं जय जीव संस्थान के संस्थापक।
अन्य रचनायें - "तुम्हारे लिए " (काव्य संग्रह ), बहार -ए -गजल (गजलों का अनूठा संग्रह ), स्वान सांग (हंस गीत ), साम्या (प्रबंध काव्य ) , "दिल में बस आप हैं ", आदि।
जय जीव- दार्शनिक विचारों से सम्बंधित निबंध संग्रह।
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दिल बेकरार क्यों है ?
ये इंतजार क्यों है ?
मालूम हैं मुझे कि आना नहीँ तुम्हें है,
फिर भी समझ न आता वादे हजार क्यूँ है।
मुझे याद मत दिलाओ बीते हुए दिनों की,
दिल हैं बुझा- बुझा सा, फिर ये बहार क्यूँ है ?
इकरार भी बहुत था, इजहार भी बहुत था,
जाहिर भले नही़ हो पर प्यार वो बहुत था ।
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इनकार आज क्यों है ?
दिल बेकरार क्यों है ?
ये इंतजार क्यों है ?
(१२)
तेरी महफिल में बैठा है इसी अन्दाज में ‘सूफ़ी’,
नजर तेरी हो मुझ पे तो मेरी तकदीर बन जाए ।
न मिल सकता कभी है आदमी को आदमी से कुछ,
नजर उसकी जो हो जाए तो रे क्या – क्या न मिल जाए ।
उसी की रौशनी से तो यहाँ हर बात रौशन है ,
करिश्मा क्या न हो जाए अगर वो नूर मिल जाए ।
इसी के वास्ते उसको ये ‘सूफी’ प्यार करता है ,
ये दुनिया क्या न हो जाए नजर उसकी जो हो जाए।
(१३)
आ चुका हुँ तंग इस बदबू भरे माहौल से ,
ला दो जरा कही से खुशबू गुलाब की ,
‘सूफ़ी’ गुलाब है तेरे बागे – बहिश्त का ,
जिसे पाया न हँस- हँस के ,उसे रो –रो के पाया है ।
(१४)
न बदली कभी है, न बदलेगी दुनिया,
जहाँ थी , वहीं आज भी है ये दुनिया।
न मेरी , न तेरी किसी की न दुनिया,
ये दुनिया है सूफी, रहेगी ये दुनिया ।
वो कहते थे कि हम बदल देंगे दुनिया,
पर बदल गए वही जो बदलते थे दुनिया ।
काहे को तू ने बनायी थी दुनिया
जरा आ के देखो कि कैसी है दुनिया।
इधऱ जलजला है , उधर है कयामत,
किधर खो गई मेरे ख्वाबों की दुनिया।
(१५)
है बहुतों और लेकिन उसके जैसा कौन है ?
फीकी है सारी रौशनी उस रौशनी के सामने,
ऐ ; शमा महफ़िल की तेरी लौ न बुझ पाए कभी,
ताकि हमें मिलती रहे हरदम तुम्हारी रौशनी।
(१६)
छोड़िये भी बात मेरी ,
मैं तो हूँ बदनाम ही ,
पर मचल गए आप भी
जलवा –ए-शाकी देखकर,
फर्क इतना है कि मैं ,
पीता सभी के सामने ,
और डरते आप है ,
पाबन्दियों को देखकर।
(१७)
देख ली दुनिया की रंगत ,
हर हकीकत देख ली ,
तौबा तुझे है ऐ खुदा,
तेरी खुदाई देख ली ।
क्या न देखा ? क्या न समझा ?
असलियत सब देख ली ;
आदमी से आदमियत ,
की जुदाई देख ली ।
देख ली दुनिया की रंगत ,
हर हकीकत देख ली।
(१८)
था हमें जिन पर भरोसा ,
सब निकल गये बेवफा।
अब समझ आता नहीँ,
किस पर भरोसा हम करें।
ये रहें या वो रहे,
कुछ फर्क भी पड़ता है क्या ?
असलियत तो बस यही कि ,
हम कहीँ के ना रहे ।
किस तरह लूटा हमें है ,
इन ठगों ने क्या कहे ?
कुछ समझ आता नहीँ ,
इनके लिये हम क्या करें?
(१९)
काजल की कोठरी है ,
अन्दर न जाइये।
नाजुक बहुत समय है ,
खुद को बचाइये।
क्या किजीयेगा आखिर,
इतना बटोर कर।
आए थे जैसे खाली,
वैसे ही जाइयेगा।
बस एक है गुजारिश,
बलमा जी आपसे।
इस दिल को छोड़ करके ,
दिल्ली न जाइये।
(२०)
दिल्ली का नशा अब तो सब पे सवार है,
उतरेगा ये नशा भी जल्दी ही देख लेना।
तूफान उठ रहा है रहना जरा सँभल के ,
हर दल बनेगा दलदल, जल्दी ही देख लेना।
जो आग लग चुकी है , सबको जलाएगी ही ,
कोई नही बचेगा जल्दी ही देख लेना ।
दल्लाल, दिल्ली, दौलत, दल कुछ नहीं रहेंगे,
आयेगा वक्त वो भी जल्दी ही देख लेना।
ये मुल्क पड़ गया है दौलत के फेर में,
आयेगा याद ‘सूफी’ जल्दी ही देख लेना।
(२१)
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ऐसी कोई हस्ती नहीं।
आजमाना हो जिसे ,
वो आजमा कर देख लें ।
हम न वो किश्ती कि,
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देखे बहुत तूफान है,
कुछ और देखेंगे अभी ।
क्या नहीं थे , क्या नहीं है ?
और क्या होंगे नहीं ?
एक थे हम एक है हम,
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ऐ ! जहाँ वालो सुनो ,
आवाज हिंदुस्तान की ।
मर मिटेंगे हम भले,
पर झुक नहीं सकते कभी ।
ये नहीं कहना कभी की ,
मर चुकी है शायरी।
दिल में जब तक दर्द है,
जिन्दा रहेगी शायरी ।
जान लो फिरकापरस्तों,
कह रही है शायरी ।
तोड़ा सियासत ने जिसे ,
जोड़ेगी उसको शायरी ।
बात क्या है , बात यह ,
कहते रहे सारे अदब।
बात क्या हो, बात
यह कहती रही है शायरी ।
वो और है जो तौलते
हर चीज को दिमाग से ,
सोच कर शायर कभी
करता नहीं है शायरी ।
हर कोई कुछ छोड़
जाता है ज़माने के लिए,
छोड़े जाता सूफी है ,
दुनिया की खातिर शायरी।
जब कभी रोया है 'सूफी'
दर्दे-ए -दुनिया देखकर,
आँसुओ की राह से
गुजरी है तब तब शायरी।
नाज दौलत पर उन्हें है ,
नाज ताकत पर इन्हें,
पर नाजे सूफी तो रही
हरदम है उसकी शायरी।
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जो जख्म मुल्क के थे,
नासूर बन गए ।
आता नहीं समझ में,
हम क्या दवा करे ?
हल ढूंढने की जिनसे,
हमको उम्मीद थी।
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खुद बीमार बन गए।
सोचा तो था यही की
हल होगा हर सवाल।
पर जो जवाब देते ,
वे सवाल बन गए।
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मिलती नहीं मशाल ।
जो थे मशाल थामे,
वे काल बन गए।
'सूफी ' न कर तू चिंता,
अब ऐसे मुल्क की ।
हम देखते ही देखते
कंगाल बन गए ।
(२४)
दूर रहकर भी तुम्हारे पास हूँ,
हर मुसीबत में तुम्हारे साथ हूँ।
हर कली मसली गयी जो रात में,
हर फूल जो कुचला गया जो राह में ,
मैं उसी के दर्द की आवाज हूँ ,
हर बात कहने के लिए आज़ाद हूँ।
जिस्म ही सब कुछ नहीं,
यह रूह भी कोई चीज है,
आँसमा सब कुछ नहीं ,
धरती भी कोई चीज है ।
जो तरस कर रह गए दो जून रोटी के लिए,
मैं उन्हीं अभिसप्त लोगों की नयी ललकार हूँ ।
दूर रहकर भी तुम्हारे पास हूँ,
हर मुसीबत में तुम्हारे साथ हूँ।
(२५)
मिलेगा क्या तुझे जालिम मुझे ऐसे रुलाने से ,
न दुनिया है बदल सकती महज आँसू बहाने से,
न भारत बन कभी सकता हवाले औ' घोटाले से,
यहाँ बातें बदलती है नया करतब दिखाने से।
अगर मिल जाये कुछ तुमको तो मेरी जान भी ले लो ,
पसीना भी हमारा लो लहू तक भी मेरा ले लो,
मगर इतनी गुजारिश है कि भ्रष्टाचार अब छोडो ,
ये नंबर दो कमाई की समूची बात अब छोडो।
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