कोई भी रचनाकार बदलते दौर का संज्ञान लेते हुए उसके जद में ही अपनी रचना करता है पर रॉबिन शॉ पुष्प बदलाव से बेफ्रिक अपनी भाषा की संवेदना, शिल...
कोई भी रचनाकार बदलते दौर का संज्ञान लेते हुए उसके जद में ही अपनी रचना करता है पर रॉबिन शॉ पुष्प बदलाव से बेफ्रिक अपनी भाषा की संवेदना, शिल्प के हुनर और कथ्य की बहुस्तरीयता को अंत तक बनाए रखे․ रॉबिन शॉ पुष्प उन कुछ रचनाकारों में से थे जिन्होंने साहित्य की लगभग सभी विद्याओं में अपनी कलम चलायी और वो भी बेहद सशक्ता के साथ․ वे अपनी कथाओं को रचते हुए एक छोर पर कथ्य के अंर्तद्वंद्वों के लिए बेहद निर्मम होते थे तो दूसरे छोर पर इतने आत्मीय कि पाठक भाव विभोर हो जाता था। वे अपनी ईमानदार आस्था के साथ रचनारत रहे, व्यवसायिकता कभी अपनी जड़ उनके मन में नहीं जमा सकी, उन्होंने किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित होकर नहीं, आदमी को आदमी की तरह देखकर लिखते रहे, जबकि वे मार्क्सवाद कम्यूनिस्ट थे․ आजीवन मसिजीवी रहे रॉबिन शॉ पुष्प साहित्य की कई पीढी के रचनाकारों को प्रेरित और प्रभावित किया․ निसंदेह वे एक पूर्णकालिक लेखक थे․
20 दिसंबर 1934 को बिहार राज्य के मुंगेर जिला में जन्में रॉबिन शॉ पुष्प का बचपन और जवानी का शुरूआती हिस्सा बिहार के कई जिले जैसे मुंगेर, बेगूसराय, पटना में बीता․ बाबा नागर्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु, राहुल संस्कृतायन की धरती से संबंद्ध रखने वाले रॉबिन शॉ पुष्प की साहित्यिक अभिरूची बहुत कम उम्र में ही जाग गयी थी, उनकी पहली कहानी समकालीन पत्रिका ‘धर्मयुग' में 1957 में छपी, इसके पश्चात समकालीन साहित्यिक पत्रिका ‘सारिका' में उनकी दूसरी कहानी छपी, फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा․ आजीवन स्वतंत्र लेखक रहे ‘पुष्प' की 50 से अधिक पुस्तकें साहित्य की विभिन्न विद्याओं यथा, कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास, नाटक, बाल साहित्य, संस्मरण, रेडियो नाटक आदि में प्रकाशित हुई․ उनकी कहानियों इतनी चर्चित थी कि कहानियों का अंग्रेजी के अलावा तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ․
रॉबिन शॉ पुष्प का मानना था कि लेखक का काम सिर्फ लिखना नहीं अपितु समकालीन युवा पगध्वनियों की आहट को सुनना भी होता है․ अपनी इसी मान्यता से प्रेरित होकर उन्होंने ‘बिहार के युवा हिन्दी कथाकार' नामक पुस्तक का संपादन करते हुए प्रकाशित करवाया था जिसका अनुकूल प्रभाव समकालीन युवा कथाकारों पर वही पड़ा जो अज्ञेय द्वारा प्रकाशित ‘तार सप्तक' का प्रभाव समकालीन युवा कथाकारों पर पड़ा था․
रॉबिन शॉ पुष्प ने बेहद आत्मीय कहानियाँ और उपन्यास लिखे․ ‘अहसास का धागा' उनकी बहुत ही मार्मिक प्रेमकथा है․ इस कहानी में उन्होंने बड़ी ही विद्वतापूर्वक ‘धर्म' को परिभाषित करते हुए लिखा है ‘‘जो पूरे मन और आत्मा की गहराई के साथ धारण किया जाए, वही ‘धर्म' है․'' उनकी आत्म संस्मरणात्मक रचना यात्रा ‘एक वेश्या नगर' न सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे देश में काफी चर्चित रही थी तथा पाठकों ने इसे खूब सराहा था․ उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु पर एक संस्मरण ‘सोने की कलम वाला हिरामन' लिखा था, जो काफी चर्चा में रहा और सराहा भी गया․ ‘अन्याय को क्षमा', ‘दुल्हन बाजार' जैसे बहुचर्चित उपन्यास भी लिखा वहीं उनकी अन्य कृतियाँ ‘हरी बत्तियों के दरख्त', गवाह बेगमसराय', ‘एक सवाल पर टिकी जिंदगी', ‘यहाँ चाहने से क्या होता है' काफी सराही गयी․ उनकी कहानी संग्रहों में ‘अग्निकुंड, ‘घर कहाँ भाग गया' तथा प्रतिनिधि कहानियाँ प्रमुख हैं․ इसी वर्ष उनके संपूर्ण रचनाकर्म को समेटती सात खंडों में ‘रॉबिन शॉ पुष्प रचनावली' प्रकाशित हुई है․
रॉबिन शॉ पुष्प ने सत्तर और अस्सी के दशकों में कई रेडियो नाटकें भी लिखा जिसे पटना रेडियो स्टेशन से निरंतर प्रसारित किया जाता था․ कहते है उनके रेडियो नाटक के दीवाने बिहार में बच्चा-बच्चा तक था․ पुष्प के रेडियो नाटकों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनके तकरीबन सभी रेडियो नाटक ऐसे आदमी और उससे संबंधित विषय-वस्तु पर केन्द्रित होती थी जिसको अधिकांश लोग संज्ञान में ही नहीं लेते․ मसलन ‘यहाँ चाहने से क्या होता है' में उन तमाम लोगों की छोटी-छोटी इच्छाओं का और उसके पूरा नहीं हो पाने की स्थिति का बहुत ही सटीक व्यंग्यात्मक लहजे में बयान किया गया है․
बिहारी संस्कृति को रॉबिन शॉ पुष्प ने बहुत कुछ दिया․ उन्होंने हिन्दी कहानी को किसान-मजदूर आंदोलन से जोड़ते हुए उनमें जनसंघर्षों को अभिव्यक्ति देने की सलाहियत दिया․ उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शब्द-चित्र के जरिए अपने कहानियों में एक बेहतरीन शमां बांध देते थे, जो पाठकों पर जादू का असर छोड़ता था․ यद्यपि कहानियों का उद्देश्य ओझल नहीं होता था․ उनकी कहानियों में बुद्धि और संवेदना का संतुलन उनकी कहानियों को विशेष बनाती है․ उनकी आंखों पर चढ़े काले चश्में के भीतर छुपी अनन्त कथाओं की दुनिया हम पाठकों के लिए कौतूहल का विषय थी․ कहीं कोई अतिरेक नहीं, प्रदर्शनप्रियता नहीं। उनकी सार्वभौमिक दृष्टि और जागरूक बौद्धिकता, ‘पुष्प' के साहित्य को विशिष्ट बनाता है․ उनकी कहानियों, उपन्यासों का सृजानात्मक फलक विशाल भी है और स्पष्ट भी․
रॉबिन शा पुष्प उन चंद साहित्यिक दिग्गजों में से एक थे, जिन्होंने कई डॉक्यूमेंटरी फिल्में भी बनाई और कई फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं। अपने बेमिसाल काम के लिए रॉबिन शॉ पुष्प कई सम्मानों और पुरूस्कारों जैसे फणीश्वरनाथ रेणु पुरूस्कार, शिवपूजन सहाय सम्मान, महिसी हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का विशेष साहित्य सेवा सम्मान से नवाजे गए
30 अक्टूबर का रॉबिन शॉ पुष्प हमारे बीच नहीं रहे․ उनका अवसान हिन्दी साहित्य की एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई संभव नहीं․ उनकी स्मृति को नमन․
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301
झारखंड
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