रवि श्रीवास्तव की कहानी - चापलूसी

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दोस्तों काफी दिनों से दिल में बेचैनी हो रही थी। हर रात सोने के बाद एक ही ख़्वाब आता था। ये एक सच्चाई है, सोने के बाद सभी लोग इस ख़्वाबों की...

दोस्तों काफी दिनों से दिल में बेचैनी हो रही थी। हर रात सोने के बाद एक ही ख़्वाब आता था। ये एक सच्चाई है, सोने के बाद सभी लोग इस ख़्वाबों की दुनिया में अपना कदम रखते हैं। वो स्वप्न कुछ ऐसा था। मुझे दिन में परेशान कर देता था। रात भर मैं अपने इन सपनों में कहानियों के दौर में होता था। एक लेखक की तरह मैं अपनी कहानी को सपनों में लिख डालता। सुबह होते ही सारी कहानी और सपना दोनों मुझसे दूर हो जाते थे। रातों में सजाए गए सारे अरमान दिन का उजाला होते ही टूट जाते थे। क्यों कि रात में कहानी लिखने का वो स्वप्न आंख खुलते ही दिमाग से ओझल हो जाता था। जिसे लेकर मैं काफी परेशान रहता था। बस यही सोचता था काश वो सपना मुझे याद आ जाए। हाल ही कुछ ऐसा था कि रात गई और बात गई। फिर शुरू होती थी अपनी दिनचर्या, दफ़्तर जाना और रात को वापस आना। रोज की ऐसी रहस्यमय जिंदगी से थोड़ा परेशान ज़रूर था, पर दिल में कही एक हौसला भी था। जो मुझे अपने चेहरे पर इन परेशानियों को छिपाने में मदद कर रहा था। आज के इस दौर में चापलूसी की महत्ता बढ़ती जा रही है। इसलिए मैंने अपनी कहानी की शुरूआत चापलूसी को लेकर की है।

मैं बिना वक्त बर्बाद किए अपनी कहानी की ओर बढ़ रहा हूं। ये पूरी कहानी में हुनर से भरे कामयाब इंसान और चापलूस इंसान के बीच है।

चापलूसी

अशोक अपनी मेहनत और हुनर के बल पर आज उस मुकाम पर है जिसकी दूसरे लोग कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सुबह के करीब दस बज रहे थे। अशोक अभी अपने कमरे में सो रहा था। टेलीफोन की घण्टी काफी देर से बज रही थी। अशोक के नौकर मोहन ने फोन उठाया। दूसरी तरफ की आवाज़ को सुनकर मोहन के हाथ-पांव फूल गए। वह घबराया हुआ अशोक के कमरे की तरफ दौड़ा। अशोक को सोता देख वह ठहर सा गया। अशोक को सोता देख सोच में पड़ गया, कि साहब अभी तीन-चार घण्टे पहले घर आए हैं मैं उन्हें कैसे जगाऊं। फोन जो आया था वह भी महत्वपूर्ण था। बड़ी हिम्मत और दबी सांसों के साथ मोहन ने अशोक को जगाना शुरू किया। मोहन, साहब ओ साहब, साहब जी। अशोक काफी थका हुआ था। उसने मोहन से कहा मुझे सोने दो, परेशान मत करो। मैं अभी तीन घण्टे पहले घर आया हूं। मुझे 12 बजे तक फिर से जाना है। थोड़ा आराम कर लेने दो। बाद में बात करना। मोहन खड़ा होकर सोच रहा था कि अब साहब से क्या बोलूं। न चाहते हुए उसने बोल दिया कि साहब शर्मा जी का फोन आया है। शर्मा जी जिनकी चार अलग-अलग कम्पनियां चलती थी।

कम्पनियों की ज़िम्मेदारी का सारा काम अशोक देख रहा है। इस वजह से उसे हर हफ्ते शहर से बाहर चल रही कम्पनियों की देख-रेख में जाना पड़ता है। शर्मा जी का जिक्र आते ही अशोक उठकर बैठ गया। उधर सुबह-सुबह शर्मा जी चाय की चुस्की लेकर लॉन में घूम रहे थे। तभी एक सफेद रंग की कार घर के दरवाजे के पास रूकी। सूटबूट पहने एक लगभग 50 साल का व्यक्ति और एक नौजवान युवक कार से उतरा। दरवाजे पर रूकी कार को देखकर शर्मा जी के नौकर ने गेट खोला। शूटबूट पहने उस सज्जन व्यक्ति नौकर से ने पूछा महेंद्र शर्मा जी है। जी मालिक लॉन में बैठे हैं। जाओ शर्मा जी से कह दो कि रमन सिंह मिलने आए हैं। शर्मा जी का नौकर रामसजीवन लॉन में जाकर बताता है। मालिक आप से मिलने कोई रमन सिंह आए है। शर्मा जी, जाओ उनको कमरे में बिठाओ मैं आ रहा हूं। रमन सिंह, शर्मा जी के बचपन के गहरे दोस्तों में से एक हैं। शर्मा जी अतिथि रूम में आते हैं।

अपने बचपन के दोस्त को इतने दिनों बाद देखकर गले मिलते हैं। साथ ही आपस में दोनों एक दूसरे पर ताना कसने लगते हैं। शर्मा जी तुम तो मुझे भूल ही गए हो। झट से शर्मा जी का जवाब आता है तुमने कब मुझे याद किया है। शर्मा जी ने रामसजीवन को आवाज़ लगाते हुए कहा, अरे भाई मेरे बचपन का दोस्त आया है अच्छे से खातीरदारी करो इनकी। रामसजीवन नाश्ता लेकर आता है। चाय की चुस्की लेते हुए रमन सिंह के पूछा शर्मा जी व्यापार कैसा चल रहा है। मालिक की कृपा से सब ठीक चल रहा है दोस्त। सिंह साहब ये आप के साथ नौजवान युवक आप का पुत्र है क्या ? नहीं मेरा लड़का नहीं है। ये राकेश है। मेरे एक रिश्तेदार का लड़का है। इसी साल स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। गांव से शहर नौकरी की तलाश में आया है। गांव से पिता जी का फोन आया था। मैं इसी सिलसिले में आप के पास आया हूं। आप की चार कम्पनियों में से किसी में इसे नौकरी मिल जाए तो बढ़ी कृपा होगी आप की। अरे भाई इसमें कृपा की क्या बात है। मैं अभी अशोक को फोन करता हूं। ये अशोक कौन है शर्मा जी। बहुत ही होनहार और ईमानदार लड़का है। मेरी कम्पनियों का अधिकतर काम वही देखता है। मैं तो बस बेफिकर होकर दफ़्तर में बैठ जाता हूं।

उधर अशोक ने मोहन से पूछा कि शर्मा जी फोन पर क्या कह रहे थे। साहब उन्होंने कहा कि अशोक को जितनी जल्दी हो घर पर भेज दो। बहुत ही जरूरी काम है। अशोक जल्दी से तैयार हुआ। मोहन, मालिक नाश्ता लगा दूं। नहीं शर्मा जी ने बुलाया है तो कोई महत्वपूर्ण काम होगा। अशोक रास्ते भर गाड़ी में यहां चिंता कर था कि आखिर क्या बात है। आज तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ है। इतनी जरूरत किस बात कि हो गई है। अभी तो कुछ घण्टों पहले मालिक हमारे साथ थे। ये सोचते-सोचते वह शर्मा जी के घर पहुंच जाता है। वहां खड़े दो और लोग को देखकर सोचने लगता है, कि कुछ तो कही न कही गड़बड़ है। शर्मा जी, आओ अशोक इनसे मिलो। मेरे बचपन के मित्र रमन सिंह है। और ये राकेश है सिंह साहब के खास रिश्तेदार का लड़का। सिंह साहब मैं आप को इसी लड़के के बारे में बता रहा था। ओह तो ये हैं आप के कम्पनी के मैनेजर साहब। बहुत ही कम उम्र में उन्नति कर ली है तुमने। अशोक, ये सब ऊपर वाले की मेहरबानी है। शर्मा जी, अशोक से राकेश के नौकरी पर रखने की बात करते हैं। सर आप ने सिर्फ इसलिए फोन कर बुलाया है। हां भाई मैंने सोचा मेरे लंगोटिया यार से तुम्हारी भी मुलाकात करा दें। सर आप जिस कम्पनी में कह दें उसमें राकेश को नौकरी पर रख देते हैं। नहीं तुम अपने हिसाब से देख लो। जो उचित लगे करो। सर मैं आप की बात को कैसे टाल सकता हूं। आप जो भी कहेंगे उचित होगा। अशोक, राकेश कल तुम दोपहर में ऑफिस आ जाना। राकेश ने तुरंत जवाब दिया ठीक है अशोक। सारी बातें खत्म हो गई। रमन सिंह, अब मैं चलता हूं शर्मा जी। अरे अभी कहा साथ में लंच करते हैं। नहीं फिर कभी साथ बैठेंगे।

उनके जाने के बाद अशोक ने कहा सर मुझे राकेश कुछ अजीब स्वभाव का इंसान लगा है। देख लो यार सुपरवाइजर बना देना एक कोने में पड़ा काम करता रहेगा। उधर सिंह साहब राकेश से कह रहे है देखो कितनी कम उम्र में कामयाबी हासिल कर ली है उसने मन लगाकर और शर्मा जी की हर बातों को मानते हुए काम करना। अब सब तुम्हारे हाथ में है। अच्छे से काम करना और शर्मा जी का करीबी बन के रहना। सिंह साहब को राकेश पर पूरा भरोसा था। राकेश अपने फायदे के लिए हर किसी की चापलूसी करने में बहुत ही माहिर था। राकेश स्नातक पास था पर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने ज्ञान की सीढ़ी पर कदम ही न रखा हो। उसका काम था कि दूसरों कि हर बातों में हां से हां मिलाए। किसी तरह वह उस फायदे वाले व्यक्ति के नज़र में बस जाए। अशोक और शर्मा जी घर से ऑफिस के लिए निकलते हैं। अशोक के दिल में थोड़ी सी बेचैनी सी हो रही थी। वह बेचैनी थी कि वह तीन सालों से अपने गांव नहीं जा पाया था। घर जाना के बारे में सोच रहा था। तभी उसके मोबाइल पर एक फोन आता है। ये फोन उसके पिता जी का था। अशोक की बहन रिंकी की शादी तय हो रही थी। उसके पिता ने लड़का देखने के लिए उसे गांव बुलाया है। अशोक का मन प्रफुल्लित हो उठा। जिस बहन की शादी धूमधाम से करने की सोच रहा था। वह सपना अब लगभग पूरा हो रहा था। आने वाले रविवार को लड़का रिंकी को देखेगा साथ ही पंसद आने पर सगाई भी उसी दिन हो जाएगी। दूसरे दिन राकेश ऑफिस जाता है। अशोक ने थोड़ी सी उससे पूंछ-तांछ की। साथ ही उसके जवाबों से संतुष्ट नहीं था। शर्मा जी को सारी बात बताई । शर्मा जी का भी जवाब था रख लो यार किसी की बात का सवाल है।

अब मालिक की बात को कौन टाल सकता था। दूसरे दिन से राकेश को काम पर बुलाया गया। और काम के बारे में समझाया गया। अशोक को अभी गांव जाने में एक हफ्ता था। उसने शर्मा जी रिंकी की शादी के बारे में बताया। अपनी छुट्टी की अर्जी भी दी। 15 दिनों की छुट्टी पर शर्मा जी को आश्चर्य हुआ। लेकिन तीन सालों से घर नहीं गए अशोक के लिए ये कम थी। न चाहते हुए शर्मा जी ने छुट्टी मंजूर कर दी। अशोक काफी खुश था। उसकी जगह काम की देख-रेख के लिए किसी को होना चाहिए था। राकेश के लिए यह काफी अच्छा मौका था। उसे पता चला कि अशोक गांव जा रहा है तो उसके मन में लड्डू फूटने लगे थे। उसे लगा अब वह अपना रंग दिखा सकता है। वह बातों को छौकने में तो माहिर ही था।

अशोक और शर्मा जी केबिन में बैठकर बातें कर रहे थे। राकेश जल्दी से शर्मा जी के केबिन में काम के बहाने गया। शर्मा जी अशोक से उसकी छुट्टियों और काम के बारे में पूंछ रहे थे। अशोक के जाने के बाद दूसरी कम्पनी के काम को लेकर बिहार जाना था। ये चर्चाएं चल रही थी। शर्मा जी ने कहा कि मैं चला जाऊंगा। 2 दिनों की तो बात है। अशोक को बुरा लग रहा था पर कुछ बोल नहीं पाया। तभी एक दम से सन्नाटे को चीरती एक दूसरी आवाज़ आई। वह आवाज़ राकेश की थी। सर बुरा न माने तो एक बात कहूं। शर्मा जी बोलो राकेश, अशोक 15 दिन की छुट्टियों पर जा रहे हैं। तब तक मैं उनकी जगह काम की देख-रेख कर लूंगा। अगर आप को कोई आपत्ति नहीं हो तो। अशोक से पूंछ लो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अशोक को न चाहते हुए भी हां बोलना पड़ गया। शर्मा जी, अशोक तुम राकेश को अपना काम समझा दो। तुम्हारी गैर मौजूदगी में ये देख-रेख कर लेगा। जैसा आप कहें सर। अशोक ने सारा काम राकेश को समझना शुरू कर दिया।

आखिर वो दिन आ ही गया। जिसका राकेश को बेसबरी से इंतजार था। अशोक अपने गांव के लिए जा रहा था। शर्मा जी ने अशोक से कहा कि हो सके तो थोड़ा जल्दी लौट आना। अब अशोक के कार्य को राकेश को देखना था। मन ही मन राकेश बहुत खुश था। अब उसे भी लोगों पर हुक्म चलाने का मौका मिलेगा। ये बात और है कि भले ही कुछ दिन के लिए हो। राकेश अशोक के केबिन में बैठने लगा। उधर अशोक अपने गांव पहुंच गया। काफी सालों बाद अशोक को देख उसके घर वाले फूले नहीं समाए। अपने प्यारे लाडले को वर्षों बाद देखकर अशोक की मां के आंख से आंसू आ गए। अशोक की बहन रिंकी भी काफी खुश थी। रात भर सफर करने के बाद अशोक काफी थका हुआ था। वह दिन में सो रहा था। तभी एक आवाज़ उसके कानों में गई। वो आवाज़ गांव के मुखिया लल्लन जी की थी। जो हाल-चाल पूछने के लिए घर आए थे।

अशोक के पिता डाकघर में काम करते थे। गांव के लोग उन्हें डाकिया बाबू कहते थे। मुखिया जी ने भी आवाज़ लगाई । डाकिया बाबू, ओ डाकिया बाबू। तभी अशोक के पिता ने बाहर आकर देखा तो मुखिया जी खड़े थे। अरे मुखिया जी कैसे आना हुआ बैठिए। अरे नहीं बैठना क्या, पता करने आया हूं मेरा कोई खत तो नहीं आया। नहीं मुखिया जी, आया होता तो मैं खुद देने आ गया होता। मुखिया जी, सुना है लड़की की शादी तय कर दिए हो। हां पास के गांव से हो रही है। लड़का इंजीनियर है। शहर में नौकरी कर रहा है। कल लड़की को देखने रहे हैं। मुखिया जी की आवाज़ ने अशोक को ज्यादा देर बिस्तर पर आराम करने नहीं दिया। मुखिया जी अशोक को बहुत मानते थे। अशोक झट से उठकर मुखिया जी के पास गया और प्रणाम किया। अरे बेटा खुश रहो तुम कब आए। रात को आया चाचा जी। काफी दिनों के बाद आए हो। जी चाचा जी ऑफिस का सारा कारोबार देखना पड़ता है। छुट्टी बहुत कम मिल पाती है। उधर शर्मा जी को काम से बिहार जाना था। अशोक के गैरमौजूदगी में थोड़ा नरबस थे। लेकिन जाना भी जरूरी था। राकेश के ऊपर पहली बार इतनी जिम्मेदारी दी गई थी। उसे लेकर थोड़ा परेशान से थे शर्मा जी। राकेश ने एक दो दिन काम को लेकर तन मन धन समर्पित कर दिया। शर्मा जी की नज़रों में अपनी जगह बनाने के लिए। शर्मा जी के बिहार जाने के बाद राकेश ने उनके घर की जिम्मेदारी भी अपने सिर पर ले ली। घर पर क्या सामान लाना है, क्या कमी बेसी है, सफाई हुई की नहीं।

ऑफिस के बाद शर्मा जी के घर पर समय देकर अपने घर पर जाना होता था। शर्मा जी की पत्नी राकेश के काम को देखकर काफी खुश थी। आखिर राकेश को वही मिल गया जो वह चाहता था। अपने आप को शर्मा जी की पत्नी के नज़र में अच्छा बना दिया। उधर दफ़्तर के टेंडर को लेकर अशोक के पास ऑफिस से फोन जाता है। अशोक घर में रहकर भी सुकून नहीं पा रहा था। अशोक ने शर्मा जी के बारे में ऑफिस में पूछा। पता चला वह दूसरी कम्पनी के काम से बिहार गए हैं। अशोक ने फोन पर सरकारी अधिकारी से बात कर टेंडर पास कराया। राकेश से बात कर उसके कागजात लेने के लिए जाने को कहा। राकेश पूरे पेपर को लेकर ऑफिस आया। शर्मा जी को फोन कर रोड बनाने के टेंडर के पास होने की सूचना दे दी। राकेश ने इस टेंडर को पास कराने का सारा श्रेय अपने ऊपर ले लिया। अशोक ने शर्मा जी को फोन किया था पर फोन न लगने की वजह से बात नहीं हो पाई। मेहनत अशोक की और फल राकेश को मिला।

उधर गांव में रिंकी को देखने आए लड़के ने उसे पंसद कर लिया। उसी दिन रिंकी की सगाई कर दी गई। शादी की बात पण्डित से की गई तो बताया गया कि लगन अभी दस दिन के अंदर बन रहा है। अगर इसमें नहीं हुई तो करीब 7 महीने तक शादी नहीं हो सकती है। पण्डित का यह शब्द सबको सदमें में डाल दिया। लड़का वाले तो तैयार हो गए कि चट मंगनी हुई अब पट ब्याह कर दो। अशोक के पिता ने उसकी उम्मीद नहीं की थी। इतनी जल्दी सारी तैयारियां कैसे होगीं। इतने पैसे कहा से आएगें। दान दहेज भी देना है। लड़की के भविष्य का सवाल है। लड़का शहर में अच्छा पैसा कमाता है। हाथ से नहीं जाना चाहिए। लड़के वाले भी शादी जल्दी करवाना चाहते थे। अशोक ने अपने पिता को बेफिकर होने को कहा। और राजी हो गया कि दस दिन के अंदर रिंकी की शादी करा दो। पैसों को इंतजाम की चिंता न करों। अशोक ने दूसरे दिन शर्मा जी को फोन किया और सारी बातें बताई साथ ही अपने वेतन की एडवांस की मांग भी रखी। शर्मा जी ने अशोक से पूछा कितने रूपए की ज़रूरत है। अशोक ने बताया 10 लाख तक आप दे दीजिए बाकी का इंतजाम गांव में कर लूंगा।

उधर राकेश शर्मा जी की पत्नी की चापलूसी में दिन-रात लगा रहा। मालिक को नज़र में आने के लिए पहले मालकिन की चापलूसी जरूरी है। शर्मा जी की पत्नी भी राकेश को फोन कर घर का सामान लाने के लिए कह देती। बच्चों को स्कूल छोड़ने और लाने के लिए राकेश को बुलाया जाता था। ऐसा लग रहा था कि ऑफिस का नहीं बल्कि घर का काम करने के लिए राकेश आया है। राकेश भी खुश था। अब क्या था। हर रोज घर जाकर अशोक की बुराइयां करना उसका पेशा बन गया था। ऑफिस के किसी कर्मचारी की छोटी सी गलती को लेकर बवाल कर देता था। जिसे अशोक सिर्फ समझा छोड़ देता था। शर्मा जी बिहार से वापस आए। घर पर धर्मपत्नी के मुंह से राकेश की बड़ाईयां सुनकर दंग रह गए। आखिर राकेश ने ये कैसा कमाल किया। आज तक जो मैं नहीं कर पाया। ऑफिस के कर्मचारी राकेश के बर्ताव से नाराज़ थे। लेकिन ये नाराजगी किसके सामने रखे। इन पांच दिनों में राकेश खुद को मालिक समझ बैठा। शर्मा जी के ऑफिस आते ही सारी कमियां गिनाने लगा।

टेंडर को लेकर राकेश को शर्मा जी ने बधाई दी। ऑफिस के काम के बारे में पूछां। सब ठीक तरीके से चल रहा था। क्योंकि सुपरवाइजर का फोन अशोक के पास गया था। वह राकेश से खुश नहीं थे। इसलिए काम भी नहीं करना चाहते थे। अशोक के समझाने पर उन्होंने काम किया था। जिसका फायदा राकेश को हुआ। शर्मा जी को लगा कि राकेश होनहार लड़का है। अब राकेश की पांचों उगंलियां घी में थी। मालिक और मालकिन दोनों प्रभावित हो गए थे। शर्मा जी ने अशोक को रिंकी की शादी के लिए पैसे भेज दिए। राकेश को शाम की चाय के लिए शर्मा जी ने घर पर बुलाया। चाय पीते-पीते बाते हो रही थी। बातों-बातों में समय का पता नहीं चला। रात हो गई थी राकेश वहां से दूर रहता था। घर जाने के लिए कोई साधन नहीं था। शर्मा जी ने रूकने के लिए कह दिया।

तभी पीछे से आवाज़ आती है, राकेश तुम किराए के मकान में रहते हो। ये शर्मा जी की पत्नी ने पूछा। हां मैं किराए के मकान में रहता हूं। सुनो जी, राकेश को अपने घर पर इक कमरा दे देते हैं। शर्मा जी कुछ बोल नहीं पाए। मामला धर्मपत्नी का था। राकेश कल अपना सामान ले आना और यही रहना अब तुम। दूसरे दिन पूरे सामान के साथ राकेश हाजिर हो गया। राकेश की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने फोन कर के इसकी पूरी जानकारी रमन सिंह को दी। रमन सिंह भी राकेश से काफी प्रभावित हुए। अब हर रोज राकेश के लिए बहुत सारा काम घर पर रहने लगा। जिसे लेकर राकेश खुश था। उसे लगा कि अब उसकी चापलूसी ने अपना पूरा प्रभाव डाल दिया है। रात को खाना खाने के बाद शर्मा जी के कमरे में जाकर दफ़्तर की बातें करता साथ ही शर्मा जी के पैर हाथ को बिना कहे दबाने लगता था। सुबह शर्मा जी के तैयार होने से पहले जूते की पालिश कर देता था।

अशोक की हर वह कमजोरी जो कम्पनी के हित के लिए थी शर्मा जी को बताता था। उधर अशोक ने कर्ज मे डूबकर अपने बहन रिंकी की डोली को कंधा दिया। रिंकी की शादी के बाद ऐसा लगा कि अशोक के सिर से बोझ उतर गया। दिल खोलकर अपनी इकलौती बहन की शादी में खर्चा किया। अशोक के घर जाने के बाद जो टेंडर लटके पड़े थे वो कम्पनी को मिल गए। राकेश की किस्मत में जिसने चार चांद लगा दिए। राकेश कम्पनी के अंदर अपने खबरियों को वेतन बढाने का लालच देकर सारी बातों को पता करता था। राकेश की शर्मा जी के घर के काम के बाद ऑफिस में चैन से सोने की दिनचर्या बन गई थी। 15 दिन की छुट्टी पूरी होने के बाद जब अशोक ऑफिस आया तो उसने पूरा माहौल बदला देखा। आधे कर्मचारी जो राकेश की गुलामी में लगे थे।

उनके लिए अच्छा काम और जो किसी की गुलामी नहीं हुनर पर थे। वो बैल की तरह काम कर रहे थे। साथ ही डांट भी सुन रहे थे। कर्मचारियों की बात को लेकर अशोक शर्मा जी के पास बात करने गया। लेकिन शर्मा जी को कुछ समझ नहीं आया। अशोक की अनुपस्तिथि में टेंडर का काम राकेश के नाम था। शर्मा जी ने राकेश को बुलाकर पूछा। राकेश, क्या अशोक सही कह रहा है? कर्मचारी क्यों नाराज चल रहे है? राकेश का सीधा जवाब था हराम की खाने की आदत बन गई थी। काम करना पड़ रहा है तो नाराजगी दिखा रहे हैं। अशोक ने सबको सिर पर चढ़ा रखा है। अशोक और राकेश के बीच बहस हो गई। शर्मा जी ने दोनों को शांत कराया। राकेश केबिन में चला गया। अशोक जब केबिन में गया। राकेश ने उसे अंदर आने से मना कर दिया। जिसकी शिकायत शर्मा जी से अशोक ने की । शिकायत के बाद राकेश ने केबिन अशोक को दे दिया। शाम को जब राकेश शर्मा जी के साथ घर गया। शर्मा जी की पत्नी के सामने राकेश ने कहा कि मैं कल से ऑफिस नहीं जाऊंगा। मैं अपना इस्तीफा दे रहा हूं। शर्मा जी की पत्नी ने सारी बात पूछी। राकेश के बताने के बाद उन्होंने कहा कि अब तुम क्यों ऑफिस छोड़ोंगें।अशोक को हटाओ। शर्मा जी ने रिंकी की शादी में पैसे देने की बात बताई। मुश्किल है अशोक को अभी हटाना। पत्नी साहिबा के फरमान निकला मैं कुछ नहीं जानती केबिन में राकेश बैठेगा।

चलो ये बात हम आप की मान लेते हैं। अगले दिन राकेश केबिन में फिर से बैठा मिला। अशोक ने जब मना किया तो उसने शर्मा जी को बुला लिया। शर्मा जी ने अशोक को मना कर दिया। अब अशोक के दिल पर सांप लोटने लगे थे। करे तो क्या करे अपनी दिन-रात की मेहनत से कम्पनी का व्यापार फैलाया । आज उसी कम्पनी ने उसके हुनर की कदर नहीं की। एक पल को वह तुरंत इस्तीफा देकर जाना चाहता था। लेकिन शर्मा जी के कर्ज में डूबे होने की वजह से छोड़ नहीं पाया। अब शर्मा जी भी हर बात राकेश की सुनते थे। अशोक से ज्यादा मतलब नहीं रखते थे। न ही किसी काम के बारे में उससे सलाह लेते थे। सब कुछ राकेश के अधीन हो गया था।

राकेश का दबदबा कम्पनी में चलने लगा था। अशोक अब घुट-घुट कर उस कम्पनी में काम कर रहा था। अपने कर्ज को चुका रहा था। ऑफिस से मिला घर और नौकर भी अशोक से छीन लिए गए। अब वह किराए के कमरे में गुजर बसर कर रहा था। जिनके सामने वह सीनियर था आज वह अशोक कहकर बात कर रहे थे। कम्पनी का ख्याल किसे था। न राकेश को न ही शर्मा जी को। राकेश जो बताता शर्मा जी उसे मान लेते थे। धीरे-धीरे एक साल बीत गया। राकेश ने रमन सिंह को फोन कर बुलाया। रमन सिंह जब आए तो देखा कि अशोक राकेश की जगह और राकेश अशोक की जगह था। थोड़ा चकित जरूर हुए और एक बार फिर कहा कि बड़ी कम उम्र में तरक्की कर गए हो। अशोक को ये बात दिल में चुभ गई। अपने आखिरी कर्ज़ को चुकाकर कम्पनी से नाता तोड़ लिया। कुछ दिनो के बाद दूसरी कम्पनी में उसे हुनर के दम पर नौकरी मिल गई। जो कि बाज़ार में ज्यादा चर्चित नहीं थी। एक बार फिर टेंडर की डील फिर से शुरू हुई। शर्मा जी की कम्पनी की तरफ से राकेश और दूसरी छोटी कम्पनी की तरफ से अशोक की मुलाकात एक बार फिर आमने सामने हुई।

अशोक अपने स्वभाव और हुनर से इस बार का सारा टेंडर अपनी कम्पनी को दिला दिया। शर्मा जी की कम्पनी को मिला टेंडर समय से काम न पूरा होने पर छीन लिया गया। और कम्पनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। शर्मा जी की कम्पनियों का पतन शुरू हो गया था। इधर अशोक की कम्पनी ने अपना पूरा वर्चस्व फैला लिया था। हुनर और मेहनती लोगों की कदर न करने पर इस चापलूसी ने शर्मा जी को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। राकेश फिर से नौकरियों के लिए धक्के खाने लगा। और अपनी आदत को लेकर फिर से कोई दूसरा मुर्गा फंसाने को खोज रहा है। रमन सिंह और शर्मा जी की बचपन की दोस्ती के हजारों टुकड़े हो गए। शर्मा जी और उनकी पत्नी पछतावे की आग में आज भी जल रहे हैं। अशोक फिर से अपने हुनर के दम पर वही पुराना मुकाम हासिल कर चुका है

 

रवि श्रीवास्तव

लेखक, कवि, कहानीकार, व्यंगकार,

फिलहाल एक टीवी न्यूज़ ऐजेंसी से जुड़े हुए हैं।

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. आप की दो प्रकाशित हुई कहानियां पढ़ चुका हूं.....बहुत ही प्रभावशाली और सत्यता वाली लेखनी है आपकी रवि जी............

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: रवि श्रीवास्तव की कहानी - चापलूसी
रवि श्रीवास्तव की कहानी - चापलूसी
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