भारत के माथे पर बाल मजदूरी का कलंक इतिश्री सिंह राठौर हमारे देश में अक्सर बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाया जाता है. ‘अभी करनी है हमको पढ़ाई, ...
भारत के माथे पर बाल मजदूरी का कलंक
इतिश्री सिंह राठौर
हमारे देश में अक्सर बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाया जाता है. ‘अभी करनी है हमको पढ़ाई, मत करवाओ हमसे कमाई’ जैसे नारे लगाए जाते हैं. सरकार भी इसे रोकने के लिए नए-नए कदम उठा रही है. बावजूद इसके देश में बाल मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है. लोग विकासशील देशों में हजारों बच्चे बहुत छोटी अवस्था से ही काम करना आरंभ कर देते हैं.
कभी-कभी उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर जबरन भी कार्य में लगा दिया जाता है. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में सबसे अधिक बाल श्रमिक भारत में ही हैं. संभवत: देश में कोई भी ऐसा व्यवसाय नहीं है जिसमें बाल श्रमिकों को न लगाया जाता हो. परिणामस्वरूप बच्चे अपने स्वतंत्रा एवं खुशहाल बचपन के अधिकार से वंचित रह जाते हैं. कई बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिना मजदूरी के भी कार्य करते हैं, जिनका आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है. कुटीर उद्योगों में बच्चों की एक बड़ी संख्या कार्य कर रही है, जैसे- कालीन उद्योग, माचिस बनाना, बीड़ी, पीतल, हीरा, कांच, जरी और सिल्क उत्पादन, हथकरघा, कढ़ाई का कार्य, चमड़ा उद्योग, प्लास्टिक उत्पादन, चूड़ी बनाना, खेल के सामान बनाना तथा पटाखा फैक्ट्री या ईंट के भट्टों जैसे खतरनाक स्थानों पर. इस प्रकार शिक्षा, भोजन, पानी और घर के अभाव के साथ-साथ कार्यस्थल पर उनका भावनात्मक एवं यौन उत्पीड़न भी होता है, जिसके कारण उनका बचपन पूरी तरह बर्बाद हो जाता है और वयस्क होने पर इन बच्चों को खराब स्वास्थ्य और हीन भावना विरासत में मिलती है. इनमें से अधिकतर कार्य उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं जिससे वे किसी न किसी रोग की चपेट में आ जाते हैं तथा आजीवन इसका परिणाम भुगतने पर विवश हो जाते हैं.
बालश्रम का व्यापक विस्तार भारत के अनियमित क्षेत्रों की पहचान बन चुका है. भारत में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय श्रम संघटन के एक आकलन के अनुसार यहां कम से कम 9 करोड़ बाल श्रमिक हैं, हालांकि कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं बाल श्रमिकों की संख्या इससे अधिक बता रही हैं. इनके अनुसार बच्चे कृषि, पशुपालन, बागवानी और घरेलू कामों घरों में छिप कर कार्य करना में लगे हुए हैं. उल्लेखनीय है कि ये सभी कार्य सरकारी श्रम निरीक्षकों और मीडिया की जांच की पहुंच से दूर होते हैं तथा इन सभी कार्यों के लिए बच्चों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है.
बालश्रम की परिभाषा
बालश्रम का अर्थ उस कार्य से है, जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से कम होता है. इस प्रथा को कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने शोषित करने वाला माना है. यूनिसेफ बालश्रम को अलग तरह से परिभाषित करता है, उसके अनुसार एक बच्चा जो बालश्रम गतिविधियों में लिप्त है, यदि उसकी आयु 5 वर्ष से 11 वर्ष के बीच है तथा वह एक घंटा आर्थिक गतिविधियों या एक सप्ताह में 28 घंटे घरेलू कार्य करता है, अथवा 12 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों में यदि वह कम से कम 14 घंटे आर्थिक गतिविधियों में या एक सप्ताह में कम से कम 42 घंटे आर्थिक गतिविधियों में लिप्त रहता है तो उसे बाल मजदूर कहा जाएगा. चैंकाने वाला तथ्य यह है कि भारत के कुल कार्यबल का 11 प्रतिशत बच्चे हैं, तथा प्रत्येक 10 श्रमिकों पर एक बच्चा है. इस मुद्दे की समीक्षा के लिए वर्ष 1979 में भारत सरकार ने गुरुपाद्स्वामी कमेटी गठित की थी. कमेटी ने कहा कि समाज में जब तक ग़्ारीबी है, बालश्रम का पूर्ण रूप से उच्छेद कठिन है. इस संदर्भ में कमेटी ने सिफारिश प्रस्तुत की कि खतरनाक कार्यों में बालश्रम पर रोक लगाई जाए.
यूनिसेफ के अनुसार 14 वर्ष तक सबसे अधिक बाल श्रमिक भारत में हैं. आइएलओ की रिपोर्ट के अनुसार 60 प्रतिशत बच्चे कृषि कार्यों में लिप्त हैं. भारत समेत लगभग सभी विकासशील देश और यहां तक कि विकसित देशों में भी बाल श्रम व्यापक रूप में देखने को मिल जाएगा. चाय वाले की दुकान हो या कोई होटल, छोटे-छोटे कई जोड़ी हाथ काम करते हुए मिल जाएंगे, जिनकी मासूम आंखें यही प्रश्न पूछती नजर आती है कि उनका बचपन कहां खो गया है? उनमें और दूसरे बच्चों में क्या अंतर है, जो समाज उन्हें अलग रूप में परिभाषित करता है.
भारत में तो बाल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा खतरनाक कार्यों में भी लिप्त है. इन बच्चों को कुछ पैसा देकर इनके मालिक इनसे जरूरत से ज्यादा कार्य करवाते हैं. कम पैसे में ये बच्चे अधिक कार्य करते हैं तथा अन्याय के खिलाफ आवाज भी नहीं उठाते यही कारण है कि इन कारखानों के मालिक बच्चों के शोषण का कोई भी अवसर नहीं गंवाते. इसी कारण बाल श्रम निषेध व विनिमयन कानून जो यह कहता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वे कार्य जो उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर हों न दिए जाएं, कागज पर ही प्रभावी दिखाई देता है. इस कानून कि सार्थकता तभी पूर्ण होगी जब कारखानों, ईंट केभट्टों पर तथा घरेलू नौकर के रूप में बंधुआ मजदूर बने बच्चों को विषम परिस्थितियों से निकाल कर उन्हें एक सहज व स्वस्थ बचपन लौटाया जा सके.
आप किसी होटल खाना जाएं या चाये की दुकान पर चाये पीने जाए , तभी अगर कोई छोटू आपको भोजन परोसे या चाय दे तब विरोध की प्रबल आवाजें उठेगी, उन्हें मुक्त करने का प्रयास होगा, तभी बाल मजदूर मुक्त भारत का सपना तभी साकार हो पाएगा.
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