सुरेश भाटिया की हास्य-व्यंग्य कहानियाँ

SHARE:

उल्‍लू को चुनिए, आदमी बनिए हमारे मोहल्‍ले के घूरेजी चुनाव में खड़े हुए, खड़े क्‍या हुए, खड़े करवा दिए गए घूरे जी पिछले पचास सालों से समाज से...

उल्‍लू को चुनिए, आदमी बनिए

हमारे मोहल्‍ले के घूरेजी चुनाव में खड़े हुए, खड़े क्‍या हुए, खड़े करवा दिए गए घूरे जी पिछले पचास सालों से समाज सेवक हैं उन्होंने तो आजीवन समाज सेवा का व्रत ले रखा था परन्‍तु उनके मित्रों एवं सहयोगियों ने कहा, घूरेजी जमाना तरक्‍की कर रहा है, और आप हैं, कि पिछले पचास वर्षों से जहां थे वहीं हैं “माना कि एक स्‍कूल मास्‍टर पूरी जिंदगी मास्‍टर ही रहता है, परन्‍तु आज वह भी ट्यूशन पढ़ा-पढ़ाकर तरक्‍की कर लेता है फिर आप तो समाज सेवक हैं, सेवा करने का आपको अनुभव है कुछ तरक्‍की करो यानि समाज सेवक के सीमित दायरे से बाहर निकलकर देश सेवक बनो चुनाव में खड़े हो जाओ”

मित्रों ने मजबूर किया तो घूरेजी ने चुनाव में खड़ा होना मंजूर कर लिया वे चाहते तो कोई भी पार्टी उनका व्‍यक्‍तित्‍व देखकर उन्‍हें टिकिट दे देती परन्‍तु उन्‍होंने निर्दलीय उम्‍मीदवार के रूप्‍ में खड़ा होना उचित समझा उनका कहना था कि “आदमी को समाज सेवा या देश सेवा दलगत होकर नहीं करना चाहिए वरना आगे चलकर व्‍यक्‍ति दल के दल-दल में फंसकर, अपना उद्‌देश्‍य भूल, दल सेवा करने लग जाता है”

बहुत सोच-विचार कर मित्रों से सलाह-मशविरा कर घूरेजी ने अपना चुनाव चिन्‍ह “उल्‍लू” रखा उल्‍लू पर उनकी दलील थी कि “आजादी के बाद नेताओं ने देश की जनता को इतना “उल्‍लू” बनाया ि कवे अपनी असली सूरत ही भूल गए जब भी चुनाव आता है, वे अपना उल्‍लू सीधा कर लेते हैं इसलिए उल्‍लू जनता का प्रतीक है, हम अपने चुनाव चिन्‍ह उल्‍लू के जरिए ज्‍यादा से ज्‍यादा जनता के करीब पहुंचेंगे”

फिर हवा का रूख देखते हुए वे समझ गए कि आप कल चुनाव जातीयता के आधार पर लड़ा जाता है अगर उल्‍लू को देखकर नेताओं की तरह जनता भी भाई भतीजावाद पर उतर आई तो इसका सबसे ज्‍यादा फायदा “उल्‍लू” को ही मिलेगा वैसे भी लोग अपने बीच के व्‍यक्‍ति को चुनना ज्‍यादा उचित समझते हैं, ताकि वह उनके दुःख दर्द के समय उपलब्‍ध हो सकें

घूरेजी का उल्‍लू के प्रति तर्क था, कि दिनदहाड़े जो भ्रष्‍टाचार होता है, उसे तो सभी देख लेते हैं, परन्‍तु रात का भ्रष्‍टाचार उल्‍लू ही देख सकता है इसलिए उनका उल्‍लू रात की काली करतूतों पर नजर रखेगा वह देश का सजग प्रहरी बनेगा

बहरहाल घूरेजी ने चन्‍दे से बड़े-बडे़ पोस्‍टर बनवाए जिस पर उल्‍लू की एक बड़ी सी तस्‍वीर छपवाई और बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा “आपका अपना चुनाव चिन्‍ह उल्‍लू”, “उल्‍लू की जीत आपकी जीत” नीचे उनकी अपील थी “पिछले पचास वर्षों से अपको कई लोगों ने उल्‍लू बनाया ओैर आप बने भी बगैर यह सोचे अंजामें-गुलिस्‍तां क्‍या होगा? आज आपको उल्‍लू आदमी बना रहा है।” साथ में एक नारा था-“उल्‍लू को चुनिए, आदमी बनिए”

नमांकन पत्र भरने के बाद घूरेजी जगह-जगह सभा लेने लगे वे अपने भाषणों में कहते, “हमारा उल्‍लू तिजोरी में बंद लक्ष्‍मी को आपके पास लाएगा, इसलिए आप से निवेदन है, कि आप अपने चुनाव चिन्‍ह “उल्‍लू” पर मोहर लगाकर उसकी पीठ मजबूत कीजिए, ताकि वह आपकी लक्ष्‍मी का वनज उठा सके और आपके पास ला सके”

एक सभा में लोगों ने घूरेजी से पूछा “क्‍या कुर्सी पर उल्‍लू बैठ सकेगा?” हाजिर जवाब घूरेजी ने कहा “आप तक कुर्सी पर उल्‍लू ही तो बैठे हैं”

घूरेजी के कार्यकर्ता उल्‍लू प्रवृत्‍ति के अनुसार दिन भर सोते और रात में प्रचार करते और जो भी उल्‍लू उन्‍हें मिलता उसे कार्यालय पकड़ लाते घूरेजी पूछते “आज कितने उल्‍लू पकड़े?” वे उन्‍हें आगे कर देते घूरेजी कहते “ठीक है, आज इन्‍हें भी अपने साथ प्रचार में ले जाना”

एक दिन कार्यकर्ताओं ने घूरेजी को बताया कि शहर की झुग्‍गी-झोपड़ी बहुत बड़ी वोट बैंक है बहुत से नेता वहां जाने की तैयारी कर रहे हैं, उन्‍हें कोई उल्‍लू बनाए उसके पहले आप चले जाइए और जो भी उल्‍लू मिले उसे भाई भतीजावाद का अर्थ समझा दीजिए

एक दिन घूरेजी गुस्‍से में तमतमाए नजर आए पूछने पर पता चला कि कुछ पार्टी के नेता उन्‍हें खरीदने आए थे?

बस फट पड़े “कम्‍बख्‍त हमें उल्‍लू बनाने आए थे अरे हम तो उल्‍लू हैं ही, चांदी के चन्‍द सिक्‍कों में हमें खरीदेंगे? और हम उनके समर्थन में अपना नाम वापस ले लेंगे जनता ने हमारे उल्‍लू में विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है फिर हम भला उनके विश्‍वास को कैसे बेच दें?” फिर वे थोड़ा नॉरमल हुए और अपने कार्यकर्ताओं की तरफ देखकर बोले-“देखो मैंने कहा था न जहां उल्‍लू होगा वहां लोग अपनी लक्ष्‍मी लेकर दौड़े चले आएंगे”

बहरहाल वह दिन भी आया सुबह से शाम तक मतदान हुआ और उल्‍लू का भविष्‍य मत पेटी में बन्‍द हो गया, जो कि आज तक बन्‍द है.

-----------.

 

बनवारीलाल के जूते

सुरेश भाटिया

बनवारीलाल धार्मिक प्रवृत्‍ति के व्‍यक्‍ति हैं। रोज सुबह 4 बजे उठकर पूजा पाठ करके शहर के सभी मंदिरों के देवताओं के दर्शन करने जाते हैं। वह तो अच्‍छा है, हमारे शहर में केवल 8-10 मुख्‍य मंदिर हैं वरना हिन्‍दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं। अगर सभी के अलग अलग मंदिर होते तो बेचारे बनवारीलाल दर्शन करने निकलते। और कई जन्‍मों के बाद ही घर लौटते, क्‍योंकि इतने सारे देवी देवताओं की परिक्रमा किसी एक जन्‍म की बात नहीं हो सकती।

बहरहाल एक दिन बनवारीलाल एक माखन चोर के मंदिर से दर्शन,पूजा-अर्चना कर बाहर निकले ही थे, कि एकदम हक्‍के-बक्‍के रह गये। हुआ यह जिस जगह उन्‍होंने मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व अपने जूते उतारे थे, वहां से वे नदारद थे।

हाथ में भगवान का प्रसाद लिए बदहवास होकर वे मंदिर के चारों तरफ अपने जूते तलाशने लगे। परन्‍तु उन्‍हें जूते कहीं भी नहीं मिले। मंदिर में दर्शनार्थियों की काफी भीड़ थी। आखिर जूतों के बारे में किससे पूछे। फिर उन्‍हें आश्‍चर्य भी हो रहा था। माखन चोर के घर में चोरी हो गई थी। वह भी जूतों की, उन्‍होंने हिम्‍मत जुटा कर एक शक की नजर से भगवान की मूर्ति की ओर देखा। कहीं ऐसा तो नहीं भगवान भक्‍त से लीला कर रहे हों। क्‍योंकि उन्‍होंने एक कहावत सुन रखी थी, चोरचोरी से जाए परन्‍तु हेरा फेरी से ․․․․․․․

भगवान की मूर्ति तटस्‍थ थी। उसमें कोई भी परिवर्तन उन्‍हें नजर नहीं आया था। इसलिए खोजते खोजते अचानक उन्‍हें चौकीदार का ख्‍याल आया जो मंदिर के मुख्‍य द्वार पर डंडा पकडे़ खड़ा था। उन्‍होंने सोचा हो सकता है चौकीदार की मिलीभगत से ही जूते गायब हुए हों इसलिए उस पर रोब झाड़ते हुए बोले-

“क्‍यों चौकीदार तुमने मेरे जूते देखे हैं?”

चौकीदार एकदम तैश में आ गया, डंडा हवा में लहराते हुए बोला-

“क्‍या कहा․․․ फिर से तो कहना जरा, मुझे अपने जूते दिखा रहा है, तेरे बाप में दम है ?”

बनवारी लाल डरकर पीछे हटे, फिर नम्र होकर बोले-

“भाई आप गलत समझ रहे हो मैंने उस जगह अपने जूते उतारे थे। कोई उठाकर ले गया। शायद आपने देखे हों?

चौकीदार भुनभुना गया था, झल्‍लाते हुए बोला-

“हम यहां जूतों की चौकीदारी नहीं करते। कई श्रद्वालु आते-जाते रहते हैं, अब किसे पता कौन किसके जूते पहन रहा है किसी के चेहरे पर यह नहीं लिखा होता है कि यह जूता चोर है। इसलिए हमने पहले से ही उस बोर्ड पर लिख दिया है।” अपने सामान की सुरक्षा स्‍वयं करें, उठाईगीरों से सावधान रहें” “अब कोई उठाई गिरा ले गया होगा, इसमें हम क्‍या कर सकते हैं?”

चौकीदार का भाषण सुनकर उनके हौसले पस्‍त हो गये

“भैया अब आप ही बताएं, हम क्‍या करें, अभी कुछ दिन पहले ही नगद 300 रूपये देकर खरीदे थे, एकदम नये थे”

चौकीदार को उस पर दया आ गई, उसने सलाह दी

पास ही पुलिस थाना है, रपट लिखा दो अगर तुम्‍हारी किस्‍मत में जूते लिखे होंगे तो मिल जायेंगे, वरना हरि भजो․․․․․․․

चौकीदार की सलाह पर बनवारी लाल थाने पहुंचे। थानेदार से निवेदन करते हुए बोले-

“हुजूर․․․․․․मेरी मदद करें․․․․․मेरे जूते गुम हो गये।”

इतना सुनते ही थानेदार को गुस्‍सा आ गया, क्‍योंकि आज तक किसी भी थाने में जूते गुम हो जाने की गुहार किसी ने न की थी।

“अबे तो साले․․․․ थाने को क्‍या जूतों की दुकान समझ रखा है, जैसे अलमारी से निकालकर तुझे थमा दूंगा, चल भाग यहां से जूते गुम हो गये तो दूसरे पहन ले।”

बनवारी लाल को उम्‍मीद नहीं थी थानेदार इस तरह पेश आयेंगे वे डरते डरते बोले-

सरकार रिपोर्ट लिख लीजिये।

अचानक थानेदार को मसखरी सूझी चेहरे पर मुस्‍कान लाते हुए बोले-

“अच्‍छा तो तेरे जूते गुम हो गये, कहां से गुम हो गये ?”

“जी मदिर से।”

“ठीक है जा, मुंशी को अपना नाम पता हलखा दे, जब तेरे जूते चलकर थाने आयेंगे तो तेरा पता बता देंगे,” फिर मंुंशी को आवाज देकर बोल ।

“अरे मंशी․․․ सुनो इसके जूते गुम हो गये हैं, चाय,पानी की व्‍यवस्‍था करके इसका नाम पता लिख लो”

बनवारी लाल मुंशी के पास जा पहुंचे तो वह बड़बड़ाने लगा,“पता नहीं साले पुलिस को क्‍या समझते हैं, चले आये मुंह उठाये। अब इनके जूते ढूंढो यहां तो पहले ही जूते बजा बजाकर परेशान हैं।”

मुंशी ने कागज कलम लेकर कहा-

“भैया रिपोर्ट ऐसे ही नहीं लिखी जाती है, कुछ चाय, पानी की व्‍यवस्‍था करो। तुम्‍हारे जूते ढूंढने में हमारे जूते भी तो घिसेंगे, उसका हर्जाना कोैन देगा, इसलिए फटाफट 100 रूपये निकालो।”

बनवारी लाल ने रोते झिझकते 100 रूपये निकाल कर मुंशी को थमाये मुंशी ने कहा-

“अब बताओ-जूतों का हुलिया कैसा था ?”

बनवारी ला चकराये-

“हुजूर जूते तो जूतों जैसे ही होते हैं, अब उनका हुलिया आपको क्‍या बतायें ?”

“हमारा मतलब है किस रंग किस डिजाईन के थे?”

“डिजाईन तो साधारण थी और रंग लाल था।”

“दोनों जूते का रंग लाल था?”

“जी दोनों जूते तो एक ही रंग के होते हैं”

बनवारी लाल ने समझदारी का परिचय देते हुए जवाब दिया अलग अलग रंग के नहीं होते।

“जितना पूछा जाये उतना ही जवाब दो, यह थाना है तुम्‍हारा घर नहीं।” मुंशी चिढ़कर बोला-

“कितने नम्‍बर के थे?”

“10 नम्‍बरी ”

मुंशी ने एक पल उन्‍हें घूरकर ऐसे देखा मानो जूते के नहीं बनवारीलाल ने स्‍वयं के नम्‍बर बताए हों।

“किस कम्‍पनी के थे, कोई रसीद बगैरह है?“

“बाटा कम्‍पनी के थे, और रसीद तो नही है।”

“क्‍यों नहीं है, बिना रसीद के खरीदे, बेटा सरकार के टैक्‍स की चोरी की है। तू तो बड़ा गुरू है।”

“जी दुकानदार ने दी नहीं।”

“दी नहीं या तूने ली नहीं, सच सच बता जूते तेरे ही थे, या कहीं से मार कर लाया था?”

भगवान की कसम हुजूर जूते मेरे ही थे, आप चाहें तो चलकर दुकानदार से पूछ लीजिये।

“ठीक है अपना नाम पता बता?”

उन्‍होंने अपना पता लिखा दिया।

“जब मिल जायेंगे तो जूते देने तेरे घर आ जायेंगे, अब तू जा।”

बनवारीलाल थाने से निकल पड़े 300 रूपये के जूते 100 रूपये थाने में भेंट वे दुःखी मन से कोसते जा रहे थे, उस घड़ी को जिस समय जूते खरीदे थे, जो उन्‍हें बहुत ही महंगे पड़े थे।

घर पहुंचते ही उनकी पत्‍नी वीणा ने उन्‍हें नंगे पांव देखा तो आश्‍चर्य से बोली-

“अरे․․․․․․․ आपके जूते कहां गये?”

बनवारी लाल ने जूते गुम हो जाने से लेकर थाने तक की सभी बातें बता दीं।

वीणा ने कहा-

“चलो अच्‍छा हुआ बला टली।”

बनवारीलाल एकदम तैश में आ गये।

“300 रूपये के नये जूते गुम हो गये, ऊपर से 100 रूपये भेंट चढ़ गये, और तुम कहती हो बला टली।”

वीणा ने जवाब दिया-

“और नहीं तो क्‍या? भगवान की हम पर बड़ी कृपा है। आपके पूजा-पाठ का फल है। घर में कोई बड़ी चोरी होने वाली थी, अच्‍छा हुआ जूतों पर ही उतरी। तलवार की जगह सुई की नोंक चुभी।

बहरहाल बनवारी लाल ने फिर से 300 रूपये में जूते खरीदे, और नियमित मंदिर में जाने लगे। भगवान को धन्‍यवाद देने लगे, प्रभु तेरी ही कृपा है तूने एक बड़ी चोरी होने से मुझे बचाया। एक दिन बनवारीलाल दास बैठे हुए थे। उन्‍हें उदास देखकर वीणा ने कहा-

“ऐसे कब तक जूतों का शोक पालते रहोगे, जाने वाले थे, चले गये। ”

बनवारीलाल ने जवाब दिया।

“अरी․․․․ उन जूतों का नहीं,इन नये पूतों का गम मुझे सता रहा है।”

“क्‍या हुआ इन जूतों को?”

“अभी हुआ तो कुछ नहीं परन्‍तु․․․․․․․․?”

“परन्‍तु क्‍या․․․․․․․․․?”वीणा ने उतावली होकर पूछा।

“मैं जब भी मंदिर में भगवान की पूजा-अर्चना करता हूं तो ध्‍यान जूतों पर ही लगा रहता है। कहीं कोई और इन्‍हें चरा न ले। बस इसी बात की चिंता खाये जा रही है।”

“यह तो बुरी बात है, पूजा भगवान की और ध्‍यान जूतों पर राम․․․राम․․․․ ”

“फिर तुम्‍हीं बताओ मैं क्‍या करूं?”

वीणा कुछ देर सोचती रही फिर बोली-

“उपाय है, मंदिर में जूते पहनकर मत जाओ। या फिर जूते मंदिर में एक ही जगह पर एक साथ मत उतारा करो। मेरा कहने का मतलब है, एक जूता एक कोने में, और दूसरा जूता दूर दूसरे कोने में छोड़ कर जाया करो, ताकि जहूता चोर को एक ही जहूता मिलेगा, और वह एक जूता चुरायेगा नहीं।

बनवारीलाल को अपनी पत्‍नी की युक्‍ति स्‍पष्‍ट समझ में आगई, वे म नही मन भगवान को धन्‍यवाद देने लगे-“भगवान तू ही सबको अक्‍ल देता है, वरना इस निरी बुद्धिहीन दिमाग में इतनी अच्‍छी अक्‍ल की बात कैसे आ गई।”

अब बनवारीलाल बेफिक्र होकर मंदिर में अलग अलग स्‍थानों पर एक एक जूता रखने लगे। परन्‍तु होनी को भगवान भी नहीं टाल सकता, वह तो होकर ही रहती है।

एक दिन बनवारीलाल मंदिर से बाहर निकले तो देखा उनका एक जूता गायब था, उन्‍होंने वही दूसरे जूते से अपना सिर पीट लिया। मन ही मन दहाडें़ मारकर रोने लगे। मंदिर का चप्‍पा चप्‍पा छान लिया, परन्‍तु दूसरा जूता कहीं भी नहीं मिला । पिछले अनुभव से किसी से पूछने एवं थाने जाने की उनकी हिम्‍मत नहीं हो रही थी। रोते झींकते एक जूता हाथ उठाये मंदिर के परिसर से बाहर निकले। सोचने लगे अब इस एक जूते का क्‍या करंें? उनके किसी काम का नहीं था परन्‍तु नया था और फेंकने की उनकी हिम्‍मत नहीं हो रही थी।

सेचते सोचते अचानक उनके जेहन में एक बात आयी उनकी आंखों में थोड़ी सी चमक आई, और जा पहुंचे जूते बनाने वाले की दुकान पर जो अग्रिम लेकर जूते बनाते हैं।

“भैया मेरा एक जूता चोरी हो गया। लिहाजा इसी जूते के नाप एवं डिजाईन का दूसरा जूता बना दो।”

दुकानदार ने कहा-

“ठीक है यह एक जूता छोड़ जाओ और 100 रूपये अग्रिम दे दो 150 रूपये का जूता बनेगा, 2 रोज बाद आकर ले जाना।

100 रूपये और जूता देकर बनवारी लाल नंगे पांव घर की ओर चल दिये।

वादे की मुताबिक 2 रोज बाद जूते लेने दुकान पर पहुंच गये, और बोले-“लाईये मेरे जूते दीजिए।”

“कौन से जूते?”दुकानदार ने पूछा-

बनवारीलाल ने याद दिलाया-

“अरे भाई 2 दिन पहले आपको एक जूता देकर दूसरा जूता बनवाने का मैंने 100 रूपया अग्रिम दिया था, वही जूते दिजिए।”

दुकानदार ने जवाब दिया-

“वह तो उसी दिन आपके जाने के थोड़ी देर बाद ही आपका छोटा भाई आकर ले गया।

बनवारीलाल चौंके फिर तैश में आकर बोले-

“मेरा कोई छोटा भाई नहीं है, किसे दे दिये आपने?”

“फिर वह व्‍यक्‍ति कौन था? जो आपके जाने के बाद दूसरा जूता बताकर बोला था”-“भाई साहाब का यह चोरी गया जूता मिल गया है। लिहाजा आपको जो जूता और अग्रिम दिया है, वह दे दें। तो भैया हमने दूसरा जूता देखकर 100 रूपये और दोनों जूते देकर उसे विदा कर लिया।”

अब बनवारी लाल को साफ साफ समझ मे आ गया। जूते चोर ने उन्‍हें करारी चोट दी थी। उन्‍हें ऐसा लग रहा था मानो दुकान के अन्‍दर रखे सारे जूते उन पर आ गिरे हों, और उनके मुंह से चीख भी नहीं निकल रही थी

 

सुरेश भाटिया

23, अमृतपुरी खजुरीकला रोड,

पिपलानी भेल, भोपाल-462022

सुरेश भाटिया

23, अमृतपुरी खजुरीकला रोड,

पिपलानी भेल, भोपाल-462022

sbhatia916@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सुरेश भाटिया की हास्य-व्यंग्य कहानियाँ
सुरेश भाटिया की हास्य-व्यंग्य कहानियाँ
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_7.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_7.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content