रवीन्द्र अग्निहोत्री का आलेख - नाक में नथ

SHARE:

नाक में नथ (डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री, पी / 138, एम आई जी, पल्लवपुरम फेज – 2, मेरठ 250 110) agnihotriravindra@yahoo.com भारतीय स्त्रिय...

image

नाक में नथ

(डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री,

पी / 138, एम आई जी, पल्लवपुरम फेज – 2, मेरठ 250 110)

agnihotriravindra@yahoo.com

भारतीय स्त्रियों का सौंदर्य प्रसाधनों एवं आभूषणों के प्रति प्रेम जगप्रसिद्ध है। यों तो भारतीय पुरुष भी इस मामले में पीछे नहीं रहे हैं, पर ‘ प्रसिद्धि ‘ स्त्रियों को ही मिली है। वे सिर से लेकर पैर तक तरह – तरह के सौंदर्य प्रसाधनों और आभूषणों का प्रयोग करती हैं। यह माना जाता है कि इससे उनकी सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं। चार क्या, प्रसिद्ध कवि बिहारी के शब्दों में तो माथे पर केवल बिंदी लगाने से ही सुंदरता दस गुनी बढ़ जाती है ( तिय ललाट बेंदी दिए आँक दस गुनो होत )। आभूषण तरह – तरह के हैं। कुछ आभूषण ऐसे हैं जो स्त्रियां किसी विशिष्ट अवसर पर सजने – संवरने के लिए पहनती हैं, और उन्हें बाद में उतार देती हैं, तो कुछ आभूषण वे हर समय पहने रहती हैं। सामान्यतया कान / नाक में पहने जाने वाले आभूषणों के लिए कान / नाक छिदवाने की परम्परा है और यह काम बचपन में तभी कर दिया जाता है जब खाल कोमल होती है, हालांकि अब तकनीक के विकास से कान / नाक के ऐसे आभूषण भी बनने लगे हैं जो कान / नाक बिना छिदवाए भी पहने जा सकते हैं। कान में आभूषण पहने तो कुछ पुरुष भी मिल जाते हैं, पर नाक में आभूषण मानों स्त्रियों का विशेषाधिकार है। बात आभूषणप्रियता तक सीमित नहीं रह गई है। अब तो कुछ ऐसी सामाजिक परम्परा बन गई है कि स्त्रियों की सूनी कलाई, नंगे कान आदि अच्छे नहीं माने जाते।

प्रायः सामाजिक परम्पराओं का सम्बन्ध धर्म से होता है। विद्वान बताते हैं कि जिसे हम आज हिंदू धर्म कहते हैं, उसका उद्गम वेद एवं वैदिक साहित्य से हुआ है। वेद के आधार पर जिस धर्म का विकास हुआ, उसे आज हम बौद्ध धर्म / ईसाई धर्म आदि की नक़ल पर “ वैदिक धर्म “ कहने लगे हैं, जबकि वैदिक साहित्य में उसे बिना किसी विशेषण के केवल “ धर्म “ कहा गया है। जैसे, वैशेषिक दर्शन में वैदिक धर्म नहीं, धर्म की परिभाषा दी है (यतोSभ्युदय निश्रेयस सिद्धिर्स धर्मः) या मनुस्मृति में भी धर्म के ही दस लक्षण बताए गए हैं, वैदिक धर्म के नहीं (धृति क्षमा दमोSस्तेयम् शौचमिन्द्रियनिग्रहः, धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं) । इस धर्म में स्त्रियों – पुरुषों में सामाजिक स्तर पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था, पर आज अपने धर्म का जिस रूप में आचरण हम कर रहे हैं उसमें भेदभाव बहुत बढ़ गया है और यह अनेक रूपों में अभिव्यक्त होता है। आभूषणों में भी इसकी झलक देखी जा सकती है। कोई व्यक्ति विवाहित है या नहीं, यह दर्शाने वाला कोई आभूषण पुरुषों का नहीं है, स्त्रियों के अनिवार्य रूप से हैं, जैसे गले में मंगलसूत्र या किन्हीं स्थानों पर पैरों में बिछिया।

ऐसा ही एक आभूषण नाक में पहना जाता है और विवाह के अवसर पर तो इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। गांवों में सामान्य परम्परा यह है कि गरीब से गरीब परिवार में भी वधू के लिए चाहे और कुछ चीज दी जाए या न दी जाए, पर “ नथ “ अवश्य दी जाती है। जानना चाहेंगे ऐसा क्यों है ?

यह आभूषण हमारे समाज में पहले अज्ञात था। हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियों / पुराने चित्रों में स्त्रियां सिर से पैर तक ढेरों आभूषण पहने मिलती हैं, पर नाक में कोई चीज़ नहीं मिलती। बाद में, अब से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व, जब जैन / बौद्ध धर्म के अनुकरण पर हिंदुओं में मूर्तिपूजा की शुरुआत हुई, तब भी किसी मूर्तिकार ने किसी देवी की नाक में कोई आभूषण नहीं पहनाया । इससे यह संकेत मिलता है कि नाक में आभूषण पहनने की परम्परा तब तक शुरू नहीं हुई थी । यह ध्यान देने योग्य है कि वैदिक परंपरा में शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए जो संस्कार बताए गए हैं, उनमें " कर्ण वेध " ( कान छेदना ) संस्कार तो है, जो स्त्री और पुरुष दोनों के लिए है, स्त्रियों के लिए अलग से " नासिका वेध " जैसा कोई संस्कार नहीं। भाषा की दृष्टि से देखें तो इस देश की वैदिक युग से ही चली आ रही भाषा संस्कृत में नाक में पहने जाने वाले आभूषण (नथ / लौंग) के लिए कोई शब्द ही नहीं । यह भी इस बात का प्रमाण है कि यह हमारी पुरानी परंपरा नहीं । अतः निस्संकोच कहा जा सकता है कि स्त्रियों की नाक छेदने और उसमें आभूषण पहनने का रिवाज़ बहुत बाद में शुरू हुआ।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा. भगवत शरण उपाध्याय का मानना है कि सांस्कृतिक आदान – प्रदान पूरे विश्व में प्राचीनकाल से ही होता रहा है और आज भारतीय वधू की नाक में " नथ " इसी प्रक्रिया की देन है जिसका सम्बन्ध प्राचीन पश्चिमी एशिया के देश असीरिया से है जो सुमेरिया और बेबिलोनिया से ही लगा हुआ था । जिस स्थान पर आज उत्तरी इराक और मेसोपोटामिया आदि हैं, यह देश उसी स्थान पर था । ईसा पूर्व 20 वीं से लेकर 7 वीं शताब्दी (ईसा पूर्व) तक यह एक महत्वपूर्ण साम्राज्य था । अपने गौरव काल में असीरिया का साम्राज्य मिस्र से ईरान तक फैला हुआ था । विश्व इतिहास के विद्वानों का कहना है कि संसार में किसी जाति विशेष ने इतने विजय अभियानों से संबंधित अभिलेख नहीं छोड़े हैं जितने असूरियाई सम्राटों ने छोड़े हैं । यही कारण है कि 12 खंड वाले द कैम्ब्रिज एंशिएंट हिस्ट्री (प्रथम संस्करण ; 1923) का पूरा का पूरा खंड 3 केवल इसी साम्राज्य को समर्पित है। असीरिया की एक विशेषता यह थी कि उसकी राजधानी, उसके राजा, उसकी जनता, उसका धर्म, उसकी भाषा, उसके देवता – सबका नाम “ असुर “ (Ashur) था. यही असुर देवता बाद में ईरानियों के यहाँ असुर महान अथवा अहुरमज़्दा बन गया।

असीरिया की एक और भी विशेषता थी जिसकी झलक प्राचीन संस्कृत साहित्य की दो अभिव्यक्तियों " धर्म विजयी नृप " और " असुर विजयी नृप " में भी मिलती है। धर्म विजयी नृप ऐसा राजा बताया है जो हारे हुए राजा की " श्री / प्रभुता ” (sovereignty) तो ले, पर " मेदिनी " अर्थात राज्य क्षेत्र (territory) लौटा दे, राजा को " बहाल “ (reinstate) करके उसकी गद्दी पर उसे फिर से बैठा दे। महाकवि कालिदास ने रघु की दिग्विजय में रघु को " धर्म विजयी नृपः " कहते हुए " श्रीयं जहार न तु मेदिनीम् " कहा है। हमारी परम्परा धर्म विजयी नृप की ही थी, चक्रवर्ती सम्राट ऐसे ही होते थे।

इसके विपरीत " असुर विजयी नृप " वह है जो " उत्थाय तरसा " अर्थात विजित को जड़ से उखाड़ दे। प्रायः " असुर " का अर्थ जो देवता नहीं, वह असुर (न सुरः इति असुरः) किया जाता है ; पर डा. उपाध्याय का मानना है कि " असुर विजयी नृप " में असुर का सम्बन्ध इस अर्थ से नहीं, बल्कि प्राचीन पश्चिमी एशिया के देश असीरिया से है। यहाँ के शासकों की विशेषता बताते हुए उन्होंने लिखा है कि वे जिस प्रदेश को जीतते थे, उस समूचे राज्य को उखाड़ और उजाड़ देते थे। पूरी आबादी को बदल दिया करते थे और उसे ले जाने का जो तरीका था वह मवेशी की तरह हांक कर ले जाने का था। कोई आदमी इधर - उधर न चला जाए इसलिए एक पतली डोर डालकर ओंठों और नाक को नथ देते थे जिसको अरबों ने बाद में नाकिल कहा (प्राचीन पश्चिम एशिया और भारत; प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली ; 1977 , पृष्ठ 7)।

आज भारतीय स्त्रियां नाक में आभूषण भले ही अपनी आभूषणप्रियता के कारण पहन रही हों, पर डा. उपाध्याय के अनुसार असीरिया की उक्त परम्परा ही आज भारतीय वधू की नाक में " नथ " के रूप में विद्यमान है. क्योंकि " दिस इज द सिम्बल आफ कम्प्लीट मास्टरी आफ द मैन ओवर ए वूमैन । यही असूरिया तरीका था ( पूर्वोक्त, पृष्ठ 8 ) । “

ऐसा प्रतीत होता है कि जब वैदिक परम्पराएं शिथिल होने लगीं तब समाज में स्त्रियों का सम्मान घटने लगा। जिस स्त्री को ससुराल की “ सम्राज्ञी “ (ऋग्वेद) कहा गया था, “ मेना “ कहा था क्योंकि वह सम्माननीय है, (मानयन्ति एनाः पुरुषाः), “ योषा “ कहा था क्योंकि वह पुरुष की मित्र है, सहयोगिनी है, जिसका सम्मान ही सुखी परिवार की गारंटी था ( यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ), उसे “ दासी “ बना दिया, पैर की जूती घोषित कर दिया, नरक का द्वार मान लिया (द्वारं किमेकम् नरकस्य ? नारी) । बाल्यावस्था में पिता के अधीन, युवावस्था में पति के अधीन और वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रखने की व्यवस्था देकर स्त्रियों की स्वतन्त्रता का अपहरण कर लिया (न स्त्री स्वातन्त्र्यम् अर्हति) । ऐसे ही युग में “ कम्प्लीट मास्टरी आफ द मैन ओवर ए वूमैन “ वाले “ सिम्बल “ अपनाए गए और एक नहीं, अनेक अपनाए गए ताकि छूट की कोई गुंजाइश न रहे। मुझे अच्छा पति मिले, वह स्वस्थ रहे – इसके लिए व्रत रखना, पर्व मनाना, संकल्प करना स्त्री के लिए अनिवार्य है ; अच्छी पत्नी मिले, वह स्वस्थ रहे – इसकी चिंता पुरुष को नहीं। दीर्घायु की कामना पति / पुत्र की ही की जाती है, और इसके लिए व्रत रखना स्त्री की ही जिम्मेदारी है ; पत्नी / बेटी दीर्घायु हो, इसकी कामना नहीं की जाती। पुरुष बहु-विवाह कर सकता है, स्त्री नहीं। विधवा विवाह वर्जित किया गया, विधुर विवाह पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया। सती प्रथा का विधान किया गया, “सता प्रथा “ का नहीं। स्त्रियों को पतिव्रता बनाने के लिए सती सावित्री की कहानियाँ रच लीं, पुरुषों को स्वच्छंद छोड़ दिया, उन्हें पत्नीव्रता बनाने वाली कोई कहानी तक नहीं। अग्निपरीक्षा सीता की ली गई, राम की नहीं। ऐसी सभी परम्पराएं “ कम्प्लीट मास्टरी आफ द मैन ओवर ए वूमैन “ दर्शाती हैं।

इससे यह तो स्पष्ट है कि आज हम जिन परम्पराओं का पालन कर रहे हैं, उनमें से अनेक हमारी उस मूल वैदिक संस्कृति की देन नहीं हैं जिसकी छाप सम्पूर्ण विश्व पर पड़ी थी, जिससे विश्व की प्रथम संस्कृति का निर्माण हुआ (सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा), और आधुनिक युग में जिससे हमारा परिचय स्वामी दयानंद सरस्वती (1824–1883) ने कराया। आज भी हम गौरव गाथा तो उसी युग की गाते हैं, पर हमारा आचरण उससे छिटक कर बहुत दूर चला आया है। हमारी कथनी और करनी में बहुत अंतर आ गया है। हमारी स्थिति हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली बन गई है। स्वामी विवेकानंद (1863 - 1902)  ने भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हुए जहाँ एक ओर यह कहा कि " हिन्दू धर्म का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें वेद और दर्शन शास्त्र पढ़ना चाहिए ( विवेकानंद साहित्य संचयन, रामकृष्ण मठ, नागपुर ; पृ . 392) , वहीँ हमारे आचरण को देखकर यह टिप्पणी की कि “आधुनिक हिंदू धर्म अधिकांशतः एक पौराणिक धर्म है जिसका उद्गम बौद्ध काल के पश्चात् हुआ है (भारतीय नारी, रामकृष्ण आश्रम, नागपुर ; पृ. 62) । “

इससे यह भी स्पष्ट है कि हम आज जिन परम्पराओं का पालन कर रहे हैं, वे देशी – विदेशी विभिन्न स्रोतों से आई हैं। कुछ परम्पराएं तर्कसंगत हैं तो कुछ के आगे प्रश्न चिह्न / विस्मयादिबोधक चिह्न लगे हैं। वह कहानी शायद आपने भी सुनी हो कि किसी घर में लड़के की शादी की तैयारी चल रही थी. घर में एक बिल्ली पली हुई थी. गृहणी ने सोचा कि शादी के माहौल में बिल्ली पता नहीं क्या – क्या चट कर जाए / खराब कर दे, अतः उसने एक टोकरी उलटी करके बिल्ली को उसमें बंद कर दिया। बिल्ली का भोजन उसी में सरका दिया जाता था। जब बहू आई तो उसने यह दृश्य बड़े ध्यान से देखा। समय बीतता गया। वह बिल्ली भी मर गई और सास – ससुर भी भगवान को प्यारे हो गए। नए बच्चे बड़े हो गए। उनकी शादी की तैयारी होने लगी तो वर्तमान गृहणी ने बाजार से लाने वाले सामान में एक बिल्ली और टोकरी भी लिखी। पुरुष ने पूछा, ये क्यों ? गृहणी बोली, आपको नहीं पता ? यह तो इसी घर की परम्परा है, मैंने यहीं देखा कि शादी के समय एक टोकरी में बिल्ली बंद की जाती है।

क्या आपको अपनी कुछ परम्पराएं ऐसी ही नहीं लगतीं ?

******************************

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रवीन्द्र अग्निहोत्री का आलेख - नाक में नथ
रवीन्द्र अग्निहोत्री का आलेख - नाक में नथ
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFkp6MmnNT6rTLwgvTqJw-M5_LqM5A9D1AD_hmOkhnOAAGHH26WgfLnC17JrjbWy8mxr4r741JyWHoY6YW6HtsGTj_AwP35HkHX8i3BcrgEzSGEV_VftWkeZo914GmxxFCnJ99/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFkp6MmnNT6rTLwgvTqJw-M5_LqM5A9D1AD_hmOkhnOAAGHH26WgfLnC17JrjbWy8mxr4r741JyWHoY6YW6HtsGTj_AwP35HkHX8i3BcrgEzSGEV_VftWkeZo914GmxxFCnJ99/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_49.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_49.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content