नारी कभी नहीं थी बेचारी महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की.रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने...
नारी कभी नहीं थी बेचारी
महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की.रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं. गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था. चांद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ़ अहमदनगर की रक्षा की. जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की. मुगल राजकुमारी जहाँआरा और जेबुन्निसा सुप्रसिद्ध कवियित्रियाँ थीं और उन्होंने सत्तारूढ़ प्रशासन को भी प्रभावित किया. शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण क्वीन रीजेंट के रूप में पदस्थापित किया गया था. दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों, शहरों, और जिलों पर शासन किया और सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों की शुरुआत की.
भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की बेहतर स्थिति को वापस हासिल करने की कोशिश की और प्रभुत्व के स्वरूपों पर सवाल उठाया.एक महिला संत-कवियित्री मीराबाई भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं. इस अवधि की कुछ अन्य संत-कवियित्रियों में अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लाल देद शामिल हैं. हिंदुत्व के अंदर महानुभाव, वरकारी और कई अन्य जैसे भक्ति संप्रदाय, हिंदू समुदाय में पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक न्याय और समानता की खुले तौर पर वकालत करने वाले प्रमुख आंदोलन थे.
भक्ति आंदोलन के कुछ ही समय बाद सिक्खों के पहले गुरु, गुरु नानक ने भी पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता के संदेश को प्रचारित किया. उन्होंने महिलाओं को धार्मिक संस्थानों का नेतृत्व करने; सामूहिक प्रार्थना के रूप में गाये जाने वाले वाले कीर्तन या भजन को गाने और इनकी अगुआई करने; धार्मिक प्रबंधन समितियों के सदस्य बनने; युद्ध के मैदान में सेना का नेतृत्व करने; विवाह में बराबरी का हक और अमृत (दीक्षा) में समानता की अनुमति देने की वकालत की. अन्य सिख गुरुओं ने भी महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ उपदेश दिए.जाटों की स्त्रीयां युद्ध क्षेत्र में पति के कन्धे से कन्धा मिला दुश्मनों के दान्त खट्टे करते हुए शहीद हो जाती थी। मराठा महिलाएँ भी अपने योधा पति की युधभूमि में पूरा साथ देती रही हैं।
कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा ने समाप्ति के सिद्धांत( डाक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स) की प्रतिक्रिया में अंग्रेजों के खिलाफ़ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया. तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ने 16वीं सदी में हमलावर यूरोपीय सेनाओं, उल्लेखनीय रूप से पुर्तगाली सेना के खिलाफ़ सुरक्षा का नेतृत्व किया. झाँसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ़ 1857 के भारतीय विद्रोह का झंडा बुलंद किया. आज उन्हें सर्वत्र एक राष्ट्रीय नायिका के रूप में माना जाता है. अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल एक अन्य शासिका थी जिसने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया था. उन्होंने अंग्रेजों के साथ सौदेबाजी से इनकार कर दिया और बाद में नेपाल चली गयीं. भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं. उन्होंने परदा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया.
चंद्रमुखी बसु, कादंबिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी कुछ शुरुआती भारतीय महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने शैक्षणिक डिग्रियाँ हासिल कीं.
भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. भिकाजी कामा, डॉ. एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुना आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गाँधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं. अन्य उल्लेखनीय नाम हैं मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख आदि. सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी. एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं.
भारत में महिलाएं अब सभी तरह की गतिविधियों जैसे कि शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि में हिस्सा ले रही हैं.[7] इंदिरा गांधी जिन्होंने कुल मिलाकर पंद्रह वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की, दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री हैं.[24]
1879: जॉन इलियट ड्रिंकवाटर बिथयून ने 1849 में बिथयून स्कूल स्थापित किया, जो 1879 में बिथयून कॉलेज बनने के साथ भारत का पहला महिला कॉलेज बन गया.
1883: चंद्रमुखी बसु और कादम्बिनी गांगुली ब्रिटिश साम्राज्य और भारत में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिलायें बनीं.
1886: कादम्बिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी पश्चिमी दवाओं में प्रशिक्षित होने वाली भारत की पहली महिलायें बनीं.
1905: कार चलाने वाली पहली भारतीय महिला सुज़ान आरडी टाटा थीं.[30]
1916: पहला महिला विश्वविद्यालय, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना समाज सुधारक धोंडो केशव कर्वे द्वारा केवल पांच छात्रों के साथ 2 जून 1916 को की गई.
1917: एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली अध्यक्ष महिला बनीं.
1919: पंडिता रामाबाई, अपनी प्रतिष्ठित समाज सेवा के कारण ब्रिटिश राज द्वारा कैसर-ए-हिंद सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
1925: सरोजिनी नायडू भारतीय मूल की पहली महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं.
1927: अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की गई.
1944: आसिमा चटर्जी ऐसी पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया.
1947: 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद, सरोजिनी नायडू संयुक्त प्रदेशों की राज्यपाल बनीं, और इस तरह वे भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं.
1951: डेक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर प्रथम भारतीय महिला व्यावसायिक पायलट बनीं.
1953: विजय लक्ष्मी पंडित यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेम्बली की पहली महिला (और पहली भारतीय) अध्यक्ष बनीं.
1959: अन्ना चान्डी, किसी उच्च न्यायालय (केरल उच्च न्यायालय) की पहली भारतीय महिला जज बनीं.[31]
1963: सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, किसी भी भारतीय राज्य में यह पद सँभालने वाली वे पहली महिला थीं.
1966: कैप्टेन दुर्गा बनर्जी सरकारी एयरलाइन्स, भारतीय एयरलाइंस, की पहली भारतीय महिला पायलट बनीं.
1966: कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने समुदाय नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त किया.
1966: इंदिरा गाँधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं.
1970: कमलजीत संधू एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं.
1972: किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा (इंडियन पुलिस सर्विस) में भर्ती होने वाली पहली महिला थीं.[32]
1979: मदर टेरेसा ने नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया, और यह सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला नागरिक बनीं.
1984: 23 मई को, बचेन्द्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
1989: न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला जज बनीं.[33]
1997: कल्पना चावला, भारत में जन्मी ऐसी प्रथम महिला थीं जो अंतरिक्ष में गयीं.[34]
1992: प्रिया झिंगन भारतीय थलसेना में भर्ती होने वाली पहली महिला कैडेट थीं (6 मार्च 1993 को उन्हें कमीशन किया गया)[35]
1994: हरिता कौर देओल भारतीय वायु सेना में अकेले जहाज उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट बनी.
2000: कर्णम मल्लेश्वरी ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं (सिडनी में 2000 के समर ओलिंपिक में कांस्य पदक)
2002: लक्ष्मी सहगल भारतीय राष्ट्रपति पद के लिए खड़ी होने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
2004: पुनीता अरोड़ा, भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट जनरल के सर्वोच्च पद तक पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
2007: प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं.
2009: मीरा कुमार भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं
इससे स्पष्ट होता है कि नारी बेचारी ना थीई ना है और ना ही होगी .वह सबल थी ,सफल
साहित्यकार /कवि/स्वतंत्र पत्रकार
सपना मांगलिक (आगरा)up 282005
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