मानव अधिकारों में सुकून के साथ कॅरियर की उड़ानें डॉ.चन्द्रकुमार जैन मानव अधिकार एक चिर-परिचित क्षेत्र है। परन्तु, यह जानना व समझना सचमुच म...
मानव अधिकारों में सुकून के साथ कॅरियर की उड़ानें
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मानव अधिकार एक चिर-परिचित क्षेत्र है। परन्तु, यह जानना व समझना सचमुच महत्वपूर्ण है कि मानव अधिकारों की पकड़ व समझ आपको बेहतर भविष्य के साथ-साथ मानवता के कल्याण का सहभागी भी बना सकती है। राजगार विशेषज्ञ मनु सिंह बताते हैं कि मानवाधिकार राष्ट्रीयता, निवास- स्थान, लिंग, राष्ट्रीय या नैतिक स्रोत, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति से परे सभी व्यक्तियों में निहित अधिकार हैं। हम सभी, बिना किसी भेदभाव के अपने मानवाधिकार के समान रूप से हकदार हैं। ये अधिकार परस्पर संबंधी, एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं।
सार्वभौमिक मानवाधिकारों को प्रायः समझौतों, प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय विधि, सामान्य सिद्धांतों तथा अंतर्राष्ट्रीय विधि के अन्य स्रोतों के रूप में विधि द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है तथा इनका आश्वासन दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि व्यक्तियों या समूहों के मानवाधिकारों तथा मूलभूत स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए कई रूपों में कार्य करने एवं कई कृत्यों से दूर रहने के दायित्व निर्धारित करते हैं ।
आखिर मानव अधिकार क्या हैं ? सबसे पहले यह जान लें कि मानवाधिकार संविधान में निम्नलिखित बातें शामिल हैं:-सुरक्षा अधिकार - जो व्यक्तियों की, हत्या, जनसंहार, उत्पीड़न तथा बलात्कार जैसे अपराधों से रक्षा करते हैं। स्वतंत्रता अधिकार - जो विश्वास एवं धर्म, संगठनों, जन-समुदायों तथा आंदोलन जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। राजनीतिक अधिकार - जो स्वयं को अभिव्यक्ति, विरोध, वोट देकर तथा सार्वजनिक कार्यालयों में सेवा द्वारा राजनीति में भाग लेने की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं । उपयुक्त कार्यवाही अधिकार - जो मुकदमे के बिना कैद करने, गुप्त मुकदमे चलाने तथा अधिक सजा देने जैसी विधिक प्रणाली के दुरूपयोग से रक्षा करते हैं । समानता अधिकार - जो समान नागरिकता, विधि के समक्ष समानता एवं पक्षपात रहित होने का आश्वासन देते हैं । कल्याण अधिकार (ये आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों के रूप में जाने जाते हैं)। जिनमें शिक्षा का तथा अत्यंत निर्धनता और भुखमरी से रक्षा का प्रावधान है । सामूहिक अधिकार - जो विजाति-संहार के विरुद्ध एवं देशों द्वारा उनके राष्ट्रीय क्षेत्रों तथा संसाधनों के स्वामित्व के लिए समूहों को रक्षा प्रदान करते हैं ।
कब होता है उल्लंघन ?
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सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा के अनुसार मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन तब होता है, जब कोई पंथ या कोई समूह ‘एक’ व्यक्ति के रूप में मान्यता से मना करता है (अनुच्छेद-2),पुरुषों तथा महिलाओं को समान नहीं माना जाता (अनुच्छेद 2),विभिन्न जाति के या धार्मिक समूहों को समान नहीं माना जाता (अनुच्छेद 2), व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता या सुरक्षा संकट ग्रस्त होने पर (अनुच्छेद 3), किसी व्यक्ति को बेचना या दास के रूप में उपयोग करना (अनुच्छेद 4),किसी व्यक्ति को निर्मम, अमानवीय या अनुचित दण्ड (जैसे उत्पीड़न या मृत्यु दण्ड) देने पर (अनुच्छेद 5),किसी उपयुक्त या निष्पक्ष जांच किए बिना मनमाना या एक तरफा दण्ड दिया जाता है (अनुच्छेद 11),राष्ट्र के एजेंटों द्वारा व्यक्तिगत या निजी जीवन में मनमाना हस्तक्षेप किया जाता है (अनुच्छेद 12),नागरिकों को अपना देश छोड़ने से मना किया जाता है (अनुच्छेद 13),बोलने या धर्म की स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है (अनुच्छेद 18 एवं 19), किसी ट्रेड यूनियन से जुड़ने के अधिकार से वंचित किया जाता है (अनुच्छेद 23),शिक्षा से वंचित रखा जाता है (अनुच्छेद 26)
मानवाधिकार क़ानून का आधार
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मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता का सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि का आधार है। इस सिद्धांत को, जैसा कि 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा में पहली बार बल दिया गया था, उनके अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलनों, घोषणाओं तथा संकल्पों में दोहराया गया है। उदाहरण के लिए, 1993 में विएना विश्व मानवाधिकार सम्मेलन में कहा गया था कि यह राष्ट्रों का दायित्व है कि वे सभी मानवाधिकारों तथा मूलभूत स्वतंत्रता को, उनकी राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर ध्यान दिए बिना, बढ़ावा दे एवं उनकी रक्षा करें ।
सभी राज्यों ने कम से कम एक का और 80% राष्ट्रों ने चार या अधिक उन मुख्य मानव अधिकार समझौतों का समर्थन किया है, जिन में राष्ट्रों की सहमति का उल्लेख है और जो राष्ट्रों के लिए विधिक दायित्वों का सृजन करते हैं और सार्वभौमिकता को ठोस अभिव्यक्ति देते हैं। कुछ मूलभूत मानवाधिकार मानदण्डों को सभी राष्ट्रों तथा सभ्यताओं में प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय विधि सार्वभौमिक सुरक्षा मिली है। मानवाधिकार अहरणीय है अर्थात इन्हें छीना नहीं जा सकता। इन्हें विशेष स्थितियों को छोड़कर और उपयुक्त कार्यवाही के बिना हटाया नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी विधि न्यायालय द्वारा किसी अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसकी स्वतंत्रता का अधिकार सीमित किया जा सकता है ।
पारस्परिक निर्भरता व निष्पक्षता
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सभी मानवाधिकार अविभाज्य हैं, भले ही वे नागरिक या राजनीतिक अधिकार हों, ऐसे ही अधिकार विधि के समक्ष जीवन, समानता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार, कार्य करने, सामाजिक सुरक्षा तथा शिक्षा के अधिकार और इसी तरह विकास एवं स्व-निर्धारण के अधिकार अहरणीय, परस्पर एक दूसरे पर निर्भर और परस्पर जुड़े हुए हैं। एक अधिकार में सुधार लाने से अन्य अधिकारों के विकास में सहयता मिलती है। इसी तरह एक अधिकार के हरण से अन्य अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । निष्पक्षता अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि में एक मजबूत सिद्धांत है। यह सिद्धांत सभी बड़े मानवाधिकार समझौते में व्याप्त है और कुछ अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलनों जैसे कि सभी प्रकार के जातीय भेदभावों के उन्मूलन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों ने उन्मूलन से जुड़े सम्मेलन के मुख्य उद्देश्य को प्रस्तुत करता है ।
यह सिद्धांत सभी मानवाधिकारों तथा स्वतंत्रता के संबंध में सभी पर लागू होता है और यह सिद्धांत, लिंग, जाति, रंग तथा ऐसे अन्य वर्गों की सूची के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। समानता का सिद्धांत निष्पक्षता के सिद्धांत का पूरक है। यह सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा में उल्लिखितय इस अनुच्छेद-1 में उल्लिखित इस तथ्य से भी प्रकट होता है कि सभी मनुष्य जन्म से ही स्वतंत्र होते हैं तथा मान-सम्मान तथा अधिकारों में भी समान होते हैं ।
अधिकार और जिम्मेदारी भी
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मानवाधिकार अधिकारों तथा दायित्वों - दोनों को अपरिहार्य बनाते हैं। राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत दायित्वों तथा कार्यों को, मानवाधिकारों को आदर देने, उनकी रक्षा करने तथा उन्हें पूरा करने वाला मानते हैं। आदर देने के दायित्व का अर्थ है कि राष्ट्रों को मानवाधिकारों के प्रयोग में हस्तक्षेप करने से अथवा उसके प्रयोग को घटाने से बचना चाहिए। रक्षा के दायित्वों के संबंध में राष्ट्रों को, मानवाधिकारों के दुरूपयोगों से व्यक्तियों या समूहों की रक्षा करनी चाहिए। पूरा करने के दायित्व का अर्थ है कि राष्ट्रों को मूल मानवाधिकारों के प्रयोगों के कारगर बनाने के लिए सकारात्मक रूख अपनाना चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर, जब कि हम अपने मानवाधिकारों के हकदार हैं, हमें अन्यों के मानवाधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए ।
मानवाधिकार संगठन
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भारत में मानवाधिकार अभी भी अपने विकास चरण में है। फिर भी इस क्षेत्र में विशेषज्ञता कर रहे छात्रों के लिए अनेक अवसर खुले हुए हैं। विकलांगों, अनाथ, दीन-हीन, शरणार्थियों, मानसिक विकलांगों तथा नशीले पदार्थ सेवियों के साथ कार्य करने वाले समाजसेवी संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों में करियर के अवसर उपलब्ध हैं। मानवाधिकार व्यवसायी सामान्यतः मानवाधिकार एवं नागरिक स्वतंत्रता के क्षेत्र में कार्य करने वाले स्थापित गैर-सरकारी संगठनों में भी कार्य कर सकते हैं। ये गैर-सरकारी संगठन मानवाधिकार सक्रियतावाद, आपदा एवं आपातकालीन राहत, मानवीय सहायता बाल एवं बंधुआ मजदूरों, विस्थापित व्यक्तियों, संघर्ष समाधान तथा अन्यों में सार्वजनिक हित के मुकदमेबाजी के क्षेत्र में भी कार्य करते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों को, मानवाधिकार में विशेषज्ञता करने वाले व्यक्तियों की निररंतर तलाश रहती है। इसमें संयुक्त राष्ट्र संगठन भी शामिल हैं। भारत में सांविधिक सरकारी निकाय एवं निगम जैसे राष्ट्रीय एवं राज्य आयोग (महिला, बाल, मानवाधिकार, मजदूर, कल्याण, अल्पसंख्यक समुदाय, अजा एवं अजजा आयोग), सैन्य, अर्ध-सैन्य तथा पुलिस विभाग, पंचायती राज संस्था, स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान निकाय और उत्कृष्टता केन्द्र, जिला ग्रामीण विकास एजेंसी तथा जिला शहरी विकास एजेंसी, वकीलों तथा विधिक विशेषज्ञों द्वारा चलाए जाने वाले मानवाधिकार परामर्शदाता संगठन कुछ अन्य ऐसे स्थान हैं जहां कॅरिअर के अवसर तलाश सकते हैं, बाल-अपराध एवं बाल-दुव्र्यवहार जैसी सुधार संस्थाओं और महिला सुधार केन्द्रों, कारागार एवं बेघर गृहों में भी कार्य किया जा सकता है।
मानवाधिकार विशेषज्ञों की मांग शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ने की संभावना है।
कहाँ पढ़ें ?
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मानवाधिकार पाठ्यक्रम चलाने वाली कुछ संस्थाएं निम्नलिखित हैं-
• अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
• बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
• देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर
• डॉ. बी.आर. अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ
• भारतीय मानवाधिकार संस्थान, नई दिल्ली
• भारतीय विधि संस्थान, नई दिल्ली
• जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
• राष्ट्रीय विधि विद्यालय, बंगलौर
• मद्रास विश्वविद्यालय, चैन्नई
• मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई के अतिरिक्त अन्य संस्थान भी हैं।
पाठ्यक्रम अवधि व वेतन
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अधिकांश विश्वविद्यालय मास्टर या स्नातकोत्तर कार्यक्रम में मानवाधिकार को एक मुख्य विषय के रूप में रखते हैं। कुछ विश्वविद्यालय, संस्थाएं एवं कॉलेज डिप्लोमा तथा प्रमाणपत्र भी चलाते हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश पात्रता सामान्यतः किसी भी विषय में स्नातक डिग्री होती है। इस क्षेत्र में वेतन कार्य-प्रकृति पर निर्भर होता है। तथापि, उच्च वेतन तथा अन्य विभिन्न लाभ इस तथ्य पर निर्भर करते हैं कि कोई व्यक्ति सरकारी, गैर-सरकारी संगठन, अंतर्राष्ट्रीय जैसे क्षेत्र में कार्य कर रहा है या भारत अथवा विदेश में कार्य कर रहा है ।
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प्राध्यापक,दिग्विजय पीजी कालेज,
राजनांदगांव
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