डॉ.चन्द्रकुमार जैन भाषा राष्ट्र की प्रगति का आधार है। बोलने की भाषा हिंदुस्तानी जु़बान हो जिसे सब समझ सकें। ये दो पहियों की गाड़ी है,...
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भाषा राष्ट्र की प्रगति का आधार है। बोलने की भाषा हिंदुस्तानी जु़बान हो जिसे सब समझ सकें। ये दो पहियों की गाड़ी है, एक भी पहिया बड़ा हो जाये तो गाड़ी गड़बड़ हो जाएगी। भाषा को कठिन बनाकर उलझाने का प्रयास नहीं होना चाहिए । सबसे महत्वपूर्ण है - सम्प्रेषण याने जनसंचार । ये सात बातों पर निर्भर है--सही, सत्य, सरल, स्पष्ट,सफल,सुंदर और स्वाभाविक। इसे जनभाषा बना दें तो ज़मीन से जुड़ी, जड़ों से जुड़ी बात होगी। यह विचार थे मशहूर उद्घोषक श्री अमीन सायानी के जो उन्होंने 23वें आशीर्वाद राजभाषा समारोह में व्यक्त किये। यह समारोह मुख्य आयकर आयुक्त कार्यालय, मुंबई के सभागृह में हाल ही में संपन्न हुआ।
किसी ज़माने में रेडियो का दूसरा नाम कहे जाने वाले अमीन सयानी आज भी उसी रुमानियत और जोश से भरे हैं. वही बोलने का अंदाज़, वही मीठी और अपनेपन वाली आवाज़.लेकिन उनका ये सफ़र इतना आसान नहीं था. कभी वे गायक बनना चाहते थे. लेकिन बाद में जाने-माने ब्रॉडकास्टर बन गए. वे मानते हैं कि अच्छी हिंदी बोलने के लिए थोड़ा-सा उर्दू का ज्ञान ज़रूरी हैं। अमीन सयानी जब रेडियो पर होते थे तो लोगों का हुजूम रेडियो सेट के सामने आकर चिपक जाता था और हरेक को अपने एक अज़ीज़ साथी और हमदर्द का इतजार रहता था।
कभी अमिताभ को नकार दिया था
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बहुत कम लोग जानते हैं कि बॉलीवुड में किस्मत आजमाने से पहले मेगास्टार अमिताभ बच्चन रेडियो एनाउंसर बनना चाहते थे और इसके लिए वह ऑल इंडिया रेडियो के मुंबई स्टूडियो में ऑडिशन देने भी गए थे। अपने नए कार्यक्रम सितारों की जवानियां के साथ रेडियो पर वापसी कर रहे प्रसिद्ध रेडियो उद्घोषक अमीन सयानी यदि मानें तो उनके पास तब अमिताभ से मिलने का समय नहीं था, क्योंकि अभिनेता ने वॉयस ऑडिशन के लिए पहले से समय नहीं लिया था।
सयानी ने एक साक्षात्कार में कहा है कि 'यह 1960 के दशक के आखिर में कभी हुआ था, जब मैं एक हफ्ते में 20 कार्यक्रम करता था। हर दिन मेरा अधिकतर समय साउंड स्टूडियो में गुजरता था, क्योंकि मैं रेडियो प्रोग्रामिंग की हर प्रक्रिया में शामिल रहता था। एक दिन अमिताभ बच्चन नाम का एक युवक बिना समय लिए वॉयस ऑडिशन देने आया। मेरे पास उस पतले-दुबले व्यक्ति के लिए बिल्कुल समय नहीं था। उसने इंतजार किया और लौट गया, इसके बाद भी वह कई बार आया, लेकिन मैं उससे नहीं मिल पाया और रिसेप्शनिस्ट के माध्यम से यह कहता रहा कि वह पहले समय ले, फिर आए।
इक्यासी वर्षीय सयानी को बाद में पता चला कि वह अमिताभ बच्चन थे, जो ऑडिशन के लिए उनके कार्यालय आया करते थे। जब सयानी ने आनंद फिल्म (1971) का एक ट्रॉयल शो देखा तो वह अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व और आवाज़ से प्रभावित हुए और तब उन्हें पता नहीं था कि वह अमिताभ ही थे, जो ऑडिशन के लिए आए थे। इस फिल्म में अमिताभ के साथ राजेश खन्ना ने काम किया था।
लेकिन जो हुआ अच्छा हुआ
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अमीन सयानी कहते हैं कि अमिताभ एक अवार्ड समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे और उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए तीन बार ऑडिशन के लिए रेडियो स्टेशन जाने की बात कही और कहा कि उन्हें ऑडिशन में बैठने भी नहीं दिया गया। मैं सुनकर चौंक गया। बाद में जब मैंने उनका साक्षात्कार किया तो हमने इस पर लंबी चर्चा की और हंसे।
लेकिन इतना सब होने के बावजूद रेडियो एनाउंसर सयानी का मानना है कि जो हुआ, वह अच्छे के लिए हुआ। उन्होंने कहा - हालांकि आज मुझे इसे लेकर खेद भी होता है, लेकिन मुझे लगता है, जो हुआ, वह हम दोनों के लिए अच्छा हुआ। मैं सड़क पर होता और उन्हें रेडियो पर इतना काम मिलता कि भारतीय सिनेमा अपने सबसे बड़े सितारे से वंचित रह जाता।
बहरहाल अपने नए कार्यक्रम के साथ रेडियो पर वापसी कर रहे सयानी इस बार प्रसिद्ध अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, खलनायकों, हास्य कलाकारों और चरित्र अभिनेताओं से जुड़े ऐसे ही दिलचस्प किस्से पेश करेंगे। यह कार्यक्रम रेडियो सिटी पर हर रविवार शाम प्रसारित होगा। प्रख्यात रेडियो प्रस्तोता अमीन सयानी का मानना है कि सस्ते, सहज सुलभ और खूबसूरत माध्यम के रूप में रेडियो हमेशा मौजूद रहने वाला है, यह कभी नहीं मरेगा।
बिनाका गीतमाला के सुनहरे दिन
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गौरतलब है कि ऑल इंडिया रेडियो के चर्चित कार्यक्रम बिनाका गीत माला के प्रस्तोता के रूप में पहचानी जानी वाली लोकप्रिय मखमली आवाज के मालिक अमीन कहते हैं कि आज म्यूजिक प्लेयर और आईपॉड जैसे डिजिटल उपकरणों के आ जाने के बाद भी रेडियो का अस्तित्व पहले की तरह कायम है, इसकी लोकप्रियता को कोई खतरा नहीं है। रेडियो जगत के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए अमीन कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि रेडियो के अस्तित्व को कभी भी खतरा होगा। एफआईसीसीआई-केपीएमजी मीडिया एंड एंटरटेंमेंट रिपोर्ट 2014 के मुताबिक 2013 में रेडियो सुनने वालों की संख्या में 12 से 14 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।यह बेहद सस्ता माध्यम भी है। आपको इसे सुनने के लिए किसी महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवश्यकता नहीं है। यह बेहद खूबसूरत माध्यम है, सहज उपलब्ध है, उपयोग करने में आसान है और सबसे बड़ी बात यह मनोरंजन और सूचनाओं का सबसे पुराना माध्यम है।
अमीन को उनके भाई ने ऑल इंडिया रेडियो बंबई (मुंबई) में काम दिलाया था। अमीन ने कहा कि मुझे अपनी स्क्रिप्ट लिखनी पड़ती थी, पूर्वाभ्यास करना पड़ता था, तब जाकर मैं सीधे प्रसारण से जुड़ता था। मैं हर चीज को बड़ी ही खूबसूरती से अपने कार्यक्रम में जोड़ता था। अमीन अपने समय के मशहूर और लोकप्रिय रेडियो प्रस्तोता रहे हैं। उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए हैं, लेकिन युवा रेडियो जॉकीज (आरजे) की सराहना करने में भी वे पीछे नहीं हैं। अमीन के नए कार्यक्रम का उत्सुकता के साथ इंतज़ार है।
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प्राध्यापक,दिग्विजय पीजी कालेज,
राजनांदगांव
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