पुरुषोत्तम विश्वकर्मा का व्यंग्य - प्याज रोटी की उधारी

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प्याज रोटी की उधारी       आज जब मैं चाचा दिल्लगी दास से मिलने उनके घर गया तब चाचा प्याज रोटी खा रहे थे। मुझे देख कर उन्होंने अपनी आंख में आ...

प्याज रोटी की उधारी  

    आज जब मैं चाचा दिल्लगी दास से मिलने उनके घर गया तब चाचा प्याज रोटी खा रहे थे। मुझे देख कर उन्होंने अपनी आंख में आये आंसू पोंछे और बोले कि शायद तुम सोच रहे होंगे कि ये आंसू प्याज की तीव्र गंध से आ रहें हैं,तो मैं कहूँगा कि तुम्हारा सोचना बिलकुल गलत। शायद तुम फिर सोचोगे कि मेरी आँखों में आंसू इस वजह से आ रहें हैं कि मैं प्याज रोटी खाते हुए वर्तमान हालात को कोस रहा हूँ कि जिसने मुझसे दूध ,दही, घी, मख्खन,सब्जी,दाल छीन कर ये प्याज रोटी थमा दी,तब भी मैं कहूँगा कि फिर गलत। इसके अलावा मैं और कहूँगा कि तुम जैसे नीमअक्ल लोग मुझ जैसे जहीन शख्स के आंसूओं के बहने का कारण ऐसे कयास लगा लगा कर क्या खाक ढूंढोगे। अब तुमने अगर सोचना बंद कर दिया हो तो मैं खुद ही बताये देता हूँ कि मेरी आँखों में ये आंसू क्यों आये,और चाचा प्याज रोटी खाते खाते ही बताते चले गए।

     चाचा बोले कि बरखुरदार प्याज रोटी खाते हुए मुझे वो वेदपुर वाला वाकया याद हो आया था। जहां आम चुनावों के पूर्व देश की एक बहूत बड़ी राजनेतिक पार्टी की सरबरा ने गाँव की एक ललिता बहन घर जाकर उससे पूछा कि बहनजी आपके यहां आज क्या पकाया हैं,तो ललिता बहन घर के अन्दर गई और झट से प्याज रोटी ले आई।बस तब से ही मैं सोच रहा हूँ कि यह सब ‘उदय भारत’का ही कमाल हैं,जिसकी ही कोई कमजर्फ किरण ने नितांत गरीब ललिता बहन के कच्चे माकन के घास पूस के छप्पर के छिद्रों में से घुस कर प्याज रोटी की शक्ल अख्तियार कर ली और ‘फिलगुड‘का अहसास करने लगी होगी ।अगर एक गरीब के घर में रोटी मयस्सर है तो फिर इससे बड़ी बात और क्या हो सकती हैं।रोटी के साथ में ये प्याज जैसी चीज जो कभी स्टेटस सिम्ब्ल हुआ करती थी अगर मिल जाए,फिर तो बात ‘फीलगुड’से भी काफी आगे निकल जाएगी।भतीजे अगर यह कोई पूर्व प्रायोजित मामला न हो कर एक सच्चाई थी कि किसी गरीब के घर में सारे घरवालों के भर पेट खाना खा लेने के बाद भी रोटी बची हुई मिल गई तो यह इस मुल्क के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि हैं।  

    चाचा आगे बोले कि भतीजे जब टेलीविजन पर देखा कि ललिता बहन अपने घर के अन्दर से रोटी प्याज ले आकर आई तो मुझे खासा ताअज्जुब हुआ कि उसके घर में पिज्जा और बर्गर क्यों नहीं मिला और जब उन्होने दुस्साहस कर के प्याज रोटी खायी तो में बड़ी उलझन में पड़ गया कि ‘रोड शो’ का ख्याल रखते हुए उन्होंने ये प्याज रोटी खा तो ली मगर हजम कैसे होगी।बेशक उन्होंने बतौर एहतियात के प्याज रोटी खाने से पूर्व कोई न कोई ‘प्रति विषज’दवा जरूर खायी होगी। भतीजे मेरी आँखों में ये आंसू यूँ बेबात ही नहीं आये।तुम्हें तो पता होगा कि हम गरीबों के घरों में रोटियां गिनती की ही बनती हैं,उनमें से ही अगर कोई रोटी मांग ले या बंटा ले तो फिर तय है कि घर के किसी न किसी एक सदस्य को तो भूखा रहना ही पड़ता हैं,जिसकी चपेट में अक्सर गृहणियां खुद ही आती हैं जो न तो घर के कमाऊ सदस्य को भूखा रखना चाहती हैं और न बच्चों को भूख के मारे रोते हुए देख सकती हैं।     

        चाचा आगे बोले कि चलो ललिता बहन ने तो अपना फर्ज निभा दिया मगर उससे रोटी के नाम से वोट मांगने वाली इससे उऋण कब होगी अब यह देखना बाकी हैं। तुमने देखा होगा कि उनके प्रतिपक्षियों ने तो बिजनौर की होटल में जितना खाया था उसका मूल्य चुका दिया वो चाहे पांच साल बाद ही सही,काम से काम कोई उधार तो नहीं रहा । अब वो इस रोटी प्याज का मोल कब और कैसे चुकाएंगी अभी देखना बाकी है,जबकि वो प्याज रोटी उस होटल वाले खाने की तुलना में निश्चित रूप से ज्यादा कीमती थी।

      बरखुरदार अब तुम ही बताओ कि एक गरीब के हिस्से में आयी रोटी कोई छीन कर ले जाये या चुरा कर अथवा मांग कर,एक ही तो बात हैं। इन तीनों ही परिस्थियौं में ही उसको भूखा रहना हैं। इतना सब होने के बाद भी अगर मेरी आँखों में आंसू न आये यह तो कतई मुमकिन नहीं और ये आंसू भी कोई किताबी कहावतों वाले घड़ियाली आंसू न हो कर एक विशुद्ध प्रजातान्त्रिक विचारधारा की स्वतंत्र अभिव्यक्ति हैं।

   चाचा प्याज रोटी को भी बड़ा स्वाद ले लेकर खा रहे थे। न तो उन्हें अपनी अप्रोच प्याज रोटी तक ही महदूद होने का इन्फ्रियरटी कॉम्प्लेक्स हैं और न ही इससे और ज्यादा हासिल करने कि हसरत। हां इतना जरूर हैं कि चाचा ब्रांड लोग तब जरूर हरकत में आ जाते हैं जब इन्हें लगता हैं कि वो इस प्याज रोटी से ही मरहूम होने जा रहे हैं,और हरकत में भी इतनी शिद्दत से आते हैं कि ईंट से ईंट बजा देते हैं।दिन भर की मजदूरी ख़राब कर के अपने तख़्तनशीन तानाशाह को धुल चटाने के लिए पोलिंग बूथ पर जा धमकते हैं और इनकी एक ही हल्की सी ठोकर में बड़े बड़े तख्तोताज उलट-पलट जाते हैं।

     चाचा ने प्याज रोटी खायी,एक लोटा पानी पीया,कुर्ते कि आस्तीन से मूंह पोंछा और एक जोरदार डकार ली, ऐसी डकार तो कभी किसी भृष्ट नेता या रिश्वतखोर अफसर ने किसी पञ्च सितारा होटल में कोई लज़ीज़ से लजीज़ खाना खा आकर भी नहीं ली होगी।चाचा डकार लेने के बाद बोले,भतीजे ये प्याज रोटी सिर्फ पेट कि भूख ही तो मिटा सकती हैं,सत्ता की क्षुधा नहीं। सत्ता की भूख के लिए अगर इसे गटक लिया तो यकीनन ये बेकार ही जाएगी।

      चाचा किसी फ़िल्मी संवाद की तर्ज पर बोले कि यह हल,हथौड़ा,कुदाल,फावड़ा,गैंती चला के पसीना बहा कर कमाई गई रोटी हैं ,इसे हज़म करने के लिए फिर से यही औजार चलाने पड़ते हैं,मुझे तो शक हैं कि राजनीतिक पार्टी के चंदे पर पलने वाले पेट इस रोटी को पचा भी सकेगे या नहीं,और इसके साथ साथ यह प्याज रोटी पेट कि भूख से निढाल हो चुकी हड्डियों को तो सहारा दे सकती हैं मगर अंतर्कलह से कमजोर हो रही पार्टी को संबल कदापि नहीं दे सकती। इतना कह कर चाचा उठे और यह कहते हुए चल पड़े कि बस इतनी देर आराम कर लिया,अब चलते हैं,शाम की प्याज रोटी का भी तो इंतजाम करना हैं।  

                            पुरुषोत्तम विश्वकर्मा 

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रचनाकार: पुरुषोत्तम विश्वकर्मा का व्यंग्य - प्याज रोटी की उधारी
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