अजय गोयल की कहानी - सारथी ने कहा, “गधों हर बोतल में समन्दर”

SHARE:

सारथी ने कहा, ' गधों हर बोतल में समन्दर' ' - अजय गोयल टेलीविजन कार्यक्रम ' 'कौन बनेगा स्वर्णपति'' की हॉट सीट प...

सारथी ने कहा, ' गधों हर बोतल में समन्दर' '

- अजय गोयल

टेलीविजन कार्यक्रम ' 'कौन बनेगा स्वर्णपति'' की हॉट सीट पर बैठ उदय को लगा जैसे वह सूरज के सामने हैं। जीते जी कथा पुराण बन चुके सिने अभिनेता अजीत कार्यक्रम प्रस्तोता था। उसके लम्बूतरे चेहरे और लम्बी चौड़ी कद काठी की पिछली पीढ़ी चारण रही थी। उसके माथे पर बल पड़ने पर त्रिपुंड की आकृति का भ्रम होता। किसी अवतार की छवि के साथ आकाश में सुराख करने का हौसला रखने वाले जनमानस ने उसका रिश्ता महाकाल से जोड़ने में कोई देरी नहीं की। लोग उसके जीते जी मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना करने लगे।

दादा नाना बन चुकने की उम्र में पहुँचने के बाद धीरे-धीरे धक-धक करती युवा प्रेमी की फिल्मी भूमिकाओं में अजीत असंगत लगने लगे। इस मोड़ पर उन्हें अहसास हुआ कि कुबेर जैसा खजाना सफलता का परचम लहराती उनकी फिल्में दे चुकी है। उनके पास यदि कुछ नही है तो वह अलादीन का चिराग है। या कोई पारस पत्थर। जो उल्टी गंगा बहा सके। डूबते सितारे को रोशन कर सके। लेकिन वक्त ने उन्हें एक नयी भूमिका परोस दी। वे विज्ञापनों में चहचहाने लगे। इन सब के लिए उम्र के साथ गंजे हो गये सिर पर बालों की पुन: अजीत ने रोपाई कराई। प्राचीन भारतीय पद्धति पंचकर्म द्वारा यौवन प्राप्ति के लिए जमीन असमान एक कर दिया। झुर्रियों के लिए सर्जन से चेहरे पर झाडू लगवाई। कुल मिलाकर अपनी इस मैराथन दौड़ से वे वें दशक से उतर पाँचवें दशक का भ्रम देने में कामयाब हो गये। अब टेली स्कीन पर विज्ञापनों में बड़े बंगलों में उगे आमों के पेड़ों से कच्ची अमिया तोड़ते बूढ़े अजीत को देख जनता अपने बचपन की यादों की जुगाली करती हुई सोती। कपड़े खरीदते वक्त ' 'मुझे नो गधा बनाईग' ' जैसे विज्ञापनी टपोरी नुमा गानों को शिक्षाप्रद मानकर जनता नैतिकता का अपना पैमाना गढ़ती। हद प्यास बुझाने के विज्ञापन में होती। बियाबान सूखे जंगल में भटकते पस्त अजीत को देख सिहरन होती। तभी मानवरहित एक ड्रोन यान किसी देवदूत की तरह विज्ञापन में विदेशी ब्रांड की रंगीन पानी की ठंडी बोतल लेकर उन तक पहुंचता। जिसे पी पुर्नजन्म सा पा चुके अजीत दहाड़ते, ' 'हर बोतल में समंदर''। इसके साथ सूखा जंगल भी हरा-भरा हो जाता। प्यास के इस विज्ञापन में हर बार कुछ नया जुड़ा होता। कभी साहस से लबरेज कोई युवती होती, कहती, 'मैं एवरेस्ट पर इस समंदर को गटक इतिहास रचना चाहती हूँ। तो कभी स्कीन पर कृतज्ञता व्यक्त करता कोई बुजुर्ग कहता होता, 'मेरा अभिमत है ये। लेकिन पैसों के लिए अंतस से निकलती अजीत की दहाड़ से बेचारी जनता नये फलसफे के गड्‌ढे में असमंजस से भरभरा जाती।

बची-कुची कसर सर्वेक्षणों ने पूरी कर दी। सयानों ने कम्यूटर देवता की आभासी दुनिया में जाकर वास्तविक दुनिया की नब्ज टटोली। परिणाम हैरान करने वाले थे। पढ़े-लिखों ने अजीत में सूरज चाँद निचोड़ दिए। पिछले हजार साल के ठेकेदार बन इस कालखण्ड में पैदा ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा कलाकार उन्हें घोषित कर दिया। इस रुतबे से अजीत जैसे सूखती बूँद से मोती बन गये। इसके साथ टीवी चैनलों को कोई भूली-बिसरी जंग याद आ गयी। चैनल पंडितों और प्रायोजकों ने मिलकर हजारों कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की। लेकिन अजीत को संजीवनी बूटी लगा, ' 'कौन बनेगा स्वर्णपति''। पश्चिम जगत का यह सफल कार्यक्रम था। इसके साथ कोई मौलिक सोच की बेवकूफी नहीं थी। नकल में बुद्धिमत्ता का उम्मीद भरा किनारा था। कलयुगी महाकाल को विज्ञापनों में दौड़-भाग अपनी पिछली इज्जत चैक की तरह भुनाने जैसी लग रही थी। इसलिए स्वर्णपति कार्यक्रम के लिए सर पर कफन बाँधा। जन की भाषा को हथियार बनाया। और... हर घर ऑगन में कोहराम मचाने जनता टी०वी० के परदे पर उतर आये। कार्यक्रम का दावा हर किसी को स्वर्णपति बनाने का था। छ: प्रश्नों का जाल था। हर प्रश्न के उत्तर में एक किलो सोने का ईनाम हाथों-हाथ था। छठे प्रश्न के लिए 5 किलो सोना अतिरिक्त था। इस जुए जैसे प्रपंच के लिए एक और खिताब गढ़ा गया ' 'सर जी की क्लास''। यह सप्ताह में चार दिन रात आठ बजे प्रसारित होती। जिसकी आभासी सरहदें सूरज-चंदा तक थी। इसमें सम्मिलित दर्शकों की संख्या सितारों जितनी हो जाती।

सर जी स्वयं टी०वी० स्कीन पर अवतरित हो बुलावे का पासा फेंकते। पासे के रूप में साधारण सा प्रश्न होता। जैसे भारत के प्रथम राष्ट्रपति किस प्रदेश में पैदा हुए। उत्तर देने के लिए सप्ताह भर का समय नत्थी होता। गरीब जनता को अपना सोया मुकद्दर यकायक उठ बैठा लगता।

उत्तरों की बाढ़ आ जाती। उत्तर विशेष मूल्य वाले नम्बर से एस एम एस द्वारा दिया जा सकता था। इस पहले ही कदम में कार्यक्रम का खर्चा कई गुने रूप में चैनल के पास जमा हो जाता। इसके साथ नोटों के गट्ठर टी०वी० चैनल के पास प्रायोजक चैक के रूप में भेज कर गंगा नहाते। भव-सागर से पार पाने का इंतजार करते। लाखों उत्तरों में से कम्प्यूटर देवता किसी अबूझ समीकरण के द्वारा पाँच भाग्यवानों के नाम निकालते। उनके लिए जीते जी स्वर्ग गमन के अनुभव की शुरूआत हो जाती। उड़न खटोले के टिकट उनके घर पहुँचते। पाँच सितारा होटल उनकी अगवानी में बिछ जाता। सर जी की क्लास में उनके तांडव में सहभागी बनने के लिए बस एक भव बाधा प्रतियोगियों के लिए शेष रह जाती। क्लास मंच के नीचे काल-भैरव के रूप में कम्प्यूटर देवता विराजमान रहते। एक समय में केवल एक ही प्रतियोगी वैतरणी पार कर क्लास मंच तक पहुँच सकता था। इसके लिए कम्प्यूटर देवता प्रश्न पूछते।

उदय के साथ अन्य प्रतियोगियों के लिए यक्ष प्रश्न था। ' 'जहाँगीर, अकबर, औरंगजेब और शाहजहाँ को उनके कार्यकाल के अनुरूप क्रम में लगायें।''

' चिड़िया की आँख में निशाना साधने के लिए उसे जब तक ताको जब तक वह आँख हाथी के बराबर न नजर आने लगे।'' सफलता का यह मंत्र उदय को पता था। पिछले साल से कम्प्यूटर देवता के की-बोर्ड पर सोते जागते उसने इसका अभ्यास किया था। उसकी अंगुलियों ने पलक झपकते ही अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब नाम क्रम से लगाकर स्क्रीन पर सजा दिये।

अचानक उसे लगा कि जैसे सूरज ने उसे देखना शुरू कर दिया है। सभागार की समस्त लाइटें उसकी तरफ मुड़ गयी हैं। शेष प्रतियोगी अंधेरे में डूब गये हैं। कैमरों ने उस पर नजरें गड़ा दी हैं। उपस्थित जनसमूह तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उसका स्वागत कर रहा है। चमक2ती-दमकती लाल नीली पीली बत्तियाँ उसकी राह प्रशस्त कर रही हैं।

मंच पर खड़े कलयुगी महाकाल सर जी ने उसका बाँहें फैलाकर स्वागत किया और हॉट सीट पर बैठाया। ' 'मैं अजीत इस 'वेलेंटाइन डे' सप्ताह में कार्यक्रम ' 'कौन बनेगा स्वर्णपति' ' में आपका स्वागत करता हूँ। इस बार इस कार्यक्रम में युवा वर्ग को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है। जिनकी पहचान कम्प्यूटर इंजीनियर, डॉक्टर या बिजनेस व्यवसायी के रूप में होती है। इनके सपने आसमान छूते हैं। इनके ज्ञान में समंदर की गहराई है। तभी इनकी उपस्थिति अमेरिकी अंतरिक्ष विजयी अभियानों में 2० प्रतिशत तक रही है।' '

इस घोषणा के बाद अजीत कुछ क्षण रूके। सभागार की तरफ देखकर पुन: बोले, ''मुहब्बत में नहीं है फर्क, जीने और मरने का। उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले। जनाब गालिब के इस शेर को लिखकर एक लिफाफे में रख कभी मैंने अपना प्रेम निवेदन किया था। जिसका परिणाम आप जानते हैं। प्रेम सींचता है। ज्ञान जीवन को साधता है 1 अपने इसी ज्ञान की परीक्षा देने के लिए हॉट सीट पर आज है उदय। जो एक कस्बे में जन्में हैं।

- ' 'खेल के नियम मुझे मालूम है। उदय बीच में बोल पड़ा।''

उसके उतावलेपन पर सर जी कुछ कहते-कहते रुक गये। सभागार हँसने लगा।

- ''ठीक है। पहला प्रश्न उदय आपके सामने रखे कम्प्यूटर देवता की स्कीन पर। पढ़ें। दास प्रथा को उखाड़ फेंकने वाले अब्राहम लिंकन अमेरिका के किस नंबर के राष्ट्रपति थे?''

'अब्राहम लिंकन अमेरिका के 16 वें राष्ट्रपति थे।'' उदय ने लौटती डाक की तरह उत्तर दिया।

उदय द्वारा सही उत्तर देने पर सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से लपालप था।

दूसरा प्रश्न नेपोलियन बोनापार्ट से सम्बन्धित था।

जिसका उत्तर उदय ने सही दिया।

तीसरा प्रश्न पूछने से पहले सर जी ने कार्यक्रम में ब्रेक पर जाने की घोषणा की।

इसके बाद टी०वी० स्कीन पर विज्ञापनों की गंगा काफी देर तक उफनती रही थी।

- ' 'कौन बनेगा स्वर्णपति में आपका एक बार फिर से स्वागत।'' पुरजोर आवाज में सर जी की घोषणा के साथ कार्यक्रम की वापसी हुई।

उदय हैरान था। तीसरे प्रश्न पूछने की सरजी को जल्दी नहीं थी। वे सभागार को बताने लगे, ' 'उदय एक रसायन विज्ञान के प्रवक्ता की संतान है। जो स्वभाव से वैज्ञानिक है। जीवन के लिए उनका मंत्र है, 'पानी रोको। सूरज सोखो'।''

इसके साथ स्ट्रडियो की विशाल स्क्रीन पर उदय अपने कस्बे की गलियाँ-बाजार देखने लगा। जिसमें गली के बाहर पन्दू पान वाले से लेकर जमील प्रेस वाला तक था। स्क्रीन पर अपना दुमंजला घर दीखने पर उदय सर्तक हो गया। घर में माँ मुस्करा रही थी। पिता साथ थे। उसे मालूम था, पिता जी के माथे पर बल पड़ने पर त्रिपुंड जैसा आभास आ बैठता है।

- लम्बे समय से एक महत्वपूर्ण कार्य में जीवन के लिए जुटे हैं उदय के पिता। पृथ्वी पर सूरज के सोखते हें पेड़। पत्तियों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल पदार्थ प्रकाश संश्लेषण कर सूरज के ताप को सहेज लेता है। उदय के पिता भी सूरज सहेजने के लिए क्लोरोफिल जैसा रसायन बनाना चाहते हैं। सूरज को विद्युत में संग्रहित कर बैटरी में उतारना चाहते हैं। यह एक अक्षय विकल्प होगा। और जीवन के लिए लम्बी छलांग भी। क्योंकि हमारा एक दिन हमारी पृथ्वी के द्वारा पिछले दस हजार साल में जमा खर्चने पर चल रहा है। उफ।''

अजीत विषय की गम्भीरता के कारण थक लिये। उनके इशारे पर सभागार तालियों से भर गया।

तभी सर जी ने कार्यक्रम की दिशा बदली। उदय के लिए तीसरा प्रश्न कम्प्यूटर देवता की स्क्रीन पर था। जिसमें गालिब की जन्म तिथि पूछी गयी थी।

- ' दिसम्बर-1 797 को इस अजीम शायर का जन्म हुआ था।'' उदय का उत्तर था।

इस सही जवाब से सभागार तालियों के सैलाब में बहने लगा। इस बीच एक बार फिर से ब्रेक पर जाने की सर जी ने घोषणा कर दी।

कार्यक्रम की वापसी पर इस बार सर जी बिना कोई भूमिका बनाए प्रश्न पूछने पर आ गये।

- ''उदय जी तैयार।''

- जी सर।

- चौथा प्रश्न। आपके कम्प्यूटर देवता की स्क्रीन पर।

''किस सिने स्टार का वेतन उस समय के वायसराय के वेतन से अधिक था।''

उदय को थोड़ा वक्त लगा। कुछ सोचकर बोला, ' 'सुलोचना। जिनका नाम रूबी मार्यस था''।

कम्प्यूटर देवता दीपावली मनाने लगे। सभागार में तालियों का झंझावत था। उदय को लगा जैसे रेगिस्तानी कैक्टस पर आम लटकने लगे हैं।

-''उस समय सुलोचना पहली महिला सिने अदाकारा थी। फिल्मों में महिलाओं का किरदार भी प्रारंभ में पुरूषों द्वारा किया' जाता था। किसी तरह से सुलोचना काम के लिए तैयार हुई थी। अब तो हर घर की ललना फिल्मी आम्रपाली हो जाना चाहती है।'' आखिरी शब्द सर जी ने व्यंग्य में कहे थे।

सभागार हँसने लगा था।

' 'महान है हमारा सिनेमा। किसी के माथे पर त्रिपुंड का भ्रम बिराजे तो उसे महाकाल का पद दे देता है। एक झूठे किरदार अनारकली के सामने शहंशाह अकबर को गली-मौहल्ले जैसा नेता बनाकर धूलधूसरित कर देते है।' ' मन में उठी इस तरंग को उदय कह पाता इससे पहले सर जी ने पूछा, ' 'आपके पिता पिछले बीस वर्षों से सूरज सोखने के लिए रसायन ईजाद करने में जुटे हैं। इतनी सतत ऊर्जा उन्हें मिलती कहाँ से हैं।'' चुप रहा उदय। सूरज को ताकने की कोशिश करता रहा।

- ' 'बताऐं। आज हर आदमी जब हर क्षण को रूपये से ज्यादा डालर में तब्दील कर देना चाहता है। ऐसे समय...।''

गहरी सांस लेकर उदय बोला ' 'पिताजी जीवन की उड़ान में नये पंख लगाना चाहते हैं। वे कहते हैं, अपना समन्दर हमें अपनी कुव्वत से भरना पड़ेगा।' '

सर जी स्तब्ध थे।

इस असमंजस की स्थिति को सभागार ने तालियों से भर दिया।

अगला पासा फेंकते हुए सर जी बोले, ' 'उदय! मानो आप 1० किलो सोना जीत गये। इसका आप क्या करेंगे स्वर्णपति बनकर...।''

यह प्रश्न सर जी लगभग हर प्रतियोगी से पूछते। प्रतियोगी भावुक हो जाता। अपने दुखों का पिटारा खोलकर कार्यक्रम में बैठ जाता। उसकी आँखों में आँसू होते। घर बैठे दर्शकों की आँखें भी नम हो जाती। इस फिल्मी मोड़ पर ब्रेक पर जाने की सर जी अचानक घोषणा कर देते। इस तरह टी०वी० चैनल की जमकर विज्ञापनों से कमाई होती।

लेकिन इस प्रश्न के लिए जैसे उदय तैयार था। शान्ति भाव से बोला, ' 'सभागार में उपस्थित जो युवा मेरे दो प्रश्नों का उत्तर देगा, मैं अपना जीता स्वर्ण उसे दे दूँगा।''

दूसरी बार सर जी स्तब्ध थे। उन्होंने जल्दी अपने को व्यवस्थित किया। सभागार की ओर देखा। पूछा, ' 'क्या आप इसके लिए तैयार हैं ?' '

तालियों के साथ सभागार ने प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया।

इसके बाद फिर से ब्रेक पर जाने की सर जी ने घोषणा की। शायद वे टी०वी० चैनल अधिकारियों से विमर्श करना चाहते थे।

कुछ देर बाद कार्यक्रम की वापसी पर बोले, ''ऐसा आज तक कार्यक्रम में हुआ नहीं। ऐसा प्रस्ताव भी नहीं आया। लेकिन मैं इस कार्यक्रम को नये पंख देना चाहता हूँ। चैनल अधिकारियों को मुश्किल से मना पाया हूँ।'' क्षण में सभागार की हर सीट हॉट सीट में परिवर्तित हो चुकी थी।

- ' 'मेरे प्रश्नों के उत्तर इस लिफाफे में हैं।'' उदय जैसे पूर्व योजना बनाकर आया था।

लिफाफा लेते हुए सर जी ने सभागार की तरफ देखते हुए कहा, ' 'आप तैयार हैं।''

- ' 'जी सर।'' सभागार की हर्ष ध्वनि थी।

- पूछें। उदय।

- ' 'एक भारतीय के रूप में नौ ग्यारह को आप कैसे याद करते हैं।' ' पहला प्रश्न उदय ने पूछा। सामान्य से लगने वाले पहले प्रश्न पर सभागार में आश्चर्य भर गया था।

- ' 'साथियों! आप सबके हाथों में की-पेड' पहुंचाया जा चुका है। जिसके माध्यम से आप अपने उत्तर कम्प्यूटर देवता तक भेज सकते हैं। आप को एक मिनट में उत्तर देना है। आप का समय शुरू होता है अब।'' सर जी ने घोषणा की। इसके साथ घड़ी की टिक-टिक की आवाज सभागार में सुनाई देने लगी।

एक मिनट से कम समय में कम्यूटर देवता पहले प्रश्न का उत्तर लगभग सभी उपस्थित युवाओं से ग्रहण कर चुके थे। इस बीच सर जी ने लिफाफे में से निकालकर पहले प्रश्न के उत्तर को पढ़ा।

उदय को लगा जैसे सर जी के दमकते चेहरे का सूर्य क्षीण पड़ गया है।

एक लम्बी सांस लेकर सर जी सभागार की ओर मुखातिब हुए। बोले, ' 'साथियों! नौ ग्यारह को अमेरिकी भीमकाय -खूकिन टावर्स' एक आतंकवादी गतिविधि का शिकार हुए। यह जब जानते हैं। लेकिन एक हमारा भी नौ ग्यारह है। गुलाम भारत के स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में उन्नीसवीं शताब्दी की एक नौ ग्यारह को 'विश्वधर्म सम्मेलन' में हमारी सांस्कृतिक पताका फहरा दी थी।''

सभागार स्तब्ध था। तालियाँ बजाना भूल गया था।

- ''अपना दूसरा प्रश्न पूछें उदय।'' सर जी ने कहा।

प्रश्न पूछने से पहले उदय ने सभागार की ओर देखा। लंबी सांस लेकर तैयार हुआ। बोला, ' 'दोस्तों! इस वेलेंटाइन डे उत्सव के सप्ताह में आपसे द्वितीय विश्वयुद्ध की याद साझा करना चाहता हूँ। मित्र देशों की सेनाओं के लिए रसद कई दुर्गम स्थानों पर युवा गधों ने ढोई थी। बड़े मेहनती होते हैं गधे। वे न होते तो इतिहास शायद कुछ और हो सकता था। मित्र देशों की सेनाओं की विजय के लिए बेआवाज गर्क हो गये गधे। वे चुपचाप काम कर सकें इसके लिए सेना हर गधे पिट्‌ठू का इस्तेमाल करने से पहले सर्जरी द्वारा उसका स्वर तंत्र निकाल लेती इससे गधे की पहचान गुम हो जाती। युवा गधे अपने प्रिय को बुलाने के लिए रेंकते हैं। रेंक कर अपना 'वेलेंटाइन डे' मनाते हैं। मेरा दूसरा प्रश्न 'वेलेंटाइन डे' से संबंधित है। 'वेलेंटाइन डे' उत्सव का हमारे देश के नामांकरण भारत से क्या संबंध हैं।

सर जी ने लिफाफे में से निकालकर दूसरे प्रश्न का उत्तर पढ़ा। एक मिनट बाद सभागार से कम्प्यूटर देवता के पास दूसरे प्रश्न के कुछ उत्तर आए थे। जो केवल अनुमान या तीर-तुक्के से अधिक नहीं थे।

सर जी गहरी सांस लेकर बोले, ' 'साथियों! हम अपने समंदर से पीठ किए हुए हैं। ऋषियों को भूल चुके हैं। अपने उत्सवों का हमें अता-पता नहीं है। कण्व ऋषि के आश्रम में राजा दुष्यन्त ने शकुन्तला के साथ मदनोत्सव मनाया था। जो आज का 'वेलेन्टन डे' उत्सव है। जिससे भरत पैदा हुआ। भरत ने अपने बचपन में शेर के दाँत गिने थे। इन्हीं भरत के नाम पर अपने देश की पहचान बनी।' '

सिहर उठा था सभागार।

कार्यक्रम ब्रेक के तिलिस्म में एक बार फिर स्थगित हो गया। स्क्रीन पर विज्ञापन चहकने लगे।

विज्ञापनों में सभागार की विशाल स्क्रीन पर सर जी बार-बार आकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली ब्रांड के लिए ' 'हर बोतल में समन्दर'' कह दहाड़ रहे थे।

इस तिलिस्म को भेदने के लिए किसी मंत्र का आविष्कार अभी शेष था। उदय क्लास मंच से उठा आया।

- अजय गोयल

निदान नर्सिग होम

फ्री गंज रोड हापुड़ - 2451०1

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अजय गोयल की कहानी - सारथी ने कहा, “गधों हर बोतल में समन्दर”
अजय गोयल की कहानी - सारथी ने कहा, “गधों हर बोतल में समन्दर”
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_20.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_20.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content