28 - मनोकामना कस्तूरी फिर आज ‘मनोकामना' में आई है। मनोकामना जहाँ दिल की मुरादें पूरी होती हों। यह नाम किसी मेटरनिटी अस्पताल के लिये क...
28 - मनोकामना
कस्तूरी फिर आज ‘मनोकामना' में आई है। मनोकामना जहाँ दिल की मुरादें पूरी होती हों। यह नाम किसी मेटरनिटी अस्पताल के लिये कितना सटीक है। आज कस्तूरी अपनी मालकिन के साथ यहाँ आई है। यहाँ के डाक्टर मालकिन के पति के परिचित हैं। मालकिन गर्भवती होने के बाद अपना पहला चेकअप कराने आयीं है। बडे़ घरों की औरतें अकेली कहीं आती जाती नहीं। कोई नौकर उनके साथ हो तो यह शान भी है और ज़रुरत भी, इसीलिये कस्तूरी साथ है। कार से उतर कर मालकिन को सहारा देते हुए जब वह अस्पताल के बडे़ दरवाजे की और बढ़ी तो अस्पताल की बुलन्द इमारत पर वही साइन बोर्ड ‘‘मनोकामना मेटरनिटी अस्पताल'' शान के साथ लटक रहा था जिसे कस्तूरी ने पहले भी देखा था जब वह पहली बार इस अस्पताल में आई थी। तब यह साईन बोर्ड इस कमजो़र ग़रीब लाचार औरत का मजा़क उड़ाता मालूम हुआ था।
वेटिंग हाल तक पहुँच कर कस्तूरी वहीं एक बैंच पर बैठ गई और मालकिन अन्दर डाक्टर के पास चेकअप के लिये चली गई। कस्तूरी ने सारे वेटिंग हाल पर एक नज़र डाली- यहाँ कितनी सुन्दरता है। बेंच के अलावा सोफे भी लगे है, हाल के कोनों में बडे बडे फूलदान रखे हैं। खूबसूरत बच्चों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें लटक रही है। हाल के एक कोने में बड़ी सजावट के साथ भगवान शंकर की मूर्ति रखी है। भगवान गले में विषधर डाले, जटाओं में चाँद सजाये, आँखें बंद किये सौम्य मुद्रा में बैठे हैं। अन्तर्यामी है, इसलिये आँखे खोलकर देखने की ज़रुरत क्या कि उनके इस संसार में क्या हो रहा है, या यहाँ क्या हो रहा है देखना नहीं चाहते। हाल में शांत रहो, पोलियो के, बच्चों की डाइट इत्यादी के बीच बोर्ड लगा था 'यहाँ भ्रूण का लिंग परीक्षण नहीं किया जाता।' कस्तूरी जब पहली बार इस जगह आई थी तो इतनी बदहवास और परेशान थी कि उसे इस बोर्ड के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं दिया था। डाक्टर ने इस ओर इशारा कर उससे कहा था-देखा नहीं, यहां यह काम नहीं होता। चल जा यहां से! हम ईश्वर के काम में दखल नहीं देते। तब से कस्तूरी की जिन्दगी मे ज़बरदस्त मोड़ आ गया था। एक तूफान उठा था सुनामी सा जिसमें उसका सब कुछ बर्बाद हो गया था और वह अपनी मासूम बच्चियों के साथ सड़क पर आ गई थी। ईश्वर के प्रति भावना मनुष्य अपने हिसाब से बनाता है। कस्तूरी ने भगवान को भगवान माना और उनकी इच्छा को शिरोधार्य किया। अपनी बर्बादी की गठरी को सर पर रख, दो मासूम बच्चियों का हाथ थामे, तीसरे को सीने से चिपकाये निकल पड़ी उस राह पर जिस पर अन्धेरे और ठोकरों के सिवा कुछ न था। उसकी कागज़ की नाव को मालकिन के द्वार पर किनारा मिला था। तीसरी बेटी के जन्म पर न उसे दुःख हुआ था न कोई खुशी। ईश्वर की इच्छा मे हस्तक्षेप न कर उसे आत्मसन्तुष्टि जरुर हुई थी, और यह उसकी लाचारी भी थी।
पति का कठोर स्वर उसके कानों में गूँजा- अबकी बेटा नहीं जनी तो निकाल दूँगा घर से। कस्तूरी सोचने लगी हे भगवान- तीसरी बार अगर उसे बेटा दे देते तो उनका क्या जाता। मेरे हाथ में क्या था सब आपके हाथ में था। पर आपने मुझ गरीब पर कोई दया नहीं की। तीन मासूम बच्चियों को बिलखता देखते रहे, अकारण मुझे बेघर होता देखते रहे। मेरी तुम पर आस्था का इम्तहान लेते रहे। तुमसे छल करने वालों की तो मनोकामना पूरी करते हो प्रभु पर निष्ठावान की परीक्षा लेते हो। मैं तो तुमसे छल करने में भी असहाय थी। आप पर पूरी श्रद्धा रखती हूँ इसलिये सब सहन कर रही हूँ। मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं।
जब कस्तूरी बहुत परेशान थी, तब उसकी पड़ोसन ने कहा- ईश्वर ने तेरे अन्दर क्या रचा है ‘मनोकामना' जाकर इसका पता क्यों नहीं लगा लेती, आजकल तो सब मालूम हो जाता है। तू भगवान की मर्जी को अँगूठा दिखा दे। लड़का हो तो रखना वर्ना․․․․․। इसका भी इन्तजाम है वहाँ। कुछ पैसे ही तो खर्च होंगे, मैं कुछ मदद कर दूँगी, पर सारे जीवन का आराम हो जायेगा। पर कस्तूरी की किस्मत ऐसी कहाँ थी, डाक्टरों ने इस बोर्ड की ओर इशारा करके कस्तूरी को बाहर निकाल दिया- यहाँ लड़का लड़की जाँचने का काम नहीं होता! हम भगवान के काम में दखल नहीं देते! जा यहाँ से, भगवान पर छोड़। और वह बे आबरु होकर बाहर आ गयी थी। उसे आत्मग्लानि होने लगी थी कि उसने शायद बहुत बड़ी गलती की थी पड़ोसन की बातों में आकर। भला ऐसा भी किसी को करना चाहिये! कि भगवान के काम में दखल दे! उसने अपने आप को कुसूरवार मान कर सब सजाएं भोगने के लिये अपने आप को तैयार कर लिया था। भगवान की मर्जी की खातिर उसने पति की मार, भूख, तेज़ धूप, सर्द रातें, मासूम बच्चियों का बिलखना, घर से बेघर होना, सब कुछ बर्दाश्त कर लिया था। भगवान के प्रति उसने इतनी ईमानदारी दिखाई थी कि, उसकी जगह कोई इन्सान होता तो उस पर तरस खा जाता। पर भगवान तो भगवान है कोई इन्सान थोड़े ही है।
ईश्वर की श्रद्धा की मारी बेचारी कस्तूरी को क्या मालूम कि आज के सभ्य समाज के लोग भगवान को तो अपनी जेब मे लिये फिरते है। वह अपने इन विचारों में उलझी हुई ही थी कि मालकिन की आवाज़ आई- चलो कस्तूरी!
उसने देखा कि मालकिन के चेहरे पर आते समय जो परेशानी के भाव थे उनकी जगह किलकारियाँ मारती खुशी ने ले ली थी। डाक्टर भी मालकिन को छोड़ने बाहर तक आई थी बोली- मुबारक हो! चलो दो बार न सही, तीसरी बार तो भगवान ने सुन ली। अपना ख्याल रखना और रेग्युलर चेक अप कराती रहना।
अज्ञानी लोग तो ठीक है, पर हमारे सभ्य समाज को क्या हो गया कि सरकार की चीख पुकार और प्रकृति के नियमों की जानबूझ कर अनदेखी कर रहे हैं। अपनी इच्छाऐं इतनी संकुचित कर ली हैं कि सिर्फ अपने मतलब के लिये प्रकृति के बुनियादी ढांचे की नींव की एक-एक ईंट निकाल देना चाहते हैं, फिर क्यों न वह भरभरा कर धराशायी ही हो जाय। वे नहीं सोचते कि अगर बेटियां न हुई तो अपने बेटों के लिये बहुऐं कहाँ से लाएंगे। शादी का रस्मो रिवाज समाप्त हो जायेगा दहेज तो दूर बहुएं ऊँचे दामों पर भी उपलब्ध न होंगी। सभ्य समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। आदमी अपनी शारीरिक प्यास बुझाने के लिये अनैतिक साधनों का सहारा लेगा। एड्स और यौन रोगों में हमारे बच्चे सड़ रहे होंगे। एक बड़ी विनाशलीला हमारी भावी पीढ़ी भोगेगी जिनके हम हितैषी बन रहे है।
जब ‘मनोकामना' से चले तो ड्रायव्हर को बिग बाजार रुकने को कहा। कस्तूरी आ यहाँ से कुछ सामान खरीद लें! ‘किड्स वियर' के काउन्टर पर जाकर मालकिन ने कहा- बच्चे के ‘ज़ीरो नम्बर' दो चार अच्छे कपड़े दिखाना और बन्द वाले जूते भी! सेल्समेन ने जब कुछ सेम्पल काउन्टर पर रखे तो मालकिन बोली- अरे भैय्या फ्राक नहीं बाबा के लिये चाहिये!
पीछे खड़ी कस्तूरी अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगी। भगवान से बगावत करने का उसका जी चाहा, पर कैसे करती। उसकी ग़रीबी, उसकी बेबसी, उसके सामने आकर खड़ी हो गयी। उसने अपने आप को समझाया- अरे पगली भगवान को आजकल ग़रीब की ओर देखने की फुर्सत कहाँ! उसके सामने मुँह चिढ़ाता हुआ अस्पताल में लटका बोर्ड लहरा गया ‘‘यहाँ भ्रूण का लिंग परीक्षण नहीं किया जाता''। डाक्टर के कठोर शब्द गूँजे- हम भगवान के काम में दखल नहीं देते, जा यहाँ से। भगवान पर छोड़। कस्तूरी का मुँह कड़वाहट से भर गया। मालकिन ने कार में बैठते हुए कहा- कस्तूरी आज मैं बहुत खुश हूँ, घर चल आज तेरा मुँह मिठाई से भर दूँगी
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