एक कवि सम्मेलन में (हास्य-व्यंग्य) इसे हमारा कुलटा भाग्य कहें या सुलटा भाग्य कि हमें एक कवि सम्मेलन का स्नेह भरा आमंत्रण मिला। देखने में आ...
एक कवि सम्मेलन में (हास्य-व्यंग्य)
इसे हमारा कुलटा भाग्य कहें या सुलटा भाग्य कि हमें एक कवि सम्मेलन का स्नेह भरा आमंत्रण मिला। देखने में आमंत्रण कम किसी डाकू का ख्खत अधिक लगा। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे जिन्होंने उस आमंत्रण पत्र की भाषा को सुसज्जित किया। पत्र कुछ इस प्रकार था- कवि हम लोगों ने एक कवि सम्मेलन कराने का निर्णय किया है, आप पधारकर कविता पाठ करें।
पत्र को यदि ऐसे समझा जाए तो-
अरे ओ कवि, अपण ने तुम जैसा कवि लोगन कू सुणवा के लिए एक कवि सम्मेलन करवायो है जल्दी पधार जाइयो वरना मैं जाणत हूं तू रोज सब्जी लेवा बाजार जावे है... नी आयो तो किडनेप कर लूंगो। पत्र के नीचे सम्पूर्ण आयोजन समिति के सदस्यों के इतने नाम और दूरभाष थे कि कवियों की संख्या कम आयोजन समिति के सदस्य अधिक थे मानो हर कवि अपनी श्रद्धानुसार जो भी दान-पुण्य करेगा ये उसे मिल बांटकर खा-पी लेंगे।
जो सज्जन पत्र लेकर पधारे वे भी किसी डाकू से कम नही थे। पहले तो हम उन्हें देख घबराए एवं दौड़कर सीधे अंदर घुस गए हमें लगा कि ओसामा लादेन घर में घुस गया है। बाद में पता चला वे वीर रस के कवि थे। रचना के अनुसार उनका शरीर था मुझे सौ प्रतिशत विश्वास है कि इस शरीर के साथ कविता पाठ करते हुए इन सज्जन ने चार पांच मंच तो यूं ही तोड़ दिए होंगे। नाम भी बडा विचित्र था। टमटम भारीभरकम, खैर हमने आमंत्रण स्वीकार किया। भारी भरकम जी हमें आमंत्रण पत्र देकर गुजर गए। कवियों के लिए सुनहरी और श्रोताओं के लिए कत्ल की वह रात आ ही गई। रात आठ बजे कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। बेचारे बीवी की फटकार से परेशान तीन-चार सौ श्रोता कवियों से अपने दिमाग का मुण्डन संस्कार कराने आ ही पहुंचे। मंच के पास पंडाल लगा था और इस रात मंच पर अपना जलवा दिखाने वाले कवि कुर्सियों पर सजा सजाकर रखे हुए थे। एक दो कवि बंधु शरीर में इतना फैले हुए थे कि कुर्सियां और उनका शरीर आपस में कुश्ती कर रहे थे। अंततः उनके शरीर की जीत हुई अथक परिश्रम के बाद उनका पिछवाड़ा मासूम नवयौवना सी कुर्सी पर फंस चुका था। कवियों को काव्य संयोजक टमटम भारी भरकम जी ने मंच पर आमंत्रित किया। एक को छोड़कर सभी कवि मंच पर जा गिरे। शेष बचे हुए एक कवि बेचारी कुर्सी से अपना पिछवाड़ा छुडाने की कश्मकश में लगे रहे। आखिर कुर्सी ने उन्हे अपना मान लिया था अतः कुर्सी भी शरीर को पकड़ बैठी रही, चारों ओर हंसी का माहौल था। दो-चार कार्यकताओं ने कवि जी के पिछवाड़े से कुर्सी को खींचा, कुर्सी रानी ने भी थोड़ी देर ना-नुकुर करने के बाद कोप भवन छोड़ दिया। कुर्सी से पिछवाड़ा इतनी जोर से छूटा कि कवि जी सीधे मंच पर सष्टांग करते नजर आए। कवि जी से पूछने पर पता चला कि वे मंच पर चढने से पहले ऐसे ही प्रणाम करते हैं।
खैर, कवि सम्मेलन का प्रारंभ होने से पहले ही एक महा मुठभेड़ हो गई। दो कवि मंच संचालन करने के लिए आपस में भिड़ गए, अंत में शेष कवियों ने जय और वीरू की तरह सिक्का उछालकर और एक कवि को कवयित्री के पास बैठाने का लालच देकर जैसे-तैसे शांत किया। मंच संचालन करने की महा-मुठभेड़ में टमटम भारी भरकम जी वियजी रहे बडे अभियान से भरे हुए टमटम जी ने इस जीत को ईश्वर की कृपा, कविगणों का सहयोग, और श्रोता जनार्दन का आशीर्वाद बताते हुए स्वयं की जीत न बताते हुए जनता की जीत बताया। इसी जीत पर सभी कविगणों को उन्होनें पार्टी देने की घोषणा भी भरे मंच पर की। दरअसल संचालन करने वाले को अन्य कवियों से एक सौ एक रूपये अधिक मिलने वाले थे। खैर, भारी भरकम जी के रटे रटाए शब्द और कविताओं से कवि सम्मेलन की भूमिका बनी। बीच-बीच में टमटम जी बाबा आदम के जमाने के हसगुल्लों की बरसात श्रोताओं पर करने लगे लेकिन सुन-सुन कर पक चुके श्रोताओं ने इसे नकार दिया यहां तक कि संचालक जी के पैरो के पास अंडा और टमाटर आकर गिरा जिसे देखकर टमटम जी खीझ खीझकर श्रोताओं को तालियां बजाने के लिए बाध्य करने लगे। टमटम जी ने अपने संचालन में बडे-बडे साहित्यकारों और कवियों को याद किया ऐसा लगा मानो जयशंकर प्रसाद..... प्रेमचंद.... दुष्यंत.... परसाई.... अज्ञेय.... और निराला टमटम जी के लंगोटिया यार थे और इसी के साथ मानो महादेवी...मन्नु भण्डारी...सुभद्रा चौहान जी से इनका कॉलेज के जमाने का अफेयर चला हो। टमटम जी का वश ही नहीं चला अन्यथा वे भारतेन्दू को अपने चाचा का लड़का ही बता देते। खैर, कवि सम्मेलन का आगाज हुआ- पहले कवि युवा थे और रसराज श्रृगांर में डूबे थे। उनकी कविता में श्रृगांर के साथ-साथ प्रेम था उनके सुनाने की कला से प्रीत हेाता था कि वे पक्के दिल के मरीज थे और उनकी गर्लफ्रेंड उनको धोखा देकर पान वाले चौरसिया के साथ भाग गई थी इसलिए ये गीत लिखकर उन्होंने उसकी याद में कुंवारा ही मरने की भीष्म प्रतिज्ञा की है। कविता समाप्त हुई लोगों के दिल धड़के या दिल का अटेक हुआ ये तो वे ही जानें लेकिन तालियां बजनी थी सो बजती रही।
दूसरे अधेड़ उम्र के कवि थे पता चला वे भी श्रृगांर लिखते थे, युवा कवि के श्रृगांर लिखने का मतलब तो समझ में आता है लेकिन अधेड़ावस्था में श्रृगांर .. शायद भावी जी से सच्चा प्यार नहीं मिला था इसीलिए अब तक तलाश में थे लेकिन वे नही जानते थे कि हर काई अमिताभ नहीं है, खैर उन्होंने कविता शुरू की ....गीत सुनकर लगता था कि अवश्य ही भावी जी ने उन्हें प्रताड़नाऐं दी है उनकी कविता में भावी जी के अत्याचारों को सहने का दर्द था इसीलिए वे अपनी घरवाली से परेशान थे और कोई बाहरवाली ढूंढने की फिराक में थे, शायद इसीलिए वे कवि सम्मेमेलनों में आकर कवयित्रियों के बगल में मंच पर आसन ग्रहण करते थे। उनकी रचना चलती रही और वे पढते रहे... रचना में वे बाहरवाली को याद कर चिल्लाते रहे, बीच-बीच में कनखियों से पास बैठी कवयित्री को घूरते रहे, कवयित्री पर अपने नैनों से वाण चलाते रहे अंततः जन कवयित्री पर उनकी मोहमाया और कविता का नशा जब न चढ सका तब वे निराश होकर अपने स्थान पर आ बैठे। अगले कवि हम ही थे जैसे कुरबानी से पहले बकरे को खूब सजाया जाता है...वैसे हि संचालक ने अपने शब्दो से हमे पेड के झाड पर चढा दिया परिणामस्वरूप हम मंच पर जा टपके। मंच पर हमें देखकर लोगों की हंसी छूट गई कुछ लोगों का और भी कुछ छूट गया हो तो कह नहीं सकते। हम कुछ सुनाते उससे पहले ही माइक ने पीं......पां... सुनाना शुरू किया हमें लगा हमारे आने से माइक भी जोश में है। हम कविता सुनाने लगे लोगों कि तालियां नही बज रही थी शायद विरोधी पक्ष के कवियों ने लोगों के हाथों को बांध कर रखा था, हम भी कम नहीं थे, हमने तालियां बजवाने के लिए उन्हें ईश्वर का वास्ता दिया, कहते ही जो रही सही थी वे भी बंद हो गई। हमें ताली बजवानी थी हमने उन्हें उनकी गर्लफ्रेंड की कस्में दिलाई,कुछ लोगों के हाथ खुले हमें उम्मीद बंधी, हमने अचानक से उन्हें उनकी पत्नि के बेलन का भय दिखाया इतना सुनते ही श्रोताओं के मुख का रंग उड़ गया लेकिन भरे पांडाल में इतनी ताली बजी की हमारे जाने के बाद संचालक ने उन्हें बंद कराया।
हमारे बाद सिलसिला आगे बढाते हुए हास्य कवि चुन्नूलाल फोकटिया मंच पर कूद गए हंसगुल्ले बरसने लगे इसी बीच मंच पर हल्की-फुल्की सुगबुगाहट होने लगी,पूंछने पर पता चला कि कोई कवयित्री जी की मंच के नीचे से चप्पल उठा ले गया है अब कारण या तो ये रहा होगा कि चप्पल ले जाने वाला कवयित्री जी का कोई दिवाना रहा होगा या फिर बीबी के लिए चप्पल खरीदने के पैसे उसके पास न होंगे। खेर, इस दुःखद घटना पर सभी कवियों में शोक की लहर दौड़ गई। आखिर कवयित्री जी की चप्पल थी इसी बीच एक कवि ने इस घटना पर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपने की चेतावनी दी और संयोजक महादेव को दो चार गाली चालीसा के लम्बे-लम्बे पाठ सुनाए इस घटना पर सभी कवियों ने दो मिनिट का मौन रख कवयित्री को काव्यपाठ करने हेतु कहा। कवयित्री ने काव्यपाठ प्रारंभ किया उनकी कविता में चप्पल चोरी जाने का दुःख साफ झलक रहा था, कवयित्री अपने आंसुओं और वेदना को दबाकर बैठी रही हो सकता है वे चप्पल उन्हें अपने पति से भी प्यारी हो शायद इसीलिए काव्यपाठ करते हुए वे बार-बार मंच के इधर-उधर देखती रही और पास बैठे श्रोताओं के पैरो में खोजबीन करती रही।
जब पूरी कविता समाप्त होने तक भी वे अपनी चप्पलें नहीं खोज पाई तो मायूस होकर मंच पर आ बैठी। पास ही बैठे कवि उन्हें सांत्वना देने के बहाने उन्हें छूने का भरसक प्रयास करने लगे। एक दो अन्य कवि भी अब मंच पर माइक के सामने पहुंच गए उनमें से एक तो इतने पतले थे कि यदि वे माइक पकडकर नहीं रखते तो शायद पंखे की हवा का एक झोंका उन्हें उडा ले जाता, उनकी कविता भी उनकी तरत ही पतली थी, पतलू जी अपने शरीर के फायदे गिनाने लगे, हांलाकि शरीर का पतलापन स्पष्ट दिखता था कि भावीजी ने उनके शरीर को नरक जैसी प्रताडनाऐं दी थी यहां तक कि उनके सिर पर एक स्क्रेच का निशान था जिसे देखते ही पता चलता था कि भावी जी ने नारी अस्त्र बेलन का अच्छी तरह से और अपनी पूरी ताकत से प्रयोग किया था।
खैर, पतलू जी अपनी पतली कविता सुनाकर बैठे ही थे कि हवा के एक झोंके ने उन्हें तेज झटका लगा जिससे वे पास ही बैठी कवयित्री जी से टकराने बच गए और भंयकर दुर्घटना होते होते रह गई हालांकि पास ही बैठे कवि की भौंहे पतलू जी पर तन गई ऐसा लगा मानो पतलू जी यदि कवयित्री जी से टच जाते तो उनके पास बैठे कवि द्रोपदी रूपी कवयित्री की लाज बचाने हेतु भीम बनकर पतलू जी रूपी दुर्योधन से मंच पर ही महाभारत का घमासान शुरू कर देते।
इस महा एक्सिडेंट के बाद अंत में संचालक टमटम भारी भरकम अपने शब्दों के मायाजाल को वीर रस में पिरोकर मंच पर जा कूदे। मंच को टमटम भारी भरकम को देखकर ऐसा लगा मानो कुम्भकर्ण की बारी अब आई हो। जैसी वीर रस के कवि से मंच तोडने की आशा थी वह वैसी ही बनी रही। टमटम जी अपने पूरे दम से कविता सुनाने लगे। टमटम जी ने झांसी की रानी से लेकर गांधी जी तक सबको वीर रस में स्मरण किया मानो इन्हीं के आदेश से १८५७ की क्रांती लडी गई हो। टमटम जी ने वीर रस की कविता ऐसे प्रस्तुत की मानो अभी कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए सीधे कारगिल पर जाकर बैंठेगे। टमटम जी मंच पर धमाचौकडी मचाते रहे और उन्हें देखकर पीछे बैठे पतलू जी की हालत पतली होती रही हालांकि टमटम जी घर में पत्नि से डरते थे और मंच पर आदमखोर शेर की तरह उछलते थे।
अंततः कवि सम्मेलन का समापन किया गया। इसी बीच कवियों को लिफाफा देने हेतु बुलाया गया इसीलिए एक दो कवि मंच से कूद पडे और अपने कुरते को मंच की टेबिल पर निकली कील से उखड़वा बैठे कवयित्री जी को संचालक ने अपने जूते उपहार स्वरूप भेंट किए और उनकी दो सौ रूपये की चप्पल के लिए कवियों के लिफाफे से तीस-तीस रूपये की कटौती कर ली गई जिसके कारण संचालक महादेव को दो-चार गाली पाठ फ्री में सुनने को मिला। इसी के साथ सूत जी ने कथा कहना बंद कर दिया।
बोलिए आज के आनंद की जय और कवियों के संसार को भय
कवि एवम् साहित्यकार
विनय भारत शर्मा
एम.ए, बी.एड.
व्याख्याता श्री परशुराम शास्त्री संस्कृत महविद्यालय
पता -दशहरा मैदान गंगापुर सिटी
जिला सवाईमाधोपुर
राजस्थान
रचना काफी रोचक बन पड़ी है बधाई हो विनय
जवाब देंहटाएंजी