(भारतीय मंगलयान के मंगल प्रवेश का पहला महीना पूरा होने पर गूगल ने खास डूडल बनाया) डॉ.चन्द्रकुमार जैन भारत का मंगल अभियान कामयाब होने के...
(भारतीय मंगलयान के मंगल प्रवेश का पहला महीना पूरा होने पर गूगल ने खास डूडल बनाया)
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भारत का मंगल अभियान कामयाब होने के साथ ही अंतरिक्ष में उसकी अहमियत कई गुना बढ़ गई है। मंगल की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या जमीन पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी। जाहिर है इस सफलता से अंतरिक्ष व्यापार में भारत नई छलांग लगा सकता है। इससे उसे विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण के नए ऑफर मिलने के पूरे आसार हैं। बहरहाल 24 अक्टूबर 2014 को भारतीय मंगलयान के मंगल प्रवेश का पहला महीना पूरा हो गया। मंगलयान पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है जो हमारे अंतरिक्ष अभियान का अहम पड़ाव है।
बेशक मंगल ग्रह पर भेजे गए अभियानों का गणित हमारे वैज्ञानिकों के लिए काफी मुश्किल था। अभी तक मंगल के लिए 51 अभियान चलाए गए हैं उनमें से सिर्फ 21 ही कामयाब हुए। इनमें सबसे शानदार बात यह है कि हम पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुँचे। मंगल ग्रह तक पहुँचने में सभी को सफलता नहीं मिली है और पहली बार में तो किसी देश को नहीं मिली। इसरो ने मंगल अभियान बहुत कम बजट में पूरा किया है। मात्र 450 करोड़ रुपये के बजट में मंगल अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया है, जो कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मंगल अभियान का दसवां हिस्सा है।
इसरो के कमाल को सलाम
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भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए अपने मंगल मिशन को जिस तरह सफलतापूर्वक अंजाम दिया उसका सौ फीसदी श्रेय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के वैज्ञानिकों को जाता है, जिन्होंने अपने कौशल से ये इतिहास रचा है। इस सफलता के बाद भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया जिसने पहली ही बार में मंगल मिशन पर फतह पाई हो। इस कामयाबी के साथ ही भारत दुनिया के उन चार देशों में शामिल हो गया, जो मंगल पर अपना यान भेजने में कामयाब हुए हैं, जिसकी तारीफ दुनिया भर में हुई। इस तारीफ का जरिया बना सोशल मीडिया, जिसके सहारे लोग दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक बधाई के संदेश भेजते रहे। जिसमें सबसे अहम था ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल।
सोशल नेटवर्क भी मंगलमय
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सोशल नेटवर्किंग साइट के अनुसार इसरो की मंगल मिशन परियोजना फेसबुक पर पिछले दिनों से चर्चा में थी, जिसने लाखों लोगों को अपनी तरफ खींचा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के वैज्ञानिकों को धन्यवाद देने के कुछ ही वक्त के भीतर ही सोशल मीडिया पर इस खबर ने 30 मिनट के अंदर 10 लाख लोगों को अपना फॉलोअर बना लिया और 45 हजार लाइक, कमेन्ट और शेयर्स ने फेसबुक पर कब्जा कर लिया। मालूम हो कि पिछले साल पांच नवंबर को मंगल मिशन के लॉन्च होने के बाद ही इसरो ने फेसबुक पर मिशन की सभी जानकारियां अपडेट करनी शुरू की थीं। फेसबुक की मानें तो इसरो और मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) में सर्वाधिक लोकप्रिय पोस्ट मार्सियन ऑर्बिट रहा, जिसने 2 घंटे में 10 लाख लोगों को अपना फॉलोअर बनाया और 01 लाख 47 हजार लाइक्स, कमेंट और शेयर्स हासिल कर लिया।
मंगलमय खूबियों का मंगलयान
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अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत ने नायाब उपलब्धि हासिल की है। इसकी कुछ लाज़वाब खासियतें हैं। मसलन भारत का का मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मंगलयान की पहले ही प्रयास में सफलता- अपने पहले ही प्रयास में ये उपलब्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। एशिया अन्तर्ग्रहीय मिशन- मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी एमओएम, मंगलयान, मंगल ग्रह पर जाने वाला भारत का पहला अन्तर्ग्रहीय यानी इंटर-स्वदेशी टेक्नोलॉजी- पूरे देश को इस बात का गर्व है कि 'एमओएम' मार्स ऑर्बिटर मिशन, देश की अपनी स्वदेशी टेक्नोलॉजी का इसरो बनी चौथी एजेंसी- मार्स मिशन में सफलता हासिल करने वाली भारतीय अनुसंधान संस्थान, इसरो दुनिया की चौथी एजेंसी है। बेहद कम लागत- एमओएम, दुनिया का सबसे सस्ता अन्तर्ग्रहीय मिशन है। इसमें 75 मिलियन डॉलर यानी करीब 450 करोड़ रुपए खर्च खास यंत्रों से लैस- 1350 किलोग्राम वजन के इस स्पेसक्राफ्ट में 5 बेहद खास यंत्र लगे हुए हैं। इसमें मीथेन गैस को ट्रैक करने के लिए 6 महीने तक लगाएगा चक्कर- मंगलयान 300 दिनों की मैराथन यात्रा पर अबतक 670 किलोमीटर डिस्टेंस कवर कर चुका है। वो रॉकेट जिसने भारत के पहले मानवरहित सैटेलाइट को मंगल तक पहुंचाया था उसका वजन 320 टन और ऊंचाई 15 स्टोरी बिल्डिंग।
मंगल के नायकों को जानिए
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हाल ही में जब कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिला, तो स्वाभाविक रूप से उस घटना की याद आ गई। लेकिन अभी मंगल की कक्षा में पहुंचे यान को तैयार करने वाले अपने वैज्ञानिकों को जानने वाले कितने हैं! हम क्रिकेट, राजनीति, फिल्म, मीडिया और कुछ हद तक साहित्य आदि से जुड़े लोगों के अलावा और किसे कितना जानते हैं! कैलाशजी को कम ही लोग जानते हैं, यह दुखद भी है और सुखद भी। दुखद इसलिए कि हम समाजसेवा के कार्य में लगे लोगों को कितना कम जानते हैं! सुखद यह कि बहुत ज्यादा शोर मचाए बिना अपना काम करने वालों के काम को भी कभी-कभी महत्त्व मिल जाता है। तो बात ऎसी है कि इस चर्चा के केंद्र बिंदु यानी मंगल अभियान के नायकों की भूमिका पर पल भर ही सही,दृष्टिपात कर लें , ये हैं हमारे मिशन मार्स के हीरो -
के राधाकष्णान- इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो) के चेयरपर्सन और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के सेक्रेटरी के राधाकृष्णान का जन्म केरल में हुआ। इन्होंने अपनी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से की। इन्होंने मात्र 22 साल की उम्र में इसरो में काम करने लगे। राधाकृष्णान कर्नाटक के गायक और कथककली आर्टिस्ट है। इनको 2014 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। के राधा कृष्णान को 2009 में इसरो का चेयरपर्सन बनाया गया।
मलयस्वामी अन्नदुरई- मलयस्वामी मगलयान प्रोग्राम के डॉयरेक्टर हैं। इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ। इन्होंने अपनी पढ़ाई कोयम्बटूर से पूरी की और 1972 में 24 साल की उम्र में इसरो को ज्वाइन किया।
एस रामाकृष्णान- रामाकृष्णान विक्रम शाराभाई स्पेस सेंटर के डॉयरेक्टर हैं। इन्होंने 1972 में इसरो को ज्वाइन किया। उन्होंने कई सारे स्पेस मिशन में काम किया है। इसके साथ ही उन्होंने मंगलयान के लांच में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
एस. के शिवकुमार- एस.के शिवकुमार इसरो सैटेलाइट सेंटर के डॉयरेक्टर हैं। शिवकुमार का जन्म मैसूर में हुआ, और बैंग्लुरु के आईआईएससी से अपनी पढ़ाई पूरी की। इन्होंने 1976 में इसरो को ज्वाइन किया। इन्होंने मंगलयान के लिए टेलीमेट्री सिस्टम को बनाया।
वी अदीमुरथाई- अदीमुरथाई ने मंगलयान के कान्सेप्ट मिशन आर्बिट को डिजाइन किया है। इनका जन्म आन्ध्रप्रेदश में हुआ। इन्होंने आईआईटी कानपुर से पढ़ाई की और 1973 में इसरो ज्वाइन किया। कहना न होगा कि मंगलयान और मंगल अभियान के इन नायकों पर पूरी मानवता को गर्व है।
अंतरिक्ष में भारत का भविष्य
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भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं। अंतरिक्ष की खोज का सिर्फ अकादमिक महत्व नहीं है। इसमें व्यवहारिक निहितार्थ भी शामिल है। पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कई छोटे-छोटे उपग्रह हमारे जीवन की छोटी-छोटी जरूरतों से जुड़े हैं और भविष्य में इनका दायरा और अधिक बढ़ेगा। मंगल ग्रह विश्व के तमाम देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा है। ऐसे में भारत के अन्वेषी यान का मंगल तक पहुँचना हमारे देश के लिए गर्व की बात है। विश्व के अन्य देशों की तरह भारत भी अंतरिक्ष अनुसंधानों की ओर अपना काम कर रहा है। मंगलयान की सफलता ने ना सिर्फ भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई दिशा दी है, बल्कि विश्व समुदाय को अपनी तकनीक और काबिलियत की ओर आकर्षित किया है।
अंत में मंगलयान की शान में पेश हैं रचनाकार उमेश चौहान पंक्तियाँ -
देश के नेताओं और मुनियों का मान बढ़ा है।
गरीबों के सपनों के रथ पर मंगलयान चढ़ा है।
अमीरों ने अपने उद्यम का नया विधान गढ़ा है।
हम सबने साहस का नव आख्यान पढ़ा है।
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लेखक राजनांदगांव,छत्तीसगढ़ के शासकीय
दिग्विजय कालेज में हिन्दी के प्राध्यापक हैं।
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