पोलियो के पहले टीके के जन्मदाता को भुला दिया ? डॉ.चन्द्रकुमार जैन शायद ही कोई ऐसा जागरूक नागरिक हो जो भारत के पल्स पोलियो अभियान और दो बू...
पोलियो के पहले टीके के जन्मदाता को भुला दिया ?
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शायद ही कोई ऐसा जागरूक नागरिक हो जो भारत के पल्स पोलियो अभियान और दो बूँद ज़िंदगी की जैसे कैम्पेन को न जानता हो। बच्चो के स्वच्छ और साफ़ सुथरे रहने का भी पोलियो से बचाव का गहरा नाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जोनास सॉल्क एक अमेरिकी चिकित्सा शोधकर्ता और विषाणुशास्त्री थे, जिन्हें पोलियो के पहले सुरक्षित और प्रभावी टीके के विकास के लिए जाना जाता है ?अगर नहीं तो गौर कीजिए कि न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में मेडिकल स्कूल में पढ़ते हुए सॉल्क ने एक चिकित्सक बनने की बजाए चिकित्सा अनुसंधान की ओर कदम बढ़ा कर अपने लिए अलग राह चुनी।वर्ष 1955 में जब सॉल्क ने पोलियो का टीका पेश किया।
पोलियो को युद्ध के बाद के दौर का सबसे भयावह स्वास्थ्य समस्या माना जाता था। 1952 तक इस बीमारी से प्रतिवर्ष तीन लाख लोग प्रभावित और 58 हजार मौत हो रही थी, जो अन्य दूसरी संक्रामक बीमारी की तुलना में सबसे ज्यादा थी। इनमें से ज्यादातर बच्चे थे।
राष्टपति रूजवेल्ट की वह पहल
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याद रहे कि राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट इस बीमारी के सबसे ख्यात शिकार थे, जिन्होंने इस बीमारी से लड़ने के लिए टीका विकसित करने के लिए एक संस्थान की स्थापना की। छोटे-छोटे बच्चों को पोलियो जैसी भयंकर बीमारी से बचाने वाले फरिश्ते का जन्मदिन 28 अक्टूबर को था। डॉक्टर जोनास सॉल्क जिन्होंने बच्चों को पोलियो का शिकार हो जाने से बचाया व पोलियो दवा का आविष्कार किया। उनके 100वें जन्मदिन के खास मौके पर विश्व का सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की। आज गूगल डूडल पर उनकी तस्वीर दिखाई गई जिसमें एक ओर डॉक्टर जोनास दिखाई दे रहे हैं व दूसरी ओर कुछ बच्चे हैं जिनके हाथ में 'थैंक्यू डॉक्टर सॉल्क' नाम का एक साइन बोर्ड है। वास्तव में गूगल बधाई का पात्र है कि दुनिया की पोलियो जैसी बड़ी चुनौती के लिए अपनी ज़िंदगी की राह मोड़ देने वाले इस महान व्यक्तित्व को याद किया। लेकिन अफ़सोस की बात है कि नौनिहालों को भविष्य की बेबस ज़िंदगी से बचाने वाले इस मसीहा के नाम पर कोई 'विश्व दिवस' नहीं मनाया गया।
डाक्टर सॉल्क का यादगार योगदान
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डॉक्टर जोनास सॉल्क का जन्म 28 अक्टूबर,1914 में अमेरिका की न्यूयार्क सिटी में हुआ था। वे एक महान शोधकर्ता के रूप से जाने जाते है। डॉ.सॉल्क द्वारा बनाई गई पोलियो दवा के उपलब्ध होने के ठीक 2 वर्ष पहले तक अमेरिका में 45,000 से भी ज्यादा लोग पोलियो के शिकार हो चुके थे लेकिन उनकी इस महान खोज के बाद यह संख्या 1962 में घटकर मात्र 910 ही रह गई। इस महान व्यक्ति ने न्यूयॉर्क के विश्वविद्यालय से वर्ष 1939 में दवा क्षेत्र में एम.डी की डिग्री हासिल की थी जिसके बाद जल्द ही वे माउंट सिनाई अस्पताल में चिकित्सक के रूप में काम करने लगे। विभिन्न तरीके के शोध में उनकी बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उन्हें मिशिगन के विश्वविद्यालय में एक खास तरह के शोध पर काम करने का मौका दिया।
डाक्टर सॉल्क ने पिट्सबर्ग के औषधि विद्यालय में भी काम किया जहां उन्होंने पोलियो की दवा बनाने की तकनीकों को सीखा। आखिरकार विभिन्न संगठनों में काम करने के बाद जब डॉ. सॉल्क ने पोलियो दवा का आविष्कार कर लिया तो पहली बार इसे बंदरों पर आजमाया गया। इसके बाद इसे कुछ मरीजों पर आजमाया गया जिन्हें पहले से ही पोलियो था। इसके बाद तो जैसे डॉ. सॉल्क की इस महान खोज की खबर पूरे विश्व में फैल गई और इसे वर्ष 1954 में लाखों बच्चों पर आजमाया गया। अंत में साल 1955 में पोलियो दवा को सुरक्षित व लाभकारी करारा दिया गया।
भारत जब हुआ पोलियो मुक्त
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गौरतलब है कि पोलियोको पोलियोमेलाइटिस भी कहा जाता है। यह विषाणु जनित रोग है जिससे इसके कारण शरीर के किसी भी हिस्से में पक्षाघात हो सकता है। 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में भारत में 18 माह की बच्ची का अंतिम मामला सामने आया। विश्व में भारत ऐसा देश था जहां से पोलियो का उन्मूलन सबसे मुश्किल माना जाता था। वर्ष 2009 में भारत में पोलियो के पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 741 मामले सामने आएे। 2010 में 42 और 2011 में भारत में सिर्फ 1 मामला सामने आया। उसके बाद लगातार 3 वर्ष पूरे होने के बाद 11 फरवरी 2014 को भारत ने पोलियो के खिलाफ जीत की उपलब्धि हासिल की। लिहाज़ा पहली पोलियो वैक्सीन विकसित करने वाले डाक्टर सॉल्क को भला कैसे भुलाया जा सकता है।पोलियो की दवा इस महान आविष्कारक डॉ. जोनास सॉल्क का 23 जून, 1995 में 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
चिकित्सकों के मुताबिक़ पोलियो से बचाव के बचाव के लिए स्वच्छता सबसे पहला उपाय है। खाना खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोना बहुत जरूरी है क्योंकि इस बीमारी का विषाणु मल के संपर्क में आने से ही फैलता है। इसलिए खाद्य एवं पेय पदार्थों को मक्खियों एवं इसी प्रकार के अन्य जीवों से दूर रखना चाहिए। ये एहतिहात तो मौजूदा दौर में भी हाथ धुलाई दिवस या दीगर शक्लों में नज़र आता ही है। फिर भी, दुःख इस बार का है कि गरीबी, कुपोषण और हमारी लापरवाही के चलते ऎसी सफाई और धुलाई भी चार दिन की चांदनी बन कर रह जाती है।
पोलियो के बाद गंदगी को अलविदा
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जी हाँ ! भारत को पोलियो मुक्त करने के गर्व बोध पर पूरे देश का हक़ है किन्तु अभी गंदगी मुक्ति की बड़ी चुनौतियाँ मुंह बाए खडी है। फिर भी,यह क्या कम है कि लोग जाग रहे हैं। स्वच्छ भारत के लिए, स्वस्थ भारत के लिए चलाये जा रहे महायज्ञ में आहूति देकर हम सब पोलियो की विदाई की तर्ज़ पर ही सही लेकिन कुछ अलग अंदाज़ में जानदार नारा बुलंद कर सकते हैं - गंदगी भारत छोड़ो।
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हिन्दी विभाग,दिग्विजय कालेज
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