सही दृष्टिकोण की माँग करती कविताएँ लिखना कि जैसे आग विजय सिंह नाहटा जी का दूसरा कविता संग्रह है जो राजस्थान साहित्य अकादमी ,उदयपुर के आर्थ...
सही दृष्टिकोण की माँग करती कविताएँ
लिखना कि जैसे आग विजय सिंह नाहटा जी का दूसरा कविता संग्रह है जो राजस्थान साहित्य अकादमी ,उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित हुआ है । नाहटा जी राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और उनके कई समवेत काव्य- संग्रहों में भी कविताएँ संकलित हैं । पुस्तक की शुरुआत धर्मवीर भारती की पंक्तियों से होती है -
अश्व घायल
कोहरे - डूबी दिशाएँ
कौन दुश्मन
कौन अपने लोग सब कुछ धंुध धूमिल
किंतु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
क्योंकि है सपना अभी भी
इन पंक्तियों का चुनाव कवि की ऊर्जा और अंधकार से लड़ने की असीम इच्छा को उजागर करता है और ये भाव उनकी कविताओं में बार बार विभिन्न बिम्बों के माध्यम से जगह-जगह दिखाई पड़ते हैं । आज समाज में छाया असत्य ,भूख ,असमानता कवि के भीतर गहन वेदना उत्पन्न करते हैं । कविता क्या जरूरी है ? में कवि अनायास ही कह पड़ते है -
सबूत नहीं होते
अक्सर-
बेबस दिखाई पड़ता सत्य
क्या जरूरी है
सत्य के लिए
बैसाखियों की ?
शिनाख्त की ??
भूख से जूझते एक व्यक्ति का चित्रण कविता - रोटी में कुछ इस तरह दिखता है -
गरीबी का अजीब सा गुरुत्वाकर्षण खींचता
पेट औ पीठ को रसातल की तरफ
ओ ! मेरी आत्मीय रोटी , मेरी अविकल
संगिनी..., जिंदगी का यह विराट आयोजन
महज तुम्हारे लिए .... ?
कविता दुष्चक्र में समाज में छाई असमानता को दर्शाते हुए कवि कहते हैं-
उनके रक्त मज्जा को आकण्ठ चूसकर
एक दुनिया चमकती धनपति कुबेरों की
और फिर विद्रोह की चिन्गारी कुछ इस तरह -
ठहरो ....। एक भी जीवंत कोशिका तैरती होगी
रक्त में विद्रोह की सजीव..... ?
इस दुष्चक्र के घमासान में टकराते काल के पहियों से
फूटती चिन्गारियों से
कविता बाढ़ : कुछ मनोचित्र में बाढ़ का बड़ा ही मार्मिक चित्रण मन को उद्वेलित करता है -
वाहन आ रहे कतारबद्ध
अनाम अज्ञात मदद को उठे अनगिनत हाथ
ये हमें मरने नहीं देंगे भूख से
जो बह गए सैलाब में
उनके स्मरण का दंश
जीने नहीं देगा चैन से
और फिर डूबते मकान का चित्रण कुछ इस तरह
गोबर लीपे मकान की एक जर्जर दीवार
अंजुली भर प्रार्थना सी खड़ी है
गोया आँख मिचौली- जो बच गई हो
धारा के प्रलयंकर प्रवाह से : एक चूक भर
और फिर दुख ने किसका साथ छोड़ा वो तो बस साथ-साथ ही रहा ।
कविता दुख में कवि कहते हैं -
माचिस की डिबिया की तरह जिन्दगी
उसमें नि:स्पृह लेटे दुख सुलगने को तैयार
हर बार
मेरी पीड़ा के रोगन पर
कोई घिसता रहा दुखों की अंतहीन तीलियाँ
फिर तापता रहा मेरे जख्मों की पुरातन सी
परिभाषा की आँच में
पर अगले की क्षण कवि नें दुख को इंद्रधनुषी दुख की उपाधि भी कुछ यूँ दे डाली
झिलमिलाएँगे अनंत ज्योतियों से आप्लावित
इंद्रधनुषी दुख
दुख तो है तभी उसके होने से सुख जो है ?
दुख के भीतर से ही सुख की खोज का एक और उदाहरण कविता तब तक हम बचे रहेंगे में दिखता है -
नहीं हम नहीं जी रहे
सभ्यता के अंतिम दौर में
अभी भी है हवा में शेष थोड़ी सी नमी
घास में बचा हुआ है हरापन ।
और फिर कविता वही होगा प्रेम में जीवन की सच्चाई स्वत: ही बयाँ हो जाती है
कठिन समय में
एक दिन ईश्वर तुम्हें प्रश्न- पत्र देगा
हल करने
सबसे जटिल,दुरूह एवं गूढ़ मान
जिस प्रश्न को तुम छोड़ दोगे हतप्रभ - से
तुम्हारी अनुत्तर की शिला के नीचे छटपटाता
वही होगा प्रेम ।
पर प्रेम का मोती प्राप्त करना इतना भी आसान नहीं । कवि स्वयं ही कविता - क्या किसी सीप के मुख से में प्रश्न पूछते दिखते हैं
क्या किसी सीप के मुख से
निकल आएगा
कोई उनींदा मोती ?
जिन्दगी के इन उदास तटों पर ।
और फिर कविता - लिखना कि जैसे आग में कवि के भीतर की आग धधकती दिख़ती है जो अनखुली खिड़की के पट खोल देने को व्याकुल दिखती है , अनगिन दिलों में पक रही मुक्ति की छटपटाहट को आत्मा की सलाइयों पर बुनती दिखती है ,नश्वरता के प्रवाह में से दो चार अनश्वर पल अर्जित करती दिखती है । उन्हीं के शब्दों में -
लिखना
कि जैसे आग
प्रज्ज्वलित हर रक्त में,चैतन्य मे
हरेक मानव हृदय की दीवारों में महफूज
समान चरित्र,गुण,धर्म वाली अथाह आग ।
कवि द्वारा कविता के अंत में पूछा गया प्रश्न जो स्वयं ही उस प्रश्न का उत्तर है एक बार ठहर कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है -
लिखना -
क्या उस आग को मनकों में पिरोना भर है ?
नाहटा जी की कविताओं को सरसरी निगाह से देखते हुए नहीं निकला जा सकता । कविताएँ समय माँगती हैं ठहर कर चिंतन मनन माँगती हैं । कविताओं की भाषा अच्छी है पर कहीं कहीं थोड़ी कठिन भी हो जाती है । कविताओं में नए बिम्ब उकेरे गए हैं । संग्रह में इतर मूड की भी कविताएँ हैं जैसे भोर के आकाश में - एक प्रेम कविता है । कविता प्रयाण - युगल प्रेमी के मिलन का अनूठा चित्रण है । कविता बेढ़ब सा कोलाज- में कवि नें रेगिस्तान की स्त्रियों का बड़ा ही सजीव चित्रण है -
औरत : काल के सूने मरुस्थल में
है जीवन की अपरिहार्य आश्वस्ति
ईश्वर इसे फुर्सत से पढ़ता है
कवि की दृष्टि में यहाँ कुछ भी नहीं बदलता । कविता कुछ नहीं बदलता के जरिए कवि कहते हैं कि यहाँ बस हमारा देखने का नजरिया बदलता है-
सब कुछ अविचल- अनवरत-अविराम
नहीं बदलता कोई भी रहस्य
बदलती है निश्छल अबोधता
कुछ नहीं बदलता, चिरंतर लयबद्धता में सराबोर
हर क्षण : सृष्टि की एक महागाथा
हर कण : सष्टि का एक महनीय दस्तावेज ।
और फिर कविता भिनाय में कवि की आंतरिक इच्छा स्वयं ही फूट पड़ती है -
गढ़ने हैं मुझे कई- कई नूतन आख्यान
जीवन के मर्म में प्रस्फुटित हो
फूटना चाहता हूँ महज एक अंकुर में
नाहटा जी की कविताओं में ये खासियत है कि कविताएँ समाज की वेदना को तो दर्शाती ही हैं पर साथ ही व्यक्ति में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती हैं सही होने के लिए सही दृष्टिकोण की माँग करती हैं ।
समीक्षक - पूनम शुक्ला (कवयित्री )
50- डी , अपना इन्कलेव , रेलवे रोड,गुड़गाँव, 122001
लिखना कि जैसे आग ( काव्य संग्रह ) : कवि : विजय सिंह नाहटा, प्रकाशक : बोधि प्रकाशन , एफ - 77 , सेक्टर - 9 ,रोड नंबर - 11,करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाइस गोदाम,जयपुर - 302006 , पृष्ठ - 216 ,मूल्य : 210 रुपए ।
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