भ्रष्टाचार ः कारण और निवारण भ्रष्टाचार का संबंध आचरण से है। परिणामतः इस कुप्रथा को महज कानून-निर्माण कर रोका या नियंत्रित नहीं किया जा सक...
भ्रष्टाचार ः कारण और निवारण
भ्रष्टाचार का संबंध आचरण से है। परिणामतः इस कुप्रथा को महज कानून-निर्माण कर रोका या नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इस दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश हम लोगों की सोच में आवश्यक बदलाव लाकर ही लगा सकते हैं। कारण स्पष्ट है। क्योंकि ऐसा नहीं है कि देश की आजादी के बाद इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए नियमों एवं कानूनों का निर्माण नहीं हुआ। इसके निवारण के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग गठित हुए, समितियां बनी एवं अन्य भ्रष्टाचार निरोधक दस्तों का गठन हुआ फिर भी भ्रष्टाचार का ग्राफ नीचे गिरने की बजाय उंचा ही उठता चला गया और आज समाज, राज्य एवं देश की स्थापित व्यवस्था का अभिन्न अंग बन गया। वजह एक नहीं अनेक है। परंतु कुछ वजह ऐसी है जो अमूमन दृष्टिगोचर होती है जिसपर कि वैज्ञानिक प्रबंधन की आवश्यकता है। यहाँ वैज्ञानिक प्रबंधन का उपयोग सरकार के द्वारा डिलवरी मेकेनिजम पर किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है।
भ्रष्टाचार के निवारण हेतु जंग एक ओर सरकारी क्रियाकलापों में वैज्ञानिक प्रबंधन का उपयोग जरूरी है वहीं इसकी ओर समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप कुछ ढांचागत एवं विचारगत परिवर्तन एवं प्रयोग की आवश्यकता है।
उपर्युक्त तत्वों के आलोक में यह जरूरी है कि सरकार की सेवा प्रदायी तंत्र को विकसित करना होगा। विभिन्न विभागों द्वारा जनता को प्रदत्त सेवाओं की समय सीमा का निर्धारण एवं उसके उल्लंघन होने पर संबंधित कर्मियों के उपर जिम्मेवारी तय कर कठोर अनु्शासनात्मक एवं अन्य आवश्यक कार्रवाई का प्रावधान तय करना होगा। जहां यह ज्ञातव्य है कि सरकार के विभिन्न विभागों को ‘राइट टू सर्विस एक्ट' के दायरे में ले आया गया है तथापि इसमें और भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। इसी संदर्भ में दूसरी ओर यह भी व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिन लोगों को निर्धारित समय सीमा के बहुत पहले अपने कार्यों के निष्पादन की आकांक्षा एवं आवश्यकता है तो उसके निष्पादन हेतु लोग कुछ अतिरिक्त शुल्क प्रदान कर सेवाएं प्राप्त कर सकें। ऐसी व्यवस्था जहां एक ओर भ्रष्टाचार पनपने में अवरोध का काम करेगी वहीं दूसरी ओर सरकार की आय में यथोचित वृद्धि लाएगी जिसे वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्षतः जनोपयोगी कार्यों के निबटारे में उपयोग में ला सकती है।
वस्तुतः होता यह है कि जब कार्यों की समय सीमा निर्धारित होती है तो उस समय सीमा की अंतिम तिथि से कुछ दिन पहले कार्य संपन्न हो जाने पर भी उसे अंतिम तिथि तक कार्य से संबंधित प्रमाण पत्रादि को रोके रखे जाने का अदृ्यय अधिकार प्राप्त हो जाता है जोकि सामान्य जन के लिए कभी-कभी कष्ट का कारण भी बन जाता है।
अतः यहां यह आवश्यक है कि वैसे लोग जो या तो सक्षम है या फिर विभिन्न कारणों से अतिशीघ्र किसी प्रमाण पत्र, परंतु समय सीमा के अंदर, के निर्गत होने की आशा करते हों, उन्हें कुछ अतिरिक्त शुल्क भुगतानोपरांत उक्त सेवा प्रदान की जानी चाहिए। इस हेतु आवश्यक यह भी है कि मानव संशाधनों को गुणात्मक एवं परिमाणात्मक समुन्नत करने के साथ-साथ कानूनों के निर्माण में इस सीमा तक सतर्कता बरतनी होगी जिसमें सरकारी सेवकों को कम-से-कम स्वविवेकाधिकार का प्रयोग करना पड़े, संकटकालीन परिस्थितियों को छोड़कर। नियम एवं कानून सुस्पष्ट एवं कम-से-कम चुनौती योग्य हों। सामान्यतः यह दृष्टिगोचर होता है कि सरकार की जो एजेंसियां अस्तित्व में हैं वह संवेदनशील नहीं रह पाते। एक उदाहरण से इसे भलीभांति समझा जा सकता है। मान लीजिए किसी पर्यवेक्षकीय पदाधिकारी को किसी योजना के क्रियान्वयन एवं उसकी जांच हेतु आदेश दिया जाता है। वे अपने वाहन का उपयोग कर एवं उस वाहन पर होने वाले व्यय को अपने उपर अधरिोपित कर जांच संबंधी कार्य को संपन्न करते हैं। परंतु उन्हें समुचित वाहन भत्ता प्राप्त नहीं होता है। फलतः वे अपने आचरण के प्रति समुचित न्याय करने में कभी-कभी चूक कर बैठते है जो किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार जैसी प्रवृतियों को प्रश्रय देती है। यह एक छोटा उदाहरण मात्र है। फलतः यह आवश्यक है कि इस ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट होने से भ्रष्टाचार के सहायक तत्वों से निबटा जा सकता है।
सरकारी कर्मियों एवं पदाधिकारियों के सेवाओं में चयन से संबंधित वर्त्तमान भर्ती प्रणाली भी दोषपूर्ण है जो किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के चलते लोक सेवा आयोगों में सदस्यों एवं अघ्यक्षों का चयन विवादित एवं चयनित सदस्यों में संवेदनहीनता की कमी पायी जाती है। सरकार को चाहिए कि संवैधानिक प्रावधानों को समुचित ध्यान रखते हुए हर संभव प्रयास यह हो कि आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का चयन उच्च छवि वाले व्यक्तियों के बीच से करना चाहिए जो विवादास्पद व्यक्तित्व धारण नहीं करते हों।
कार्यपालक एवं अन्य पदाधिकारियों के चयन हेतु भर्ती प्रणाली को समय-समय पर इसमें आवश्यक संशोधन एवं कौशल युक्त करना होगा ताकि संवेदनशील, कर्मठ एवं क्रियाशील व्यक्तियों का सेवाओं हेतु चयन हो सके। इस हेतु भर्ती के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भूगोल, गणित, इतिहास, भौतिकी आदि विषयों के साथ-साथ परीक्षा के पाठयक्रमों में नैतिक आचरण, उच्च मनोबल, मानवीय संवेदना, जीवन दर्शन आदि से संबंधित विषयों का समावेश होना चाहिए जो बाध्यकारी हो। ऐसा होने से जब कोई गलत कार्य या अपनी शक्ति या पद के दुरूपयोग करने की बात मन में आए भी तो उनकी संवेदना, नैतिक आचरण आदि उनपर हावी हो जाय। आज के बदलते परिवेश में लोक प्रशासकों की भर्ती प्रणाली में और भी क्रांतिकारी बदलाव पर जोर दिया जा सकता है जिसमें कि उनके अंतिम चयन में अपरिहार्यता हो। लिखित एवं मौखिक परीक्षाओं के बाद एक तीसरा एवं अंतिम चरण ‘पब्लिक प्लेटफार्म' हो जहां पर कि समाज के विभिन्न घटकों के लोग हों और वे सामान्य प्रशासन से संबंधित कुछ मुद्दे रखें एवं उनके निदान की क्या कुछ योजनाएं हो सकती है, उसकी व्याख्या आमजनों के बीच करें एवं उनकी प्रभावशीलता का मापन कर उस पर अंक निर्धारित हो जो उनके चयन का अंतिम आधार बन सके। इसकी वीडियोग्राफी हो एवं वह वीडियोग्राफी जो अंतिम रूप में चयनित पदाधिकारी के हों को इंटरनेट पर डाल दिये जायें।
अपने कार्य व्यवहार में जब भी वे गलत/भ्रष्ट आचरण का मन भी बनाएं जो जनशिकायत के आधार पर उनकी उस वक्त की वीडियो को उन्हें ही दिखाने की लोगों को आजादी हो ताकि उन्हें सेवा में आने से पूर्व की स्थितियों एवं सेवारत स्थितियों का सही-सही भान हो सके और वे सद्आचरण युक्त दिख सकें।
सरकार के चतुर्थ स्तम्भ एवं अन्य शोध एंजेंसियों द्वारा भ्रष्ट विभागों की सूची समय-समय पर निकाली या प्रकाशित की जाती है। यह कितना हास्यास्पद है कि भ्रष्ट विभागों की सूची तो जारी हो जाती है परंतु जिन भ्रष्ट व्यक्तियों के कारण संबंधित विभाग भ्रष्ट विभाग कहलाता है, उनकी सूची, सरकार का कोई भी स्तम्भ प्रकाशित करने में रूचि नहीं दिखाता है।
प्रायः देखा जाता है कि 15 अगस्त, 26 जनवरी या अन्य ऐतिहासिक अवसरों पर सरकारी कर्मियों द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें सरकार द्वारा सम्मान प्रदान किया जाता है। इन अवसरों पर सरकार द्वारा अब इस बदली हुई परिस्थिति में निकृष्ट कार्य करने वालों को भी सबसे निकृष्ट पदाधिकारी/कर्मचारी का पुरूस्कार सार्वजनिक तौर पर वितरित किये जाने चाहिए। इस ढंग के पुरूस्कारों की घोषणा से अधिकांश कर्मचारी/पदाधिकारी अपने-अपने स्तर से इस पुरूस्कार से दूर रहने के लिए हरसंभव अच्छा कार्य करने का प्रयास करेंगे अन्यथा उनको इस पुरूस्कार से नवाजा जाएगा।
मेरा तो मानना है कि इस पुरूस्कार की घोषणा मात्र से ही सरकारी एजेंसियों में खलबली मच जाएगी और वे हर संभव यह प्रयास करेंगे कि कार्यों के निष्पादन के दौरान उनके आचरण में कोई गिरावट न आने पाये।
उपर्युक्त संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार सरकार ‘आदर्श ग्राम' की संकल्पना को संबंधित योजना को कार्य रूप देने की बात सामान्यतः करती है, ठीक उसी प्रकार हर राज्य प्रत्येक वर्ष एक जिला जिसमें प्रत्येक वर्ष एक प्रखंड एवं प्रखंड में प्रत्येक वर्ष एक ग्राम पंचायत कार्यालय को ‘फ्री फ्राम करप्शन' जैसे लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करे एवं इस दिशा में प्रयासरत रहे तो बातें बनती नजर आएंगी। इतना ही नहीं सरकार को इस दिशा में भी प्रयास करना चाहिए जिससे कि एक ऐसा सर्वमान्य पदाधिकारी ढूंढा जा सके जो भ्रष्ट आचरण से सर्वदा मुक्त रहा हो एवं अन्य लोगों को भ्रष्ट बनने से रोक सका हो ताकि उसे ‘भ्रष्टाचार मुक्त कार्यालय का ब्रांड एम्बेसडर' घोषित किया जा सके। इसके साथ-साथ जब भी कार्यालय खुले सभी कर्मी अपनी कुर्सी के सामने टेबुल पर रखे विशेष शपथपत्र को पढ़ें जिसमें रिश्वत ने लेने और न देने की शपथ अंकित हो। शपथ की विषयवस्तु ऐसी हो जो शपथ लेने वालों को नैतिक आचरणयुक्त, मार्मिक, संवेदनशील एवं अनैतिक साधनों से प्राप्त धन-बल के प्रति अनिच्छा का भाव प्रदर्शित करे।
ऐसा कुछ होने से धीरे ही सही परंतु भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक जमीन तैयार हो सकेगी जो भ्रष्ट व्यक्तियों की जमीर को ही सदगुणों से भर देगी। यहां यह विचारणीय है कि शपथ ईश्वर के नाम हो या राष्ट्र के नाम या फिर शपथकर्ता के ही सबसे आदरणीय माता-पिता या फिर उनके अति प्यारे पुत्र-पुत्री के नाम या फिर दोनों के नाम।
मैं समझता हूं कि माता-पिता या फिर पुत्र-पुत्री के नाम शपथ लेकर यदि भ्रष्ट आचरण से दूर रहने की बात करें तो यह ज्यादा सफल परिणाम देने वाला होगा और जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अनैतिक आचरण से दूर होता जाएगा वैसे-वैसे वह व्यक्ति स्वमेव ईश्वर के सदगुणों एवं राष्ट्रीयता की सोच के नजदीक होते चला जाएगा।
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राजेश कुमार पाठक
सांख्यिकी पर्यवेक्षक, सदर प्रखंड, गिरिडीह
एवं
निदेशक कार्मिक, साहित्य दर्पण तंत्र
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