नेम चन्‍द अजनबी की कहानी - एक लड़की की खातिर

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कहानी एक लड़की की खातिर ‘समय से पूर्व कुछ नहीं मिलता, समय आने पर सब कुछ प्राप्‍त होता है।' यह सुन-सुन कर राधे के कान पक गये थे। वह बिस...

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कहानी

एक लड़की की खातिर

‘समय से पूर्व कुछ नहीं मिलता, समय आने पर सब कुछ प्राप्‍त होता है।' यह सुन-सुन कर राधे के कान पक गये थे। वह बिस्‍तर पर लेटा-लेटा छत को ताक रहा था। आखिर उसे कब तक इस प्रकार गोल तकिया लेकर सोना होगा? उसका समय कब आयेगा? उसे तो यह भी पता नहीं चला कि जवानी कब आई और कब चली गई? उसने एक लम्‍बी सांस ली और करवट बदल कर तकिये पर हाथ रखा। दृष्‍टि दीवार पर टिक गई। एकाएक स्‍मृतियों के घोड़े सरपट दौड़ने लगे-
‘‘-चार बहनों के बाद पैदा हुआ था वह। आठ वर्ष का होते-होते पिता जी स्‍वर्ग सिधार गये। बहनों की शादी करने में लगभग सारी जमीन गांव के साहूकारों के पास गिरवी हो गई थी। अम्‍मा का बस एक ही सपना था ‘राधे पढ़-लिख जाये तो कहीं सरकारी नौकरी मिल जाये'। इसके िलये अम्‍मा ने लोगों का घास काट-काट कर राधे को दस जमा दो तक पढ़ाया। एक दिन अम्‍मा ने चूल्‍हे के पास बैठ कर राधे को रोटी खिलाते हुए कहा-
‘‘बेटा, अब मुझ में और हिम्‍मत नहीं है कि मै तुझे आगे पढ़ा सकुँ। सारे खेत गिरवी रख दिये हैं। एक डोरा (बड़ा खेत) तेरे बाप की निशानी बचा है मैं नहीं चाहती कि यह भी गिरवी रखना पड़े। गांव के शरीकों की नजर इस पर ही है। कहते हैं - ‘राधे की शादी में इसे भी मार लेंगे।' तू बेटा समझदार है - अब बड़ा हो गया है - तुझे पता है कि सिर पर पचास हजार का कर्जा है - मैं बुढ्‌ढी हो गई हूँ - यह उतार नहीं सकती - एक गाय ही बची है - इसके लायक घास काट लिया करूंगी। तू ऐसा कर कि शहर चला जा। कुछ काम धन्‍धा कर।''


मां की बात सुन वह थोड़ी देर चुप रहा - असमंजस की सी स्‍थिति। कुछ देर बाद बोला-
-परन्‍तु अम्‍मा मुझे शहर में जानता कौन है?'
-मैंने बात कर ली है। मेरा एक दूर का भाई शिमला में रहता है वह हर शनिवार घर आता है। इस शनिवार को भी आयेगा। तू उसके साथ सोमवार को ही चला जा। उसने शायद कहीं तेरी बात कर रखी है।''अम्‍मा ने सहज कहा था।
इस प्रकार वह अठारह वर्ष की उम्र में शिमला पहुँच गया। दूर के मामा ने उसे शिमला के गंज बाजार में एक करियाने की दुकान में काम पर लगवा दिया था। तीन वर्ष तक उसने वहां काम किया। फिर लाला से किसी बात को लेकर अनबन हो गई वह शिमला शहर के उपनगर सन्‍जौली में एक डॉक्‍टर के िक्‍लनिक में काम करने लगा। इसके बाद तो जैसे उसने नोकरी बदलने का काम ही शुरू कर दिया। दस सालों में पन्‍द्रह जगह काम किया। परन्‍तु अब जीवन में जैसे ठहराव सा आ गया है। पिछले आठ सालों से वह शहर मेें एक साहब की कोठी में काम करता है। साहब लोक निर्माण महकमें में किसी बड़ी पोस्‍ट पर हैं और मेम साहब स्‍थानीय महाविद्यालय में प्राध्‍यापक है। इनके दो बेटियां है - बड़ी चारूल और छोटी डिम्‍पल। उसे पिछले आठ सालों से साहब ने मुख्‍यतः एक ही काम सौप रखा है - बच्‍चियों को स्‍कूल छोड़ना और लाना। इसके अलावा कभी-कभार बाजार से  सब्‍जी भाजी लाने का काम भी होता है। कभी खाना बनाने वाला छुट्‌टी चला जाये तो खाना बनाने का काम भी उसके जिम्‍मे आ पड़ता है। खाना बनाने वाला प्रायः सर्दियों में दो सप्‍ताह के लिये छुट्‌टी पर जाता है। वह कहीं कांगड़ा का रहने वाला है।  बर्तन साफ करने बाई आ जाती है। चारूल जब तीन साल की थी वह तब से साहब के घर काम कर रहा है। उसके एक साल बाद ही डिम्‍पल पैदा हुई थी। आज चारूल पांचवी कक्षा में व डिम्‍पल पहली कक्षा में पढ़ रही है।

राधे ने पुनः करवट बदली। ‘यह पुत्र का चक्‍कर भी गरीबों के हिस्‍से में आया है। अब साहब को देखो - दो बेटियां हैं, न तो कभी पुत्र की कमी महसूस हुई न कभी पुत्रियों का दुःख। साहब और मेम साहब दोनों खुश है। अगर मेरे मां बाप की तरह जवाहर लाल नेहरू भी पुत्र के चक्‍कर मे पड़ जाते तो क्‍या कभी इन्‍दिरा गांधी प्रधान मन्‍त्री बनती ? श्‍ाायद कदापि नहीं।' उसे अपने मां-बाप पर गुस्‍सा आया। ‘उन्‍होने क्‍यों नहीं सोचा कि वह पुत्र नहीं बल्‍कि गरीबी को बुलावा भेज रहे हैं। वह पुत्र के रूप में अपने लिये सुख की सेज नहीं बल्‍कि पुत्र की राह के लिये कांटों भरी सेज तैयार कर रहें हैं।' उसने एक लम्‍बी सांस ली। ‘जवानी तो अमीरों की होती है। गरीब तो हर समय दो जून की रोटी जुटाने में लगा रहता है। उसे ही देखो - वह कब अठारह से अठतीस साल का हो गया पता ही नहीं चला।' उसने पुनः करवट बदली। इन बीस सालों में उम्र बढ़ने के साथ कितना कुछ घट गया, मां की मृत्‍यु हो गई और भी बहुत कुछ खो गया।
डोर बेल की आवाज ने राधे की स्‍मृतियों की उड़ान को बीच में रोका। वह उठा - सोचा, ‘लगता है साहब आ गये हैं।' दीवार घड़ी पर नजर डाली-रात के बारह बज रहे थे। दरवाजा खोला- सामने साहब मेम साहब के कन्‍धे पर लगभग झूल रहे थे। -राधे ! थोड़ा हेल्‍प करना। साहब ने आज थोड़ी ज्‍यादा ही पी ली है।' राधे ने एक साईड से साहब को सहारा दिया और अन्‍दर बेड रूम तक ले आया।
- ‘राधे ये जो मेरी बीवी है ․․․․․यह देख कितनी हसीन है।' साहब ने मेम साहब को अपनी ओर खींचते हुए कहा।
- क्‍या कर रहे हो ? राधे अभी यहीं है।
- राधे ! बच्‍चियां सो गईं ? मेम साहब ने पूछा।
-हाँ मेम साहब, वह तो दस बजे ही सो गयी थीं।
-अच्‍छा तुम जाओ।


राधे कमरे से बाहर निकल गया। राधे का कमरा निचली मंजिल में रसोई के समीप था। पहले राधे एक दोस्‍त के साथ रहता था परन्‍तु फिर साहब ने उसे अपनी कोठी में ही एक कमरा दे दिया था। साहब का बेड रूम ऊपर की मंजिल में था। राधे नीचे अपने कमरे में आ गया। लेकिन उसके कानों में अभी भी ‘राधे ये जो मेरी बीवी है ․․․․ यह देख कितनी हसीन है' ‘․․․․․क्‍या कर रहे हो राधे अभी यहीं है' शब्‍द गूंज रहे थे। कितना प्‍यार है दोनों में। कभी किसी को भी ऊंची आवाज में बोलते हुए नहीं सुना था। साहब और मेम साहब नौकरों से शालीनता से पेश आते थे।


राधे को नींद नहीं आ रही थी। वह उठा और रसोई में पानी लेने गया। इसी दौरान उसे ऊपर की मंजिल से कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं। वह दबे पांव सीढि़यां चढ़ कर साहब के कमरे के समीप पहुँच गया। उचक कर उसने देखने की कोशिश की। साहब का कमरे का दरवाजा खुला था और लाईट जली हुई थी - दरवाजे पर पर्दा लगा था। अब आवाजें और भी साफ सुनाई देने लगी थी। ‘-थोड़ा रूक नहीं सकते? जब तुम पी लेते हो तो जानवर बन जाते हो। मैं कोई भागे थोड़े जा रही हूँ।' राधे ने पर्दे की ओट से अन्‍दर झांका - मेम साहब साहब की गिरफ्‌त में मचल रही थी। राधे ने एक झटके में गर्दन पीछे हटाई और लगभग दौड़ता हुआ अपने कमरे में आ गया। उसका पूरा शरीर तप गया। टांगों में कंपकंपी मच गई। शरीर में जैसे चींटियां रेंगने लगीं। वह बिस्‍तर पर धड़ाम से गिर गया और फिर․․․․। वह कब जैसे नींद के आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।
सुबह उठा, उसके आंखों के सामने अभी भी रात का दृश्‍य घूम रहा था ‘वह कब तक इस प्रकार ․․․․छी․․'। उसे अपने आप से घिन्‍न आने लगी। वह हर बार एक शराबी की तरह प्रतिज्ञा करता, ‘बस, अब इसके बाद नहीं।' परन्‍तु फिर वही क्रम दोहराता चला जाता। उसका यही एक मात्र सहारा बन चुका था।


उसकी अम्‍मा ने कितनी कोशिश की कि उसकी शादी हो जाय,े परन्‍तु हर बार लड़की वाले कभी कोई बहाना बनाते तो कभी कोई। उसे पता था कि उसके सिर पर जो कर्ज का बोझ है जब तक वह नहीं उतरेगा तब तक उसकी शादी सम्‍भव नहीं। एक बार अम्‍मा ने यहाँ तक कह दिया था ‘बेटा शहर से ही अपनी पसन्‍द की बहू ले आ। मुझे मन्‍जूर होगा।' उसने कितनी ही कोशिश की परन्‍तु बार असफलता ही हाथ लगी। वह तो अनाथ आश्रम भी जा कर आया लेकिन वहां भी आश्रमवालों ने लड़की के नाम पच्‍चीस हजार रूपये की एफडीआर सिक्‍योरिटी मनी के रूप में मांगी वह अपना सा मुंह लेकर वापस आ गया। ‘ऊफ ! ये गरीबी।' बहू की चाहत लिये ही अम्‍मा ने निर्धनता में दो वर्ष पूर्व दम तोड़ दिया। अभी भी सिर पर बीस हजार रूपये का कर्ज शेष है। वह झल्‍ला उठता।


वह कमरे से बाहर निकला, बच्‍चियाँ स्‍कूल को तैयार की और घर से निकल गया। बच्‍चियों को स्‍कूल छोड़ कर वह रिज पर आकर एक बैंच पर गुनगुनी धूप सेंकने के लिये बैठ गया। लोग अपने-अपने काम पर आ जा रहे थे। सामने अखबार वाला लोगों को अखबार बेचने में मग्‍न था। रिज़ पर स्‍थापित यशवन्‍त सिंह परमार, इन्‍दिरा गांधी और महात्‍मा गांधी के बुत यथावत खड़े थे। राधे के मन में एक उथल पुथल मची थी। अचानक उसे दरोगी भाभी की याद हो आई। वह हट्‌टी-कट्‌टी एक तीस वर्षीय महिला थी। गदराया हुआ गोरा बदन, चेहरे पर तेज ऐसा कि सामने वाला देखता ही रह जाये। टाईट कपड़े पहनने की शौकीन, जिससे उसके अंग-अंग कपड़े फाड़ कर बाहर आने को बेताब दिखते। वह नाचती ऐसा कि सारा गांव उमड़ पड़ता। उसके बगैर गिद्धा रसता ही नहीं था। असल में दरोगी भाभी का नाम द्रोपदी था। उसके पति पुलिस में थे जिन्‍हे सब लोग दरोगा कहते थे। इसलिय उसे भी दरोगी कहा जाता था। पति की एक बस दुर्घटना में आकस्‍मिक मृत्‍यु से वह तीस साल की भरी जवानी में विधवा हो गइर् थी। एक बेटा था जिस कारण दोबारा विवाह न करने का प्रण लिया था। थोड़े दिन तो दरोगी भाभी सम्‍भल कर चली परन्‍तु जवानी पर कंट्र्‌ोल नहीं रह पाया और फिसलने लगी। दरोगी भाभी का घर गांव के छोकरों - छल्‍लोें और  पत्‍नी से दुखी लोगों की आश्रयस्‍थली बनता चला गया। बुढ्‌ढे सास ससुर से यह सब बरदास्‍त नहीं हुआ और घर के पिछवाड़े में दो कमरे देकर किनारा कर लिया। उसके बाद तो दरोगी भाभी आजाद हो गई किसी का कोई डर नहीं।


दरोगी भाभी का ध्‍यान आते ही उसे बीस-बाईस वर्ष  पूर्व घटी घटना का स्‍मरण हो आया। ‘उस समय वह ग्‍यारहवीं कक्षा में पढ़ता था। रविवार का दिन - वह और अम्‍मा सारा दिन खेत में काम करते रहे। शाम को जल्‍दी खाना खाकर वह कमरे में आ गया था। टीवी पर रात नौ बजे रामायण सीरियल आता था। टीवी अॉन कर वह खिन्‍द लेकर बिस्‍तर पर लेट गया था। अभी साढ़े आठ ही बजे थे और रामायण शुरू होने में अभी आधा घण्‍टा शेष था। अम्‍मा रसोई में काम कर रही थी। उसे कब जैसे झपकी लगी पता ही नहीं चला। अचानक उसे लगा जैसे कोई उसके शरीर के साथ खेल रहा है। क्‍या यह सपना है? उसने अपने आप को चेतन में लाया। उसे एहसास हुआ कि कोइर् उसके बिस्‍तर पर खिन्‍द के बाहर लेटा हुआ है। कहीं चुड़ैल या कोई भूत तो नहीं ? वह भय से कांप उठा। आंखे खोली, देखा - यह तो दरोगी भाभी है। टीवी पर रामायण शुरू हो गई थी। वह टीवी की ओर मुंह और उसकी ओर पीठ करके लेटी हुई थी। उसे उस समय यह सब अच्‍छा लगा। वह वैसे ही नींद का बहाना कर सोया पड़ा रहा। धीरे-धीरे वह उसके साथ और चिपक गई थी। इसी समय अचानक अम्‍मा की खांसने की आवाज सुन कर दरोगी भाभी एकदम उठकर बैठ गई थी और वह वैसे ही लेटा रहा था।
रात की घटना के बाद राधे देर सवेर किसी न किसी बहाने दरोगी भाभी के घर का चक्‍कर लगाने लगा। परन्‍तु हर बार वहाँ कोई न कोई उसका चाहने वाला बैठा होता। राधे का आना दरोगी भाभी को भी अच्‍छा लगता। राधे की नमस्‍ते का जवाब वह हमेशा मुस्‍कुरा कर देती। एक दिन वह दरोगी भाभी के घर लस्‍सी लाने गया। रसोई का दरवाजा खुला था। राधे ने बाहर से आवाज दी -‘दरोगी भाभी ?' ‘हाँ राधे !' शायद उसने राधे की आवाज पहचान ली थी।


‘लस्‍सी चाहिए।'
‘मैं नहा रही हूँ। खुद ले ले।'
दरोगी भाभी का बाथरूम रसोई के एक कोने को पक्‍का कर बनाया गया था। उसमें बस दो फटी हुई चादरें लटका कर ओट की गई थी।
राधे अन्‍दर आ गया। ‘भाभी कहाँ रखी है ?'
-चुल्‍हे के पास घड़े में रखी है।'
राधे ने घड़े से लस्‍सी ली और बाहर निकलने लगा तभी दरोगी भाभी ने टोका -‘राधे लस्‍सी ही लेनी थी या ----?'
-हाँ।
-बस ?
-हाँ।
- तो फिर रोज बहाने बनाकर क्‍यों आता है ?


राधे के पांव जस के तस रूक गये। उसने चोर नजरों से बाथरूम की ओर देखा। राधे को फटी चादर में से ऊकड़ू बैठ कर नहाते हुए दरोगी भाभी की पीठ दिखाई दी। उसके सारे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। टांगे कांपने लगी। वह जड़वत खड़ा हो गया। न तो उससे रसोई से बाहर निकलते बन रहा था और न कोई जवाब देते।
-राधे ! अच्‍छा चल आ ! मेरी पीठ मल दे। मेरे हाथ नहीं पहुँच रहे। दरवाजा बन्‍द कर आजा।'
वह रोमांचित हो उठा। उसने दरवाजे से बाहर देखा दूर तक कोई नहीं था। धीरे से दरवाजा बन्‍द किया - लस्‍सी के बाल्‍टु को नीचे रखा और चादर हटा कर बाथरूम में आ गया। दरोगी भाभी उसकी ओर पीठ कर ऊकड़ू बैठी हुई थी। धीरे से उसने उसकी पीठ पर हाथ रखा तो उसे एक करंट सा लगा। टांगों में कंपकपी तेज हो गई - हाथ कांपने लगे।
‘-क्‍या कर रहा है राधे? जरा जोर-जोर से मल।'


उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। वह दरोगी भाभी के नग्‍न शरीर को निहारता रहा। अचानक वह उठी और उसे एक बच्‍चे की तरह उठा कर अन्‍दर कमरे में ले गई। उसकी चीख निकलते-निकलते रूकी। दरोगी भाभी ने उसे अपने बिस्‍तर पर लगभग पटक दिया। इसके बाद वासना का वह खेल शुरू हुआ जिसमें दोनों उस पशुवत क्रिया में लिप्‍त हो गये जिसमें न कोई प्‍यार था और न कोई प्रेम। केवल वासना की अतृप्‍त भूख। उसे याद है अन्‍त में दरोगी भाभी ने उसे आंलिगनवद्ध करते हुए उसके होंठों पर एक जोरदार चुम्‍बन देकर लगभग लिपलॉक करके विदा किया था। यह सोचते-सोचते उसकी आंखों में चमक और चेहरे पर मुस्‍कराहट फैल गई। ‘ऊफ क्‍या दिन था।' परन्‍तु उसके बाद-
इसके बाद राधे ने कितनी ही बार कोशिश की परन्‍तु वह उससे इस या उस कारण मिल नहीं पाया। अन्‍तिम बार, उसे स्‍मरण हो आया कि वह एक दिन शाम को लस्‍सी लाने के बहाने दरोगी भाभी के घर गया तो वहाँ रामू बैठा था। दरोगी भाभी ने उसे रूखा सा जवाब दिया-‘लस्‍सी तो खत्‍म हो गई राधे। अब उसे रामु ले जाता है।' यह सुन रामू जोर से हंसा था। उसे वह हंसी अन्‍दर तक चुभी थी। इसके बाद वह कभी भी दरोगी भाभी को नहीं मिला।


अचानक रूंऊं․․․․․ की तीव्र आवाज ने राधे का ध्‍यान भंग किया। तारघर में दस बजे का सायरन बज उठा। ‘दस बज गये।' उसने मन में सोचा। वह बेंच पर से उठा। सामने अखनूर के पेड़ के नीचे से उसे भगतिया आता दिखाई दिया। उसकी आंखे चमक उठी। उसके सामने चैतो का गदराया हुआ बदन घूम गया। चैतो भगतिये से चौदह वर्ष छोटी थी। भगतिया मांगलिक था कोई मांगलिक लड़की नहीं मिली इसलिये शादी समय पर नहीं हो सकी। सरकारी नौकर था इसलिये बत्‍तीस साल की उम्र में भी अठारह साल की चैतो से विवाह हो गया। सरकारी नौकर होने के कारण पसन्‍द न होते हुए भी घरवालों ने चैतो को विवाह के लिये तैयार कर लिया था। क्‍योकि, चैतो भी मांगलिक थी दोनों की शादी हो गई। भगतिया पहले शराब को हाथ तक नहीं लगाता था परन्‍तु शादी के कुछ दिनों बाद ही शराब का आदी हो गया था। शादी को चौदह वर्ष हो गये थे परन्‍तु अभी तक भी घर में बच्‍चों की किलकारियां नहीं गुंजी थी। जितनी बार भी राधे भगतिये के घर गया उसने चैतो को अपनी ओर वासना भरी निगाहों से देखते हुए देखा। एक बार चैतो ने राधे से मन व्‍यक्‍त कर दिया ‘क्‍या फायदा ऐसी जिन्‍दगी से जिसमें कोई सुख ही नहीं। अब तो तनख्‍वाह भी शराब में उड़ा देते हैं। घर मे जगह जमीन है परन्‍तु वारिस न होने से सब बेकार।' उसने देखा कि चैतो उसकी ओर आकर्षित है परन्‍तु हर बार वह नजरन्‍दाज कर देता। अचानक उसके मन में एक षड़यंत्रकारी योजना ने जन्‍म लिया।
तब तक भगतिया समीप आ गया था। ‘-भगतिया जी, राम-राम।'
-राम-राम राधे। बड़े दिनों बाद मिला - कहाँ गया था ?
-बस ऐसे ही व्‍यस्‍त था। कुछ इस तरफ आना ही नहीं हुआ। और सुना, कैसा चल रहा है। भाभी कैसी है?
-सब ठीक है। चैतो तो मायके गई है।
यह सुनते ही राधे जैसे धड़ाम से आसमान से जमीन पर आ गिरा। उसकी सारी योजना फेल हो गई। उसने तुरन्‍त कहा -
-चल ठीक है। अभी जरा जल्‍दी मे हूँ फिर मिलुंगा।
-चल ठीक है।
राधे ने वहाँ से खिसकना ही उचित समझा।


धीरे-धीरे वह सीढि़यां उतरता हुआ मालरोड़ पर आ गया था। उसे आत्‍म-ग्‍लानि होने लगी थी। ‘वह कितना गिर गया है। अपने दोस्‍त की बीबी पर ही, छि․․․․।' उसने सिर को झटका दिया। सामने शौचालय देख उसे पेशाब की तलब हुई। सीढि़यां उतर कर पेशाब करने लगा। उसने देखा सामने लिखा हुआ था, ‘कॉल गर्ल के लिये-----नम्‍बराें पर सम्‍पर्क करें।' उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने दांये-बांये देखा कोई नहीं था। शौचालय का कर्मचारी अखबार में व्‍यस्‍त था। राधे ने जेब से पेन निकाला और हाथ पर सारे नम्‍बर नोट कर दिये। बाहर आया, सोचा - ‘चलो, लड़की तो मिल गई। परन्‍तु उसकों बुलाऊँगा कहां ? कोठी पर ? नहीं। भगतीये के क्‍वाटर में ? नहीं, वह क्‍या सोचेगा। होटल में? वहाँ बहुत पैसे लगेंगें। तारादेवी के जंगल में? पता नहीं लड़की तैयार होगी या नहीं। मुझे बात तो करनी ही चाहिये। शायद तारादेवी के जंगल को मान जाये।' वह एसटीडी बूथ पर गया। अचानक दिमाग ने पलटा खाया, ‘क्‍या पता यह कॉल गर्ल के नम्‍बर है भी या नहीं। किसी ने ऐसे ही शरीफ लड़कियों को बदनाम करने को लिख रखें हैं ? कहीं पुलिस के चक्‍कर में न डाल दे। अगर पुलिस ने पकड़ा तो मेमसाहब क्‍या सोचेगी। रोजी-रोटी छिनेगी सो अलग। नहीं, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।' फिर सोचा, ‘शायद कॉलगर्ल के ही नम्‍बर हो।' अचानक मन ने दुबारा पलटा खाया, अन्‍तःकरण से आवाज आई, ‘राधे इन कॉलगर्लज़ को दुनियाभर की बीमारियां होती है। किसी को एडज़ तो किसी को सिफलिस। ऐसा मत कर। ' उसने सिर को झटका दिया। सामने नल में जाकर हाथ धोकर नम्‍बर मिटा दिये।


नीचे गली में उतर कर दुकान से दूध की थैली ली और मिडल बाजार में शिव मन्‍दिर में आ गया। वह जब भी उदास या दुःखी होता मिडल बाजार के शिव मन्‍दिर में दूध चढ़ाता। लोटे में दूध डालकर-चन्‍दन घिसा, शिवलिंग पर ऊँ0 लिखा तथा दुग्‍ध धारा प्रवाहित की ----
‘ऊँ ह्रौं जूं सः, ऊँ भुः भुवः स्‍वः। ऊँ न्न्‍यम्‍बकं यजामहे सुगन्‍धिं पुष्‍टिवर्धनम्‌। उर्वारूकमिव बन्‍धनान्‍मृत्‍योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्‍वः भूवः भूः ऊँ। सः जूं ह्रौं ऊँ।
‘हे महादेव ! मेरे दुःखों को भी दूर करो। आखिर कब तक? अब तो चालिस का होने लगा हूँ, क्‍या यह जीवन ऐसे ही काटना पड़ेगा ?' उसने सिर नवाया और बाहर आ गया। अचानक सामने से एक साधु ‘बम बम भोले' का जाप करता हुआ आया। एक हाथ में त्रिशूल, जिसमें डमरू लटका हुआ और दूसरे में कमण्‍डल। चौड़ा भाल, तना हुआ सिना, गदराया हुआ बदन, कानों में कुण्‍डल और गर्दन में रूद्राक्ष की माला, पांव में खड़ाऊँ थी। इससे पहले की राधे उसे प्रणाम करता वह मन्‍दिर में प्रवेश कर गया था। अचानक उसे ध्‍यान आया कि यह साधु तो एक दिन पूर्व कोठी में भी आया था। उस दिन उसने केवल पांच रूपये देकर विदा कर दिया था। क्‍यों न इसी से अपने प्रश्‍न का निदान पुछूं। वह बाहर बालज़ीज़ की सीढि़यों पर इन्‍तजार करने लगा। थोड़ी देर में बाबा जी मन्‍दिर से बाहर निकले, राधे ने आगे झुक कर प्रणाम किया।
-बम-बम भोले। बिजली महादेव से आये हैं और चूड़धार जा रहे हैं। कुछ चढ़ावा चढ़ाना हैं ?
राधे ने दस रूपये का नोट तुरन्‍त थमाते हुए कहा- बाबा बहुत दुःखी हूँ। कुछ समय चाहता हॅूं, कब मिलूं?
-बच्‍चा! हम भराड़ी के जंगल के शिव मन्‍दिर में एक हफ्‌ते के लिये रूके हैं। जब चाहे आ जाओ। बेशक कल।
-धन्‍यवाद बाबा


राधे बाबा की आकर्षित करने वाली छवि से प्रभावित हो गया। राधे ने सुन रखा था कि कनफटिया योगी काफी पहॅुंचे हुए होते हैं। अतः उसने कल रविवार को ही बाबा को मिलने की ठान ली।
राधे सुबह जल्‍दी उठा, नहा धोकर तैयार हुआ। आज रविवार है।  अतः उसे  कोई ज्‍यादा काम नहीं करना, उसने मेम साहब से कहाः- मेम साहब, बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना तो नहीं ?
मेम साहब ने पचास रूपये का नोट पकड़ाते हुए कहा- ‘सब्‍जी देख लेना ठीक सी। आज सण्‍डे है। सब्‍जी मण्‍डी में तो बासी ही होगी, चलो ठीक सी देख लेना। या फिर पंचायत घर से सण्‍डे मार्केट से ले आना।'
-ठीक है मैम।
-कहीं अपने काम से जा रहे हो?
-हाँ मैम, कोई गांव से आना है। उसको मिलना है। थोड़ा समय लग जायेगा।
-ठीक है।


राधे कोठी से बाहर आ गया, तेज कदम भरता हुआ भराड़ी की ओर चला। भराड़ी पहुँच कर उसने चाय के ढाबे में शिव मन्‍दिर के बारे में पूछा। उसने बताया - ‘कोई ऐसा विशेष मन्‍दिर तो नहीं है, हाँ ! जंगल में एक वीरान सा मन्‍दिर जरूर है जिसमें कभी-कभी कोई साधु महात्‍मा रात को ठहरते हैं।' राधे बताये रास्‍ते में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर एक वीरान जंगल शुरू हुआ। कोई घण्‍टे भर बाद उसे एक छोटा सा शिव मन्‍दिर दिखाई दिया। आंगन में पहुॅच कर उसने देखा - बाबा जी लेटे हुए हैं -धूणा लगा है। एक चेला बाबा जी की टांगे दबा रहा है। राधे ने पांव स्‍पर्श किये और चेले के इशारा करने पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद बाबा आंखे बन्‍द किये ओऽम  का उच्‍चारण करता हुआ उठा। आंखे खोली - ‘भक्‍त को प्रसाद दो !'
-जी गुरू जी।


चेले ने पास ही रखी थाली से इलाइचीदाण्‍ाा के कुछ दाने राधे को दिये।
- बोलो भक्‍त ! क्‍या दुःख है ?
- दुःख नहीं बाबा जी, सुखी हूँ। शान्‍ति है। सब कुछ है। परन्‍तु एक कमी है। जिस कारण सब कुछ खाली-खाली सा है।'
बाबा ने राधे की आंखों में आंखे डालते हुए कहा-

क्‍व धनानि क्‍व मित्राणि क्‍व मे विषयदस्‍यवः।
क्‍व शास्‍त्रं क्‍व च विज्ञानं यदा मे गलिता स्‍पृहा ॥

 

राधे को अपना सिर भारी-भारी सा महसूस हुआ। उसने आंखों मलते हुए कहा- मैं समझा नहीं बाबा जी?
-भक्‍त, क्‍या धन, क्‍या मित्र, क्‍या विषयरूपी लुटेरे, क्‍या शास्‍त्र और विज्ञान? जब तेरी वासना खत्‍म हो जायेगी तब सारा बखेड़ा ही समाप्‍त हो जायेगा। सारा बखेड़ा तब तक है जब तक ईच्‍छा है, वासना है। अब तू मेरे पास आ गया है इसलिये सब ठीक हो जायेगा।'
राधे की आंखे भारी हो गई। उसे नींद आने लगी। अब उसे कुछ भी सुनाई देना बन्‍द हो गया था। वह एक गहरी तन्‍द्रा में चला गया। कहीं दूर अवचेतन मन में। अचानक ठण्‍डे पानी के छिंंटें चेहरे पड़ने से वह चेतन में लौटा-
-‘भक्‍त ! साे मत। बोलो क्‍या चाहिए ? एक पत्‍नी की तलाश है?
-हाँ बाबा जी, हाँ। एक परिवार की अपूर्णता। किसके लिये है यह सब दौड़ धूप ? किसके लिये ? एक सुन्‍दर पत्‍नी चाहिए।
-जो दरोगी भाभी की कमी को भी पूरा कर सके। आंगन में अपने बच्‍चे की किलकारिंया गूंजे। क्‍या यही इच्‍छा है भक्‍त?'
दरोगी भाभी का नाम बाबा के मुंह से सुनते ही राधे की आंखे फटी की फटी रह गई। वह हैरान रह गया। उसने बाबा के पांव पकड़ लिये - बाबा जी आप सर्वज्ञ है। आपसे क्‍या छुपा है। बस बाबा जी, एक पत्‍नी चाहिए। मैं आपके चरणों को धो-धोकर पिंऊगा।
-बच्‍चा हमें सब पता है कि तू क्‍या-क्‍या करता है। साहब और मेम साहब को छुप-छुप कर देखते हो। अपने दोस्‍तों की बीवियों पर बुरी नजर रखते हो। क्‍यों सच है कि नहीं?
ऐसी बाते सुनकर राधे का मुंह खुला का खुला रह गया। उसे कुछ भी नहीं सुझ रहा था कि क्‍या कहा जाये।
-माफी चाहता हूँ बाबा जी।


-अच्‍छा भक्‍त, कल पूर्णमासी है। एक उपाय करना होगा। परन्‍तु․․․․․․․․।'  अचानक बाबा चुप हो गये।
-क्‍या उपाय है बाबा ? मैं सब करने को तैयार हूँ।
-बाबा ने आंखे बन्‍द कर दी। वह कुछ बुदबुदाने लगा था। अब मोर्चा चेले ने सम्‍भाला - उपाय कठिन है। उसे थोड़ा सरल करने के लिये गुरू जी अपने गुरू से सम्‍पर्क कर रहे हैं।
थोड़ी देर सब शान्‍त। राधे बाबा का मुंह देखता रहा। बाबा आंखे बन्‍द किये बुदबुदाता रहा।
-भक्‍त दस हजार का खर्चा है।
-दस हजार ․․?
राधे का मुहं खुले का खुला रह गया।
-हाँ दस हजार।
-मेरे पास तो दो हजार है इस महिने की तनख्‍वाह को मिला कर चार हजार हो जायेेगें।
-गांव में खेत जो है भक्‍त। वह कब काम आयेगा। चेले ने कहा।
राधे चुप। उसके पास मात्र एक खेत बचा था  बाकि तो साहुकारों के पास अभी भी गिरवी थे।
-क्‍या सोच रहे हो भक्‍त ? अगर परिवार बन गया तो खेत तो छूट जायेंगें। नहीं तो खेत का भी क्‍या करोगे ?
राधे ने लगभग जैसे चेले की बात पर सहमति स्‍वरूप सिर हिलाया।
-तो उपाय बतायें भक्‍त। दस हजार रूपये पक्‍का।


राधे ने सहमति में सिर हिलाया।
-‘तो सुनों !' चेले ने कहना शुरू किया।
-कल पूर्णमासी को रात के बारह बजे मोई (सुहागा)जो खेत में पड़ी हो को थोड़ा छीलकर उस लकड़ी को शमशान घाट में जलाना और उस राख को परसों गुरू जी के पास लेकर आना। साथ में दस हजार रूपये लेकर आना। बाबा जी तावीज बनाकर देेंगें। ताकि तुम्‍हारी हफ्‌ते के अन्‍दर शादी हो जाये। मतलब समझ गये न----। और हाँ, एक बात का ध्‍यान रखना कि मोई को छिलने को जाते समय शरीर में कोई कपड़ा मत पहनना, केवल नग्‍न अवस्‍था में शमशान जाना। और शमशान घाट से होकर जब घर आयें तब ही कपड़े पहनना। साथ में एक दसरी बात का ध्‍यान रखना कि कोई भी तुम से न मिले। अर्थात इस सारी क्रिया को बिल्‍कुल गुप्‍त करना और रखना। परसों जब घर से चलो तो सीधे यहाँ चले आना। अकेले।
राधे सहमति मे सिर हिलाता रहा। वह उठा। उठते हुए उसने पूछा- बाबा जी, जब शमशान घाट नग्‍न जाना है तो राख कैसे लाऊंगा। कुछ तो साथ ले जाना पड़ेगा।
-उसके लिये एक धातु का डिब्‍बा साथ ले जाना। उसमें पानी ले जाना ताकि जब लकड़ी जल जाये तो उसे बुझाने के लिये और बाद में राख को वैसे ही उस डिब्‍बे में ले आना।'
राधे उठा। बाबा को प्रणाम किया। चेले के पांव भी छुए।
बाबा ने आंखे खोली और आकाश की ओर ऊंगली उठाते हुए कहा - एक मात्र उपाय है - अगर कर दिया तो लड़की मिल जायेगी नहीं तो सारी उम्र अकेले ही गुजारनी पडे़गी।
-जी बाबा जी।


राधे वापस मुड़ा और सब्‍जी मण्‍डी से होता हुआ कोठी आ गया। शाम को ही मेम साहब से तनख्‍वाह की बात की। कुछ एडवांस भी मांगा। दस हजार तक फिर भी नहीं पहुँचा। मेम साहब ने दो हजार रूपये तनख्‍वाह और दो हजार रूपये एडवांस दे दिया। साथ में राधे ने तीन दिन की छुट्‌टी की बात भी कर दी।
अम्‍मा की मृत्‍यु के बाद राधे छुट्‌टी कम ही गया था। अतः ज्‍यादा गुजारिश नहीं करनी पड़ी।
वह सुबह उठा। बस पकड़ कर सीधा गांव पहँचा। गांव में एक करियाने की दुकान थी। पहले भी राधे के कुछ खेत उसी दुकानदार के पास गिरवी थे। अतः राधे ने उसी से उस डोरे (बड़ा खेत) की बात की। राधे को ज्‍यादा मान मनौवल नहीं करनी पड़ी। कुल मिलाकर पच्‍चीस हजार रूपये में बात हो गई। राधे ने सोचा जब लड़की मिल जायेगी तो उसको भी तो कुछ लेना पड़ेगा।


पैसों का इन्‍तजाम होने के बाद राधे घर पहुँचा। कई दिनों बाद घर आया था। परन्‍तु उसका मन तो कहीं ओर ही था। कपड़े बदल आंगन मे आया। सामने दरोगी भाभी अपनी गाय को चारा डाल रही थी। शरीर अब ढल चुका था। पास ही गोलु कुल्‍हाड़ी से लकड़ी काट रहा था। गोलु आज बाईस तेइस वर्ष का गबरू जवान हो गया था। उसने एक नजर डाली और फिर मुड़ गया। सामने सफेदे के पेड़ के पास खड़ा अपने उस डोरे को निहारने लगा जिसका वह अभी - अभी सौदा कर आया था। उसने एक लम्‍बी सांस ली। अब पता नहीं आज के बाद यह डोरा कभी उसका होगा भी या नहीं ? उसकी अम्‍मा ने कितना बचा कर रखा था। गरीबी के दौर में भी नहीं बेचा था। उसने फिर सिर को झटका दिया वह अब विपरीत विचार मन में आने से बचना चाहता था। ‘उम्र ढल चुकी है। अब मुझसे कौन शादी करेगा ? यही एक मात्र उपाय है और यह प्रयास मुझे करना ही होगा।' उसने अपने निश्‍चय को पक्‍का करने के लिये सहमति स्‍वरूप गर्दन हिलाई।


-राधे कब आये ?
दरोगी भाभी की आवाज सुनकर वह चेतन में लौटा।
-बस भाभी अभी आ रहा हूँ।
हालचाल पूछने के बाद उसने वहाँ से निकलना ही उचित समझा।
राधे एक विशेष कार्य से आया था। इसलिये उसने गांव में चक्‍कर लगाना उचित नहीं समझा। सीधा खेतों का रूख किया। वह खेतों में बाबा के बताएनुसार एक मोई ढूंढने लगा। उसे शाम से पूर्व यह सुनिश्‍चित करना था कि मोई किस खेत में है ताकि उसे रात को कठिनाई न हो। आखिर दो तीन खेतों से गुजरने के बाद उसे एक खेत में मोई (सुहागा) पड़ी हुई दिखी ं वह उसके पास से गुजरा। वह बिल्‍कुल अभी-अभी प्रयोग में लाई गई थी। उसने एक लम्‍बी सांस ली छोड़ी। उसका एक काम हो गया था। अब उसे शमशान घाट का रास्‍ता देखना था। गांव के दूसरे छोर से कोई डेढ़ किलोमीटर उतराई उतर कर एक नाले में झाडि़यों के झुरमुट के बीच था। वैसे तो रास्‍ता ठीक था परन्‍तु बीच-बीच में कहीं कहीं कुछ कंटीली झाडि़यों की टहनियां रास्‍ते में आ गई थी। उसकी अम्‍मा को मरे तीन वर्ष हो गये थे । उसके बाद गांव में किसी की मृत्‍यु नहीं हुई थी। फिर बाबा ने यह तो कहा नहीं था कि शमशान ताजा होना चाहिए या पुराना भी चलेगा।


अपने खेत की फसलों को जंगली सुअरों से बचाने के लिये वह शमशान घाट से मध्‍य राित्र को कई बार पहले भी गुजर चुका था इसलिये उसे डर का तो प्रश्‍न ही पैदा नहीं होता था। डर था तो इस बात का कि कोई रात को उसको नंगा शमशान जाते हुए न देख ले या फिर शमशान में मोई की लकड़ी को जलाते हुए न देख ले।
वह वापस घर आ गया। दिन के बारह बज रहे थे। अम्‍मा की मृत्‍यु के बाद उसने घर आना कम कर दिया था। इसलिये गांव वालों से उसका मेलमिलाप कम था। अभी वह अपनी पशुशाला के पिछवाड़े से गुजर ही रहा था कि सेवती चाची ने उसे देख लिया -
-राधे ?
-हां चाची ! पैरी पउंदा।
राधे ने आगे बढ़कर चाची के पांव छुए।
- कब आया ? तूं तो गांव को भूल ही गया। बीच बीच में चक्‍कर लगा लिया कर।
-क्‍या करूंगा चाची घर आ कर? यहां कौन मेरी राह देखता है।
-फिर भी गांव गांव होता है। अच्‍छा चल खाना खा ले। खाने का वक्‍त हो गया।
-चाची भूख नहीं है। पर चलो जब आप कह रही हैं तो एक रोटी खा लेता हूँ।
राधे ने चाची के घर खाना खाया और फिर घर की साफ सफाई के बहाने जल्‍दी ही घर आ गया। बिस्‍तर झाड़ा और लेट गया। शाम के पांच बजे उठा। एक दराट और एक टीन का डिब्‍बा, एक मिट्‌टी के तेल की शीशी और एक माचिस उसने दरवाजे के पीछे रख ली ताकि रात को ढूंढने में अड़चन न हो। फिर घर से बाहर निकल गया। वह फिर उस खेत का चक्‍कर काट आया कि मोई वहीं है या नहीं। निश्‍चित हो कर घर आ गया।
अभी वह किचन  में झाड़ू ही दे रहा था कि गोलु आ गया।
-चाचु खाना परे ही खाना। अम्‍मा ने बोला है।
- वह ना न कर सका और सहमति में सिर हिला दिया।


शाम को आठ बजे वह दरोगी भाभी के घर खाना खाने चला गया। दरोगी भाभी उससे काफी बाते करना चाहती थी। विशेषकर गोलु के भविष्‍य को लेकर। परन्‍तु वह सिर दर्द का बहाना कर शीघ्र ही वापस आ गया। टीवी आन कर टाईम पास करने लगा। रात साढे ग्‍यारह बजे वह लाईट अॉफ कर बाहर निकला - पांच मिनट आंगन में खड़ा हो कर यह सुनिश्‍चित किया कि कोई बाहर तो नहीं। सारा गांव दिन भर खेतों में काम करने की थकान के कारण गहरी निंद्रा में सोया हुआ था। वह अन्‍दर आया और तुरन्‍त कपड़े उतारे - दराट, माचिस, पानी का डिब्‍बा, तेल की शीशी लेकर तुरन्‍त घर से निकल गया। खेत में पहुँच कर मोई को छिला और उसकी तीन चार छिलके लेकर शमशान घाट पंहुच गया और फिर बाबा द्वारा बतायेनुसार मोई के छिलकों को आग लगा दी। थोड़ी देर मे ही वह जल कर राख हो गई, राख ठण्‍डी होने दी और फिर राख को डिब्‍बे में डाल कर घर वापस आ गया। सारा आप्रेशन सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न होने के बाद वह सो गया।
सुबह घड़ी के अलार्म ने उसे जगाया। तुरन्‍त हाथ मुहं धोकर, श्‍मशान से लाई राख एक लिफाफे में डाली, लिफाफे को बैग में रख कर घर को ताला लगाया और साढ़े सात बजे बस में बैठकर दस बजे शिमला पहॅुंच गया। दस हजार रूपये उसने एक जेब में गिन कर घर में ही रख दिये थे और बाकि पैसे बैग में रख लिये थे। जब वह मन्‍दिर में पहुँचा तो बाबा चौकड़ी डाल कर समाधिस्‍थ थे और चेला पास ही लेटा हुआ था। राधे ने बाबा को प्रणाम किया और चेले को भी प्रणाम किया। चेले के इशारा करने पर वह एक तरफ बैठ गया।


थोड़ी देर बाद बाबा ने ओऽम के उच्‍चारण के साथ अपनी आँखे खोली। सामने राधे को देख कर पूछा-
-राख लाये हो?
-हाँ बाबा जी।
-शाबाश ! अब तुम्‍हारे और लड़की के बीच सिर्फ एक कदम का फासला है। लाओ वह राख मुझे दो।
राधे ने राख का लिफाफा निकाल कर बाबा जी के सामने रख दिया। बाबा ने लिफाफा खोला और उसमें धूणे से कुछ राख मिलाई तथा फिर कुछ पदार्थ अपने कमण्‍डल से निकाल कर मिलाया और राधे को पकड़ाते हुए कहा-
- वत्‍स ! आज बुधवार है। कल वीरवार है। कल वीरवार का दिन अति शुभ है। कल सांय को इसका तिलक लगाकर शहर के सुनसान चौराहे पर शाम को सात से नौ बजे के बीच जिस भी लड़की से बात करोगे वहीं तुम्‍हारी पत्‍नी बनेगी। तुम्‍हे उससे किसी भी बहाने बात करनी होगी। और हाँ एक बात का ध्‍यान रखना कि जैसे ही वह तुमसे बात करने को रूकेगी तुम उसका हाथ पकड़ना ताकि तुम्‍हारे माथे पर लगे तिलक पर उसकी नजर पड़ जाये। जैसे ही उसकी नजर तुम्‍हारे तिलक पर पड़ेगी वह तुम्‍हारे वश में होगी। उसके बाद तुम जो भी चाहों उसके साथ कर सकते हो। मतलब समझ गये। वही जो तुमने दरोगी भाभी के साथ․․․․․․․․․․․। परन्‍तु एक बात का ध्‍यान रखना कि वह जितना मर्जी रोये चिल्‍लाये उसे छोड़ना मत। अगर किसी कारणवश उसे वश में होने को समय लगे तो उसके सिर पर राख की एक चुटकी डाल देना।
राधे चुपचाप सुनता रहा। राधे को कुछ संशय में देखकर बाबा ने पुनः कहा ः-
-देखो वत्‍स ! अब तुम्‍हें कैसी लड़की चाहिये यह तो तुम्‍ही पसन्‍द करोगें और फिर वशीकरण विभूति हम तुम्‍हे दे ही रहे हैं। तुम्‍हें तो मात्र उसके सामने जाना है उसका हाथ पकड़ना है और मात्र एक चुटकी विभूति उसके सिर पर डालनी है। उसके बाद फिर वहीं जो दरोगी भाभी के साथ ․․․या फिर जो साहब अपनी मेम साहब के साथ ․․․․․․․․․․․․। समझ गये न। अगर पत्‍नी चाहिए तो यह हिम्‍मत तो करनी ही पड़ेगी। तुम्‍हारे पास यही एक मात्र उपाय है।
राधे पूर्णरूप से बाबा के कब्‍जे में हो गया था। वह उठा और राख को अपनी जेब रखा और चलने लगा।


-वत्‍स ! हमारी दक्षिणा ?
-ओह सॉरी बाबा जी। मैं तो भूल ही गया था।
राधे ने दस हजार रूपये जेब से निकाले और बाबा के चरणों में रख दिये। पुनः चरण छूकर वहाँ से निकल गया।
वीरवार की शाम को नहा धोकर माथे पर तिलक लगा कर राधे ने विभूति को जेब में रखा और कोठी से निकल गया। वह सोचने लगा कि उसकी बीवी दरोगी भाभी की तरह नहीं होनी चाहिये जो हर कहीं मुॅह मारती फिरे। उसकी बीवी तो मेमसाहब की तरह होनी चाहिए, शालीन, विनम्र और सुन्‍दर। इसी बीच वह एक सुनसान चौराहे पर पहॅुंच गया। यह चौराहा शहर से दूर था। यहां से नीचे एक छोटा सा गांव था। इस गांव से शहर को दो तीन लड़कियां आती थी। वह एक पेड़ के नीचे बैठ कर लड़की का इन्‍तजार करने लगा। थोड़ी देर बाद ही सांयकाल का धुन्‍धलका हो गया। राधे ने घड़ी पर नजर डाली रात के सात बज चुके थे। थोड़ी देर में उसे एक लड़का और एक लड़की आते हुए दिखाई दिये।  उसने उन्‍हे जाने दिया। वह वहीं बैठा रहा। थोड़ी देर में एक लड़की जिसकी उम्र पच्‍चीस साल के करीब होगी, आई। उसने उसके नैन नक्‍श, चाल-ढाल देखा, ‘काफी कुछ मेम साहब से मिलता जुलता है। यही ठीक है।' राधे तुरन्‍त उसके सामने आ गया - मेडम, काली घाटी के लिये रास्‍ता कहाँ से जाता है ?
-मुझे नहीं मालूम।
- मैडम रात हो गई है मेरी थोड़ी हेल्‍प करो।


इतना कहते हुए राधे ने उसका हाथ पकड़ लिया। लडकी एकदम हतप्रभ। वह चिल्‍ला उठी। राधे ने उसके ऊपर एक चुटकी विभूति गिरा दी,  जो उसने पहले ही हाथ में पकड़ रखी थी। और अब वह उसे एक ओर घसीटने लगा। लड़की बचाओ, बचाओ चिल्‍लाने लगी। राधे ने उसके मुंह पर एक हाथ रख दिया ताकि वह चिल्‍ला न सके और एक तरफ ले जाकर उसे नीचे गिरा कर उसके ऊपर चढ़ गया। इसी बीच लड़की  की चीख-पुकार सुनकर राह चलते लोग इकट्‌ठे हो गये। कुछेक ने राधे को लड़की के ऊपर से घसीट कर अलग किया। उसकी पेंट पांव में फंसी रह गई। वह वहीं पर गिर पड़ा। किसी ने उसके मुंह पर मुक्‍का मारा तो किसी ने लात। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। उसने उटने की कोशिश की परन्‍तु लोगों की धक्‍कमधकी से औधे मुंह जमीन पर गिर पड़ा। उसके नाक मुँह से खून बहने लगा। इतने में पुलिस आ गई और राधे को पकड़ लिया गया।
पुलिस वैन में बैठे हुए राधे सोच रहा था कि आखिर उसके साथ नियती ने यह कैसा खेल खेला। वह तो पिछले लगभग बीस वर्षों से एक लड़की की खातिर, बस एक शादी करने के लिये कोशिश करता रहा। फिर क्‍यों․․․․․․․․․? शायद इसी लिये लोग रेप करने के लिये मजबूर होते हैं। 
 
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-नेम चन्‍द अजनबी
शिक्षा-क अनुभाग
कमरा न0-402ए आर्मजडेल भवन
हिमाचल प्रदेश सचिवालय
शिमला -171002
मोबाईल नम्‍बर - 09418033783
e-mail-  nemcandroli@gmail़com

 

संक्षिप्‍त विवरणिका

मेरा नाम नेम चन्‍द अजनबी है। मेरा जन्‍म 10 मार्च 1969 को हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला की अर्की तहसील के एक पिछ़ड़े गांव अन्‍द्रोली में हुआ। पीजी डिप्‍लोमा इन जर्नालिर्जम एण्‍ड मास कम्‍यूनिकेशंज और उसके बाद इतिहास, समाजशास्‍त्र तथा पत्रकारिता और जन-संचार में स्‍नात्‍कोत्‍तर ऊपाधि। पुस्‍तकें पढ़ने के शौक के अलावा लेखन का भी शौक। अभी तक गुलदस्‍ता (हिन्‍दी एवं पहाड़ी कविता संग्रह), हिमाचल प्रदेश का इतिहास, कला, संस्‍कृति एवं प्रशासन, भारत का इतिहास (सह-लेखन) पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी है जबकि ईस्‍ट ईण्‍डिया गज़ेटीयर अॉफ हिमाचल प्रदेश (सम्‍पादित) प्रकाशनाधीन है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास एवं संस्‍कृति से सम्‍बन्‍धित अनेक लेख प्रकाशित। साहित्‍यिक पत्रिका हंस के जुलाई 2011 के अंक में ‘विजूका' कहानी के प्रकाशन के साथ कहानी विधा में पदार्पण।
16 मई 1996 को सरकारी सेवा में प्रवेश। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश सचिवालय शिमला में कार्यरत।

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नेम चन्‍द अजनबी की कहानी - एक लड़की की खातिर
नेम चन्‍द अजनबी की कहानी - एक लड़की की खातिर
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