छत्तीसगढ़ के सुरम्य वनों में गूंजता जीवन का संगीत डॉ.चन्द्रकुमार जैन जाने-माने हिंदी कवि अज्ञेय जी ने लिखा है - जब कभी मैं जंगलों में अक...
छत्तीसगढ़ के सुरम्य वनों में
गूंजता जीवन का संगीत
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
जाने-माने हिंदी कवि अज्ञेय जी ने लिखा है -
जब कभी मैं
जंगलों में अकेले घूमता हूँ
मुझे लगता है
जहाँ मैं पेड़ों को देखता हूँ
वहाँ पेड़ मुझे भी देखते हैं.
वनों के प्रति कविता जैसा ऐसा ही सुन्दर भाव, संस्कृति, संपदा और संभावना की भूमि छत्तीसगढ़ में सहज विद्यमान है. यहाँ वनों का जीवन से गहरा नाता सर्वविदित है. जिस प्रकार 'धान का कटोरा' संज्ञा, छत्तीसगढ़ की अलग पहचान निर्मित करती है, उसी प्रकार हमारा यह प्रदेश वन-संपदा और वन-वैभव के विशेषण का प्रतीक भी है. याद रखना चाहिए कि वनों से छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय महत्ता और आंचलिक अस्मिता भी जुड़ी है और पर्यावरण व पर्यटन के कई पहलू इससे पल्लवित-पोषित हो रहे हैं.
यदि देखें तो छत्तीसगढ़ की वन संपदा और वन्य जीवों की प्रभावी मौजूदगी, वनों की विविधता और उसकी सुन्दरता ने हमारे प्रदेश की छवि अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुँचा दी है. यहाँ के सघन वन सचमुच विरल हैं. बाहर की दुनिया के अनेक कुप्रभावों से यदि छत्तीसगढ़ विशेष सन्दर्भों में सुरक्षित है तो उसके पीछे यहाँ के वनों का ही योगदान है. अटल, अगम हिमालय के सामान हमारे वन हमारे रक्षक भी हैं.
छत्तीसगढ़ का भौगिलिक स्वरूप, वनों की सघनता से आच्छादित है. इससे यहाँ की संस्कृति और लोक जीवन भी संरक्षित है. यदि यह कहा जाए की छत्तीसगढ़ की पुरातन गरिमा, यहाँ के वनों पर आश्रित है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. राज्य के वनों से उसकी प्रगति का चोली दामन का सम्बन्ध है. वन यहाँ की आय के बड़े स्रोत हैं. वन-परिवेश और वन-धन को देखकर ही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ, छत्तीसगढ़ को ऋण एवं अनुदान देने तत्पर रहती हैं. ऐसी संस्थाओं में विश्व बैंक भी शामिल है.
राज्य में वनों की महिमा और वानिकी के 150 वर्ष पूरे होने पर प्रारंभ किया गया हरियर छत्तीसगढ़ अभियान, नई इबारत लिख रहा है. प्रदेश को हरा-भरा बनाने का बीड़ा उठाया गया है, इससे नई आशाओं का नया सूर्य उदित होता दिख रहा है. हरियर छत्तीसगढ़ अभियान के तहत पूरे प्रदेश में लगभग 6 करोड़ 20 लाख पौधे रोपने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए सभी विभागों को अलग-अलग लक्ष्य दिये गये. इसमें अकेले वन विभाग पूरे प्रदेश में सवा चार करोड़ वृक्षों का रोपण कराने के अभियान को गति दी और यह सिलसिला बाद के इन वर्षों में जारी है. यह प्रदेश में वन संपदा और उसकी विरासत से मिली प्रेरणा का ही प्रतिफल है कि प्रदेश को हरा भरा बनाने का क्रांतिकारी कदम उठाया गया है.
उल्लेखनीय है कि जैव-भौगोलिक विशिष्टता तथा जैव विविधता की दृष्टि से छत्तीसगढ़ एक अतुल्य राज्य है. यहाँ के वनों में अनगिन औषधीय महत्त्व के पौधे हैं जिनका बहुआयामी उपयोग आज तक शोध का विषय बना हुआ है. हर्बल छत्तीसगढ़ विशेषण हमारे प्रदेश के लिए नितांत उपयुक्त है. यह यहाँ के वनों की ही देन है. यहाँ 22 किस्म के विविध वन हैं. छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल 1,35,194 वर्ग किलोमीटर है जिसके 59772.३८९ वर्ग कि. मी. क्षेत्र में वन हैं. स्पष्ट है कि प्रदेश का 44 .2 प्रतिशत भाग वनों की शोभा की कहानी कह रहा है.
यह हमारे प्रदेश का गौरव है कि वह भारत के वन क्षेत्र के लगभग 12 .26 प्रतिशत हिस्से पर अधिकार रखता है. परन्तु कोई संदेह नहीं कि अंधाधुंध विकास के सर्व व्यापी दौर में प्राकृतिक संसाधनों को जिस तरह नुकसान पंहुचा है उससे हमारा प्रदेश भी अछूता नहीं रहा. यही कारण है कि विगत कुछ वर्षों में यहाँ की वन संपदा प्रभावित हुई है, जिसे मूल वैभव के अनुरूप संजोने व संवारने के हर संभव प्रयत्न भी किए जा रहे हैं. यह बेशक एक उत्तरदायी कदम है. प्रदेश ने समझा है कि बेशुमार जैविक दबाव के कारण हमारे वनों का जीवन सिमट रहा है. 50 प्रतिशत वनों के सामने उनके विकृत होते रूपों को देखकर लगता है कि उनके अस्तित्व का संकट मुंह बाए खड़ा है. फिर भी, ये सुखद संकेत है कि एक तरफ उजाड़ हो रहे वनों की रक्षा के तो दूसरी ओर संरक्षित वनों को अधिक उन्नत बनाने के कार्यक्रम तेजी से चलाये जा रहे हैं.
कौन नहीं जानता कि छत्तीसगढ़ के वनों का वैभव, साल और सागौन जैसे मूल्यवान वृक्षों से सुसज्जित है. दीगर वृक्षों में बीजा. साजा, धरवा, महुआ, तेंदू, आंवला, कर्रा और बांस का भी अहम स्थान है. यहाँ के वनों को विधिक आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है, जिनमें आरक्षित, संरक्षित-सीमांकित तथा संरक्षित असीमान्कित वन क्षेत्र सम्मिलित हैं. इन वन वृत्तों में जगदलपुर, दुर्ग, कांकेर, बिलासपुर, रायपुर, सरगुजा शामिल हैं. एक अन्य विभाजन के अनुसार प्रबंधन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के वनों को चार भागों में बाँटा गया है. ये हैं - सागौन, साल, बांस और विविध वन, इन वनों के घनत्व में भी विविधता है. बस्तर प्रदेश के सबसे अधिक घनत्व वाला वन क्षेत्र है. इसी तरह जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, धमतरी जिलों को भी घने वन क्षेत्रों वाले जिले का दर्ज़ा प्राप्त है.
साल और सागौन छत्तीसगढ़ में जंगल के स्वर्ण के समान हैं. इसमें भी साल का प्रमुख स्थान है. यही कारण है की साल को हमारे यहाँ राज्य वृक्ष का दर्ज़ा मिला है. उधर सागौन के नैसर्गिक वन राजनांदगाँव, उत्तर रायपुर, भानुप्रतापपुर एवं नारायणपुर वन मंडलों में मिलते हैं. प्रदेश में मिश्रित वनों में साजा, बीजा, धावड़ा, हल्दू, अंजन, खम्हार, तेंदू, महुआ. हर्रा, बहेड़ा, आंवला, पलसा,, बाँस, सवाई आदि उपलब्ध हैं. इन वनों में ग्राउंड फ्लोरा के रूप में अनेक औषधीय प्रजातियाँ प्राप्त हैं. इस प्रकार, छत्तीसगढ़ विपुल जैव विविधता का क्षेत्र है.यहाँ उपलब्ध बाँस को लघु वनोपज की श्रेणी में रखा गया है. बाँस प्रदेश के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है. बताया जाता है कि सिर्फ बस्तर में बाँस की अस्सी से अधिक प्रजातियाँ मिलती हैं.
छत्तीसगढ़ में वन प्राकृतिक संपदा के साथ साथ पर्यावरण और जीवनोपयोगी उत्पादों के कारण अमूल्य निधि भी हैं. हमारी जीवन ऊर्जा को संरक्षित रखने और प्रदेश की खुश्हाकी के नए-नए द्वार खोलने में यहाँ के वनों की बड़ी भूमिका है. इससे निकटवर्ती राज्यों का सम्बन्ध भी जुड़ा है. छतीसगढ़ की नदियों से जल ग्रहण की सुविधा के कारण ये वन राष्ट्रीय महत्त्व के बन पड़े हैं. वन संपदा के इस महत्त्व को ध्यान में रखकर ही में वन-नीति बनाई गई. इस दृष्टि से हमारा प्रदेश, भारत का संभवतः पहला राज्य है जिसने वन प्रबंधन को एक नई दिशा देने की ठोस पहल की है. सभी स्टारों पर मूल्यांकन और अनुश्रवण के माध्यम से वनों की सुरक्षा तथा वन संपदा के विकास की कारगर पहल की गयी है. मानव संसाधन विकास और प्रसिक्षण में माध्यम से प्रदेश का वन विभाग वन वैभव की संवृद्धि का सराहनीय प्रयास कर रहा है. इसमें जन सहयोग की अधिक उम्मीद स्वाभाविक है. बिगड़े वनों का सुधार, बाँस वनों का उद्धार, पर्यावरण वानिकी, सड़क निर्माण, पौध प्रदाय योजना आदि इस दिशा उठाए गए अन्य अहम् कदम हैं.
वन संपदा के रूप में छत्तीसगढ़ में मुख्य उत्पाद काष्ठ और जलाऊ लकड़ी है. इनमें इमारती लकड़ी वाली प्रजातियाँ भी शामिल हैं. वनोपज अधिनियम के माध्यान से प्रदेश में काष्ठ के व्यापार का राष्ट्रेय्करण किया गया है. वन संपदा शिल्क कला के प्रोत्साहन., विप्नान और प्रदेश की विश्व स्तरीय पहचान निर्मित करने में भी महत्त्व पूर्ण है. यहाँ साल, सागौन. बीजा, साजा, शीशम और खैर आदि राष्ट्रीय प्रजातियाँ हैं. मुख्य वनोपज के साथ साथ लघु वनोपज उत्पादन और संग्रहण में भी प्रदेश पीछे नहीं है. बॉस, तेंदूपत्ता, गोंड आदि के संग्रहण और विप्नान में प्रदेश की वन नीति तथा लघु वनोपज संघ की संयुक्त सकारात्मक भूमिका है.उन्हें चरण पादुकाओं का वितरण किया गया. अनेक नए उपायों से समय समय पर प्रोत्साहन भी दिया जता है. समूह जीवन बीमा योजना भी लागू है. वन संपदा के संरक्षण हेतु महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जा रही है. बिगड़े बाँस वनों के सुधार की दिशा में भी अभिनव प्रयास किये जा रहे हैं. ग्राम विकास कार्यक्रम, हरियाली प्रसार योजना, नदी तट वृक्षारोपण कार्यक्रम, पथ वृक्षारोपण, वन मार्गों पर रपटा अवं पुलिया निर्माण, बो डीजल के लिए रतनजोत रोपण जैसे अनेक कार्यक्रम प्रदेश की वन संपदा के महत्त्व और विकास की जरूरत के जीवंत साक्ष्य है.
भारत का विकास देखकर पूरी दुनिया अचरज करती है लेकिन अमेरिका चीन, जापान, फ्रांस और जर्मनी जैसे बड़े और समृद्ध देशों की तरह आगे बढ़ने की हो़ड़ में हम लोगों ने बड़ी कीमत चुकाई है। भारतीय पर्यटन स्थलों की हरियाली देखने विदेश से लोग जरूर आते हैं मगर हकीकत यह है की विकास की अंधी दौड़ में हम लोग प्रकृति को धीरे-धीरे नष्ट करते जा रहे हैं। उगा रहे हैं तो सिर्फ सीमेंट के जंगल, घुमावदार फ्लाईओवर और गगनचुंबी इमारतें। कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, और चेन्नई का हाल यह है कि यहां जंगलों को काटकर कॉलोनियां बसा दी गईं। लाखों-करोड़ों पेड़ों को बलि चढ़ा दी गई। सिलसिला आज भी जारी है।
जनसंख्या का बोझ लगातार बढ़ रहा है। अभी तक जो पर्यावरण अशुद्ध हुआ वह आने वाले सालों में और भी दूषित होगा। तब यह निश्चित है की मनुष्य उस समय प्रकृति का साथ पाने के लिए तरसेगा। तो बच्चों ऐसी हालत आने से पहले क्यों न हम अपने आसपास बची खुची जगहों पर, घरों के आगे, बालकानी में या छतों पर पौधे लगाना शुरू कर दें और उसकी देखभाल वैसे ही करें जैसे माता अपने बच्चों का पालन पोषण किया करते हैं। ये पेड़ पौधे हमारे दोस्त हैं। अगर हम इन्हें बचाएंगे तो ये धरती जल और वायु को बचायेगी।
हम सब छत्तीसगढ़ वासियों का यह पुनीत कर्तव्य है कि हम अपनी वन संपदा को नष्ट होने से बचाएं. उसके विकास के क़दमों के हमकदम बनें. माटी महतारी का ऋण चुकाने के लिए जल जमीन और वन की रक्षा का संकल्प लें और हर संभव सहयोग भी दें विश्वसनीय छत्तीसगढ़, सबके विश्वस्त सहयोग पर ही अपनी वास्तविक ऊंचाई प्राप्त कर सकेगा.
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लेखक शासकीय दिग्वियजय महाविद्यालय,
राजनांदगांव में प्राध्यापक हैं।
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