वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - रावण की पीड़ा

SHARE:

रावण की पीड़ा वीरेन्द्र सरल अभी सुबह हुई ही थी। मैं बिस्तर छोड़कर बस मुँह धो ही रहा था। तभी भिक्षाम् देहि की आवाज सुनाई दी। सामने देखा तो एक ...

रावण की पीड़ा

वीरेन्द्र सरल

अभी सुबह हुई ही थी। मैं बिस्तर छोड़कर बस मुँह धो ही रहा था। तभी भिक्षाम् देहि की आवाज सुनाई दी। सामने देखा तो एक बाबा जी खडे मुस्करा रहे थे। उसकी दाढ़ी घनी, श्वेत और लम्बी थी। वे श्वेत वसन धारी थे मगर श्वेत परिधान पर बहुत ज्यादा दाग धब्बे दिखाई दे रहे थे। कमल के समान मुख अभी कुम्हलाया हुआ था। हाथ आशीर्वाद की मुद्रा के बजाय भिक्षाम्देहि की मुद्रा में थे। मुझसे नजर मिलते ही उन्होंने कहा-''बच्चा तेरा कल्याण हो। तेरे मस्तक पर एक लेखक की लकीर दिख रही है। करकमल पर अदृश्य रूप से कलम शोभायमान है। तुम्हारी पाँचों अंगुलियां स्याही में है और सिर डायरी के पन्नों पर। तुम इतना अच्छा लिखते हो कि लोग उसे यह सोचकर नहीं पढ़ते, कहीं उनके पढ़ने से तुम्हारा लिखा खराब ना हो जाये ।''

प्रशंसा की आँच में तपकर मेरा चेहरा दमकने लगा और छोटा लेखक होने का भ्रम इस आँच में जलकर भस्मी भूत हो गया। मैं मन-ही-मन गाने लगा पल भर के लिये कोई मुझे बड़ा लेखक मान ले झूठा ही सही और मैंने सचमुच अपने आप को एक बड़ा लेखक मानकर खुशी-खुशी उसकी ओर दस रूपये का नोट बढ़ाया। मगर बाबाजी ने कहा-''बच्चा ये क्या है? भिक्षाम्देहि।'' अब की बार मैंने पचास का नोट उसकी ओर बढ़ाया पर उसने फिर वही कहा-''ये क्या है बच्चा? तुम्हारा कल्याण हो जायेगा।'' उसे उच्च क्वालिटी का बाबा समझकर इस बार मैंने सीधे सौ का नोट उसकी ओर बढ़ाया पर उसने क्रोधित होकर ऊँची आवाज में चीखा-''ये क्या कर रहे हो बच्चा, गड़बड़ करोगे तो तुम्हारा सर्वस्व कल्याण हो जायेगा, समझ गये । भिक्षाम्देहि।''

उसका रौद्र रूप देखकर मैं डर के मारे उसके चरणों पर दंडवत गिर पड़ा। मैंने हाथ जोड़कर रूआँसे स्वर में पूछा-''बाबाजी आप मुझे श्राप दे रहे है या आशीर्वाद, अभी तक मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ। आखिर आप भिक्षा में चाहते क्या है? स्पष्ट करने की महान कृपा करें नहीं तो डर के मारे मेरा हार्टफेल हो जायेगा।''

उसने मुझे उठने का इशारा करते हुये कहा-''बच्चा मैं तो बाबा हूँ। कागज के इन टुकड़ों को लेकर क्या करूँगा? आज तो भिक्षा में तुम मुझे सलाह दो, राय दो, मशविरा दो और मत दो ।

मेरी खोपड़ी घूम गई। दिमाग फ्यूज होते-होते बचा। मैंने कहा-''बाबा जी आप बड़ी रहस्यमयी बातें करते हैं। इधर आप भिक्षा भी माँगते हैं और उधर मत दो भी कहते हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपकी इन उल्टी-पुल्टी बातों का आखिर क्या मतलब निकालूँ।'' बाबाजी ने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूर कर देखा तो मेरा दिमाग ठिकाने आ गया। मुझे ध्यान आया कि सामने चुनाव है। बाबाजी मत दो भी कह रहे हैं। बाबाजी के मत का मतलब कहीं वोट से तो नहीं है? मैंने विन्रमतापूर्वक कहा-''अच्छा तो हमारे बाबाजी चुनाव प्रचार के लिये आये हैं? अच्छा बाबाजी! आप किस दल से और किस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं? दूसरी बात यह है कि यदि आप इस तरह अकेले-अकेले चुनाव प्रचार कर वोट माँगेंगे तो आप की तो जमानत जप्त हो जायेगी। आपके चेले चपाटे सब कहाँ हैं बाबाजी?''

मेरी बातें सुनकर बाबाजी का गुस्सा शेयर बाजार की तरह उछलने लगा था और मैं सोने के दाम की तरह धडाम से बस गिरने ही वाला था। तभी उन्होंने मुझे सम्हालते हुये कहा-''देखो बच्चा, मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। इसलिये भिक्षा में आजकल सलाह माँग रहा हूँ। यदि तुम मुझे कुछ समय के लिये अपने घर में बैठने के लिये थोड़ी-सी जगह दे दो तो मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ। मैं तत्काल स्वागतम् की मुद्रा अपनाते हुये उन्हें अपने बैठक कक्ष में ले आया और ससम्मान उनसे बैठने का निवेदन किया। यह सोचकर बाबाजी पर मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी कि सबको सलाह देने वाले और सबकी नैया पार लगाने का दावा करने वाले बाबाजी की नैया किस मंझधार में फँसी हुई है। वे मुझ अंकिचन से आखिर क्या सलाह लेना चाहते है? बाबाजी को सामने बैठाकर मैं एक जिज्ञासु भक्त की तरह उन्हें निहारने लगा ।

बाबाजी कुछ समय तक मौन रहकर शून्य में आँखें टिकाकर कुछ सोचने लगे। फिर अपना मुँह मेरे कान के पास लाकर फुसफुसाते हुये कहने लगे-''बच्चा! आज मैं अपनी असलियत और एक गूढ़ रहस्य तुम्हारे सामने प्रकट करने जा रहा हूँ। पर ध्यान रहे ये राज हम दोनों के बीच ही रहना चाहिये। यदि किसी तीसरे तक यह बात पहुँच गई तो समझ ले तेरा सर्वथा कल्याण हो ही जायेगा। शायद तुमने सुना होगा कि त्रेतायुग में श्रीराम ने वनवास के समय पंचवटी मे असली सीता को अग्नि प्रवेश कराकर छिपा दिया था और रावण ने साधु वेष में नकली को ही असली सीता समझकर उसका अपहरण किया था। अब तुम्हीं बताओ चार वेद, छै शास्त्र और अटठारह पुराण का ज्ञाता रावण क्या इतना नासमझ रहा होगा जो असली और नकली में भेद नहीं कर पाया होगा?'' मैंने कहा-''बाबाजी अब रावण भेद नहीं कर पाया तो इसमें मेरी क्या गलती है। इस झमेले में आप मुझे क्यों फँसाते हैं? और आपको भी इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिये कि रावण नासमझ था या बुद्धिमान। बुजुर्ग लोग कहते है कि बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि लेय।''

बाबाजी ने कहा-''मतलब है बेटे, मतलब है क्योंकि मैं ही वह रावण हूँ। यह सुनकर मेरी चीख निकलने ही वाली थी लेकिन उसने अपने हाथों से मेरा मुँह बंद कर दिया। मेरी चीख भीतर-ही-भीतर घुट कर रह गई। उसने मुझे धमकाते हुये कहा-''तुम्हें अपना कल्याण कराना ही है क्या? समझ में नहीं आया, ये रहस्य बताने से पहले मैंने तुमसे क्या कहा था? डरो नहीं वत्स, आराम से बैठो और मेरी बातें ध्यान से सुनो। विश्वास करो, मैं तुम्हारा किसी भी प्रकार से अहित नहीं करूँगा। मैं तो सिर्फ ये बता रहा था कि मुझे उसी समय पता चल गया था, सीता नकली है पर मैं श्रीराम के हाथों मरकर अपनी दुष्प्रवृत्तियों से मुक्त होना चाहता था। इसलिये मैंने सीता हरण किया। उन्हें अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा। उनसे किसी भी प्रकार की बदतमीजी नहीं की। लेकिन जब युद्ध शुरू हुआ तो उसकी विभीषिका देख मेरे मन में प्राण भय पैदा हो गया। मैं अपने प्राण बचाने का उपाय ढूँढने लगा और चालाकी करते हुये मैंने भी युद्ध के मैदान में नकली रावण को भेज दिया जो श्रीराम के हाथों मारा गया। लोगों में खुशी की लहर छा गई कि रावण मारा गया।

अरे! मैं तो युद्ध के मैदान में गया ही नहीं था तो मेरे मरने का सवाल ही नहीं उठता। मरना तो दूर मुझे कहीं खरोच तक नहीं आई थी। मैं पूर्णतः सुरक्षित था। मैं अपनी चालाकी से मरने से बच तो गया पर भीतर-ही-भीतर डर रहा था कि कहीं श्रीराम की नजर फिर से कभी मुझ पर पड़ गई तो वे मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। इसलिये मैं इस समस्या का स्थायी समाधान सोचने लगा। बहुत सोच-विचार के बाद मैं अंतिम रूप से इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि श्रीराम साधु संतों के रक्षक हैं, यदि मैं भी सीता हरण के समय का साधु वेष फिर से धारण कर लूँ तो आसानी से बच सकता हूँ। बस मैंने वही किया साधुवेश धारणकर लंका से सुरक्षित बाहर निकल आया। वहाँ से निकलते हुये सब लोग मुझे देख रहे थे पर किसी ने पहचाना नहीं बल्कि बहुत से लोग मुझे असली संत समझकर मेरे पीछे-पीछे चलने लगे। आज करोड़ों लोग मेरे पीछे हैं औेर मैं बिल्कुल सुरक्षित हूँ।

अब मेरी मुख्य समस्या यह है कि जिस माया मंत्र से मैं अपना रूप बदलता हूँ अर्थात रावण से साधु और साधु से रावण। उस मंत्र को मैं भूल चुका हूँ। इसलिये चाहते हुये भी मैं फिर से अपने असली रूप में प्रकट नहीं हो पा रहा हूँ। मेरा स्वरूप जरूर बदल गया है पर मेरी प्रवृत्ति ज्यों-की-त्यों हैं। वही भोग की लिप्सा, एकछत्र राज्य की चाहत, दुनिया को अपने कदमों में झुकाने की कामना, सोने की लंका जैसी समृद्धि और वैभव पाने का लोभ, अपने आप को ही भगवान समझने का अंहकार। अब तुम्हीं बताओ, इन दुष्प्रवृत्तियों से मुक्त होने के लिये मैं क्या करूँ? मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती है मेरा वेश देख लोग क्यों बेवजह मेरे झांसे में आ जाते हैं। क्यों अपना धन और समय मेरे कारण बर्बाद करते है। समय-समय पर मैं अपनी असलियत और अपनी पीड़ा व्यक्त करता भी हूँ तो वे इसे अंधश्रद्धा के कारण मेरी लीला और महानता समझते हैं। मैं उन्हें कैसे समझाऊँ कि वे जो मुझे समझते है वह मैं नहीं हूँ।''

''एकांत में बैठकर जब मैं सोचता हूँ तो मुझे बड़ी आत्मग्लानि होती है कि क्यों लोग केवल मेरा बाह्य स्वरूप ही देखते हैं? उनकी नजर मेरी दुष्प्रवृति पर क्यों नहीं पड़ती? काश! मुझे मेरा वह मंत्र याद आ जाये, जिससे मैं उनके सामने अपने असली रूप में प्रकट हो सकूँ तो इनकी श्रद्धा मुझ पर से टूट जाये। मैं बहुत व्यथित हूँ वत्स, बस मुझे मेरा वह माया मंत्र याद दिला दो, ताकि देश और समाज का भला हो सके। लोगों की दिव्य चक्षु खुल जाये, उन्हें असली और नकली में भेद करना आ जाये।'' यह सब बताते हुये रावण की आँखें भर आई थी और आँसू टपकने लगे थे।

उसकी बातें मैं दम साधे सुनता रहा। मैं स्वयं विस्मित हो गया था, आज इतना बड़ा रहस्योद्घाटन मेरे सामने हुआ था। मेरे मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे। उसने कहा-''कहाँ खो गये वत्स, कुछ तो सलाह दो आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैं शर्म से डूबकर मर भी तो नहीं सकता क्योंकि मेरी नाभि में अमृतकुंड जो भरा है। बस, मुझे मेरा वह मंत्र याद दिला दो।'' रावण अपनी पीड़ा से छटपटा रहा था। जमाने भर का दर्द उसके चेहरे पर सिमट गया था।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे क्या सलाह दूँ। मैंने विन्रमतापूर्वक कहा-''मुझे माफ कीजिये। जब तक आप कम-से-कम एक बार अपने असली रूप में प्रकट नहीं होंगे तब तक इस समस्या का समाधान होना संभव नहीं है ।''

उसने मुझे एक बार कातर दृष्टि से देखा और अपने भूले हुये माया मंत्र को याद दिलाने वाले किसी दूसरे व्यक्ति की तलाश में निकल पड़े

 

वीरेन्द्र सरल

बोड़रा (मगरलोड़)

पोष्ट-भोथीडीह

व्हाया-मगरलोड़

जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. Bahut badhiya . Aaj sadhu ke bhesh mein anek rawan ghum rahe hai. Sara aakash unke attahash se gunj raha hai. Ab to wo sarv vyapi ho gaye lagte hai. Umda chitran birendra saral ji

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - रावण की पीड़ा
वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - रावण की पीड़ा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXDIwTbwXqR_3rp4P5maszJbDt419UKYJcHFcLQ4K14w0Misv3-ilN9JPatHdBFEzUEwJ6nK9wP5qiDCizuk46lRxAH3YdYl6qG8bc_TlvgVIIMi6INfP4UMEQ8QV-i3RlujPG/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXDIwTbwXqR_3rp4P5maszJbDt419UKYJcHFcLQ4K14w0Misv3-ilN9JPatHdBFEzUEwJ6nK9wP5qiDCizuk46lRxAH3YdYl6qG8bc_TlvgVIIMi6INfP4UMEQ8QV-i3RlujPG/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/09/blog-post_75.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/09/blog-post_75.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content