कच्छप नीति व्यंग्य हे मनुष्यों ! मैं सर्वदा सुखी रहने वाला संसार का एकमात्र जीव हूं । मैं कवच के साथ ही जन्म लेता हूं । अपनी खोल से बाह...
कच्छप नीति
व्यंग्य
हे मनुष्यों ! मैं सर्वदा सुखी रहने वाला संसार का एकमात्र जीव हूं । मैं कवच के साथ ही जन्म लेता हूं । अपनी खोल से बाहर मैं तभी निकलता हूं जब भूख लगती है। सादा भोजन करता हूं । विचार तो उच्च है ही । यही मेरे जीवन के मूल मंत्र है। आपको भी मेरी नीति का पालन करना चाहिए। संसार सुखों का घर है। सुस्ती सुखों का कारण है। कच्छप नीति ही सर्वोत्तम नीति है।
मित्रो, मेरी पहली नीति है सुस्ती परम सुख । अपना कवच बना लो । कवच चाहे धन का हो । विद्या का हो ं। ज्ञान का हो । अधिकारों का हो या राजनीति का या वंश का हो । अपने कवच में ही पड़े रहो । संसार अपनी गति से चल रहा है। यह तुम्हारे हस्तक्षेप से आंदोलित नहीं होगा । संसार की गति और मति में बाधा डालने वाले तुम होते कौन हो ? किसी की लाज लुटी लुटने दो । किसी का घर जला जलने दो । सड़क के किनारे किसी बेवश के साथ बलात्कार हो रहा हो , तुम अपने अॉफिस जाओ । भरी सभा में द्रोपदी की लाज लुट गई । वहां किसी ने कुछ नहीं किया । जानते हो क्यों ?, क्योंकि सभी वहां बुद्धिजीवी थे । यदि वह कोल-भीलों की सभा होती तो दुशासन की बांह उखाड़ने के लिए किसी महाभारत की प्रतीक्षा नहीं करती । सुविधाभोगी मघ्यमवर्ग युगों से संसार की शोभा बढ़ाता आया है । वह हमेशा हस्तिनापुर की गद्दी से बंधा रहा है। हस्तिनापुर की जनता के साथ बंधने की तो प्रतिज्ञा किसी युग के भीष्म ने नहीं की । उसने तो हमेशा यही प्रतिज्ञा की कि जो भी गद्दी पर बैठेगा उसमें अपने बाप की छवि देखेगा । नहीं भी देखना चाहेगा तो दिख ही जायेगी। गद्दी चीज ही ऐसी होती है। किसी के घर में आग लगे तो सबसे पहले अपने घर की बाल्टी छुपा दो । कहीं कोई आग बुझाने के लिए ले गया और बाल्टी गुम हो गई तो क्या करोगे ? कभी भी पराई आग में मत कूदो । दीर्घायु होने और सुख से रहने के लिए यह मंत्र सबसे अधिक उपयोगी है।
मानवों , तुम सृष्टि के सबसे अधिक चालाक जीव अपने को मानते हो लेकिन तुमलोगों में भी मूर्खों की संख्या बहुत अधिक है । तुम्हारे शास्त्र कहते रहे हैं कि मानव योनि चौरासी लाख यानियों के बाद मिलती है फिर भी लोग सुख से जीना छोड़कर शहीद होने निकल पड़ते है। बुद्ध नाम ने तो सुना है कि राजपाट का त्याग करके संसार को सुधारने का बीड़ा ही उठा लिया । उसने अपने पिता का राज तो डुबोया ही अपने पुत्र का कैरियर भी ले डूबा । एकलौता बेटा बेचारा उसकी ही तरह संन्यासी बनने को मजबूर हो गया। उसने संसार के धर्मों में व्याप्त आडंबरों को दूर करने की सोची । कही का नहीं रहा । उसी तरह ईसा को सूली पर चढ़ा दिया गया । सिखों के गुरू नाना प्रकार की सजा भुगतते रहे लेकिन विधर्मी राजा के आगे घुटने नहीं टेके । गांधी ने गोली खा ली। साहब यह समझदारी नहीं है। शक्तिशाली अपना तलवा चाटने तो किस्मत मानो । कुत्ता सृष्टि के आरंभ से लेकर आज तक आदमी का प्रधान मित्र हैं । पहले वह शिकार के लिए आगे चलता था अब मार्निग वाक के लिए । चलता आगे ही है । केवल दुम हिलाने की अपनी कला के बदौलता । यदि एक कुत्ता इतना व्यावहारिक हो सकता है तो एक आदमी क्यों नहीं । दुम यदि भगवान नहीं दी तो जीभी तो दी है । उससे तो दुम से अधिक काम लिया जा सकता है। चमचागिरी शब्द को बदनाम कर दिया गया है लेकिन यह व्यावहारिक समझादारी का ही दूसरा नाम है । शहीदों ने यदि रायबहादुर का तमगा लिया होता तो उनकी चांदी होती । आज भी कुल के लोग मंत्री वंत्री होते । रियासत जाती राज नहीं । सत्ता ही अंतिम सत्य है
कच्छप नीति का दूसरा सिद्धांत है-निरापद चलो । हे समझादार जीव , समाज हमसे नहीं है। हम समाज से हैं। समाज हमारे भरोसे नहीं है। हम समाज के भरोसे हैं। अतः समाज सेवा का ख्याल मन से निकाल कर स्व सेवा का व्रत लेना चाहिए । यदि बौद्धिक खुजली हो । समाज और देश के सामने खड़ी समस्याओं से मन अशांत हो रहा हो तो आप चयन करें कि कौन सी समस्या सबसे निरापद है। अर्थात , किसका विरोध करने से कोई नाराज नहीं होगा। उसी तरह की समस्या उठायें । भूल कर भी धर्म या जाति के चक्कर में पड़े तो दस तरह के विरोधों का सामना करना पड़ सकता है । जीवन का सुख छिन जायेगा । जब भी विरोध की तलब हो तो कॉफी हाउस में बैठकर बहस करें । अखबारों में विमर्श करें। यदि इससे भी आगे की सोचते हों तो किसी विषय पर संगोष्ठि का आयोजन करें । कर्त्तव्य पूरे हो गये । अब चैन से जियें । कबीर बनने से कुछ नहीं होगा । कबीर को कौन सा सोने का मेडल मिल गया । हाथी के पांव के नीचे कुचले गये
कच्छप नीति का तीसरा सिंद्धांत है सपने बुनना । अपनी खोल में छिपकर सपने देखने में पूरी आजादी होती है। हिंग लगे न फिटकरी और रंग चोखा । आप पूरे देश को बदल देने का सपना देखें । एक महान क्रांति के सपने बुने जिससे समाज में सबको मक्खन-मलाई मिलने लगेगी । किसान धन्ना सेठ हो जायेंगे । नेता ईमानदार हो जायेेंगे । अधिकारी बिना रिश्वत के ही काम करने के लिए तैयार मिलेंगे । लेखक निष्पक्ष हो जायेंगे। सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास तो करना नहीं है। कुरबानी देनी नहीं है। आप सपना देखें कि नौजवान आजादी का बिगुल बजा रहे हैं। आप अपने कवच में हैं। आप ही नहीं आपका पूरा कच्छप परिवार सुरक्षित है। अकाल मौत के लिए तो मछलियां हैं ही । उन्हें मरना है । आपको क्या । आप चूंकि समाज के शुभचिंतक हैं इसलिए एक महान परिवर्तन चाहते हैं । आप सपने देखें । हो सके तो कविता,कहानी , आलेख या व्यंग्य लिखते रहें । कवच के अंदर से ही उसे छपने के लिए भेजते रहें । छपने के लिए आप संपादकों के साथ मधुर संबंध रखें । गोटी-पेटी सेट करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। संपादक जो चाहे वह लिखा जाये । मथुरा दास चाहते हैं कि आप मथुरा की तारीफ करें तो कर दीजिये। गयाप्रसाद चाहते हैं कि गया की प्रशंसा हो तो अंटी से क्या जाता है। लिख मिारये । छपते रहने से आपको लोग जानने लगते हैं। हो गई क्रांति । सुधर गया संसार ।
अंतिम कच्छप नीति है शांति और सद्भावना । विरोध करने से समाज की शांति भंग होती है। सबका साथ सबका विकास । किसी का विरोध करना ज्ञानी मानवों के कर्त्तव्य नहीं है। किसी भी संकट की घड़ी में मुस्कराते रहें। कहीं दंगा हो जाये । हंसते रहें । कहीं लोग बाढ़ और अकाल से मरें तो मुआवजा घोषित करने के उपरांत मुस्कराते रहें । सद्भावना के लिए मुस्कराना जरूरी है। आपका कवच मजबूत है। आप सुरक्षित हैं तो फिर शांति के लिए प्रयास करते रहें। ज्ञानवर्धक प्रवचन दें । आलेख लिखें । कच्छप नीति का पालन करें । देश और समाज तो बढ़ेगा ही आप भी बढ़ेंगे । विरोध समाज के लिए हानिकारक होते हैं। आंदोलनों से रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। शक्तिशाली तो कमजोर को खायेगा ही इसमें विरोध किस बात का । संसार अपने नियमों से चल रहा है आप कच्छप निति से चलें । हमें क्या पड़ी है कि हम शहीद हों ं आपके वेतन-भत्ते बढ़ते रहें । बेटा आई ए एस हो जायें । बेटी डॉक्टर हो जायें । बीबी तो पहले से ही उंचे पद पर है। आप सुखी हैं । प्रत्येक वर्ष भगवान के द्वार पर सोने और चांदी चढ़ाते रहें । अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ायें। एक शरीफ नागरिक बन कर जायें। आखिर तालाब में केचुयेंं भी तो जी ही रहे हैं । उनको कभी पीड़ा होती है तो ऐंठ लेते हैं ंफिर शांतिपूर्वक अपने बिल में चले जाते हैं । पक्षियों में कबूतर कितनी शांति से रहता है। पकड़े जाने पर आंखें मूंद लेता है। बहुत हुआ तो जरा सा पंख फड़फड़ा लिया । आत्मिक शांति मिल जाती है। यही जीवन जीने के अमोघ मंत्र है। इन्हें मानो और कछुआ बनो । आमीन ।
शशिकांत सिंंह 'शशि'
जवाहर नवोदय विद्यालय , शंकरनगर, नांदेड़
7387311701
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