ओल्ड एज होम कुछ तो उन के हिलने डुलने से और कुछ पति के कराहने की आवाज़ से एकाएक मालती जी की नींद...
ओल्ड एज होम
कुछ तो उन के हिलने डुलने से और कुछ पति के कराहने की आवाज़ से एकाएक मालती जी की नींद खुल गयी. हाथ बढ़ा कर टेबल लैंप जलाया और नज़र घड़ी पर पड़ी. रात के साढ़े तीन बजे थे. देखा तो गोविंद जी हाथों से सीने को दबाये बार बार ओंठ भींचते हुए छटपटा रहे थे और शरीर पसीने से भीगा हुआ था.
घबरा कर पूछा -" बहुत दर्द है क्या ? उत्तर में उन्होंने बस सिर हिला दिया.
मालती जी ने तुरंत अपने अभिन्न मित्र और फैमिली डाक्टर अवस्थी को फोन किया जो चार घर दूर ही रहते थे. तुरंत ही वे पत्नी कमला के साथ दौड़े आये. गोविंद जी को दे्ख कर उनको अटैंड करने लगे और पत्नी को पास के ही अस्पताल में एंबुलेंस के लिये फोन करने को कहा. फिर उस अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ को फोन कराया. डाक्टर अवस्थी जो स्वयं एक अच्छे फिज़ीशियन थे उस अस्पताल के विज़िटिंग डाक्टर भी थे . मन ही मन सब स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे लेकिन एक दूसरे को हिम्मत रखने को कह रहे थे.
शीघ्र ही एंबुलेंस आ पहॅुची. जल्दी-जल्दी गोविंद जी को एंबुलेंस में डाला गया और अस्पताल चल पड़े. वहाँ सब तैयार था जाते ही उनको आई.सी.यू. में ले गये और उपचार की प्रक्रिया आरंभ हो गयी.
कुछ देर के बाद डाक्टर अवस्थी के साथ अस्पताल के डाक्टर भी बाहर आये और मालती जी से बोले--" देखिये मैडम आप को बहुत हिम्मत से काम लेना होगा , बड़ा मैसिव अटैक है .यह तो डाक्टर अवस्थी थे तो आप के पति को अस्पताल तक ले आये. नहीं तो ऐसी हालत में तो मरीज़ का अस्पताल तक पहॅुचना भी नामुमकिन होता है."
सुन कर मालती जी ने एक बार कृतज्ञता भरी नज़रों से डाक्टर अवस्थी को देखा. कुछ बोल न सकीं. उनके पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी. ऑखों के आगे अंधेरा छा गया और अगर कमलाजी उनको थाम न लेतीं तो शायद वहीं गिर जातीं. डाक्टर अवस्थी जा कर पानी ले आये . थोड़ा पानी पीने के बाद कुछ संभलीं तो डाक्टर ने आगे कहा. -" आप को धीरज रखना होगा. अगले ७२ घंटे बहुत भारी हैं. यह समय ठीक ठाक निकल जाये तो कुछ आशा हो सकती है नहीं तो कुछ भी हो सकता है. आप अपने बच्चों को तो बुला ही लीजिये; और भी किसी को खबर देनी हो तो दे दें."
मालतीजी कुछ न बोल सकीं . चुपचाप अपने पर्स से एक छोटी सी डायरी निकाली जिस में कुछ ज़रूरी फोन नंबर थे और अवस्थी जी को दे दी. वे अस्पताल के गेट के पास के पी.सी.ओ से फोन करने चले गये. कमलाजी उनके पास बैठ कर र्धीरे धीरे उनकी पीठ पर हाथ फेरती रहीं. किसी को भी शब्द नहीं सूझ रहे थे.
डाक्टर अवस्थी ने सब से पहले बड़े बेटे आकाश को फोन किया जो टोरंटो में एक जनरल स्टोर चलाता है. सुनकर वह बहुत दुःखी हुआ और बोला-" अंकल यहाँ भी बड़ी समस्या है. रूबी की कॉलेज की परीक्षा चल रही है, गुन्नू के पैर में फ्रैक्चर हुआ है ;और स्टोर में जो हैल्पर है वह भी छुट्टी पर गयी है. लेकिन आप चिंता न करें मैं जल्दी ही कुछ व्यवस्था करके पहली फ्लाईट ले कर आ जाऊॅगा. "
फिर डाक्टर अवस्थी ने दूसरे बेटे अंबर को दुबई में फोन किया. फोन उसकी पत्नी दामिनी ने उठाया और बताया- " अंबर तो ऑफिस के काम से शहर से बाहर गये हैं . परंतु आप चिंता न करें. मैं अभी उनको फोन करती हूँ और जैसे ही वापस आयेंगे हम घर के लिये निकल पड़ेंगे "
तीसरा और आखिरी फोन सुदूर दक्षिण भारत में रह रही बेटी रेखा को किया . फोन उसकी सास ने उठाया और इस असमय में फोन करने पर झॅुझला उठीं -" अभी रेखा से बात नहीं हो सकती वह सो रही है."
जब अवस्थी जी ने उनको सारी स्थिति से अवगत कराया तो खीज कुछ कम हुई लेकिन आवाज़ की तल्खी नहीं गयी. " देखिये हमें दुःख हुआ यह जान कर लेकिन रेखा की तबीयत भी कुछ ढीली रहती है आजकल, अभी जगाना ठीक नहीं होगा "
क्या हुआ है रेखा बिटिया को. घबरा कर पूछा अवस्थी जी ने .
अरे कुछ घबराने की बात नहीं है. वह माँ बनने वाली है नलिन तो कंपनी के काम से विदेश गया है रेखा अकेली ही आ सकेगी. हम कल ही उसको भेजने का इंतज़ाम करते है .
फोन करके वापस आये तो देखा कि एक डाक्टर मालती जी से बात कर रहा था-
" मैडम आप के पति का उपचार तो हो रहा है. आप में से कोई भी उनके पास नहीं जा सकता. तो बेहतर होगा कि आप घर चली जायें अगर ज़रूरत होगी तो हम आप को फोन कर देंगे."
डाक्टर अवस्थी ने भी उसका समर्थन किया .और बताया कि सब बच्चों को फोन कर दिया है पर क्या बात हुई नहीं बताया. आई.सी.यू के दरवाज़े में लगे कॉच से एक बार गोविंद जी को देख कर सब घर की ओर चल पड़े .
घर पहॅुचीं तो शंभु ने चाय बनाई. थोड़ी सी चाय पी कर वे चुपचाप बैठ गयीं किसी भी तरह चैन नहीं था बस मन ही मन प्रार्थना करती रहीं कि ये ७२ घंटे जल्दी जल्दी बीत जायें . बच्चे आयें तो पिता को अच्छी हालत में देखें. कान फोन पर और ऑखें द्वार पर लगी थीं. बीच बीच में अस्पताल जाकर उसी काँच से पति को देख लेती थीं.
अभी ५६ घंटे ही हुए थे कि अस्पताल के डाक्टर का फोन मिला कि गोविंद जी की हालत सुधरने लगी है.. अगर ऐसा ही होता रहा तो हमें आशा है कि जल्दी ही वे खतरे से बाहर होंगे. यह मालती जी की प्रार्थनाओं का असर था या डाक्टरों के इलाज का या नियति का करिश्मा . गोविंद जी की हालत में आशातीत सुधार हुआ यहाँ तक कि चौथे ही दिन उनको आई.सी.यू से निकाल कर स्पैशल केयर युनिट में रख दिया गया. यहाँ आई सी यू की सब सुविधायें तो उपलब्ध थीं लेकिन वैसे प्रतिबंध नहीं थे. जब शाम को अन्य मरीज़ों को मिलने के लिये लोग आते थे तब एक एक कर के गोविंद जी को भी देखने की अनुमति मिल गयी थी हालॉकि बात करने की अब भी मनाही थी. छठे दिन की दोपहर तक थोड़े थोड़े अंतराल पर सब बच्चे पहॅुच गये और शाम को मिलने के समय का इंतज़ार करने लगे.
शाम को जब अस्पतल पहॅुचे तो डाक्टर गोविंद जी को देख रहे थे. मालती जी भी अंदर ही थीं .जब डाक्टर ने सुना कि उनके बच्चे आये हैं तो नर्स को कह कर गोविंद जी का पलंग सिरहाने से थोड़ा ऊॅचा कर दिया और मालती जी ने उन के बाल सीधे कर दिये. वे कुछ फ्रैश लग रहे थे.
बच्चे जब उनको मिलने अंदर गये तो खुशी के स्थान पर हैरानी हुई .ऊपर से तो यही कहा -" ओह पापाजी ! हम तो डर ही गये थे जब अंकल का फोन मिला .घबरा रहे थे कि आप को किस हाल में देखेंगे . लेकिन आप को इस तरह देख कर बहुत ही खुशी और तसल्ली हो रही है. लेकिन माता पिता दोनों ने ही देख और समझ लिया कि उनकी ऑखें उनके शब्दों का साथ नहीं दे रहीं . मन के भाव ऑखों से प्रगट हो रहे थे कि आप तो अच्छे भले हो ममा ने नाहक हमें डरा दिया और हम सब काम काज छोड़ कर दौड़े आये. पिता ने धीरे से मुस्कुरा कर हाथ हिला कर उनका अभिवादन किया. तभी नर्स ने कहा --
"आप लोग प्लीज़ बाहर चले जायें और एक - एक कर इनसे मिलें लेकिन ध्यान रहे कि ये अधिक बातें न करें अभी मुझे इन को एक इंजैक्शन देना है तब आप आ सकते हैं..
मालती जी को छोड़ कर सब बच्चे बाहर आ गये और वहीं पड़े एक बेंच पर बैठ गये. दामिनी ने कुछ तीखी आवाज़ में कहा-" यहाँ तो सब ठीक ठाक है हम तो डरते हुए कुछ और ही सोचते आये हैं "
आकाश ने कहा -मेरे घर में कितनी परेशानियाँ चल रही हैं मैंने सब कुछ अवस्थी अंकल को भी बताया था लेकिन उनका कहना था कि मुझे हर हाल में आना ही चाहिये."
अम्बर भी मन की बात कह्ने में पीछे नहीं रहा-"हम तो रास्ते भर यही सोचते रहे कि पापाजी के बाद ममा का क्या होगा. कहाँ रहेंगी वे ,किस तरह रहेंगी. हमारा तो दो कमरों का छोटा सा फ्लैट है. जहाँ आये दिन पार्टियाँ होती हैं ऐसे माहौल में ममा का वहाँ गुज़ारा मुश्किल है. आकाश भैया आप ............"
लेकिन आकाश ने बात बीच में ही काट दी -" न भाई मुझ से तो कोई उम्मीद मत करना . याद है मुझे पिछली बार ममा पापाजी जब वहाँ आये थे तो ममा खुद भी कितनी परेशान हुई थीं और हम सब को भी दुखी कर दिया था. छः महीने का वीज़ा था तो भी एक महीने के बाद ही पापाजी को उनको लेकर वापस आना पड़ा."
सब रेखा की तरफ देखने लगे रेखा ने भी हामी नहीं भरी ,बोली- " मेरी तरफ इस तरह क्या देख रहे हो. मैं तो खुद कितनी मुश्किल से इस संयुक्त परिवार में दिन काट रही हूँ मैं ही जानती हॅू बस इंतज़ार कर रही हूँ कि कब नलिन को विदेश में कोई अच्छी नौकरी मिल जाये और मुझे इस ज़िंदगी से मुक्ति मिले. ऐसे में ममा की ज़िम्मेदारी न बाबा न और अब ममा अकेली कहाँ हैं अब तो पापाजी भी हैं ..........
दामिनी -"हम तो यही सोच रहे थे कि ..................... तभी मालती जी को आते देख कर सब चुप हो गये . आकाश ने फुसफुसा कर कहा-इस बारे में बाद में विचार करें गे . तब तक मैं पापाजी से भी बात करूॅगा.
इस बारे में जल्दी ही कुछ फैसला हो जाना चाहिये.
मालती जी आयीं तो इतने दिनों के रुके हुए ऑसू बह निकले और वे आकाश के कंधे पर सर रख कर रोने लगीं. --आकाश ने कहा ममा अब यह रोना बंद करिये. सब तो ठीक ठाक है. पापाजी अब तो स्वस्थ हैं हमें तो उनको देख कर बहुत तसल्ली हुई है. फिर सब एक एक कर के भीतर गये और पापाजी को देख कर आ गये. आकाश ने कहा-"ममा आप बहुत थक गयीं हैं आज आप घर जाइये मैं रात को पापाजी के पास रहॅूगा. "
मालती जी सहमत हो गयीं और कहा-" ठीक है तुम खाना खाकर आ जाना तब मैं घर चली जाऊॅगी ."
" नहीं ममा मैं तो अभी थोड़ी देर पहले ही पहॅुचा हूँ और आते ही खाना खाया है अब मैं कुछ नहीं खाऊॅगा .आप जाइये " सब घर चले गये तो आकाश कमरे के अंदर चला गया.. गोविंद जी तब तक थक कर सो गये थे वह भी वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और ऑखें मूँ्द कर कुछ सोचने लगा.
घर पहॅुच कर मालती जी सब बच्चों से बड़े स्नेह से मिलीं और सब की कुशलता पूछी. कुछ देर तक बातें करने के बाद उन्हों ने कहा-" चलो अब खाना खाओ और आराम करो. बहुत थक गये होगे." खाना खाकर वे भी अपने कमरे में सोने चली गयीं. आज उनको बड़ी राहत महसूस हो रही थी बच्चों के आ जाने से बहुत ताकत और हिम्मत अनुभव कर रही थीं..जल्दी ही उन की ऑख लग गयी. न जाने कितनी देर सोईं थी वे कि प्यास लगने से नींद खुल गयी पानी पीने के लिये रसोई की तरफ जा रही थीं कि अंबर के कमरे में रोशनी देख कर उधर मुड़ गयीं दरवाज़े के पास ही पहॅुची थीं कि भीतर से बातों की आवाज़ सुनाई दी.,
रेखा की आवाज़ थी-" भैया अब क्या सोचा है ,क्या करना है ?
उत्तर दामिनी ने दिया-हम तो मॉजी के बारे में चिंतित थे कि वे अकेली कैसे रहेंगी अब तो दोनो का ही प्रबंध करना होगा." सुन कर चौंक गयीं मालती जी.
अम्बर ने कहा -"ठीक तो वही होगा जो आकाश भैया ने कहा है. पापाजी को चाहिये कि अब अपनी वसीयत लिख दें यह घर बेच बाच कर पैसे हमे बॅाट दें उनके रह्ने का इंतज़ाम किसी ओल्ड एज होम में कर देंगे. वहाँ उनको अपनी कंपनी भी मिलेगी और हमें भी उनकी चिंता नहीं रहेगी. जो भी खर्च होगा हम मिल कर उठा लेंगे. आज रात आकाश भैया पापाजी से भी बात कर लेंगे."
दामिनी ने कहा- " ठीक तो है सब कुछ जितना जल्दी हो जाये अच्छा है. अब तो तेरह दिन तक रुकने की भी कोई ज़रूरत नहीं है."
रेखा ने कहा -"भैया मेरा हिस्सा भी बराबर का होना चहिये. मेरी सास ने कह कर भेजा है कि जायदाद में तुम्हारा भी हिस्सा है ले कर ही आना."
मालती जी से और सुना नहीं गया. यही हमारे बच्चे हैं जिन के पालन -पोषण ,पढाई लिखाई पर हम ने अपना पेट काट कर पैसे लगाये कि ये अपने पैरों पर खड़े हो कर अपना जीवन आराम से चलायें. और बुढ़ापे में हमको सहारा दें. अब जब ये अपने जीवन में सुखी हैं, खुश हैं तो इनकी नज़र इस मकान और हमारी जमा-पॅूजी पर है. .हम को ओल्ड एज होम में भेजने की इच्छा है. क्या इसी दिन के लिये लोग संतान की इच्छा करते हैं. पैर घसीटती हुई अपने कमरे में आ गयीं .प्यास से गला सूख रहा था .जीभ में कॉटे उग आये थे लेकिन न तो पानी पीने की इच्छा रही थी और न रसोई तक जाने की हिम्मत. ध्यान बार बार पति की ओर ही जाता था ------
"हे भगवान आकाश ने अगर यही बातें अपने पिता से कही होंगी तो उन पर क्या बीती होगी.
वे डर गयीं कि जो अनहोनी इतने भारी दिल के दौरे से नहीं घटी वह इस आघात से न घट जाये. वे अपने पति की सलामती के लिये ईश्वर से प्रार्थना करती रहीं.
रात कैसे बैठे बैठे ही बीत गयी पता नहीं चला. सुबह हुई तो नहा धो कर पूजा की. आज तो पूजा में भी मन नहीं लग रहा था. बस पति को सकुशल देखने की कामना और प्रार्थना करती हुई अस्पताल की ओर चल पड़ीं. जाकर देखा सामने पड़े स्टूल पर पैर फैलाये आकाश सो रहा था. गोविंद जी की ऑखें खुली थीं .वे वीरान सी ऑखों से छत की तरफ टकटकी लगाये देख रहे थे. घबरा गयीं वे यह देख कर. धीरे से उनको छुआ तो वे चौंक पड़े -
" क्या हुआ इतनी जल्दी जाग गये ?
जागा क्या मुझे तो रात भर नींद ही नहीं आयी.
तो डाक्टर से कोई दवाई क्यों नहीं ले ली.
नहीं मालती उसका कोई असर नहीं होता .मालती जी समझ गयीं कि यहाँ भी बेटे ने डंक मार दिया है.
चाय लाई हूँ पीयोगे.?
अपने लिये भी लाई हो न ? आओ एक साथ पीते हैं .मालती जी ने दो कपों में चाय डाली और सहारा दे कर पति को उठाया. दोनो चाय पी ही रहे थे कि आकाश भी उठ गया. -" अरे ममा आप कब आयीं , पता ही नहीं लगा. अभी अभी ऑख लगी थी
. हाँ बेटा मैं भी अभी आयी हूँ तुम्हारा कल इतना लंबा थका देने वाला सफर था. फिर मरीज़ के साथ रात भर जागना बहुत मुश्किल होता है. अब मैं आ गयी हूँ तुम घर जा कर आराम करो. चाय पियोगे ?
नहीं ममा मैं घर जाकर फ्रैश हो कर ही कुछ खाऊँ-पीयूँगा "
मालती जी को लगा कि वह जल्दी ही घर जाना चाहता है ताकि अपने भाई-बहन के साथ सारी बात बॉट सके..
वह जाने लगा तो गोविंद जी ने कहा-" बेटा आकाश बहुत बहुत धन्यवाद ; तुम ने तो मेरी ऑखें खोल दी हैं मुझे तो कभी वसीयत करने और मकान बेचने का ख्याल ही नहीं आया. आज अवस्थी अंकल को कहना कि वकील को ले कर यहीं आ जायें .तुम्हारी सलाह मान कर मैं आज ही अपनी वसीयत लिखवा दॅूगा. "
"जी पापाजी "कह कर वह तेज़ी से दरवाज़े की तरफ मुड़ा . मालती जी को लगा कि वह जल्दी से जा कर अपनी उपलब्धि के बारे में सब को बताना चाहता है.
इस के बाद कोई कुछ नहीं बोला बस एक दूसरे का हाथ पकड़े बैठे रहे. स्पर्श से ही एक दूसरे से अपनी भावनायें बॉटते रहे.
दोपहर को जब अवस्थी जी वकील साहब के साथ आये तो गोविंद जी से बोले -" यह तुम क्या कर रहे हो ? अभी तो ज़रा अच्छे हुए हो. वसीयत लिखने की इतनी जल्दी क्या है. अभी तो बच्चे आये हैं थोड़ा ठीक हो जाओ "घर चल कर लिखवा लेना.
गोविंद जी ने कहा- जल्दी है भई मुझे जल्दी है . तुम मेरी जल्दी नहीं समझ सकोगे .किस्मत वाले हो जो तुम्हारी कोई संतान नहीं है. "
अवस्थी जी ने मालती जी को कुछ कहना चाहा तो उन्हों ने भी इशारे से उनको रोक कर इतना ही कहा- भाई साहब उनको मत रोकिये ; जो भी करना चाह्ते हैं ठीक है कर लेने दीजिये. अवस्थी जी भी चुप हो गये. और गोविंद जी लिखवाने लगे.................................
शाम के समय सारे बच्चे जब अस्पताल के कमरे में आये तो गोविंद जी पलंग की पीठ का सहारा लेकर बैठे थे. डाक्टर अवस्थी ,कमलाजी,वकील साहब सभी को मौजूद देख कर चारो बच्चे अपनी खुशी छुपा नहीं सके .कि यह सब इतनी आसानी से और इतनी जल्दी हो गया.
. गोविंद जी कुछ ऊॅची आवाज़ में बोले.-" मैं अपने प्यारे बच्चों का बहुत आभारी हूँ जो मेरी बीमारी की खबर सुन कर अपने अपने घर और काम छोड़ कर दौड़े आये हैं अब मैं ठीक हूँ इसलिये तुम सब वापस जा सकते हो आकाश . ने कल रात मुझे बहुत अच्छी बात सुझाई जो अब तक मेरे दिमाग में नहीं आयी थी. मुझे यह भी समझ आया कि यह केवल आकाश की नहीं अपितु मेरे सभी बच्चों की इच्छा है. तो उनकी इस इच्छा और सलाह का मान रखते हुए आज मैने अपनी वसीयत लिखवा दी है. जिस पर गवाह के रूप में मेरे मित्र डाक्टर अवस्थी और अस्पताल में मेरी देखभाल कर रहे डाक्टर गुप्ता ने हस्ताक्षर कर दिये हैं वकील साहब आप इनको मेरी वसीयत सुना दें और तीनो बच्चों को एक एक कापी दे दें. "
कुछ उत्तेजना के कारण और कुछ ज़ोर से बोलने से वे थक गये थे और उनकी सॉस फूलने लगी थी. डाक्टर अवस्थी ने उनको लिटा दिया और मालती जी उनका माथा सहलाने लगीं. वकील साहब वसीयत पढ़ने लगे----- बच्चे सॉस रोक कर सुनने लगे..........................
मैं गोविंद लाल गुप्ता सुपुत्र श्री देवी दयाल गुप्ता अपने पूरे होशो-हवास में बिना किसी दबाव या प्रतिबंध के यह वसीयत लिख रहा हूँ मेरी सारी धन-संपत्ति मेरी स्वयं की अर्जित की हुई है. इसपर केवल मेरी पत्नी मालती गुप्ता का ही अधिकार है जिन्हों ने जीवन की इस लंबी यात्रा में सदा मेरा साथ निभाया है और प्रत्येक स्थिति में मेरी ताकत बन कर मुझे सहारा दिया है और संभाला है. और किसी का इस संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं है.
. अपने तीनों बच्चों को उनका हिस्सा उनकी पढ़ाई लिखाई और शादियों में खर्च कर के ज़ेवर, और घर बसाने के लिये ज़रूरी धन के रूप में मैं दे चुका हूँ अब मुझे उनको कुछ भी नहीं देना.
रहा यह मकान तो इसको मैने और मेरी पत्नी ने बड़े अरमानों से बनवाया है ठीक उसी तरह जैसे कोई पक्षी एक एक तिनका चुन कर अपना घोंसला बनाता है. इस पर अभी मेरा और मेरे बाद मेरी पत्नी का ही अधिकार होगा लेकिन यह घर कभी भी बेचा नहीं जायेगा .हम इसको एक ओल्ड एज होम बनायेंगे. जिस में वे वृद्ध रहेंगे जिन की उनके बच्चों को ज़रूरत नहीं है. या जिन को अपने पास रखने की उनके बच्चों की इच्छा ही नहीं है . न तो उन बच्चों के पास अपने बूढ़े माता पिता के लिये कोई समय है, न जगह और न पैसा."
पढ़ लेने के बाद वकील साहब ने एक एक कापी तीनों बच्चों को देदी. अवस्थी जी कमला जी और वकील साहब एक साथ कमरे से निकल गये. बच्चों के चेहरे का रंग उड. गया .वे तो समझ ही नहीं पा रहे थे कि करें तो क्या करें और कहें तो क्या. ? गोविंद जी उनकी तरफ पीठ फेर कर लेटे रहे और मालती जी उनके सिरहाने खड़ी थी.
अंबर आकाश और रेखा उनको कुछ कहने को उनकी तरफ बढ़े तो मालती जी ने कहा -" बेटा आप को देर हो रही है अब जाओ "
हारे हुए जुआरी की तरह चारो अपने पैर घसीटते हुए बाहर निकल गये. और चल पड़े उस मकान की ओर जिसे अभी अभी उनके पिता ने ओल्ड एज होम की संज्ञा दी है.
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-
निशिपाल सूरी ,
५८-रिवर व्यू एन्क्लेव ,
टैल्को कॉलोनी ,
जमशेद्पुर
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