विवाह पूर्व दैहिक संबंध की नैतिकता अनैतिक वह जो नीतिगत नहीं होता। सर्वमान्य रीति नैतिक होती है। नीति व्यक्ति तय करते हैं, प्रकृति नहीं।...
विवाह पूर्व दैहिक संबंध की नैतिकता
अनैतिक वह जो नीतिगत नहीं होता। सर्वमान्य रीति नैतिक होती है। नीति व्यक्ति तय करते हैं, प्रकृति नहीं। उदाहरण स्वरूप कल्पना करें कि चांद पर एक दम कोई समाज उठ खड़ा होता है तो उनके आपसी संबंध वहां का गुरूत्वाकर्षण तय करेगा। वहां का समाज ही तय करेगा।
रीतियाँ एक दिन में तय नहीं होती। पीढ़ियाँ लगती है किसी रीति को बनने में यही कालान्तर में रीति का रूप ले लेती है। पहले उन्मुक्त दैहिक संबंध ही होते थे। कालान्तर में उसकी हानियां समझ में आई तो विवाह नाम की संस्था बनी। विवाह एक उत्सव होता है। यह कही नहीं सुना कि एक महिला और पुरूष धूमधाम से विवाह पूर्व संबंध बनाने के लिये रहने लगे। विवाह या पति पत्नी होना एक सर्वमान्य प्रथा है, जो एक पुरूष और महिला को दैहिक संबंध बना कर आदर्श समाज बनाने की अनुमति देते हैं। यही नीति है। इसके अलावा स्त्री और पुरूष के दैहिक संबंध अनैतिक है, क्योंकि वे एक आदर्श समाज का निर्माण नहीं करते।
मान लीजिये विवाह पूर्व दैहिक संबंधो के बाद एक संतान उत्पन्न की जाती है। अब उसका भविष्य क्या होगा। क्या उसे सार्वजनिक कचरे दान में फेंक दिया जायेगा या गटर में डाल दिया जायेगा। मान ले कि वह पांच वर्ष का हो गया तब वह स्कूल में माता पिता का नाम क्या लिखायेगा? और यदि विवाह पूर्व का वह सबंध प्रेम पूर्वक चलता रहा जो वह विवाह की हुआ न ? और यदि टूट गया तो संतान को अनाथालय जाना पड़ेगा। स्वयं के दैहिक आनन्द के लिये एक अबोध बच्चे के साथ वह घोर अपराध होगा।
विवाह पूर्व उनमुक्त दैहिक संबंध बनाने से दोनो को यौनजनित रोग यहां तक कि एडस होने का डर रहता है। जो एक डरे हुये मरनासन्न समाज की उत्पत्ति करेगा। जैसा कि अफ्रीका में हो रहा है। इस तरह, विवाह पूर्व दैहिक संबंध बनाना एक मीठा जहर पीना होता है। आजकल कुछ बुद्धिजीवियों में विवाह पूर्व दैहिक संबंध को उचित ठहराने की एक मुहिम सी चल पड़ी है। उसके पक्ष में कई तर्क वे देते हैं पर इस परम्परा के सामाजिक पहलू को वे बिल्कुल भूल जाते हैं।
विवाह पूर्व दैहिक संबंधों का सबसे अधिक नुकसान महिलाओ को उठाना पड़ता है हालांकि इसके पक्ष में जो तर्क दिये जाते हैं वे दहेज दानव की अनुपस्थिति और स्वतंत्रता है। एक बार बेमेल विवाह हुआ तो पति पत्नी को आपसी नापसन्दगी के बाद भी घुटघुट कर या तो रहना पड़ता है या कोई एक पागल हो जाता है या किसी को आत्महत्या करना पड़ता है या एक कोई उसके साथी की हत्या कर देता हैं। यह हालांकि एक भयावह दृश्य है पर यह सब तो विवाहपूर्व संबंधो में भी हो जाता हैं। विवाह पूर्व संबंध बनाने वाले कुंठित लोग होते हैं यदि उनका मानसिक विश्लेषण किया जाये तो क्या तथ्य सामने आयेगा ? क्या वे बहादुर लोग हैं या नकारवादी है या भागे हुये लोग हैं?
यदि वह नकारवादी (निहिलिस्टिक) या भगोड़े है तो वे स्वार्थी है और कैसा समाज बनायेंगे। यदि वे कुछ सालों तक साथ साथ रह कर अलग अलग शादी कर लेते हैं तो शादी के पहले उनका रहना क्या कहा जायेगा। मात्र शारीरिक आनन्द के लिये साथ रहना या वेश्यावृति ? फिर विवाह पूर्व उनका शारीरिक संबंध वैवाहिक जीवन में जहर घोल देगा। और यदि वे दोनो अजीवन साथ साथ रहते हैं तो वह विवाह ही हुआ पर वे केवल बहादुर दिखने के लिये अमृता प्रीतम एवं अफरोज या जान इब्राहीम और और बिपाशा बसु की तरह साथ साथ रह रहे होते हैं। इसे पलायन वादी लिव इन रिलेशनशिप का नाम देते हैं।
विधि विरूद्ध और बलात्कार की उम्र
किशोर न्यायालय में अठारह वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों को अवयस्क माना जाता हैं अठारह वर्ष से कम उम्र की विधि विरूद्ध बच्चों की सुनवाई और सजा का निर्धारण किशोर न्यायालय में होता है। अठारह वर्ष की सीमा रेखा अर्न्तराष्ट्रीय माप दण्ड के अनुसार रखी गई है। मगर क्या यह अर्न्तराष्ट्रीय माप दण्ड हमें भी आँख बंद करके स्वीकारना चाहिये या सन् 2001 के पूर्व का सोलह साल की सीमा रेखा रखनी चाहिए?
फिर एक प्रश्न यह भी है कि किशोर किसी अर्न्तराष्ट्रीय षडयन्त्र के मोहरे तो नहीं बन रहे। देहली के बलात्कार एवं हत्या प्रकरण ने ये प्रश्न बड़ी शिक्षित के साथ उठा दिये है। विशेष कर पाँच दरिन्दो में से किशोर न्यायालय ने एक युवक को जिसे क्ररतम बतलाया गया है किशारे मान लिया है। अब वह अधिक से अधिक तीन वर्ष के सुधारालय में उसे भेजा जायेगा जहाँ वह हीरोईज्म के किस्से शेष किशोरो को सुना कर उन्हें भी दुष्कृत्य के लिये प्रेरित करेगा।
संस्कृत का बांग्मय में बलात्कार का पहला प्रकरण हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता है जहाँ रावण ने रम्भा से बलात्कार किया था। उसके बाद भी श्रुतियों और स्मृतियों में ऐसे अनेक प्रकरण आते हैं। नारियों के शीलहरण का प्रकरण हमें महाभारत में देखने में मिलता है। जब कौरवों की सभा में द्रोपदी का चीरहरण किया गया था। इसी तरह इन्द्र ने ऋषि गौतम का रूप रखकर धोखे से उनकी पत्नी अहल्या के साथ दुष्कर्म किया था।
बलात्कार की परिभाषा बहुत विस्तृत है। किसी महिला की मर्जी के विस्द्ध यौन सम्बन्ध तो बलात्कार की श्रेणी में आता ही है, किसी युवकी को उसके साथ धोखा देकर यौन सम्बन्ध भी बलात्कार कहा जाता है किसी महिला की नशे की हालत में यौन सम्बन्ध भी बलात्कार होता है,ं किसी अवयस्क (अठारह वर्ष से कम) लड़की से यौन सम्बन्ध भी बलात्कार होता है (चाहे वह पत्नि ही क्यों न हो) किसी विक्षिप्त महिला से यौन संबंध भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। अभी यह स्पष्ट होना शेष है कि किन विशेष परिस्थितियों में भी उसकी मर्जी के विरूद्ध हिंसक (या हिसंक) यौन सम्बन्ध भी बलात्कार होता है या यह पत्नि का अलिखित दायित्व है कि वह पति को यौन संतुष्टि दें।
ये जो अठारह वर्ष की सीमा है यह बड़ी विचित्र है। यदि पुरूष की उम्र अपराध करते समय अठारह वर्ष से एक दिन भी कम है तो वह किशोर माना जायेगा और वह अठारह वर्ष एक दिन का है तो वह वयस्क हो जायेगा। यानि एक दिन में वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से कानून की नजरों में बलात्कार के लिए आजीवन कारावास का भागी हो जायेगा अन्यथा एक दिन पूर्व वह बलात्कार करके मात्र 3 वर्ष सुधार गृह जैसी हल्की सजा पायेगा। इस पर भी किशोर न्यायालय पर यह बाध्यता है कि यदि किशोर के स्कूल का प्रमाण पत्र उसे अठारह वर्ष से कम का बतला रहा है तो न्यायालय अधिक पूछताछ न करे। इस सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता कि स्कूल का आयु संबंधी प्रमाणपत्र नकली हो। फिर अलग-अलग मुल्कों में किशोरावस्था अलग-अलग समय पर आती है। यह वहाँ के वातावरण पर निर्भर रहता है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय माप दण्ड को आंख बंद करके मानने के बजाय स्थानीय परस्थितियों को ध्यान में रखकर और किशोरावस्था के प्रारम्भ के समय का अध्ययन करके ही विधि विरूद्ध बालकों की न्यूनतम उम्र तय करना चाहिये।
लेखक किशोर न्यायालय में सलाहकार रहा है। उस समय एक प्रकरण प्रस्तुत हुआ कि किशोर नकली नोट बना रहा है। उसे ज्ञात था कि उसे तीन वर्ष बाद छोड़ दिया जायेगा। क्या इस बात की सम्भावना नहीं थी कि वह लड़का किसी अन्तर्राष्ट्रीय गिरोह का मोहरा न रहा हो ?
अब इस तथ्य पर गम्भीरता पूर्वक विचार होना चाहिये कि एक सत्रह से अठारह वर्ष का बच्चा बलात्कार करने में अक्षम है या वह उस अपराध की गम्भीरता न जानता हो ? और कैसे एक दिन बाद उसे गम्भीरता ज्ञात हो गई हो ?
शासन ने भले ही नये प्रावधानों के तहत बलात्कारियों के विरूद्ध सजा के कड़े प्रावधान कर दिये हो (हालांकि ये प्रावधान पहले भी थे) पर जब तक किशोर बालकों के अभिभावको को भी बुलाकर न्यायालयों में बुलाकर प्रताड़ना नहीं दी जाती जब तक शक है कि किशारो पर कोई नैतिक बंधन रहेगा। (उन पर जिनसे बलात्कार की सम्भावना रहती है। सामूहिक बलात्कार के अधिकतर प्रकरणों में अल्प शिक्षित व्यक्ति पाये जाते हैं। ऐसे लोग जो गाँवों से शहरों में आ गये हैं और वाहन चालक या कंडक्टर आदि बन गये हो। उच्च श्रेणियों के प्रकरणों में महिलाओं को पदोन्नति का लालच देकर या आर्थिक लालच देकर (धोखा देकर) यौन संबंध स्थापित किये जाते हैं। अतः क्रूर बलात्कार के प्रकरणों में धारा 376-356 और 307 आदि की अन्य धारायें भी लगना चाहिये।
क्या सामूहिक बलात्कार पुरूषों की एक नेचुरल इन्सटिक्ट है
तेईस दिसम्बर 2012 की रात को दिल्ली में बस में एक लड़की के साथ कुछ पुरूषों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। इस घटना ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया महिलाओं ने पुरूषों और प्रशासन को रोशनी दिखाने के लिए जगह जगह केर्न्डिल मार्च निकाले। जगह जगह नुक्कड़ सभाये और आम सभायें हुई। शासन ने जनता को आश्वासन दिया कि वह आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवायेगी।
पूरे देश में प्रगति वादी और पुरातन पंथी सोचो में बहस छिड़ गई। प्रगतिवादी सोच रखनें वाले पुरूषो की सोच बदलने वादी बातें करने लगे वहीं पुरातन पंथी फडामेन्टलिश्ट लोगो ने कहा कि सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में महिलायें ही दोषी है। उन्हें उत्तेतक कपड़े पहन कर नहीं निकलना चाहिये।
शासन ने तत्काल पुलिस कर्मियों पर प्रशासनिक कदम उठायें। ये वही पुराने कदम थे। कुछ का निलम्बन एवं विभागीय जांच और उच्चाधिकारियों के स्थानान्तरण। इसी बीच दिल्ली के आई.जी. को स्टेटमेंट आया कि घर चार दीवारियों में बलात्कार सामूहिक प्रकरणों से ज्यादा होते हैं। यानि कि सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में पुलिस की कोई गल्ती नहीं होता।
उस लड़की को देश का आन्दोलन दबाने के लिए लड़की को इलाज के लिये सिंगापुर भिजवा दिया गया जहाँ उसकी मौत हो गई। प्रश्न यह है कि सामूहिक बलात्कार होते क्यों है ? यदि बलात्कार के कारणों पर गौर किया जाए जो सबसे मुख्य कारण काम वासना की प्रबलता और उसकी पूर्ति के लिए शक्ति प्रयोग के माध्यम से ऐसा अवसर जब अपराध करने के बाद स्वयं को दण्ड से बचाया जा सके यही करण है कि घटना के बाद महिलाओं की हत्या अधिकतर उपकरणों से हुई है जिससे गवाह न रह जाए।
शायद यह इन्सटिक्ट पुरूषों की जीन्स में पाई जाती है। वे महिला को एक शिकार समझते हैं और जहाँ महिला अकेली दिखी तो समूह बना कर उस पर झपटते हैं। या जहाँ वे परिस्थितियों को स्वयं के पक्ष में समझते हैं वहीं महिला के जिस्म एवं जेहन को घायल करके छोड़ देते हैं।
सामाजिक परस्थिति में उनकी यह ”स्टिंक्ट“ दबी रहती है पर महिला पर आक्रमण कर दबोचने की सोचते जरूर रहते हैं। अकेले जाने पर सारे थोपे गये रिश्ते झड़ा वे आक्रमण कर देते हैं। भेड़ियों की तरह समूह में आक्रमण करने की वे योजना जरूर बनाते रहते हैं। चाहे वे प्रेमी के रूप में उसे फुसलाने या पति के रूप में या ”कंजिन्स“ के रूप में। पुरूष के लिये महिला शिकार ही है। रिश्ते ऊपर से थोप दिये गये है।
सामूहिक बलात्कार में पुरूषों का समूह महिला पर हावी होने के लिये पहिले अशक्त करता है फिर उससे बारी बारी से बलात्कार करता है या करते हुओ को देख सेड्रिस्टिक सुख महसूस करता है। पुरूष सम्भवतः महिला को स्वयं से अधिक ताकतवर महसूस करता है इसलिये उस पर समूह बना कर आक्रमण करता है। या महिला की देहदृष्टि उसे प्राकृतिक रूप से आक्रमण करने के लिये उत्तेजित करती है। मगर समाज में यह उत्तेजना उन्हें विवरात पूर्वक दबाये रखना पड़ती है। समाज के बन्धन सम्भवतः महिला के पक्ष में रहते हैं। सामाजिक मर्यादायें क्यों महिलाओं के पक्ष में रहती है। यह सोचने का विषय है। पर जहाँ समाज हटा हो पुरूष बलात्कार के लिये विवश हो जाता है। एकान्त में यदि पुरूष के दिमाग में समाज जिन्दा रहता है तो वह बलात्कार नहीं करता।
बलात्कार का सबसे पहला प्रकरण वाल्मीकी रामायण में देखने मिलता है जहां रावण रम्भा को अकेले में पाकर उससे बलात्कार करता है। महाभारत में द्रोपदी का चीरहरण एक सामूहिक बलात्कार का ही प्रयास है।
दिल्ली वाले प्रकरण में राष्ट्रवादी के पुत्र का व्यक्तव्य आया था कि उस प्रकरण में लड़की की ही गलती थी। फिर दिल्ली के आई. जी का स्टेटमेंट पुलिस वालो के पक्ष में आया। एक साक्षात्कार में उनसे पूछा गया था कि उस प्रकरण में दुनिया से गलती क्यों हुई ? तो उन्होंने साक्षात्कार की दिशा घरेलू बलात्कार की तरफ मोड़ दी। फिर साधु संतो, मुल्लाओं नेताओं के वक्तव्य प्रकाशित हुये कि इन प्रकरणों में लड़कियों की ही गलतियां रहती है कि वे उत्तेजक वस्त्र पहनती है। इस तरह से सबका अलग अलग स्टेटमेन्ट एक ही दिशा में क्यों है। क्यों सब सामूहिक रूप से सामूहिक बलात्कार के प्रकरणों में पुरूषों के पक्ष में प्रतीत होते हैं ?
बलात्कार से बचाव
परिभाषा
बलात्कार
किसी पुरूष या पुरूषों द्वारा महिला की मर्जी के विरूद्ध यौन संबंध बलात्कार ही कहा जाता है। चाहे सहमति महिला को धोखे मे रख कर ली गई हो या नशे की हालत में ली गई है। यदि महिला मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है तब भी यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है। यदि महिला सोलह वर्ष के कम की है तब उसकी स्वीकृति के साथ यौन संबंध भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। यदि लड़की सोलह वर्ष से कम की है तो उसके पति द्वारा सम्भोग भी बलात्कार होता है। यदि सहमति प्रलोभन देकर भी प्राप्त की गई है जैसे शादी का प्रलोभन देकर या प्रमोशन या पैसो का या अन्य किसी तरह का प्रलोभन देकर भी प्राप्त की गई हो तब भी सम्भोग बलात्कार की श्रेणी में आता है।
बलात्कार भारत के क्रिमीनल प्रोसीडर कोड की धारा 376 के अर्न्तगत दण्डनीय अपराध है। बलात्कार की परिभाषा के अनुसार शिश्न का योनि में प्रवेश सिद्ध करना आवश्यक हैं अन्यथा वह मात्र शीलभंग की श्रेणी में आयेगा जो धारा 356 के अर्न्तगत दण्डनीय अपराध है।
प्रकार
यदि देहली वाले प्रकरण में उस बेसहारा लड़की के पास पिस्टल या छुरी होती तो शायद वह खुद को बचा सकती थी। विदेशो में अन्य कारणों के साथ बलात्कार की घटनाओं में कमी अस्त्र शास्त्रों के लायसेन्स सुविधापूर्वक मिलना भी हो सकता हैं। बलात्कार को हम मुख्यतः तीन भागों में बांट सकते हैं।
1. घरेलू बलात्कार
2. सामूहिक बलात्कार
3. बाहर के बलात्कार
घरेलू बलात्कार
ये बलात्कार लड़की के रिश्तेदार द्वारा होते हैं। ये बलात्कार लड़की का बाप, भाई, सौतेला बाप, मामा, फूफा घर का नौकर या कोई भी पुरूष रिश्तेदार कर सकता है। बलात्कार करनें के बाद लड़की पर दबाव डाला जाता है कि वह बलात्कार की घटना किसी को ना बतलाये अन्यथा उसे मार डाला जायेगा, उसकी चुगली कर दी जायेगी या किसी अन्य अपराध में फंसा दिया जायेगा।
ये बलात्कार शारीरिक शोषण की श्रेणी में आते हैं और दीर्घकाल तक चलते हैं। लढ़की के द्वारा गर्भधारण करने पर दोष किसी और पर लगा दिया जाता है या उसे कुलटा कह कर घर से बाहर निकाल दिया जाता है या उसकी आनन फानन में शादी कर दी जाती है। कुल बलात्कार के नब्बे प्रतिशत घरेलू बलात्कार होते हैं। यह प्रकाश में आने पर लड़कियां आत्महत्या तक कर लेती है या पागल हो जाती है।
संयुक्त परिवार और उसकी मर्यादायें इसके लिये काफी हद तक जिम्मेदार होती है। अशिक्षा और गरीबी भी इसके कारण है। छोटे मकान में एक ही कमरे में लड़के लड़कियों को सुलाना भी इसके लिये जिम्मेदार होते हैं। इसलिये भी बाल विवाह कर दिये जाते हैं।
रोकथाम
लड़के और लड़कियों के कमरे अलग अलग होने चाहिये। परिवार नियोजन भी कुछ हद तक रोकथाम में सहायक रहा है। लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य है। लड़कियों की बातों पर मां को विश्वास करना चाहिये। उन्हें निडर और स्वाभिमानी बनाना चाहिये लड़कियों को सिखाना चाहिये कि घर के मर्दो से भी एक निश्चित दूरी बनाये रखें। लड़कियों के एक दम ब्यौहार परिवर्तन पर कारण सोंचना चाहिए। ऐसे प्रकरणों को भी पुलिस में देने पर हिचक नहीं करना चाहिए।
सामूहिक बलात्कार
ऐसे बलात्कार अपहरण, अकेली लड़की को पाकर एकदम या योजना बना कर किये जाते हैं।
कारण ः आदमी की लोलुपता ही इनका कारण होती है। सार्वजनिक मार्गो पर लड़कियों का अकेलापन और कई पुरूषों का समूह में होना (दो या दो से अधिक), तात्कालिक या दीर्घकालीन योजना, लड़की के मां बाप से बदला लेना अन्य अनेक कारण हो सकते हैं। कुल बलात्कारों का यह एक से पांच प्रतिशत तक होते हैं।
रोकथाम
1. लड़कियों को आत्म विश्वास सिखाना चाहिये
2. उन्हें जूड़ो कराटे का प्रशिक्षण देना चाहिये।
3. जब भी लड़की, घर से बाहर निकले तो ऐसे कपड़े पहने जो भागने में व्यवधान भी न बनें। जैसे साडी के स्थान पर जीन्स पहनें।
4. लड़की सम्भव हो जो कार में जाये।
5. टू व्हीलर में किसी साथ की लड़की के साथ जाये।
6. घर से वोलेट में मिर्ची का पाएडर रखे तो बेहतर। उसे बलात्कारी की आंखो में झोंका जा सकता है।
7. रात को सेकण्ड शो न जाये तो बेहतर सम्भव हो तो समूह में बाहर निकले। (जब पुरूष समहों में रहते हैं जो लड़कियाँ क्यों नहीं ?)
8. बालों को खुला न रखें।
9. पुरूष मित्रो को लाभ का मौका न दें।
10. सार्वजनिक भीड़ भाड़ वाले मार्ग को चुने।
11. किसी बस में यदि अकेले चढ़ गई हो तो उतर कर अपने परिचित को फोन कर दें।
12. घर से बाहर जाते समय सहेलियों (यदि होस्टलर हो) या अभिभावको को बता कर जायें।
13. फास्ट फोन का इस्तेमाल करें।
14. सहासता नम्बर ः, यदि पुलिस सहायता नम्बर पास में रखें और तत्काल फोन कर दें।
यदि घिर जायें तो
15. घेरे से बाहर रहने का प्रयत्न करें।
16. प्रतिरोध बलात्कारियों को जानवर बना देता है फिर भी यथा सम्भव घेरे से बाहर निकल कर सार्वजनिक स्थल पर की ओर भागे।
17. चीखने से बलात्कारी डर भी सकते हैं मुंह दबाने पर उन्हें काट लिया जाये।
19. यदि एक बलात्कारी को ओवर पाकर किया जा सकता है तो करें
20. पुरूषों के अण्डकोष बहुत ही नाजुक हिस्सा है। उस पर घुटनों की ठोकर लगायें या बलात्कार की दशा में एक दम मुट्ठी में लेकर मसल दें वह बेहाशे हो जायेगा।
21. बलात्कारी, बलात्कार करने के बाद जान से मारने का प्रयत्न करते हैं जिनसे कोई गवाह ने रहे या उन्हें पहचाना न सके ऐसा न होने दें चाहे गिडगिड़ाना ही क्यों न पड़े।
आउट डोर बलात्कार
ऐसे बलात्कारों में लड़की को फुसला कर घर से बाहर लाया जाता है फिर उसे अन्यंत्र कैद कर उससे कई दिन तक बलात्कार किया जाता है। यह दुष्कृत्य या तो लड़की को शादी का प्रलोभन देकर किया जाता है या कोई रिश्तेदार उसे फुसला कर बाहर ले जाता है। यह भी सामूहिक बलात्कार हो सकता है। कभी-कभी लड़की की सहेली भी उसे फुसला कर बाहर ले जाती है। यदि लड़की सड़क पर जा रही है तो कार या टेम्पों में भी उसका अपहरण कर लिया जाता है। कभी-कभी उसे किसी खण्डहर, जंगल में ले जाकर भी बलात्कार करके छोड़ दिया जाता है।
कारण ः-
1. यदि लड़की के पुरूष मित्र हो तो वे ऐसा कर सकते हैं।
2. अच्छी संगत न हो।
3. लड़की का अत्यधिक खुला व्यवहार
रोकथाम
किसी पुरूष मित्र को बेवहज लाभ न लेने दें। उस के साथ किसी निर्जन स्थान में न जायें। इसी तरह किसी सहेली के साथ भी निर्जन स्थान में न जावें। मित्रता उन से करें जिनका चरित्र अच्छा हो। सेलर सा डिस्कोथाीक में जाने से इन घटनाओं की आवृति हो सकती है।
यदि अपहरण हो रहा तो सड़क चलते लोगो का ध्यानाकर्षण करें। ”मोबाइल“ हमेशा चार्ज रखें और उसमें पर्याप्त बेलेन्स हो ऐसे मोबाइल रखें जो आपकी लोकेशन बतला सके।
कैद हो जाने पर भागने के मौके लगातार देखते रहें।
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बलात्कार का महिला पर मानसिक परिणाम और उनका निदान
बलात्कार से महिला के ऊपर अपूर्णीय शरीरिक और मानसिक आघात पहुँचती है। मानसिक परिवर्तनों को साम्य अवस्था में ले लाने के लिये काफी मानसिक प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है। वह हर पुरूष से डरने लगती है और कामोबेश नफरत करने लगती है। शादी होने पर वह सामान्य तरीके से शारीरिक सम्पर्क नहीं बना सकता। हो सकता है कि पति के साथ शारीरिक सम्पर्क करते समय उसे बलात्कार की याद आ जाये। हो सकता है कि वह शारीरिक सम्पर्क के समय पति को हटा दे।
बलात्कार के बाद न्यायालय की एक लम्बी और शर्मनाक प्रक्रिया चलती है। आवश्यक है कि कानून में बदलाव लाकर कानूनी प्रक्रिया को छोटा कर बलात्कारी को कड़े से कड़ा दण्ड दिया जाये। न्यायालय को महिला के शारीरिक आघात के साथ साथ मानसिक आघात का भी ध्यान रखना चाहिए।
लड़की जिसके साथ बलात्कार हुआ है समाज में बदनाम हो जाती हैं। एक सामाजिक बदलाव के बाद भी लड़की को बलात्कारी की पुलिस में रिपोर्ट करने से नहीं डरना चाहिये, किसी भी परिस्थिति में नहीं उसका उद्देश्य अब बलात्कारी को कड़ा दण्ड दिलाना होना चाहिये। यदि वह निचले कोर्ट में हार जाती है तो उसे ऊपर के कोर्ट में जाना चाहिए। यदि पुलिस वाले या समाज वाले उसका मजाक उड़ाते हैं तब तो उसका निश्चय इन गन्दे मानसिकता वाले पुरूषो के कारण और भी दृढ़ हो जाना चाहिये। यदि पुलिस वाले रिपोर्ट लिखने से मना कर रहे हों तो उसे सीधे पुलिस अधीक्षक से मिलना चाहिये। पुलिस अधीक्षक को दिये गये अपराध का रजिस्टर्ड पत्र द्वारा दिया गया विवरण भी एफ.आई.आर माना जाता हैे।
यदि लड़की को लगता है कि बलात्कार के पश्चात कोई उससे शादी नहीं करेगा तो नहीं सही। आजकल कितनी लड़कियां बगैर शादी के रह रही है। उसे कोशिश करनी चाहिये कि वह स्वयं के पैरो पर खड़ी हो जाये।
ऐसे समय में मां बाप का दायित्व हो जाता है कि लड़की के साथ सहानुभूमि पूर्वक ब्यौाहर करें और अपराधी को सजा दिलाने के लिये उसकी सहायता करे। ऐसे मौके पर लड़की को मानसिक सम्बल की आवश्यकता रहती है। यदि आवश्यक हो तो मानसिक चिकित्यक से सहायता लेने में झिझके नहीं। ल्रड़की की मानसिक दृढ़ता उसके वर्तमान एवं भावी जीवन के लिये आवश्यक है। यदि डिप्रेशन हो जाता है जब भी घर वालो का धैर्य और मानसिक चिकित्सक की सलाह आवश्यक है।
यदि यह जानते हुए भी कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है कोई लड़का उससे शादी के लिये राजी होता है तो उसे देख परख लिया जाये। उससे आश्वासन लिया जाये कि वह भी बलात्कारियों को दण्ड दिलाने में लड़की की सहायता करेगा। शादी के बाद भी मां बाप को लड़की का सम्बल बने रहना चाहिए।
यदि कोई रिश्तेदार यथा भाई, चाचा, मामा या किसी और ने बलात्कार किया हो तो उसकी सामाजिक भर्त्सना और लगातार सामाजिक बहिष्कार आवश्यक है। केवल उसके माफी मांगने से काम नहीं चलेगा उसने तो अपेक्षाकृत बड़ा पाप किया है।
बलात्कार के महिला पर शारीरिक परिणाम
बलात्कार के महिला पर मुख्य रूप से दो तरह के परिणाम हो सकते हैं
(1) गर्भधारण (2) यौन रोग
गर्भधारण
गर्भधारण यदि बलात्कार के पश्चात होता है तब वही पुरूष रिश्तेदार जो अपराधी है या तो गर्भपात पर जोर देता है या तरह-तरह के अपराध लगा कर लड़की को बदनाम करने का प्रयत्न करता है। उधर जान जाने के डर से लड़की गर्भपात के लिये मना कर देती है। वह अत्यधिक डर जाती है। बदनामी के डर से लड़की के मां बाप पहले लड़की कि बेरहमी से पिटाई करते हैं फिर स्वयं ही दादी के नुस्खे से गर्भपात का प्रयत्न करते हैं। या फिर अप्रशिक्षित दाइयो से गर्भपात करा कर लड़की की जान जोखिम में डाल देते हैं, जो कि सम्भवतः वे चाहते भी हैं फिर मगरमच्छी आँसू बहा कर चुप हो जाते हैं पर अपराधी से रिश्ता नहीं तोड़ सकते।
लक्षण - गर्भधारण के लक्षण लड़की की मां भी जानती है। प्रथम तीन माह में उल्टी होना, भूख कम लगना चेहरे पर तितली के आकार का गहरा धब्बा, बार बार पेशाब लगना, भूख कम लगना आदि है। स्तन बढ़ सकते हैं। ”एरीगोला“ का रंग गहरा हो जाता है।
सरबिक्स नीले से रंग की हो जाती है। गर्भाशय उदर के निचले भाग तक आ सकता है।
जाँचे- पेशाब की जाँच में गर्भधारण की जाँच धनात्मक हो जाती है।
क्या करें- यदि लड़की इच्छा से बच्चे को जन्म देना चाहती है जो मां बाप को उस रिश्तेदार के विरूद्ध या वैसे भी रिपोर्ट लिखा कर सजा दिलवाना चाहिये और लड़की को नैतिक सम्बल देना चाहिये। नहीं तो लड़की की इच्छानुसार चिकित्सकीय गर्भपात करवा देना चाहिए।
यौन जनित बीमारियाँ
यौन जनित बीमारियों की एक लम्बी लिस्ट है इनमें कुछ निम्नानुसार है
वायरल
(1) हरपीज सिम्प्रेक्स
(2) एडस
(3) लिरफी ग्रेनुलोमा इन्ग्वाइनेल
(4) पेपेलियो वायरस
(5) हिपेटाइटिस बी
(6) साइटो मेगेलो वाइरस
(7) मालस्कम कन्टेजिओसम
बेक्टीरियल यौन जनित रोग
(1) गोनोरिया
(2) क्लेमाइडिया ट्रेकोमेटिस
(3) सिफिलिस
(4) सेन्काइड
(5) ग्रेनुलोमा इन्ग्वाइनेल
फन्गल
टीनिया प्यूबिस
परजीवी
(1) ट्राइकोमोना बेजाइनेलिस (2) जुये
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बलात्कार का महिला पर शारीरिक परिणाम और उसका निदान
महिला पर मुख्य रूप से दो परिणाम हो सकते हैं
(1) गर्भधारण (2) यौन रोग
गर्भधारण
गर्भधारण यदि बलात्कार के पश्चात होता है तब वही पुरूष रिश्तेदार जो अपराधी है या तो गर्भपात पर जोर देता है या तरह-तरह के अपराध लगा कर लड़की को बदनाम करने का प्रयत्न करता है।
उधर जान जाने के डर से लड़की गर्भपाज के लिये माना कर देती है ? वह अत्याधिक डर जाती है। बदनामी के डर से लड़की के मां बाप, पहले तो लड़की की बेरहमी से पिटाई करते हैं। फिर स्वयं ही दादी के नुस्खे से गर्भपात का प्रयत्न करते हैं या फिर अप्रशिक्षित दाइयों से गर्भपात करा कर लड़की की जान जोखिम में डाल देते हैं। लड़की की यदि मृत्यु हो जाती है, जो कि सम्भवतः वे चाहते भी है तो मगरमच्छी आँसू बहा कर चुप हो जाते हैं। पर अपराधी से रिश्ता नहीं तोड़ सकते।
लक्षण ः- गर्भधारण के लक्षण लड़की की मां भी जानती है प्रथम तीन माह में उल्टी होना, भूख कम लगना, चेहरे पर तितली के आकार का गहरा धब्बा होना, बार-बार पेशाब लगना, भूख कम लगना आदि है। स्तन बड़ सकते हैं, ”एरीगोला“ का रंग गहरा हो जाता है। ”सरविक्स नीले“ से रंग की हो जाती है। गर्भाशय उदर के निचले भाग तक आ सकता है।
जाँचे ः पेशाब की जाँच गर्भधारण में जो धनात्मक हो जाती है। यह एक सामान्य एवं सरल जाँच है।
क्या करें ः यदि लड़की इच्छा से बच्चे को जन्म देना चाहती है तो माँ बाप को उस रिश्तेदार के विरूद्ध या वैसे भी रिपोर्ट लिखा कर सजा दिलवाना चाहिये और लड़की को नैतिक सम्बल देना चाहिये। नहीं तो लड़की की इच्छानुसार चिकित्सीय गर्भपात करवा देना चाहिये।
यौन जनित बीमारियाँ
यौन जनित बीमारियों की एक लम्बी लिस्ट है इनमें कुछ निम्नानुसार है-
वायरल
(1) हरपीज सिम्पलेक्स
(2) एड्स
(3) लिरफी गे्रनुलोमा इन्र्ग्वाइनेल
(4) पेपीलोमा वायरस
(5) हिपेटाइटिस बी
(6) साइटोमेगेलोवायरस
(7) मार्लस्कम कन्टेजिओसम
बेक्टीरियल यौन जनित रोग
(1) गोनोरिया
(2) क्लेमाइडिया ट्रेकोमेटिस
(3) सिफिलिस
(4) सेन्फ्राइड
(5) ग्रेनुलोमा इन्ग्वाइनेल
फन्गल
टीनिया - प्यूबिस
परजीवी
(1) ट्राइकोझेना बेजाइनेलिस
(2) जुये
यौन जनित रोगो में यह बिन्दु ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं में चिन्ह्न शीघ्र नहीं दिखते क्योंकि उनके जननांग अन्दर होते हैं। पर वे अधिक प्रतिशत में प्रभावित होती है यौन जनित रोगो का संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है-
यौन जनित हरपीज सिम्प्लेक्स
यह एक वायरल संक्रमण है जिसमें जननागों में दर्दनाक फफोल उठ जाते हैं। जाँघ की गठाने बढ़ जाती है। बुखार रहता है। 50-90 प्रतिशत महिलाओं में योनि में छाले हो जाते हैं । दर्द के साथ योनि में स्त्राव होता है पेशाब में जलन होती है।
एड्स
यह बीमारी एच.आई.वी. बन, एवं टू नामक वायरस से होती है। अमेरिका में इस बीमारी से चार लाख बीस हजार व्यक्ति सन् दो हजार तक मारे जा चुके है। यह 25 वर्ष से 44 वर्ष की उम्र के व्यक्तियों में ज्यादा होती है।
इस बीमारी के फैलने के चार स्त्रोत है
अनस्टराइल
(1) यौन सम्पर्क (2) अनस्टेराइल इंजेक्शन (3) असुरक्षित रक्त दान (4) माँ से शिशु में जिस व्यक्ति के एक से अधिक यौन सहयोगी रहते हैं उपनें यह बीमारी अधिक फैलती है। अतः यह ज्ञात नहीं होता है कि अनजान पुरूष (महिला) इसे बीमारी से ग्रस्त है या नहीं। यह बीमारी कैदियों, ट्रक ड्राइवरो सैनिको और ”होस्टलरस“ में अधिक पाई जाती है।
इस बीमारी में प्रथम स्थिति में तेज बुखार गठानों का बढ़ना, गले में दर्द, जोड़ो एवं मांस पेशियों मे दर्द एवं चकत्ते उठ सकते हैं। संक्रमण के तीन माह बाद रक्त जांच से इसे जाना जा सकता है। संक्रमण से तीन माह का समय विडो पिरीयड कहलाता हैं
लगभग 5 वर्ष से बीस वर्ष बाद इसके लक्षण दिखते हैं यह स्वतंत्र रूप से बीमारी नहीं है पर प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर बीमारियों का एक समूह है इस बीमारी में मुंह में सफेद छाले हरपीज सिम्पलेक्स, न्यूमोनिया, सारकोमाज (केन्सर) हो सकते हैं। इस बीमारी में क्षय रोग बढ़ जाता है। इस बीमारी में ठीक न होने दस्त, विम्मरण, मेनिन्जाइटिस ठीक न होने वाली खाँसी गहाने बढ़ना भी हो सकता है। यह बीमारी जान लेवा है। हाँ इसके लक्षण दबायें जा सकते हैं। अभी-अभी दो व्यक्तियों को अमेरिका में रोग मुक्त करने में सफलता मिली है। (दै.भा) (दै. भा)
इस तरह बलात्कार करने वाले, महिला की गलती न होने पर भी जान लेवा बीमारियां दे सकते हैं। भारत में सन् 2011 में यह 57 तक कम हो गई है। (दैनिक भास्कर 5.3.13)
लम्फो ग्रेुनलोमा इन्ग्वाइनेल
इस बीमारी में जाँच की जड़ो की गढ़ाने बढ़ जाती है फिर फूट कर छाले बन जाते हैं।
पेपीलोमा वायरस
इस बीमारी में जननांगो और गुदा के आस पास कई तरह के मसे हो जाते हैं जो केंसर में भी बदल जाते हैं।
हिपेटाइटिस बी
बुखार, उल्टी आना, पेट के ऊपरी भाग में दर्द और पीलिया इस के मुख्य लक्षण है। यह बीमारी असुरक्षित इन्जेक्शन एवं असुरक्षित रक्त दान से भी फैलती है।
गोनोरिया
यह बीमारी नाइजीरिया, गोनोकाकाई नामक बैक्टीरिया से होती है। इस बीमारी में पीप युक्त योनि स्त्राव होता है। हर योन जनित संक्रमण की तरह बुखार जांघो की गढ़ाने बढ़ सकती है पेशाब करने में जलन होती है। पुरूषो की पेशाब में पीप आता है औश्र पेशाब रूक सकती है।
गले में दर्द आंखो का आना (कन्जाटिवाइटिर) जोड़ो में सूजन एवं दर्द हो सकते हैं। महिलाओं में फेलोपियन ट्यूबू्रस के अवरूद्ध हो जाने पर पेट में दर्द एवं इन्फर्टिलिटी हो जाती है।
क्लेमाइडिया ट्रेकोमेटिस
”नान गोनो काकल“ या गोनोरिया के पश्चात यह बीमारी होती है। महिलाओं में आंखो का आना पेशाब में जलन एवं जोड़ो में सूजन हो सकती है।
सिफिलिस
यौन संसर्ग के 10 दिन से 90 दिन में शिश्न या योनि में दर्द रहित छाला होता है जो ठीक हो जाता है पर इस छाले के साथ ही बीमारी पूरे शरीर में फैल चुकी होती है। द्वितीय अवस्था में गठाने, शरीर के दोनो तरफ बगैर खुजली के चकते हो जाते हैं। जहाँ झिल्ली और त्वचा मिलती है (मुंह, योनि, गुदा) वहां गीले ”कान्डाइलोमेटा“ हो जाते हैं।
तृतीय अवस्था में मेनिन्जाइटिस, पेरेलिसिस टेक्यू, (खडे होने में मुश्किल, दिमाग कमजोर होना स्पर्शादि कम होना जोड़ो, का विकृत होना एन्यूरिज्म (बड़ी धमनी का कुछ भागो में फूलना), अस्थियों मुंह, त्वचा भागो में फूलना), अस्थियों मुंह त्वचा इत्यादि में गठाने (गमा) हो जाते हैं।
सेन्ठायड
जननांगो में एक दर्दनाक छाला होता है और जांघ की जड़ो में सूजन हो जाती है।
ग्रेनुलोमा इन्युवायनेल
एक मांसाकर का छाला जो रक्त स्त्राव करता है हो जाता है जांघो की जड़ में त्वचा की सूजन हो जाती है।
फंगल इन्फेक्शन
यह खुजली का रोग पेट के निचले भाग में कई गोलाई लिये हो जाता है। बाल झड़ जाते हैं।
परजीवी
(1) ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस
(2) जुये
यह ध्यान रखना चाहिये कि यौन जनित संक्रमण दवाइयों से ठीक किये जा सकते हैं।
समस्या की गम्भीरता
महिलायें लगभग हर दिन वहशी पुरूष दरिन्दो का शिकार होती है। हर दिन हरेक समाचार पत्र पुरूषो की इस पाश्विकता में रंगे रहते हैं। दिसम्बर 2012 में दामिनी कहें या निर्भया कहे या बाजी जिस तरह से पुरूषो की इस बर्बरता की शिकार हुई है वह रोंगेटे खड़े कर देने वाली घटना थी।
नवीत्थान लेख सेवा (30 जनवकरी सन् 2013) की माने तो अकेली दिल्ली में सन् 2011 में 580 महिलाओं के साथ घिनोनी हरकत हुई। मुम्बई में 239 चेन्नई में 76 कोलकाता में 47 और बेंगलुरू में 96 महिलायें पुरूष की हवस का शिकार बनी। दिल्ली और हरियाणा में तो हर दिन कोई न कोई महिलाओं के प्रति वीभत्स घटना हो ही जाती है (नवोत्थान लेख सेवा)
एक दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर भारत में ये घृणास्पद घटनायें अधिक होती है या वहां निर्मत घटनायें अधिक होती है जहाँ संस्कृति के ऊपर हमले अधिक होते हैं। महिलाओं पर ऐसे यौन संबंधी हमलें महिला शिशु को लेकर वृद्ध महिलाओे तक पर होते रहते हैं।
फरवरी के अंक ”सागर“ 2013 में ”सावधान आ रही है“ मासूम बलत्कारियों की टोलियों नामक शीर्षक से बलात्कारी के परिप्रेक्ष्य में कानून की मासूम परिभाषा का मजाक उड़ाया गया हैं। लिखा है ”कि दिल्ली गेंग रेप के एक दोषी को नाबालिक के सर्टिफिकेट के हिसाब से इस आरोपी कि उम्र 17.5 साल है। किसी भी नाबालिक अपराधी को केवल और केवल 3 वर्ष की सजा हो सकती है। सजा पूरी होने के पहले अगर अपराधी 18 वर्ष का हो जाता है तो सजा खत्म हो जाती है। इसका मतलब हुआ कि ये अपराधी जून के बाद फिर किसी का रेप करने के लिये खुला छोड़ दिया जायेगा क्योंकि ये असम्भव है कि इसकी ओवर हिलिंग करके इसे पशु से इंसान बना दिया जायेगा। इस बलात्कारी ने लड़की के गुप्तांग में लोहे की छड़ डाली थी फिर उसकी आंते इस छड़ से बाहर निकाली। इस घिनोने काम से बेहोश हो चुकी लड़की के साथ फिर बलात्कार किया। जूते से अंगो को मसला। इसके बाद फिर उस लड़की को ले मर साली कहा। फिर उस के साथियों के साथ उस लड़की के कपड़े उतार कर उसके मित्र के साथ सड़क पर फेंका। क्या आपको लगता है कि ये सब काम अगर एक बच्चा भी करें तो वे माफी के काबिल है। एक तरह तो हम बाल विवाह को अपराध मानते हैं तो दूसरी तरफ इस अपराधी को नाबालिक मानते हैं।“
चाणक्य ने अपराध करने वाला, अपराध करवाने वाला और अपराध की सहमति देने वाला इन तीनों को अपराध के बराबर का भागीदार माना है। देहली की उस वीभत्स घटना में उस लड़की की हत्या में इस तरह सभी बलात्कारी हत्या के दोषी है। उन सभी पर धारा 302 लगाई जानी चाहिये। वह हत्या न तो बलात्कारियों नें आत्मरक्षा के लिये की थी न ही लालच में ही की थी, न वे विक्षिप्त थें। और वे उस हत्या का परिणाम भी जानते थे। अतः भले ही कहा जा रहा हो कि हत्या का दोषी वह नाबालिक था पर सारे बलात्कारी उस भयंकर अपराध के बराबर से दोषी थे। यह भी सम्भावना है कि अपराध किसी बालिग ने किया हो और सजा की गम्भीरता कम करने के लिये उस तथाकथित नाबालिक से यह स्वीकार करवा लिया गया हो.
”समाज प्रवाह“ मासिक ने बलात्कारी और फाँसी नामक शीर्षक से 15 फरवरी 2013 को इस समस्या का उत्तरदायी सामाजिक प्रदूषण को माना है और मुख्यतः सिंधी/पंजाबियों द्वारा निर्मित फिल्मों को माना गया है। इसी पत्र में मुजफ्फर हुसैन द्वारा बलात्कार संबंधी भयावह आंकड़ो को प्रस्तुत किया गया है। उस लेख के अनुसार वर्ष 2011 में भारत में बलात्कार के सात हजार एक सौ बाहर प्रकरण पंजीबद्ध हुये थे मगर ये आंकड़े समुद्र में बहते बर्फ की चट्टान की दिखती हुई चोटी की भांति अत्यंत छोटे है।
महिलाओं पर पुरूषो के अत्याचार प्राग्ऐतिहासिक काल से होते आ रहे है। पुत्रियों को तथा कथित ब्रहन ज्ञान तक के बदले पुरूषो को दिया जाता रहा है ! दरअसल महिलायें या तो विनिमय की वस्तु समझी जाती रहीं है या भोग की। उन्हें मानव कभी नहीं समझा गया। वे मनुष्यों पर एक बोझ ही समझी जाती रही है। राजाओं ने उनके विजय पर खजाने के साथ महिलाओं को प्राप्त किया है। कई बार विजित ने स्वयं की जान बचाने के लिये स्वयं की पुत्रियों, बहनों यहा तक की पत्नियों तक को विजेता को सौंपा है। पत्नियां ही सती होती रही कभी कोई पुरूष सता नहीं हुआ।
महिलाओं को भ्रूण के समय से ही मारा जाता रहा है। जिन्दगी के हर पड़ाव पर उन पर पुरूषो द्वारा अत्याचार हुये है। यहाँ तक कि भिखारी तक सम्पन्न और सम्भ्रात महिलाओं को ”माल“ समझते हैं। गालियाँ भी माँ और बहिन को इंगित करके दी जाती है पिता या भाई को इंगित करके नहीं।
पुत्री को शिक्षा न दिलवाना उन पर अत्याचार का ही रूप है। उन्हें पुत्र की अपेक्षा कम पौष्टिक खाना देना एक उन्हें धीमी मौत देने जैसा ही है। निम्न माध्यम वर्गीय परिवार में उन्हें अव्छे वस्त्र नसीब से ही मिलते हैं। शादी के समय वर पक्ष को पैसा देकर लड़कियों को टाला जाता है। उन्हें दहेज तो दे दिया जाता है पर बाप उन्हें स्थायी संपति में भागीदार नहीे बनाता। उन पर ये सब अत्याचार बलात्कार की श्रेणी में ही रखे जाने चाहिए।
सड़को पर उन्हें चलने नहीं दिया जाता। उन पर फब्तियां कसी जाती हैं। यह घाटंय क्रिया इसी स्तर पर रोक देनी चाहिये। मगर उन्हें रोका जाता है तो उन गुण्डो के चाकू निकल पड़ते हैं। दिल्ली की सराय काले खां की घटना लोग भूले न होंगे जब एक महिला को अगुआ किया जा रहा था और उसके विरोध करने पर उसे गोली मार दी गई।
समस्या की जड़ में हमारे वे संस्कार है जिनके कारण महिला को गुलाम समझा जाता है यहां तक कि लड़कियों की खरीद फरोख्य होती है जैसे पैरो के जूते खरीदे जाते हैं। फिर पालतू बैलो की तरह उन्हें वैश्या बना दिया जाता है। उन्हें शरीर बेच कर कमाई का एक बड़ा हिस्सा एक संगठित समूह को देना पड़ता है। यह कितने शर्म की बात है कि उन्हें उनका शरीर बेचना पड़ता है। यह भी संगठित पुरूष समूह का विवश महिलाओं पर सामूहिक बलात्कार ही है। मासूम बच्चियॉ बेची जाती है युवतियां बेची जाती है और अन्त में अनुपयोगी होने पर उन्हें तीर्थो पर भीख मांगने के लिये छोड़ दिया जाता है।
कोई कानून बलात्कार की घटनाओं को नहीं रोक सकता। दहेज प्रथा को रोकने के लिये कानून है पर दहेज लेना या दहेज हत्यायें रूकी क्या ? सब को मालूम है कि हत्या करने पर फांसी होती है पर हत्या करना रूका क्या ? क्या चोरी जुआं, सट्टा रूक गये ?
महिलाओं के बारे में क्या अनपढ़ और क्या प्रबुद्ध सभी घटिया राय रखते हैं। देहली वाली घटना के बाद, संत आशाराम, सर संघ चालक भागवत महामहिम प्रवण मुखर्जी के चिरंजीव जो कि लोकसभा के सदस्य है एवं मध्य प्रदेश के मंत्री विजय वर्गीय एवं ऐसे कई आदरणीयों ने उसी को दोषी टहराया है जिस अबला पर बलात्कार हुआ है। संतो से लेकर मंत्रियों तक के विचार महिलाओं के बारे में घटिया दिखे।
संयुक्त परिवार में महिलाओं की दशा और शर्मनाक होती है। एक ही कमरे में पिता संभोग कर रहा होता है और भाई बहिन एक ही बिस्तर पर सो रहे होते हैं। लड़कियों के साथ भाई, मामा, फूफा, सौतेले भाई यहां तक कि बाप के द्वारा बलात्कार के प्रकरण प्रकाशित हुये है। उन्हें डरा कर चुप रहने को विवश कर दिया जाता है। विधवाओं के हाल और भी ज्यादा खराब रहते हैं। उनके जेठ, देवर या कोई और रिश्तेदारों के नीचे उन्हें सोना पड़ता है और गर्भवती हो गई तो कुलटा कर हर उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाता है।
इस समस्या के समाधान के लिये पुरूषो की मानसिकता बदलनी चाहिये। महिलाओं को पुरूषो के बराबर समझना चाहिये। स्थायी सम्पति में उन्हें बराबर का हिस्सा मिलना चाहिये। बदचलन पुरूषो का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिये। दण्ड कठोर होना चाहिए और सजा सार्वजनिक दी जानी चाहिये जैसे अरब देशो में चौराहो पर खड़े करके उन्हें आमृत्यु पत्थर या हन्टर मारे जाते हैं। प्रकरणों का निराकरण त्वरित होना चाहिये। देहली में फास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन एक अच्छी पहल है पर बलात्कार की राजधानी में हालात किंचित भी नहीं सुधरे है।अधिकतर बलात्कार कम शिक्षित लोगों ने किये है जहां शिक्षा का स्तर अधिक है वहां बलात्कार के प्रकरण कम हुये हैं जैसे चेन्नई, बेंगलुरू इत्यादि। अतः शिक्षा का स्तर सुधारने पर बलात्कार के प्रकरणों और महिलाओं पर अत्याचार के प्रकरणों में कमी की आशा कर सकते हैं।
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मंच पर आने की छटपटाहट
दिनांक 23 जून 2014 को किन्ही राजनैतिक स्वयंभू शंकराचार्य ने साइं भक्तो पर प्रहार करते हुये कहा कि साई बाबा के भक्तो को राम या ऊँ का प्रयोग नहीं करना चाहिये और हिन्दुओं को सांई की आराधना नहीं करना चाहिए। भगवान राम को द्वारका के शंकराचार्च ने एवं राजनैतिक पार्टियो ने पिंजरे में कैद कर रखा है। ये वे लोग है जो राम का मतलब नहीं जानते। राम का मतलब होता है आनंद दायक इसी से आराम शब्द बना है जैसा कि राम रक्षा स्त्रोत में कहा है
आरामः सकला पदां
यानि सारी आपदाओं को हरने वाले। आगे है अभि रामस्त्रिलोकानां रामः श्री मान्स नः प्रभो।
जैन धर्म का पद्मापुराण श्री राम एवं श्री हनुमान जी की कीर्ति गाथा है।
राम शब्द का उपयोग कबीर दास जी ने बहुत किया है तो क्या कबीर पंथिसो से राम शब्द के उपयोग का अधिकार छिन जाना चाहिये। इसी तरह श्री गुरू ग्रन्थ साहिब में भी राम शब्द का उपयोग किया गया है।
”राम“ तथाकथित शंकराचार्य के बंधक नहीं है। राम पर उनका एकाधिकार नहीं हैं। राम तो आत्मा है जो हर प्राणी में हैं तथाकथित राजनीतिझो एवं स्वयम्भू शंकराचार्य ने उन्हें गुलाम बना दिया। नाम होने से राम एक संज्ञा एवं आनंददायक होने से क्रिया विशेषण है। राम शब्द का उपयोग भगवान राम के पहले परशुराम के नाम के साथ एवं बाद में बलराम के साथ भी हुआ है।
क्या दया राम, सिया राम या राम दयाल इत्यादि नाम ही नहीं रखे जाने चाहिये। इसी तर्ज पर सांइ राम कहते हैं। उन शंकराचार्य को तो खुश होना चाहिये कि वे किसी तरह राम का नाम तो लेते हैं तुलसीदास जी ने कहा भी है कि भाव कुभाव अनख आलस नाम जपत मंगल दिसि दय है।
राम एक वैदिक देवता नहीं हैं अतः तुलसीदास जी का यह कहना कि नति नेति इति निगम कह समझ में नहीं आता। किसी भी वेद में भगवान राम का गुणगान नहीं किया गया हैं। जिन भगवान विष्णु के वे अवतार माने जाते हैं उन्हें उपेन्द्र कहा गया है। यानि इन्द्र से छोटे। इस तरह विष्णु अनादि नहीं है दिति के लड़के हैं। श्रीमद्देवी भागवत महापुराण के अनुसार ब्रम्हा विष्णु और महेश का निर्माण पराम्बा मूल प्रकृति करती है और वे सब प्रलय में उन्हीं में मिल जाते हैं अतः वे अनन्त भी नहीं हैं।
भगवान कृष्ण ने राम को गीता के दसवें अध्याय में ”राम ः शस्त्र भृतामध्दम कह कर उन्हें हाथी घोड़ा, पक्षियों, मगर इत्यादि के समकक्ष रख दिया है। उन शंकराचार्य ने कहा है कि सांई भक्तो को ”ऊँ“ शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि ”ऊँ“ शब्द हिन्दुओं की ही धरोहर हैं। उन शंकराचार्य को जैनों का वणोकार मंत्र रटना चाहिये। ”ऊँ“ शब्द का प्रयोग सिख लोग भी करते हैं। मगर शंकराचार्य नाम के व्यक्ति को उन्हें ऊँ के प्रयोग की वर्जना करने की हिम्मत नहीं है। वरनल श्रीमदभगवतगीता के सत्रहवें अध्यास के चौबीसवें श्लोक के अनुसार ”तस्मादोभित्यु दा ह्नदय होस्त्र यज्ञ तपः क्रिया। प्रचर्तन्ते विद्योनोक्ता सततः ब्रह्ननवादिदनाम यानि इसलिये बेदमंत्रो का उच्चारण करने वालो की शस्त्र विधि से नियत यज्ञ दान और तप क्रियायें सदा ”ऊँ“ इस उच्चारण से प्रारम्भ होती है। इसलिये सांइ भक्त ओम् शब्द राम का उच्चारण करते हैं।
माण्डूक्य उपनिषद में कहा गया है सोअयमात्मा अध्यक्षर ओंकार अधिमात्रं पादा मात्रा। मात्राश्च पादा इकार उकारो मकार इति। जागरितस्थानो वैश्वानरः। अकारः प्रथम मात्रा। आप्रेरादि मत्वाद वा। आप्रोनिहवै सर्वान कामान आदिश्च भवति य एवं वेद (8 वां एवं 9 वां श्लोक) यह वह अधि अक्षर से ओंकार है। अधिमात्रा पद है और पद ही मात्रा है वह आकर उकार और मकार है जागृत स्थान। वैश्नावर अकार प्रथम मात्रा है आप और आदि होने से इसकी सारी इच्छाऐं पूरी हो जाती है। (10 वां श्लोक) स्वप्न स्थानस तैजसः। उकारो द्वितीया मात्रा। उत्कर्षाद उभयत्वाद वा। उत्कर्षति ह व ज्ञान संततित समानश्च भवति न अस्य अब्रहन विद मुकुल कुले भवति। य एवं वेद (11 रहवां श्लोक) सुषप्रस्थानः प्राज्ञः मकारस तृतीया या मात्रा मितरपतिरवां। मिनोति ह वा इदं सर्वः। अपीतिश्च भवति। य एवं वेद।
यानि स्वप्न की तेजस यह उकार रूपी द्वितीय मात्रा हैं उत्कर्ष के कारण या उभयत्व के कारण। यह ज्ञान संतति का उत्कर्ष करती है। समान होती हैं उसके कुल में कोई अह्नावहनविद नहीं रहता हैं। जो यह जानता है (10 वां श्लोक) सुषप्रि की ”प्राज्ञ“ यह मकार रूपी तृतीय मात्रा है। मिति या लय के कारण। जो ऐसा जानता है वह इस सारे जगत को नाप लेता है या अपने में लय कर लेता है। इस तरह माण्डूक्स उपनिषद के अनुसार ऊँ का मतलब जागृत, स्वप्न या सुषुप्ति, वैश्नावर तेजस और प्राज्ञ, आदि मध्य और अंत प्राप्ति समान और नाप या कामना, ब्रहनविद लय, आदि है।
शंकराचार्य को जानना चाहिये कि मात्र बाहर श्लोको वाले इस उपनिषद का भाव्ेय आदिगुरू शंकराचार्य एवं उनके गुरू आचार्य गौडपाद जी ने एक साथ किया था। कहीं पड़ा था कि ओम् के अर्थ शताधिक होते हैं।
अतः द्वारिका के बलात् शंकराचार्य को सलाह दी जाती है कि वे पहले उदार हिन्दु धर्म की समृद्ध साहित्यिक विरासत का गहन अध्ययन करें फिर कुछ बोलें। उनसे यह कहने की भी हिम्मत होनी चाहिये कि हिन्दु लोग अजमेर शरीफ भी न जायें। उनके वक्तव्य उदार हिन्दु धर्म को विकृत करने की कुचेष्टा है। उन शंकराचार्य के मात्र कुछ ही सैकड़ा अनुयायी है और करोड़ो हिन्दुओ के लिये फतवा जारी कर रहे हैं। यह धार्मिक साहिष्णुता को और भारतीय संस्कृति को विकृत करने की कुचेष्टा है। उन शंकराचार्य को सांइ बाबा के खजाने पर भी नजर है।
मंच पर कहीं से पत्थर की सनसनाहट है,
किसी के मंच पर आने की छटपटाहट है॥
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राम एक अच्छे पति थे
राम जेठमलानी का यह निर्णय कि राम एक अच्छे पति नहीं थे तर्कों पर आधारित नहीं है। यह उनका व्यक्तिगत मत प्रतीत होता है। आश्चर्य है कि ऐसा व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कैसे करता होगा। कोई भी समझदार आदमी इस तरह के निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। आश्चर्य एवं दुख भारतीय जनता पार्टी पर भी होता है कि उसने राम जेठमलानी को पार्टी से निष्कासित क्यों नहीं किया।
राम एक अच्छे पति थे और यह निर्णय उन घटनाओं पर आधारित है जो उस दम्पति के जीवन में घटी। वाल्मिकी रामायण की उन घटनाओं के विश्लेषण पर आधारित यह तथ्य है। राम का विवाह सीता के साथ उनके पौरूष के कारण हुआ था। जो धनुष कोई हिला नहीं पाया था उसे राम ने क्षण भर में उठाया, प्रत्यंचा खींची और तोड़ दिया था। राम वीर के साथ एक सुन्दर पुरूष भी थे। सीता ने उनको वरमाला प्रसन्न्ता पूर्वक डाली थी। राम को धनुष तोड़ने का कभी भी अभिमान नहीं हुआ। अतः उन्होंने सीता को हमेशा पत्नि माना, एक दासी नहीं । नहीं तो वे कई और शादियाँ भी कर सकते थे।
जनक की सभा में जब परूष राम आये तब सभी मृत्यु के भय से काँपने लगे थे। राम झूठ बोल सकते थे कि वह धनुष उन्होंने भी नहीं तोड़ा । बल्कि वीरता पूर्वक कहा कि वह धनुष उन्होनें तोड़ा है और परिणाम का वह वीरता पूर्वक सामना करने को तैयार है। उन्होंने परूष राम का धनुष चढ़ा कर यह बतलाया कि वह उस समय धरती पर सर्वाधिक वीर पुरूष थे। असली परूष राम नहीं थे।
राम सीता को अपने साथ अयोध्या लेकर आये। शादी की तमाम रस्मों को उन्होंने उत्साह पूर्वक पूरा किया दिये गये उपहारों की कभी आलोचना नहीं की। उन्होंने सीता का कहना प्रेम पूर्वक माना। जीत कर लाने के बाद भी ऐसा कहीं नहीं आता कि उन्होंने कोई इच्छा सीता पर कभी भी थोपी हो।
दशरथ के द्वारा कैकई को दिये गये वरदानों के फलस्वरूप राम वन में जाने तैयार हो गये। उस समय सीता ने राम का साथ देने का हठ किया। यदि उस समय राम को किंचित भी विजेता होने का भाव आता तो बलपूर्वक सीता को वहीं छोड़ सकते थे। मगर उन्हें अपनी भुजाओं पर विश्वास था कि वह जंगलों में भी सीता की रक्षा कर सकते थे। उन्होनें पूरे समय सीता की सुविधाओं का ख्याल रखा।
सीता ने उनसे स्वर्णमृग लाने का आग्रह किया। राम ने यह नहीं कहा कि चुप रहो, ऐसा दूसरा मृग जब निकलेगा तब उसका शिकार वह कर देगें, कि जंगल में ऐसे मृग आते ही रहते हैं। जब कपट पूर्वक रावण सीता को हर ले गया तब राम ने विलाप किया। उनके मन में कभी भी यह भाव नहीं आया कि वे वापिस जाकर दूसरी शादी कर लेंगे। वे सीता तो अपनी शक्ति मानते थे।
(घन, घमण्ड नभ गरजत घोरा,
प्रिया हीन डरपत मन मोरा)
उन्होंने अकेले होते हुये भी सीता को ढूँढने का पूरा उद्यम किया। यदि रावण को केवल स्वाभिमान के लिये मारा होता तो सीता को रावण वध के पश्चात वहीं छोड़ कर वापिस आ सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वह सीता से निश्चित पूर्वक अदम्य प्रेम करते थे। उनके एक निष्ठ प्रेम का उदाहरण यह भी है कि लंका विजय के पश्चात वह मात्र सीता के साथ ही वापिस आये, हजार दो हजार और सुन्दरियों को साथ में नहीं लाये।
पुष्पक विमान पर वह सीता को प्रेमपूर्वक उन स्थानों को दिखलाते हुये आये जो उन्होंने सीता के बिरह में बिताये थे। सीताहरण और लंका विजय के बीच वे लगातार सीता से अदम्य प्रेम करते रहे। विरह ने उनके प्रेम को कम नहीं होने दिया। हनुमान जब सीता का पता लगा कर चूड़ामणि लेकर आये तो राम ने उसे सीने से लगा कर उनका प्रेम प्रदर्शन किया। पूरे विरह के समय वे सीता को बिलख बिलख कर याद करते रहे। जो उनका सीता के प्रति अनन्य प्रेम दर्शाता है। ऐसा नहीं हुआ कि बीच में कहीं भी उनके मन में किंचित भी विचार आया हो कि सीता को कोई जानवर खा गया होगा, कि चलो सीता विहीन वे वापिस लौट जायेंगे और दूसरी शादी कर लेंगे।
रावण के निकट रहने पर भी उन्होंने सीता पर कभी भी अविश्वास नहीं किया। उन्हें विश्वास था कि सीता हरण सीता की इच्छा के विरूद्ध हुआ होगा। यह एक उत्कृष्ट विश्वास का उदाहरण है। सीता ने राम से आग्रह किया था कि उनकी इच्छा दुबारा वन दर्शन की है। कहीं भी यह नहीं लिखा गया कि राम ने रूष्ट होकर लक्ष्मण को यह आदेश दिया हो कि सीता को जंगल में कहीं छोड़ कर वापिस आ जाना। बल्कि उन्होनें महर्षि बाल्मीकि का पता दिया जो कि उनके परिचित थे और कहा कि सीता को उनके पास छोड़ देना। उन्हें कभी भी दूसरी शादी का ख्याल नहीं आया अश्वमेघ यज्ञ के दौरान भी, जो बगैर पत्नि के नहीं किया जाता । उस समय भी वे दूसरी शादी कर सकते थे और सपत्नीक यज्ञ पूरा कर सकते थे।
उनके प्रेम का परिचय इस तथ्य से भी मिलता है कि उन्होंने सीता की किसी अन्य धातु की मूर्ति नहीं बनवाई, स्वर्ग मूर्ति बनवाई। सीता ने स्वर्गारोहण के पश्चात कभी भी उन्होंने लवकुश को नहीं त्यागा। जैसा कि आजकल पत्नि पर शक करने वाले पति करते हैं।
अंत में हम उस विवादास्पद मुद्दे पर आते हैं जिस पर कई महिला संगठन कई, छुद्रा बुद्धि वादी हो हल्ला मचाते हैं। वह मुद्दा है सीता के अग्नि परीक्षण का। अभी तक इस लेख को पढ़ने वाले सोच रहे होंगे कि लेखक ने उसे जान बूझ कर बचने के लिये छोड़ दिया है। पर ऐसा नहीं हैं।
इस प्रकरण का बिन्दुवार अध्ययन करने पर ज्ञात होगा कि रावण वध के पश्चात राम ने लक्ष्मण और विभीषण को सीता को साधारण कपड़े में ही लाने के लिये भेजा था। वह इसलिये कि सीताहरण उन्हीं वस्त्रों में हुआ था। और राम और सीता को यह महसूस न हो कि सीता एक विजेता की पत्नि है। श्रृंगारित वस्त्रों में आती तो सेना को उनके मृत भाइयों की भी याद आती। फिर लिखित साहित्य के अनुसार राम ने अग्नि परीक्षा के लिये चिता तैयार करने का कहा। यहां से काव्य कल्पना तैयार होती है। यहाँ पर अधिकांश मनीषी उनकी तर्क क्षमता को तिलांजलि देते हैं। सीता उस चिता पर लेटती है, खड़ी रहती है या बैठती है ? वह चिंता स्वय ही जल उठती है। आज क्या कोई कल्पना कर सकता है कि बगैर आस लगाये कोई वस्तु स्वयं जल उठे। या तो चिता का स्वयं जलना काल्पनिक है या वह घटना। फिर उसके जलने पर अग्निदेव स्वयं सीता को प्रज्जवलित अग्नि से लेकर आये। क्या आज कोई मानेगा कि अग्नि का एक पुरूष रूप भी यही होता है। फिर इतनी अग्नि के बाद भी सीता दमकती हुई बाहर आई। आज यदि ऐसा हो तो व्यक्ति बिल्कुल ही जल भुन जायेगा, काला कोयला हो जायेगा सीता कैसे दमकती हुई बाहर आयी ? यह प्रसंग निरी कविता की कल्पना है।
जैसे कहा जाये कि एक व्यक्ति का समूल नाश हो गया। अब व्यक्ति कोई पेड़ तो नहीं होता जो उसकी जड़ हो या कहा जाये कि चन्द्रमुखी । अब मानवीय शरीर के घड़ का ऊपर कोई चन्द्रमा नहीं देखा। अग्नि परीक्षा की कल्पना उसी तरह काल्पनिक है जैसे राम का वाण के द्वारा नागपाश में बंधना और गरूड़ का उस पाश को तोड़ना। इस वाद पर राम जेठमलानी ने उसका प्रतिवाद नहीं किया। यहां उनकी तर्क शक्ति की तीखी धार मोथरी हो गयी थी, न्यायालय में तो वे बड़े तर्क देते हैं।
डॉ. कौशलकिशोर श्रीवास्तव 171, विशु नगर, परासिया मार्ग छिंदवाडा़(म.प्र)
साहित्यकार पिन कोड 480001
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