दिनेश चौहान व्यंग्य नेपोलियन की औलाद हमारे देश के नेताओं के पास कुछ काम नहीं होता तो उन पर पुस्तक लेखन का बुखार चढ़ता है। उनका यह ...
दिनेश चौहान
व्यंग्य
नेपोलियन की औलाद
हमारे देश के नेताओं के पास कुछ काम नहीं होता तो उन पर पुस्तक लेखन का बुखार चढ़ता है। उनका यह बुखार तब उतरता है जब उसकी पुस्तक छपकर बाहर आ जाती है। फिर उनके इस बुखार का संक्रमण देश के नामी दिग्गजों पर होने लगता है। अक्सर ऐसे बुखारों की चपेट में पूरी की पूरी सरकार भी आ जाया करती है। चर्चा का आलम यह रहता है कि कस्बे के गली-कूचे से प्रकाशित टुटपुंजिए अखबार से लेकर देश-विदेश के नामी अखबार तक में यही खबर छाई रहती है। तब इन घटनाओं को देख-सुनकर पूर्णकालिक लेखक, साहित्यकार और कवि अपना माथा पीट रहे होते हैं कि उन्होंने नाहक सारी जिंदगी कलम घिसने में ख्वार कर दी और ये महाशय हैं जो एक किताब लिखकर रातोंरात लेखकों की उच्च आसंदी पर बिराजमान हो जाते हैं और कलम के सच्चे पुजारी को उनकी असली औकात भी बता जाते हैं कि देखो तुम कितने अदने हो। कहां तुम और कहां हम। दरअसल इतिहास बड़े लोगों का ही लिखा जाता है। छोटे लोग कोई इतिहास नहीं रचते। नून-तेल-लकड़ी इतिहास के मुद्दे नहीं होते और छोटे लोग तो सारी जिंदगी नून-तेल-लकड़ी जुटाने में ही जुटे रहते हैं। मेरे देश में लेखक भी कहां नून-तेल-लकड़ी की की चिंता से मुक्त होते हैं। सो वे भी छोटे लोग ही ठहरे। ऐसे ही एक इतिहास रचयिता थे नेपोलियन जिसके बारे में कहा जाता है असंभव शब्द उसके शब्दकोष में नहीं था। आज के इन तथाकथित बड़े लोगों को नेपोलियन की औलाद कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
हमारे देश के राजनैतिक क्षितिज में एक नटवर सिंह हैं। कुछ दिनों पूर्व तक उनके लेखक हो जाने के बारे में सोचना तक असंभव था। लेकिन नहीं, बड़े लोगों के डिक्शनरी में असंभव शब्द होने लगे तो फिर वे काहे के बड़े। और नटवर हैं तो कलाबाजी तो करेंगे ही। उन्होने लेखक बनकर अभी तक जो असंभव था उसे भी संभव कर दिखाया। उन्होने अपनी ही पार्टी के हाईकमान को आइना दिखा दिया। एक साथ उन्होने दो असंभव को संभव बनाया। एक तो रातोंरात लेखक बनकर और दूसरा जिस हाई कमान के सामने हाथ बांधे खड़े रहने की परंपरा हो उसी पर उंगली उठाकर। है न बेजोड़ कलाबाजी। लेकिन हाई कमान भी तो उसी बड़े लोगों की जमात से आते हैं। उन्होने कहा कि वे किताब का जवाब किताब लिखकर देंगे। ये दूसरी बात है कि अभी तक वे दो-चार पेज के भाषण के लिए भाषण लेखक के मोहताज होते थे जो उन्हें रोमन लिपि में भाषण लिकखर देते थे जिन्हें वे अटक-अटक कर पढ़ती थीं। लेकिन फिर भी उनके दावे को असंभव कहना हम जैसे छोटे लोगों के द्वारा ही संभव है। बड़े लोगों के शब्दकोष में तो असंभव शब्द होता ही नहीं।
हमारे देश के फिल्मोद्योग जिसे हम प्यार से बालीवुड कहते हैं भी ऐसे ही बड़ेलोगों से भरी पड़ी है जिसे हम सेलिब्रिटीज़ कहते हैं। एक बड़ा आदमी जिसे बालीवुड में बादशाह के नाम से जाना जाता है उनके भी शब्दकोष में असंभव शब्द के लिए कोई जगह नहीं है। यह बताने की जरूरत नहीं कि बालीवुड के लोग कॉन्वेंट कल्चर से आते हैं। हिन्दी फिल्मों के उनके संवाद रोमन लिपि में लिखे जाते हैं। हिन्दी में सामान्य बात करना जिनके लिए किसी सजा से कम नहीं होती और बातों के बीच-बीच में आई मीन, आई थिंक जिनके प्रिय तकिया कलाम होते हैं। वे भी हिन्दी में लेख लिखकर रातोंरात हिन्दी का लेखक हो जाते हैं। हमारे देश के चौथा स्तंभ भी नेपोलियन की इन औलादों को हाथोंहाथ लेने में कोताही नहीं बरतता और उनकी पहली और शायद आखिरी लेख को भी बड़े गर्व से छापता है।
ऐसे में बालीवुड के बादशाह का हिन्दी में लेख लिखने को असंभव कहने वाले अहमकों, अपने भेजे का इलाज करवाओ। नहीं तो पता करो उसे मानदेय मे कितने का चेक भिजवाया गया। और चेक की राशि सुनकर बेहोश मत हो जाना। आखिर उन्होंने असंभव शब्द को यूं ही मुफ्त में खारिज नहीं किया है। (संदर्भ ः नई दुनिया, रायपुर 15․8․14 में प्रकाशित शाहरुख खान का लेख)
टीप - व्यंग्य प्रिट मीडिया में पूर्व प्रकाशित
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लेखक परिचय
दिनेश चौहान ( दिनेश कुमार ताम्रकार)
घरू नाम-राजेन,
शिक्षा-बी.ए., बीटीआई, इंटरमिडिएट ड्राइंग।
जन्म-24.06.1961, भीमसेनी एकादशी, संवत् 2018।
धमधा, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
18 वर्ष की आयु में शासकीय नौकरी में आने के बाद 20 वर्ष की आयु में बधिर विकलांगता का शिकार हो गया। मूलतः चित्रकार, चित्रकारी की कहीं विधिवत औपचारिक शिक्षा नहीं। लेकिन अब गतिविधि मुख्यतः लेखन पर केन्द्रित। हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में कविता, कहानी, व्यंग्य के अलावा कार्टून एवं चित्र कथाओं का क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, संकलनों, स्मारिकाओं में नियमित-अनियमित प्रकाशन। आकाशवाणी से कविता का प्रसारण। कार्टून वाच पत्रिका द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय कार्टून प्रतियोगिताओं में लगातार पुरस्कृत। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित। साहू समाज (रायपुर-गरियाबंद जिला) द्वारा अंतरसामाजिक सौहार्द्र के तहत ''समाज गौरव सामाजिक सम्मान'' से सम्मानित-सन्2014। कई नए एवं पुराने चर्चित कहानीकारों की हिन्दी कहानियों का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद। स्कूलों में कक्षा पहली से दसवीं तक छत्तीसगढ़ी भाषा का एक विषय के रूप में अध्यापन अनिवार्य किए जाने की पुरजोर वकालत। छत्तीसगढ़ी में पहली बार वर्ग पहेली का निर्माण जो 'पत्रिका' के 'पहट' अंक में चौखड़ी जनउला के नाम से धारावाहिक प्रकाशित।
विशेष उल्लेखनीय- शासकीय नौकरी में विभागीय वित्तीय एवं अन्य लाभकारी प्रकरणों में बाबू एवं अफसरों को भेंट-पूजा (रिश्वत) की सर्व स्वीकार्य परंपरा है लेकिन मैं सौभाग्यशाली हूं कि रिश्वत विहीन नौकरी के 34वें वर्ष में सफलता पूर्वक कार्यरत हूं। मैंने कलम को हथियार बनाकर एक तरीका विकसित किया है कि मेरे अब तक के सभी वित्तीय एवं लाभकारी प्रकरण बिना किसी आर्थिक लेन-देन के निराकृत होते रहे हैं।
प्रकाशित कृति-
1- कइसे होही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया?(छत्तीसगढ़ी गद्य संग्रह)
2- चौखड़ी जनउला(छत्तीसगढ़ी वर्ग पहेली)
पे्रस में-सृजन साक्षी (हैहयवंशीय क्षत्रिय ताम्रकार समाज के रचनाधर्मियों की पहचान)।
संप्रति-छत्तीसगढ़ शासन, शिक्षा विभाग में प्रधान पाठक (पू.मा.शाला) के पद पर कार्यरत।
संपर्क-छत्त्ीसगढ़ी ठीहा, शीतला पारा, नवापारा-राजिम, जिला-रायपुर, छ.ग., 493881।
मो. न.-9826778806A E-Mail: dinesh_k_anjor@yahoo.com
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