मेरी नई ग़ज़लें 1 दुनिया को देखता हूँ बड़ी हसरतों के साथ महरूमियों की दास्ताँ हूँ मुसर्रतों के साथ। कब की गुज़ार दी है अपनी ज़िन्दग...
मेरी नई ग़ज़लें
1
दुनिया को देखता हूँ बड़ी हसरतों के साथ
महरूमियों की दास्ताँ हूँ मुसर्रतों के साथ।
कब की गुज़ार दी है अपनी ज़िन्दगी
फिर भी तो ज़िन्दा हूँ कई ज़रूरतों के साथ।
हसरत निकल गई है मुझ को रुला रुला
फिर भी दिल धड़कता कई हसरतों के साथ।
निर्मम है ज़माना तो नहीं कुछ हुआ करे
रिश्ता न तोड़ पाया मगर मुहब्बतों के साथ।
सब से ही चाहतों की तमन्ना लिये हुए
फिर क्यों निबाह करता रहा नफ़रतों के साथ।
2
कह दो कह दो अपना ग़म
कहने से होगा कुछ कम।
दुनिया कितनी निर्मम है
कह देती दो आँखें नम।
जितना दुख उतना मधु स्वर
श्रोता ख़ुश ज़्यादा या कम।
माना ख़ुश पर कहते क्यों
जल कर कुछ होंगे बेदम।
जितना रोना उतना रो
हँस लेना लेकिन कम कम।
जीते जी गाली देते
मरने पर करते मातम।
जीवन काली रजनी है
पखवाड़े में इक पूनम।
ख़ुश हो लें पर सब के सँग
ग़म आये चुप सह लें ग़म।
3
खाना पीना है कुछ पल भर
उस के ख़ातिर खटना दिन भर।
भूले भटके हँस लेता हूँ
लेकिन रोना है जीवन भर।
जैसे कल की सारी बातें
इत्ते क़िस्से सुन कारीगर।
आख़र पढ़ते आँखें फूटीं
जो अनपढ़ हैं दीदावर।
लिखते मेरी क़लमें टूटीं
पर वे लेखक हैं पेशेवर।
धावक को बस धकिया कर के
लँगड़े बैठे हैं चोटी पर।
मैं कुछ आख़र लिख लेता हूँ
कवि पर वे ऊँचे आसन पर।
4
उजड़ कर हर एक मेला रह गया
अन्त में दर्शक अकेला रह गया।
सुखों की चाँदनी में तुम नहा लो
सीस पर कोई दुपहरी सह गया।
हर शमा के साथ इक परवाना है
मैं ही महफ़िल में अकेला रह गया।
हँसते हँसते आदमी रोने लगा
काल आ कर कान में क्या कह गया।
हर किसी के साथ में सारा जहाँ
भीड़ में मैं ही अकेला रह गया।
हवामहलों से हवा यह कह गई
एक दिन पुख़्ता क़िला भी ढह गया।
5
ज़बां लफ्ज़े मुहब्बत है
दिलों में पर अदावत है।
न कोई रूठना मनना
यही तुम से शिकायत है।
कि बस रोज़ी कमाते सब
नहीं कोई हिकायत है।
मुहब्बत ही तो जन्नत है
अदावत दिन क़यामत है।
पढ़ो तुम बन्द आँखों से
लिखी दिल पै इबारत है।
ग़रीबों से जो हमदर्दी
यही सच्ची इबादत़ है।
कभी यों ग़ज़ल कह लेता
बड़ी उस की इनायत है।
6
इक्कीसवीं सदी है इक्कीसवीं सदी है
अब नेकियों पै जीती हर रोज़ ही बदी है।
इस का न कोई चश्मा न गंगोत्री कहीं पर
बहती ही जा रही यह वक़्त की नदी है।
पलकें बिछा के बैठे हम उन के रास्ते में
आँखों में गुज़रा जो पल जैसे इक सदी है।
कैसे मैं आजकल की दुनिया में सफल होता
मेरी ख़ुदी के ऊपर अब मेरी बेख़ुदी है।
गांधी न बुद्ध गौतम न रिषभ का ज़माना
अब तो ख़ुदा से ऊँची इन्सान की ख़ुदी है।
कविताएँ
एक संवाद
ठक ठक ठक ठक
कौन
जी,मैं कविता
अच्छा आओ बैठो
क्या लोगी
जी,मेरी हत्या होने वाली है
पहले बलात्कार फिर हत्या
यह रोज़ का क़म है
सिरफिरों गुण्डों का कार्यक़म है
तो मैं क्या करूँ मैं पुलिस नहीं
जी मेरी लाज बचा लो
कौए गिद्ध गैंडे रंगे सियार
मेरी जान के पीछे पड़े हैं
बूढ़ा बगुला भगत
सींटियां बजाता है
गघे भैंसे सबके सब कहते हैं
कि कविता के प्रेमी हैं
पर सच में वे मेरे हत्यारे हैं।
तो मैं क्या करूँ
थाने जाओ
जी मेरे थाने तो आप हैं
आप साहित्य के थानेदार हैं
उस के ठेकेदार हैं
कला के संरक्षक सुपरस्टार हैं
आप तो मेरी लाज बचाओ
मेरी पहचान को लौटाओ
मेरा भाई गद्य रोता फिरता है
कि उस के अधिक दोस्त
उस का पाला छोड़
कविता के हो गये हैं
आप आलोचक हैं
आलोचना की आड़ में राजनेता हैं
सत्ता की थाली के बैंगन हैं
उन्हें समंझाओ कि
गद्य गद्य है और कविता कविता।
जाँच
काँडा में डीएसपी मारा गया
जाँच होगी
बाँदा में विधवा ने शादी की
जाँच होगी
दन्तेवाड़ा में चार माओवादी मारे गये
जांच होगी
उन के साथ बीस ग्रामीण भी मरे
वे तो मरते ही रहते हैं भूख से
दिल्ली में लड़की की लाज लुटी
फिर जान से गई
जाँच होगी
रामू ने एक रुपये की रिश्वत ली
जाँच होगी
पुलिस वाला हफ़्ता लेता है
सबूत दो चांच होगी
लेकिन लेकिन लेकिन
एमपी सरकारी मकान किराए पर देता है
हर चीज़ मुफ़्त पा
कैण्टीन में चाय सस्ती पीता है
जांच नहीं होगी
वह जन सेवक है
मन्त्री करोड़ों का कोयला खा
चारा चीनी डकार गया
जांच नहीं होगी
वह दूध धुला है
क़ानून मन्त्री ने क़ानून तोड़ा
जांच नहीं होगी
वह क़ानून की औलादें है
शिक्षामन्त्री निरक्षर भट्टाचार्य है
जाँच नहीं होगी
भिखारी रातों रात अरबपति बन गया
जाँच नहीं होगी
यह उस की क़िस्मत है
बिजली पानी के दाम बढ़ गये
जाँच नहीं होगी
कम्पनियों ने रिश्वत दी है
जाँच नहीं होगी
तख़्ते ताऊस पर कोई कुछ बक दे
जाँच नहीं होगी
यह अभिव्यक्ति की आज़ादी है।
मेरे नए मुक्तक
प़़ाण का पंछी सवेरे क्यों चहकता है
शबनम बूँद से नया बिरवा लहकता है
हड्डियों के पसीने से इसे सींचा है
फूल मेरे चमन का ज़्यादा महकता है।
हम ग़म खाते हैं आँसू पीते हैं
केवल अपने ही लिए न जीते हैं
मानवता की भी पहचान हमें है
हम रिश्तों में ही मरते जीते हैं।
दर्द का चिर संग है तो रहे
कौन कैसे उसे बरजे कहे
पागल मन झुठला रहा उस को
तन की नियति है दर्द को सहे।
मेरा धन मेरे गीतों का समाया
गीतों में अपना दुनिया का दुख गाया
आलोचक दादा पूछ रहे पर मुझ से
किस किस कविसम्मेलन में मैं ने गाया ?
दर्द की शिद्दत कभी घट जाएगी
कहानी शीर्षकों में बंट जाएगी
रो कर कटे या कटे हँसते हुए
जो बची है ज़िन्दगी कट जाएगी।
वह नहीं बनता जो ज़रूरी काम
हर वक़्त रहता मुझे कोई काम
जुगनुओं से चमकते हैं कभी सुख
ज़िन्दगी ग़मों की दास्ताँ का नाम।
सीमेण्ट जंगल कहीं आबादी नहीं
आराम सारे हैं पर बुनियादी नहीं
प़गति पर हूँ मगर इक ख़्वाब सा रंगीन
देश तो आज़ाद पर आज़ादी नहीं।
आप विदेशी सफर पर हैं
नहीं अंग्रेज़ी सफर पर हैं
कौन पकड़े आप को यहाँ
आप रोज़ फेसबुक पर हैं।
आप मुसलसल सफर में हैं
कुछ लोग अगर मगर में हैं
मैं पड़ा रह गया ज़मीं पर
आप फ़लक पै क़मर में हैं।
मुझे भी साथ ले लिया होता
कुछ तो पुण्य भी किया होता
रोज़ शब्दों से खेलते हो
काम भी कुछ कर लिया होता।
आप की वाणी सदा आकाशवाणी
वह शहद सी मधुर और क़ल्याणी
धरती पर उतर कर देख तो कभी लेते
कैसे जी रहे हैं मर मर के प़ाणी।
भक्तजन की भीड़ में मैं भी लगा हूँ
नहीं मैं पण्डित पुजारी का सगा हूँ
माँ शारदे ! मुझे भी दो अपनी कृपा
शब्द की ले आरती मैं भी जगा हूँ।
खोखले जनतन्त्र नारे क्यों लिखूँ ?
खोखले हैं शब्द सारे क्यों लिखूँ ?
शब्द ही बस शब्द गुंजित हैं यहाँ
खो गये हैं अर्थ सारे क्यों लिखूँ?
दिल अगर बेचैन हो क्या कीजिए ?
पास श्रोता भी न हो क्या कीजिए ?
कभी कोई मुझ को पढ़े ना पढ़े
मगर लिखने के सिवा क्या कीजिए !
किस ने कहा कि तुम सिर्फ कविता लिखो
पुरुष को राम नारि को सीता लिखो
महाभारत के भगोड़े बने तो क्यों
कृष्ण की सामर्थ्य बिना गीता लिखे ?
आँसू दिल की भाषा है
घुटी घुटी अभिलाषा है
प्यार जिसे कहते उस की
यह प्यारी परिभाषा है।
तम की निशा निराशा है
प़ात: लाती आशा है
इन्द़धनुष सा सतरंगी
दुनिया एक तमाशा है ।
दिल का दिल से संवाद है
यह वाद नहीं न विवाद है
इस घायल दिल में दर्द जो
कविता ंउस का अनुवाद है।
दुनिया में द्वन्द्व विवाद है
वह युद्धों से बर्बाद है
बस प्यार जहाँ मेहमान है
दिल की बस्ती आबाद है।
आज कल क्या कहें रिंश्तों से
अर्थ में तब्दील रिश्तों से
आदमीयत की चमक ग़ायब
शक्ल से दिखते फ़रिश्तों से।
प्यार दिखता कहाँ रिंश्तों में
स्वाद किश्मिश में न पिस्तों में
जो धरे हैं ंउच्च सिंहासन
गिने जाते हैं फ़रिश्तों में।
दोहे
अपनी छोटी बात भी लाख टके की बात
दूजा सच्ची बात कह खाये शठ की लात।
कीकर काँटा जल उठा जब देखा जलजात
खिला पात जो पास में करे घात पर घात।
मति नीची करनी अधम ओछी उस की बात
ऊँची डाली का सुमन करे गगन से बात ।
कितने पानी में खड़ा मानव या जलजात
उस पल हो जाता प़कट चलती है जब बात।
कभी बड़ा मालिक रहा सब थे तेरे दास
बहुत मलाई खा चुका अब तो रख उपवास।
यह बौना गोरखपुरी वह बलिया का जाट
सब हिन्दी को चर रहे क्या बांभन क्या जाट।
यह चाचा गोरखपुरी वह बनारसी बाप
संसद में इंग्लिश बकैै बाहर हिन्दी जाप।।
दिल्ली या परदेश में हिन्दी की जय बोल
गंगाजल में पर कभी लेना व्हिस्की घोल।
दुर्घटना को देख कर सभ्य नागरिक मौन
पड़े पुलिस के फेर में वक़्त गँवाए कौन ।
अपने अपने लाभ में सब इतने तल्लीन
ज्यों पोखर में मेंढकी ज्यों नदिया में मीन।
लिख लिख काग़ज़ रख दिये पढ़ने वाला कौन
जो पढ़ते सब बुद्धि जन सब ने रक्खा मौन ।
लिख लिंख काग़ज़ धर गए कवि पुंगव उर चीर
चिता राख बन उड़ेंगे यमुना गंगा तीर ।
धन बल पशुबल से यहाँ लो सारा जग जीत
सब कुछ मिल जाए मगर मिले न मन का मीत।
सभी दौड़ते दौड़ में सब कुछ पीछे छोड़
निकलेंगे पर अन्त में सब के सब रणछोड़।
हिन्दी सेवा हो रही अंग्रेज़ी में बोल
भूले निज इतिहास पर याद रहा भूगोल।
जिस को देखो दौड़ता अमरीका की ओर
, हिन्दी भी अब खींचती उन्हें देश की ओर।
काम धाम औ दाम संग खूब कमाया नाम
पर इतिहासों में नहीं मिला तुम्हारा नाम।
नाच कूद कर हर जगह खूब कमाया नाम
बहते पानी पर लिखा मिला तुम्हारा नाम।
झूठमूठ कोई कहें आप बनें अध्यक्ष
क़ब्र तोड़ कर प्रकटते महा महिम प्रत्यक्ष।
काम काम कहते रहे कभी न आए काम
जाप किया निष्काम का निकले रति के काम।
जन्म मरण हैं दु:ख से तब देनों हैं दु:ख
विरलों ने मन जीत कर उन्हें बनाया सुक्ख।
भोगों में ही लीन जो करें त्याग की बात
सुन सुन कर आवै हँसी यह अनहोनी बात।
छीना झपटी लूटना है डाकू की रीति
मिल बाँटें मिल खांय तो यह सज्जन की नीति ।
तन रोगों की खान है मन भावों की खान
एक थकें दूजा उड़ै नापै गगन वितान।
अब इतनी मारक हुई निजप्रचार की भूख
कथाकार दुबले हुए गए महाकवि सूख।
नाम छपे परिचय छपे या पुस्तक छप जाय
अहोभाग्य जो साथ में फ़ोटो ही छप जाय।
३१४ सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर १० दिल्ली ११००७५
सुधेश जी आपने जो जो जो जितना लिखा
जवाब देंहटाएंवोह सब पढ़ा कविता मुक्तक दोहे गीत शायरी
ग़ज़ल सबको गुना सचमुच दिल से लिखते
हो इसीलिये सीधे दिल तक पहुचते हो आप कभी
कविता बनाने की कोशिश मत करना बस दिल
से सीधे भावों को बहने देना देखना कविता अपने आप बनेगी आपमें सफल कवि बनने के
लिये बहुत कुछ है बस लिखते रहना इस लेखन
के लिये बधाई
धन्यवाद ,अखिलेश श्रीवास्तव जी । आप की टिप्पणी के लिए आभारी हूँ। । मैं जो लिखता हूँ
हटाएंदिल से लिखता हूँ । फिर भी आप की बात का ध्यान रखूँगा ।