एस के पाण्डेय का व्यंग्य - राज का राज

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राज का राज हर चीज के पीछे कोई न कोई राज होता है। और प्रत्येक राज का भी राज होता है। कभी-कभी राज का राज समझना खासा मुश्किल हो जाता है। आप...

राज का राज

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हर चीज के पीछे कोई न कोई राज होता है। और प्रत्येक राज का भी राज होता है। कभी-कभी राज का राज समझना खासा मुश्किल हो जाता है।

आपके पास भले ही अपना राज नहीं है। लेकिन आपका राज किसी दूसरे के पास हो सकता है। और दूसरे का राज आप के पास भी हो सकता है। आप उजागर भले ही न करते हों। कई बार आपसी समझ अथवा समझौते से राज, राज बना रहता है। कई लोग बिना राज के दूसरे के राज को राज बनाये रखने हेतु राज करते हैं।

आज भले ही राज नहीं है। फिर भी राज न होते हुए कुछ खास लोगों के पास राज तो है ही। राज बहुत ही महत्पूर्ण चीज है। लोग यह जानते हैं कि उनके पास राज नहीं है। फिर भी यह पता चलने पर कि उनका राज उसके पास है, सारा काज छोड़कर उसे पटाने अथवा सलटाने में लग जाते हैं।

पहले भी राज होता था और आज भी राज होता है। पहले राजा के पास राज होता था। और आज नेता के पास राज है। दीगर है कि नेता का राज किसी दूसरे के पास होता है। उजागर भले न हो।

हर जगह राज होता है। दुनिया भर में भी हर जगह किसी न किसी का राज है। दुनिया पर भी किसी का राज है। दीगर है कि ज्ञानी नहीं मानते। कहीं किसी का राज है तो कहीं किसी का।

हर कोई राज चाहता है। एक देश दूसरे देश पर राज चाहता है। कोई किसी के मन पर तो कोई किसी के धन पर राज चाहता है तो कोई किसी के तन पर राज चाहता है। कुछ लोग तो जोर-जबरदस्ती पर भी उतर आते हैं।

कई लोग ऐसे भी हैं जो दूसरे के नहीं अपने ही मन पर राज चाहते हैं। लेकिन मन है कि मानता ही नहीं। कितना भी समझाओ समझता ही नहीं। लाख जतन करो सब बेकार हो जाता है। क्योंकि मन अपने ऊपर अपना ही राज चाहता है। इसे दूसरे का राज नहीं भाता।

कोई किसी के दिल पर राज चाहता है तो कोई किसी के दिल का राज चाहता है। लेकिन आजकल देने वाले दिल तो दे देते हैं लेकिन दिल का राज नहीं देते। लोग अपने दिल का ही राज नहीं जान पाते तो भला दूसरे के दिल का राज क्या जानेंगे ? ऐसे में जो भी गलत सही कोई बता दे उसी को उसके दिल का राज मान लेना लाजिमी ही है।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग राज को राज ही बनाये रखना चाहते हैं। ऐसे में राज उजागर कैसे हो ? राज का राज कैसे मिले ? सोचने वाली बात है कि यदि राज, राज न रहे तो कितने ही लोग बेताज हो जाएँ। कितने ही लोग बेकाज हो जाएँ और कितने ही लोग कहाँ से कहाँ पहुँच जाएँ। यहाँ से वहाँ पहुँच जाएँ।

खैर क्या विडम्बना है ? आज जिसका राज है उसके पास राज नहीं है। जब राजा का राज होता था तो राजा राज करता था। उसके सेवक होते थे। वे उसकी सेवा करते थे। प्रजा भी भूंखे नहीं मरती थी। लेकिन आज जिसका राज है, उसके सिर पर ताज ही नहीं है। कईयों को कोई काज ही नहीं है। कुछ को तो खाने के लिए अनाज भी नहीं है। वहीं सेवक राज करते हैं। उनके सिर पर ताज भी है। तरह-तरह के साज भी करते हैं। पास में राज है तो साज करेंगे ही।

सेवक राजा है। राजा भिखारी है। उसे तरह-तरह की लाचारी है। बेकारी है। मतलब सेवक राजद्रोही हो गए हैं। इसलिए ही राज किसी के नाम है और राज का काम और दाम सेवकों ने हथियाँ लिया है। जिसका राज है, वह राज-काज से दूर और मजबूर है। यानी नाम मात्र का उसका राज है। यह प्रजातंत्र का राज है।

राज तो कईं हैं। लेकिन हर राज का राज उजागर करना मेरे वश में नहीं है। क्योंकि हर राज का राज मेरे पास नहीं है। मैं कोई ऐसा डॉक्टर तो हूँ नहीं जिसे हर रोग का राज और इलाज पता होता है। ऐसे डॉक्टर गाँवों से लेकर कस्बों और शहरों तक मिल जाते हैं। सच कहें तो आधी आबादी की बर्बादी ऐसे ही डॉक्टरों के हाथ से होती है। मैं कोई ऐसा मास्टर भी नहीं हूँ जिसे हर बिषय का राज पता होता है। नहीं तो अबतक कहीं कोचिंग सेंटर चला रहा होता। हर बिषय सिर्फ पाँच सो रूपये मात्र की दर से।

दूसरों के राज की क्या बात किया जाय जब पत्नी को पति का तथा पति को पत्नी का ही राज पता नहीं होता। ऐसे ही माँ-बाप को बेटे-बेटी का राज नहीं मिलता। राज को राज बनाये रखने की नीयति ही कइयों को राज उजागर करने जैसे क्रांतकारी कदम उठाने पर मजबूर कर देती है। और कई लोग रात-दिन राज का राज पता करने में ही लगे रहते हैं। इतना ही नहीं कई लोग इसे ही खबर बना कर बेचते हैं।

खैर आधुनिक युवक-युवतियों के दिल की गली यानि प्रेम गली का क्या राज है ? सुना है कबीरदासजी के समय में प्रेम गली बहुत सँकरी हुआ करती थी। इसलिए ही वे कहते थे कि ‘प्रेम गली अति साकरी ता में दो न समाहिं’। वास्तव में उस समय गावों, मोहल्लों, कस्बों व शहरों की गलियाँ तथा सड़कें आदि सकरी नहीं होती थीं। लेकिन प्रेम गली इतनी सकरी होती थी कि एक के आ जाने के बाद धक्का-मुक्की से भी दूसरा अथवा दूसरी नहीं समा पाती थी।

आज बिल्कुल बिपरीति परिस्थिति है। गाँवो, मोहल्लों, कस्बों व शहरों की गलियाँ दिनों-दिन सकरी होती जा रही हैं जबकि दिल की गली यानी प्रेम गली दिनों-दिन चौड़ी होती जा रही है। इसका भी कोई न कोई राज होगा ही क्योंकि हर चीज का कोई न कोई राज होता है।

घरों, होटलों, सरायों और धर्मशालाओं आदि में भी सीमित जगह ही रहती है। सिनेमा घरों में भी एक सीमा के बाद हाउसफुल का बोर्ड लटक जाता है। लेकिन आज के प्रेमियों व प्रेमिकाओं के दिलों में इतनी जगह हो गयी है कि हाउसफुल कभी होता ही नहीं। ‘तुम भी आओ, दिल में मेरे समा जाओ’ की स्थिति बनी रहती है। कई लोग तो ऐसा भी कहते हैं कि- ‘प्रेम गली चौड़ी हुई दिल माँगे अब मोर। एक लगे कुछ भी नहीं बीस लगे अब थोर’।।

दिल की स्टोरेज कैपसिटी बढ़ने का राज ज्यादा जटिल नहीं है। आजकल जितने भी डेटा स्टोरेज उपकरण हैं। जैसे सीडी, पेनड्राइव आदि। इनमे भी एक सीमा तक ही डेटा स्टोर होता है। उसके बाद और स्टोर करने के लिए कुछ न कुछ डिलीट करना पड़ता है। यही सिद्धांत यहाँ भी लागू होता है। यह बात लोजिकल और वैज्ञानिक है। आधुनिक युवक और युवतियां भी कुछ न कुछ डिलीट करके ही यह क्षमता प्राप्त कर सके हैं।

युवकों ने बिचार, संस्कार और मूछें डिलीट करके अपनी क्षमता को बढ़ाया। इसी तरह लड़कियों ने तन से कपड़े और मन से लाज-शर्म डिलीट करके कैपसिटी बढा लिया। अभी आगे देखो क्या-क्या डिलीट होता है ? लोग जितना डिलीट करते जायेंगे उतने ही राज खुलकर सामने आयेंगे।

राज ही राज हैं । घर से बाहर हर जगह राज। आज हर कोई राज के साये में जी रहा है। सबके पीछे कोई न कोई राज है। हर कोई चौकन्ना रहता है कि कोई कहीं राज खुल जाने से कोई गाज न गिर जाय। घर-परिवार से लेकर सरकार चलाने वाले राज को राज रखकर ही अपना ताज बचाए रखने में कामयाब हैं। ऐसे में ज्यादा राज के पीछे पड़ना खतरे से खाली नहीं है

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ.प्र.)।
ब्लॉग: http://www.sriramprabhukripa.blogspot.com/ URL1: http://sites.google.com/site/skpvinyavali/
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रचनाकार: एस के पाण्डेय का व्यंग्य - राज का राज
एस के पाण्डेय का व्यंग्य - राज का राज
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