अजय गोयल की कहानी - नन्हीं उँगलियों का विद्रोह

SHARE:

नन्हीं उँगलियों का विद्रोह - अजय   माली के कन्धे पर बैठ दिव्य पाक की मुँडेर पर चढ़ गया। मुँडेर पर खडा हुआ। दो-चार कदम चला, फिर वापस माली कन...

नन्हीं उँगलियों का विद्रोह

- अजय

image

 

माली के कन्धे पर बैठ दिव्य पाक की मुँडेर पर चढ़ गया। मुँडेर पर खडा हुआ। दो-चार कदम चला, फिर वापस माली कन्धे पर उतर आया।

दिव्य ने माली से पूछा, ''क्या आदमी बन्दर था ?''

सवाल से माली थोड़ा चकराया था। अपने सामान्य ज्ञान को कुरेदते हुए बोला, ' 'पहले बन्दर ही था आदमी।''

उस शाम माली के उत्तर ने दिव्य के मन की उलझन खत्म कर दी। उसको विश्वास हो गया कि डैडी ने उसे बन्दर से छीना है।

गुस्से में डैडी अक्सर कहते, ''दिव्य, तुझे मैं बन्दरों को लौटा दूँगा। मैंने तेरी पूँछ काट और बालों को साफ कर तुझे आदमी बना दिया। मेरा कहना नहीं मानेगा तो मैं तुझे मुँडेर पर बैठा दूँगा। बन्दर वापस ले जाएँगे तुम्हें।''

इतना सुन दिव्य सहम जाता। गर्दन झुका लेता। उसके फूल से चेहरे पर सलवटों कई पड़ाव उभर आते। मुँडेर पर खड़ा होने पर दिव्य को डर लगा। एक-दो कदम मुश्किल से वह चल सका। घबराकर तुरन्त नीचे उतर आया था। जबकि बन्दरों को दिव्य कालोनी में सड़क किनारे लगे अशोक और गुलमोहर के पेड़ों की हर डाल व शाख से बातें करते देखता। अपने कमरे की खिड़की से पार्क की दीवार पर दौड़ते या कलाबाजियाँ खाते बन्दरों को देख वह स्तब्ध रह जाता है।

सुबह-शाम बन्दरों की टोली कॉलोनी का चक्कर लगाती। पेड़ों पर गेंद की तरह उछलती और कूदती। टी. वी. एंटिना को छेड़ती। हर घर के लॉन को थोडी देर के लिए क्रीड़ा-स्थल बना लेती। इस खिलवाड़ के बीच उन सबका नाश्ते से लेकर भोजन तक हो जाता। साथ में वस्तुओं की उठाईगीरी भी सम्पन्न होती रहती।

दिव्य के घर की छत पर बन्दर धमाल करते। बची रोटियों या फलों को खिड़की से छत पर दिव्य फेंकता, उस वक्त उसके सामने दंगे जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता। छत रंगमंच बन जाती। बन्दर चीखने लगते। दाँत दिखा-दिखाकर खों-खों की आवाज कर एक-दूसरे से हट जाने को कहते। झपटने और छीनने के क्रम मैं बच्चे और अशक्त बन्दर मैदान छोड़ देते। इसके बाद शक्ति सम्पन्नों कै बीच फैसला होता।

स्कूल से लौटकर दिव्य कमरे की खिड़की खोलता, तो एक मोटे और ताकतवर बन्दर को अपनी छत की मुँडेर पर बैठा पाता। शायद अन्य बन्दरों ने हार मान ली थी।

धीरे-धीरे खिड़की खुलने पर वह बन्दर मुँडेर से उतर, खिड़की की सीखचों को पकड़ खडा होने लगा। अब दिव्य उसे अपने हाथों से खिलाता।

दिव्य को सहज ढंग से था कि जैसे उसके आदमी डैडी और मम्मी हैं, तब वैसे ही उसके बन्दर डैडी और मम्मी भी होंगे।

दिव्य को मोटा बन्दर पसन्द आया था। खिडकी खोलने पर दिव्य को बन्दर दिखाई नहीं देता, तो पापू-पापू की आवाज लगाता। कुछ देर में दिव्य का पापू जँगले पर हाजिर हो जाता।

खिलाने-पिलाने के साथ दिव्य पापू को मिकी माउस और डोनाल्ड डक के कारनामे सुनाता। नीली, हरी रौशनियों के साथ चलते रोबोट को दिखाता। अपने स्कूल की बातें बताता। दिव्य ने बताया था कि स्कूल में चौबीस खरगोश हैं, जिन्हें वह अपने दोस्त जय के साथ रोजाना घास खिलाता है। वहाँ एक छोटा-सा तालाब हे, जिसमें दस बत्तखें रहती हैं। वे जब जमीन पर आती हैं, तब वह और जय उनके पीछे भागते हैं। बड़ा मजा आता है।

पापू के सामने दिव्य अपने मासूम रहस्य उगलता रहता! इसी क्रम में उसने बताया कि जय कहता है, वह एक बडी-सी बतख से शादी करेगा, और उसकी पीठ पर बैठ आकाश में उड़ जाएगा।

कभी-कभी दिव्य फिर से बन्दर बन जाने की कल्पना करता। पापू को उसने बताया कि दोबारा बन्दर बन जाने के बाद वह उसके पेट से चिपक कर घूमेगा। दीवारों को फाँदेगा, पेड़ों पर चढ़ेगा और उछल-कूद करेगा। बीच-बीच में पापू से पूछता रहता कि उसकी बन्दर मम्मी कही हैं, और बन्दर भाई-बहन क्यों नहीं आते 7 रोटी या केलों के लालच में जँगले से चिपका पापू अपनी खां-खों की आवाज के साथ दिव्य के सारे प्रश्नों को नाप देता।

दिव्य परेशान था। समझ नहीं पाता था कि पापू क्यों नहीं बोलता? घर में दिव्य और बन्दर की दोस्ती की चर्चा थी। एक दिन दादाजी ने पूछ लिया, ''दिव्य, तुम्हारे बन्दर दोस्त के क्या हाल-चाल हैं? क्या-क्या बातें करते हो उससे ?''

' 'वो तो बोलता ही नहीं?''

' 'सिखाया तुमने क्या ?'' दादीजी ने हँसते हुए पूछा।

अगले दिन से बातों का दौर खत्म हो गया। दिव्य ने पापू को बोलना सिखाने के लिए कमर कस ली थी। परन्तु लगातार अथक प्रयास के बाद दिव्य पापू को बोलना तो दूर, हँसना तक नहीं सिखा पाया।

''तुम तो मेरा नाम भी नहीं ले सकते पापू यदि डैडी ने मुझे मुँडेर पर छोड़ दिया तो...। मैं न मुँडेर पर रह सकता हूँ और न ही पेडू पर सो सकता हूँ। तुम मेरा ध्यान कैसे रखोगे? इसीलिए कहता हूँ तुम जल्दी-जल्दी सीख जाओ, जैसे मैं सीख जाता हूँ। सब कुछ जल्दी-जल्दी याद कर लेता हूँ।'' पापू से निराश होकर दिव्य ने कहा था।

दिव्य की स्मृति सबको आश्चर्य में डाल देती। सबसे पहले इसका अनुभव टीवी. पर आने वाले विज्ञापनों के कारण हुआ। टूथ ब्रश से लेकर साबुन तक या टू व्हीलर से लेकर कार तक की विज्ञापन पंक्तियाँ उसे स्मरण थीं। हर सुबह दिव्य विज्ञापन पंक्तियों मम्मी को सुनाकर बताता कि आज उसे कौन-सा टूट पेस्ट या साबुन इस्तेमाल करना है। उसकी स्मृति का प्रदर्शन स्कूल के वार्षिक उत्सव में हुआ। तुलसीदास का बाना पहन, मंच पर बैठ, मानस के बालकाण्ड की पन्द्रह-बीस चौपाइयाँ दिव्य ने लय में गा दी थी। जन-समूह भाव-विभोर हो गया। इसके बाद स्कूल में वह दिव्य नाम से पहचाना जाने लगा।

सबको उलझन होती जब दिव्य मम्मी की क्रीम अपने चेहरे पर लीप लेता। होठों पर लिपस्टिक लगाकर कहता, ''मुझे राजकुमारी बना दो ना।'' या पामेरियन कुत्ते जैकी को अपना सबसे अच्छा दोस्त कहता। सर से पाँव तक लम्बे मुलायम बालों से ढँके जैकी के साथ खाने की जिद करता।

डैडी झुँला जाते। कहते, ''तुम क्या हो दिव्य 9 तुम्हें पता नहीं है।'' परन्तु वे शान्त जल्दी हो जाते। दिव्य को गोद में उठाए अक्सर लॉन में घूमते। उस समय उनका चेहरा संतोष से दिपदिपाता होता। दिव्य की अद्भुत क्षमता को अपने साथियों के बीच प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने उसका जन्म-दिन चुना था।

दिव्य ने पापू को बताया कि इस साल केवल पाँच मेहमानों को डैडी ने बर्थ डे पार्टी मैं बुलाया है। साथ में उसने पूछा कि पापू तुम अपना बर्थडे कैसे मनाते हो? कौन से मन्दिर जाते हो कितना बड़ा केक काटते हो 7 दावत मुँडेर पर देते हो या पेडू पर 7

योजना बनाई गई कि दिव्य मेहमानों को चन्दन लगाकर स्वागत करेगा। स्वागत में श्लोक बोलेगा। इसके बाद आगन्तुकों का सेलुलर फोन नम्बर बताएगा।

पार्टी में दो दिन शेष थे। वह श्लोक याद कर चुका था। पहले दिन वह स्कूल चला गया। वापस आकर पापू से उसने बातें कीं। शाम को उसकी नजर चौंक में हवा की सीढ़ियों पर आहिस्ता-आहिस्ता उतरती बुढ़िया के बालों पर पड़ी। बालों का गोल-गोल सफेद कोट पहने, हवा में इधर-उधर दौड़ते-तैरते बीजों को देखकर बच्चे तालियाँ पीटते। लगता है जैसे परियों के देश से उड आए हैं गोल-गोल बाल। उनको देख दिव्य की मम्मी भी अपने बचपन की पिछली गलियों में चली जातीं। दिव्य चिल्लाया था, ''देखो मम्मी बुढ़िया के बाल। सुन्दर-सुन्दर कित्ते अच्छे।'' इसके बाद दोनों अपनी-अपनी फूँकों से देर तक उसे चौक में थकाते रहे थे।

रात में डैडी के वापस आने से पहले दिव्य सो गया। इस तरह एक दिन बीत गया।

दूसरा दिन अवकाश का था। सुबह डैडी ने दिव्य से कहा, ''हैलो फ्रेंड, कल तुम्हारा बर्थडे है, याद कर लेना, ओके।'' यह कह वे चले गए। वह मम्मी के साथ बैठा था कि उसकी नजर बरामदे में रखे चूहेदान पर पडी। उसमें फँसा चूहा कुतर-कुतरकर टुकड़ा खा रहा था। बस, फिर क्या था? वह उछलकर खड़ा हो गया। चूहेदान उठाकर मेज पर रख दिया और वह स्वयं पर बैठ गया। मम्मी के बुलाने को अनसुना कर दिया। भागकर अपने कमरे से मिकी माउस खिलोना उठा लाया। खिलौने और चूहेदान में बन्द चूहे को कुछ देर देखता रहा, फिर मम्मी के पास जाकर बोला, ''मम्मी, क्या डैडी ने मिकी माउस को भी माउस से आदमी बनाया है, क्योंकि मिकी तो आदमी जैसा लगता है।''

मम्मी के पास हँसने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, परन्तु दिव्य के मन में कुछ नहीं सूझ गया। खिडकी के पास पहुँच उसने पापू-पापू की आवाज लगाई, पर पापू नहीं 'आया। शाम तक दिव्य बैचैन रहा।

शाम को दिव्य ने पापू का हाथ पकड़ झूमते हुए कहा, ''जानते हो, मैंने क्या सोचा है? पापू मैं डैडी से बर्थडे गिफ्ट में क्या मॉगूंगा? में कहूँगा, डैडी आपने मुझे आदमी बनाया, मिकी को भी आदमी बनाया। अंब पापू को भी आदमी बना दो ना।''

उस दिन डैडी कुछ जल्दी आ गए। दिव्य जेकी को उसकी दोनों पिछली टाँगें पकड़े लॉन में घसीट रहा था। धूल में सने और जैकी के साथ खेलते दिव्य को देख डैडी एकदम तमतमा गाए। उससे बिना बोले घर में चले गए। कुछ देर बाद सहमा-सहमा दिव्य अन्दर पहुँचा।

''चलो, आज दिव्य को मुँडेर पर छोड़ आते हैं। यह आदमी रहने लायक नहीं है। यह तो बन्दर है, बन्दर।'' दिव्य को देख डैडी बोले।

दिव्य श्लोक याद कर चुका था। मम्मी रसोई मैं चाय बनाने गई थी। दिव्य ने आग्रह किया, ''मम्मी मुझे सेलुलर नंबर याद करा दो ना। डैडी गुस्से मैं हैं।''

डैडी की चाय खत्म होने तक दिव्य पाँचों फोन नम्बर अपनी स्मृति में उतार चुका था। उसने डैडी को सुना भी दिए। अब उनके पास गुस्सा करने का कोई जायज कारण नहीं रह गया था।

पार्टी के लिए दिव्य धोती-कुर्ते में था। दादाजी की गोद मैं चढ वह मेहमान को हाथ जोड़कर प्रणाम करता, और श्लोक उच्चारण के साथ उसके माथे पर चन्दन का टीका लगाता। साथ में सेलुलर नम्बर बता देता। पार्टी में दिव्य छाया रहा। उसकी योग्यता और क्षमता के सीमेंट से सपनों के ऊँचे-ऊँचे पुल पार्टी में खड़े कर दिए गए। दिव्य को अगला बिल गेट्स मान लिया गया।

एमडी. साहब की कल्पना ने आकाश छू लिया। उनके अनुसार, दिव्य के क्लोन बनने चाहिए। स्केनिंग से दस या पन्द्रह दिव्य एक साथ तैयार किए जा सकते हैं। एक-सी क्षमता। एक-सी योग्यता एक साथ। सब क्लोन अलग-अलग क्षेत्रों में काम करें, तब...? कहाँ से कहीं पहुँच सकते हैं हम। फिर किस रहस्य का सीना हमारे सामने बचा रहेगा।

क्लोनिंग से, ऊँची उड़ान शायद सम्भव नहीं थी। मम्मी-डैडी इसकी पीठ पर चढ़ बड़े से बड़ा सपना देखना चाहते थे, परन्तु एक छोटे से धक्के ने उनके सपनों को हिला दिया।

डिप्टी साहब की चिन्ता थी कि यदि दिव्य का कोई क्लोन हिटलर जैसा बन गया, तब...! इस चिन्ता से पार्टी की यात्रा जैसे किसी ब्लैकहोल के भँवर में फँस गई।

एमडी. साहब ने रास्ता दिखाया। उन्होंने कहा कि हमें अपने कम्यूटरमेन मैं गांधी को जिन्दा करना पडेगा। गाँधी कै नाम ने पार्टी को भँवर से निकाल दिया था। ???? साहब चाहते थे कि दिव्य पन्द्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए आयोजित 'गाँधी क्विज' में भाग ले। क्योंकि स्वतंत्रता की वर्षगाँठ पर होने वाली क्विज में जीतने पर राज्य स्तर की पहचान निश्चित थी।

क्तोनिंग का सपना और क्विज की व्यवस्था दोनों ही दादाजी को अच्छे नहीं लगे। पार्टी विसर्जित होने पर उन्होंने कहा कि क्लोनिंग राक्षसी प्रवृत्ति है। रक्तबीजी राक्षस होते थे। रावण कै दस सिर थे ६.. गाँधी हमारे लिए अब क्विज का सामान भर रह गया है क्या ?

पार्टी सफल थी। मम्मी-डैडी ने दादाजी को अनसुना किया। दोनों के कदम जमीन पर नहीं टिक रहे थे। डंडी के सामने उलझन थी कि क्विज के लिए दिव्य को कैसे तैयार किया जहर।

यह समस्या भी सुलझ गई। अभी दिव्य का 'बर्थ डे गिफ्ट' शेष था। पास-पास बैठे मम्मी-डैडी के बीच दिव्य घुस गया। बोला, ''डैडी, गिफ्ट के बदले पापू को आदमी बना दो ना? जैसे मुझे बनाया है।''

डैडी को समझाने में कुछ क्षण लगे। अवसर स्वयं चलकर आया था! दिव्य को चूमते हुए बोले, ' 'ठीक है, आपको एक काम करना है । बस एक क्विज जीतना है। इसके लिए एक किताब याद करनी होगी। तब मैं पापू को भी आदमी बना दूँगा।''

उस रात दिव्य अपने डैडी से चिपका मीठी नींद सोया और डैडी क्लोनिंग और क्विज जैसे पालनों में झूलते रहे।

दूसरे दिन दिव्य ने पापू का स्वागत चन्दन का टीका लगाकर और श्लोक गाकर किया। उसे पूरी और गुलाब जामुन खिलाए। पापू का मुँह पोंछते हुए वह बोला कि ' 'डैडी ने बात मान ली है। आदमी बन जाने के बाद तु स्कूल जाया करोगे, क्योंकि तुम्हें बोलना भी नहीं आता ना। वहाँ पर सीख जाओगे। है ना पापू !''

तुम भी अगले दिन स्कूल में बतखों के पीछे भागते हुए दिव्य ने जय को बताया कि थोड़े दिनों बाद पापू भी स्कूल आया करेगा। तब तीनों खरगोश और हिरन को घास खिलाया करेंगे। उस समय भागता हुआ जय रुक गया था। अपनी हाँफती साँसों को थामते हुए दिव्य से बोला, ''तेरे डैडी बहकाते हैं। बन्दर को कोई आदमी नहीं बना सकता। मैंने अपने डैडी से पूछा था।''

इसके बाद दिव्य न बत्तखों के पछिए दौड़ा, न झूला झूला। क्लास में जाकर चुपचाप बैठ गया। उसके मन में जम नहीं पा रहा था कि डैडी उसे बहका सकते हैं। उसने यह भी सोचा कि फिर उसका पापू क्यों रोजाना उससे मिलने 'आता।

स्कूल से घर लौटा दिव्य। डैडी उसका इंतजार कर रहे थे। उसकी उलझी मनःस्थिति की उन्होंने उपेक्षा कर दी और गाँधी को रटाना शुरू कर दिया।

दिव्य के लिए स्वतंत्रता का अर्थ पापू से बातें और जैकी के साथ खेलना भर था, फिर भी स्वतंत्रता के महानायक गाँधी के पदचिन्हों को उसने स्मरण करना शुरू कर दिया। वह बता सकता था कि 'सविनय अवज्ञा' दार्शनिक हेनरी थोरो के प्रभाव से गाँधी जी के जीवन में उतर सकी थी। या लगभग दो सौ मील दांडी यात्रा उन्होंने चौबीस दिन में तय कर पूरे देश में आत्मबल भर दिया था। 'करो या मरो' जैसे बुलन्दी गाँधी ने 'अगस्त क्रान्ति' में दी थी।

डैडी क्विज के लिए दिव्य के साथ जी-जान से जुटे थे, परन्तु सबसे ज्यादा परेशान दादाजी थे। उन्होंने महसूस किया कि गाना और कविताओं की फूल-पत्तियाँ उड़ाते रहने वाला दिव्य अब शान्त-सा रहता है। जैकी की टाँगें पकड़कर भी नहीं घसीटता और न घर बसाने के लिए भटकती बुढ़िया के बालों के गोलों में फूँक मारने के लिए उठता है। बस चुपचाप बैठा बुदब्रुदाता रहता है।

दादाजी सोचते कि यह कैसी दौड़ है, जिसके कारण बचपन के हाथों में लाठी आ जाए। पर अपनी उलझन का उन्हें समाधान नहीं मिलता। बस, उन्होंने अपना सारा ध्यान दिव्य पर केन्द्रित कर दिया था। गोद में बैठाकर उसे खाना खिलाते। रात में अपने पास बुलाते। शाम होने पर पार्क में घुमाने ले जाते।

एक दिन पार्क में दिव्य ने पूछा, ''दादाजी क्या जय की बतख से शादी हो सकती है? क्या बतख पर बैठकर वह उड़ सकता है? जय बता रहा था कि उसके डैडी कहते हैं कि मेरे डैडी मुझे बहकाते हैं। न मुझे डैडी ने बन्दरों से छीना है, न बन्दर से आदमी बनाया है। डैडी ऐसा कर भी नहीं सकते।''

अगले कुछ क्षण दादाजी के लिए कठिन थे। दिव्य टकटकी लगाए था। उन्होंने मजबूत निर्णय लिया और बोले, ' 'जय के डैडी ठीक कहते हैं।''

अगले दिन दिव्य कुछ याद नहीं कर पा रहा था। न गोलमेज सम्मेलनों की तारीखें और न पूना या गाँधी-इरविन समझौतों के निर्णय।

डैडी कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि दिव्य को यह एकाएक क्या हो गया। गुमसुम बैठा वह उन्हें एकटक देख रहा था। झुँझलाकर डैडी ने उसे झिड़क दिया। आहत दिव्य के पास रोने के सिवा कोई रास्ता नहीं था।

दिव्य के रोने से दादाजी का सब्र का बाँध टूट गया। अपने घुमड़ते गुस्से में वह बोले, ' 'आखिर कितनी पहेलियाँ ठूँस सकते हो तुम इसके नन्हे दिमाग में? दिव्य क्या कोई कॉमेडिटी है, जिसको बाजार में हिट करने के लिए तुले हो।''

दादाजी व डैडी के बीच तीखा विवाद हुआ। दोनों दिव्य की उपस्थिति तक भूल गए थे।

डैडी के लिए दादाजी का विरोध आश्चर्य में डालने वाला था। डैडी ने साफ-साफ कहा कि आपने सोचा नहीं, यदि क्विज जीत गया, तब क्या होगा? एमडी. ने कहा, क्विज जीतने पर दिव्य को अपवाद मानते हुए, उसकी जिम्मेदारी कम्पनी ले लेगी। वह बाहर पढ़ने जाएगा। इसलिए दिव्य को क्विज जीतनी ही है और वह जीतकर रहेगा। इन शब्दों के साथ डैडी की मुट्ठियाँ भिंच गई।

शाम तक दिव्य को तेज बुखार चढ़ आया। उसे देखकर लगता, वह कहीं उलझ गया हे या दलदल में फँस गया है। बुखार में मम्मी व दादाजी से बार-बार पूछता, ''डैडी मुझे बहकाते क्यों है ?''

डैडी के आने पर उसका गुस्सा चेहरे पर उतर आता। उनके सामने वह आँखें बन्द कर लेता या फिर छत की तरफ देखता रहता। दूसरे दिन दादाजी जय को बुला लाए। जय को देखकर दिव्य हँसा भी और बहुत देर तक उससे बातें करता रहा। दिव्य ने जय को बताया कि खुद उसने पापू से आदमी बनने के लिए मना कर दिया। क्या करेगा कोई आदमी बन कर? किताबें याद करता रहेगा। और मोटा बस्ता लेकर स्कूल जाएगा।

बाद में दोनों ने कैरम की कई बाजियाँ खेलीं। हर बाजी में दिव्य जीतता रहा। वह हैरान था, क्योंकि उसे मालूम था कि जय कैरम बहुत अच्छा खेलता है। वह बड़ी क्लास के लड़कों को कैरम में हरा देता है, इसलिए जाते वक्त दिव्य ने जय से पूछ लिया, ''तुम मुझसे कैसे हारते गए। तुम तो बहुत अच्छा खेलते हो।''

जय का सीधा जवाब था कि उसे हारते रहने के लिए दादाजी ने कहा था। बीमार हो न तुम।

जय के उत्तर से दिव्य चकित रह गया। शाम होते-होते दिव्य का बुखार उतर गया। उसके चेहरे पर चमक लौट आई।

उस समय दिव्य दादाजी के साथ लॉन में बैठा था, जब चुपके से उनके पास पापू आ बैठा। बरामदे में बँधे जैकी ने भौंककर उसके आने की सूचना दी। दादाजी ने मुँह पर अँगुली रख जेकी को चुप करा दिया। दिव्य ने पापू को केला खिलाया। वे पहली बार खुले में मिले थे। पिछले दिनों में दिव्य उससे मिल नहीं पाया था।

''पापू तुम जानते हो, मैंने क्या सोचा है? मैंने सोचा है कि क्विज हार जाऊँ। हार जाने पर न तो मुझे बाहर जाना पड़ेगा और न तुम्हारा साथ छूटेगा।'' दिव्य ने अपनी हँसी में तैरते हुए कहा।

उस शाम दिव्य की हँसी की गंगा दादाजी का तमाम बोझ बहाती उनके मन की गहराई में उतर गई।

 

- अजय गोयल

निदान नर्सिंग होम

फ्री गंज रोड

हापुड़ – 245101

a.ajaygoyal@radiffmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बहुत सुन्दर मनोवैज्ञानिक कहानी जो यह रेखांकित
    करती है हम अपनी मह्त्व्कांशा पूरी करने के लिये
    अनजाने में बच्चो के दिलो दिमाग पर कितना बोझ
    डालते है जो अनावश्यक तो है ही उन्हें हमेशा के लिये
    नुकसान पहुंचा सकता है बहुत सुन्दर ढंग से इस बात
    को रखा गया है लेखक बधाई के पात्र हैं

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अजय गोयल की कहानी - नन्हीं उँगलियों का विद्रोह
अजय गोयल की कहानी - नन्हीं उँगलियों का विद्रोह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy2oDSw5DaiJjJGSK0CMQw1DoKjksHdo8GUjcR6DdD5HtvYbCR_BNU2PtjIhZw4wXd4yPtB6kwZTUUiSUEtcTX7xSN1IEvvimD7VxfGr-lm9zfh1wsqbPBB5LFdQVG_XhzVjEu/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy2oDSw5DaiJjJGSK0CMQw1DoKjksHdo8GUjcR6DdD5HtvYbCR_BNU2PtjIhZw4wXd4yPtB6kwZTUUiSUEtcTX7xSN1IEvvimD7VxfGr-lm9zfh1wsqbPBB5LFdQVG_XhzVjEu/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/08/blog-post_80.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/08/blog-post_80.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content