॥ ऊँ गं गणपतये नमः ॥ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ः व्यक्तित्व और कृतित्व ''जयन्ती पर विशेष'' शोधार्थी - लोकेश कुमार शर्मा ज...
॥ ऊँ गं गणपतये नमः ॥
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ः व्यक्तित्व और कृतित्व
''जयन्ती पर विशेष'' शोधार्थी - लोकेश कुमार शर्मा
जल - कण - सा छोटा जीवन,
रज - कण - सी उसकी काया;
सागर - सी आकांक्षाएँ,
पर्वत - सी उसकी माया।
(जीवन संगीत)
जीवन की नश्वरता और उसकी आकांक्षाओं को सहज शब्द देने वाले डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र आधुनिक युग के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। सरस्वती के सफल आराधक डॉ. मिश्र की कालजयी कृतियां खड़ी बोली हिन्दी की समृद्ध धरोहर हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा है कि - ''पं. बलदेव प्रसाद मिश्र हिन्दी की उन विभूतियों में हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रकाश अज्ञात रूप से विकीर्ण किया है। साहित्य के सभी अंगों पर सफलतापूर्वक उत्कृष्ट कृतियों की सृष्टि कर उन्होंने हिन्दी की सेवा की है''
डॉ. मिश्र की कृतियों के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा से हिन्दी साहित्य के विविध अंगों के भण्डार की श्रीवृद्धि की है। गद्य और पद्य पर उनका असामान्य अधिकार था, तथापि वे एक लब्धप्रतिष्ठित कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। डॉ. मिश्र मूलतः दार्शनिक थे, फिर भी उनका कवि व्यक्तित्व ही सर्वोपरि रहा है। यह अवश्य है कि उनकी कृतियों में उनके दार्शनिक व्यक्तित्व की आभा सर्वत्र विद्यमान रही है। गद्य और पद्य दोनों में ही उनकी दार्शनिक चेतना दुरूह न होकर अत्यंत सरल रही है। जिसे प्रबुद्ध पाठकवर्ग से लेकर आमजन भी सहजता से हृदयंगम कर लेता है।
देवो नारायणः मातु पिता मे स्वर्ग-संस्थितः
माताऽव्याज्जानकी देवी कुल-कल्याण-कारिणी॥
(कोशल किशोर, भूमिका से)
डॉ. मिश्र का जन्म संस्कारधानी के एक कुलीन कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में 12 सितंबर सन् 1898 को हुआ। माता श्रीमती जानकी देवी और पिता श्री नारायण प्रसाद मिश्र की आप द्वितीय संतान थे। वैष्णव भक्ति के संस्कार आपको बाल्यावस्था से प्राप्त हुए। घर-परिवार के धार्मिक वातावरण से आपकी धार्मिक चेतना उद्भूत हुई। सन् 1914 में स्टेट हाई स्कूल से प्रवेशिका की परीक्षा उत्तीर्ण की और इसी वर्ष नागपुर के हिस्लॉप कॉलेज में दाखिला लिया। सन् 1918 में डॉ. मिश्र ने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1920 में मॉरिस कॉलेज (नागपुर विश्वविद्यालय) से दर्शन शास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की। सन् 1921 में एल.एल.बी. की परीक्षा पास की। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, ड्राईंग व शॉर्ट हैण्ड आदि की विशेष परीक्षाएं पास कर ली थीं। स्थानीय त्रिवेणी संग्रहालय में डॉ. मिश्र द्वारा तैयार नेल ड्राईंग का अवलोकन किया जा सकता है। सन् 1939 में 'तुलसी दर्शन' नामक शोध-प्रबंध पर नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें शिक्षा विषयक सर्वोच्च उपाधि डी.लिट्. प्रदान की गई। इस शोध कार्य की यह भी विशेषता रही है कि मिश्र जी ने परंपरा को तोड़कर अंग्रेजी के स्थान पर अपना शोध-प्रबंध हिन्दी में प्रस्तुत किया था।
डॉ. मिश्र की संपूर्ण जीवनयात्रा के तीन पृथक-पृथक आयाम हैं। इन्हीं आयामों में हम डॉ. मिश्र के युगीन संदर्भ एवं जीवन दर्शन का सम्यक मूल्यांकन कर सकते हैं।
समाजसेवा के क्षेत्र में वे निष्काम समाजसेवी थे। अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने 'बाल विनोदिनी समिति' एवं 'मारवाड़ी सेवा समाज' की स्थापना की थी। डॉ. मिश्र ने इस संस्था के माध्यम से कई रचनात्मक कार्य किए। जनसेवा को जनार्दन सेवा मानने वाले डॉ. मिश्र को सन् 1952 से 1959 तक भारत सेवक समाज का प्रदेश संयोजक तथा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल का सदस्य मनोनीत किया गया। डॉ. मिश्र ने भारत सेवक समाज के माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण कार्य संपन्न कराये। पद, प्रतिष्ठा, धन, यश आदि से सदैव निस्पृह रहने वाले निष्काम समाज सेवी, साकेत संत डॉ. मिश्र की समाजसेवा अनुपम है। डॉ. मिश्र के राजनीतिक जीवन की शुरूआत सन् 1920 में हो गई थी। जब उन्होंने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के सहयोग से राजनाँदगाँव में राष्ट्रीय माध्यमिक शाला की स्थापना की थी। डॉ. मिश्र की सक्रिय राजनीति से जुड़ा एक और प्रसंग सामने आता है। सन् 1948 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से राजनाँदगाँव स्टेट का विलीनीकरण हुआ। उसी समय राजनाँदगाँव को जिला केन्द्र घोषित करने की माँग के लिए एक 'जिला निर्माण समिति' का गठन डॉ. मिश्र की अध्यक्षता में हुआ था। डॉ. मिश्र रायगढ़ तथा खरसिया नगर पालिकाओं के अध्यक्ष, रायपुर नगर पालिका के ज्येष्ठ उपाध्यक्ष तथा राजनाँदगाँव नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। सन् 1972 में सम्पन्न आम चुनाव में डॉ. मिश्र खुज्जी-खेरथा (राजनाँदगाँव) क्षेत्र से विधायक चुने गये। राजनीति के माध्यम से उन्होंने समाज सेवा ही की। 'राम राज्य' महाकाव्य में लिखते हैं -
शासन से सम्बन्ध सभी का,
शासन से ही जग उन्नति है।
लोक व्यवस्था संस्थापन को
शासन ही तो अंतिम गति है॥
डॉ. मिश्र को संगठन के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई। मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तीन बार अध्यक्ष (प्रथम बार सागर, द्वितीय नागपुर व तृतीय बार नये मध्यप्रदेश के रायपुर अधिवेशन में); अखिल भारतीय प्राच्य महासम्मेलन (नागपुर अधिवेशन) के हिन्दी विभागाध्यक्ष; अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तुलसी जयंती समारोह के अध्यक्ष; गुजरात प्रदेशीय एवं बम्बई प्रदेशीय राष्ट्रभाषा सम्मेलन एवं पदवीदान महोत्सव के अध्यक्ष; बंगीय हिन्दी परिषद् कलकत्ता के अनेक वर्षों तक अध्यक्ष; समय-समय पर अनेक शैक्षणिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के उद्घाटनकर्ता, प्रधान अतिथि, अध्यक्ष आदि; आकाशवाणी की परामर्शदात्री समिति के सदस्य एवं बम्बई आकाशवाणी द्वारा प्रायोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के अध्यक्ष; भारती संगम के प्रदेश संयोजक आदि। प्रशासनिक क्षेत्र में भी आपने बहुप्रशंसित कार्य किये। एक कुशल प्रशासक के रूप में आप रायगढ़ नरेश के यहाँ लगातार सत्रह वषोंर् तक नायब-दीवान और दीवान रहे। यह आपके जीवन का सर्वश्रेष्ठ काल रहा है। इस अंचल में उच्च शिक्षा के विकास में भी आपका अमूल्य योगदान रहा है। एस.बी.आर. कॉलेज बिलासपुर (1944-47), दुर्गा महाविद्यालय रायपुर (1948) तथा कल्याण महाविद्यालय भिलाई जैसी संस्थाओं की नींव रखी तथा प्राचार्य भी रहे। कमला देवी महिला महाविद्यालय राजनांदगांव के भी प्राचार्य रहे। सन् 1970-71 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के कुलपति पद पर भी कार्यशील रहे। लगभग दस वर्षों तक आप नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर भी मानसेवी रूप में कार्य करते रहे। नागपुर तथा बड़ौदा विश्वविद्यालय में आप विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। भारत शासन ने आपको मैसूर राज्य में हिन्दी के विशिष्ट प्रोफेसर के रूप में भी नियुक्त किया। डॉ. मिश्र शोध-निर्देशक, विशेषज्ञ, परीक्षक के रूप में प्रयाग, लखनऊ, आगरा, दिल्ली, पंजाब, वाराणसी, पटना, कलकत्ता, जबलपुर, सागर, नागपुर, हैदराबाद आदि विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध रहे। डॉक्टरेट की सर्वोच्च उपाधि डी.लिट्. तक के परीक्षक रहे।
डॉ. मिश्र के लिए साहित्य जीवन-साधना रही है। वे साहित्य सृजन को ब्रह्म साधना का ही एक रूप मानते थे। उनकी प्रमुख कृतियाँ दृष्टव्य हैं; काव्य गं्रथ - कोशल किशोर, जीवन संगीत, साकेत संत, हमारी राष्ट्रीयता, रामराज्य, उदात्त संगीत, गांधी गाथा। समीक्षात्मक गं्रथ - साहित्य लहरी, तुलसी दर्शन, जीव विज्ञान, भारतीय संस्कृति, मानस में रामकथा, मानस माधुरी, मानस रामायण, तुलसी की रामकथा। नाटक - शंकर दिग्विजय, असत्य संकल्प, वासना-वैभव, समाज सेवक, मृणालिनी परिचय। संपादित पाठ्यपुस्तकें - काव्य कलाप, सुमन, साहित्य संचय, भारतीय संस्कृति को गोस्वामी जी का योगदान, संक्षिप्त अयोध्याकाण्ड, उत्तम निबंध, तुलसी शब्द सागर। अनुवाद - मादक प्याला, गीता सार, हृदय बोध, उमर ख़ैय्याम की रूबाईयाँ, ईश्वर निष्ठा, ज्योतिष प्रवेशिका। अप्रकाशित कृतियों की संख्या सत्रह तथा अधूरी कृतियों की संख्या पाँच है। डॉ. मिश्र ने साकेत संत की भांति साहित्य की अहर्निश सेवा की तथापि उनके अवदानों का सम्यक् मूल्यांकन आज पर्यंत नहीं हो पाया है। भविष्य यह अवश्य स्वीकार करेगा कि डॉ. मिश्र बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार थे।
लोकेश कुमार शर्मा,
गायत्री नगर, कमला कॉलेज रोड
राजनांदगांव (छ.ग.)
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