मिजोरम का नाम डॉ. रतन कुमार ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------...
मिजोरम का नाम
डॉ. रतन कुमार
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सिलचर से अगर एक रास्ता मणिपुर जाता है तो दूसरा मिजोरम। उत्तर पूर्व के राज्यों में असम, त्रिपुरा और मणिपुर हिंदू बहुल हैं। बाकी चार अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड जनजाति बहुल। असम का नाम अहोम राजाओं के कारण पड़ा। अरुणाचल सूर्योदय का प्रदेश होने से ऐसा कहलाया। मेघालय का नाम वर्षा की अधिकता के कारण पड़ा। मणिपुर और त्रिपुरा का नाम संस्कृत से व्युत्पन्न है। नागालैंड और मिजोरम के साथ ऐसा नहीं है। नागालैंड तो विशेषकर अपमानजनक नाम है। मैदानी इलाकों के लोग इन जनजातियों को कम वस्त्र पहने देखकर उन्हें नागा कहते थे। इसका अर्थ नंगा है। अंग्रेजों ने इसी आधार पर उन्हें नागा कहा और उनकी रहने की जगह को नागालैंड। वहाँ की किसी जनजाति का नाम नागा नहीं है। लेकिन अन्य लोगों द्वारा दिये गये नाम को अपनाकर उन्होंने अपनी जनजातियों के नाम के साथ उसका प्रयोग करना शुरू कर दिया है मसलन अंगामी नागा, आओ नागा आदि। जैसे अंग्रेजों द्वारा बनाये गये युनाइटेड प्रोविंस में से आजादी के बाद यू पी को बरकरार रखने के लिये वहाँ के लोगों ने मान लिया है कि वे प्रश्न प्रदेश की बजाय उत्तर प्रदेश हैं। मिजोरम के नाम का अर्थ जानने के लिये थोड़ा कठिन अभ्यास करना होगा। वहाँ की मुख्य जनजाति कानाम लुशाई है। अंग्रेजी जमाने में इसी तरह इन जगहों को पहचाना जाता था- खासी हिल्स, गारो हिल्स, जयंतिया हिल्स, लुशाई हिल्स आदि। वहाँ जो शुरुआती संगठन बने उनका नाम भी लुशाई असोसिएशन जैसा हुआ करता था। बाद में उस क्षेत्र की अन्य जनजातियों को भी साथ लेने के लिये नये और व्यापक नाम की जरूरत पड़ी। लुशाई भाषा में जो का अर्थ पहाड़ी इलाका होता है। इसी में मि अर्थात लोग जोड़कर मिजो बना। मिजो जनजातियाँ बांगलादेश और म्याँमार में बिखरी हुई हैं। न सिर्फ़ मिजो बल्कि नागा जनजातियाँ भी म्याँमार तक बिखरी हुई हैं। एन एस सी एन के एक नेता खापलांग म्याँमार के ही हैं। मणिपुर की पहाड़ियाँ भी नागा बहुल हैं और एक अन्य नेता मुवैया मणिपुर निवासी हैं। नागा लोग जब चाहें कोहिमा और जिरिबाम से गुजरनेवाले रास्ते बंद कर इंफाल घाटी का गला घोंट देते हैं। मिजो लोगों का छोटा हिस्सा ही है। अन्य देशों के मिजो लोग अब भी जो एकता की बातें करते हैं। लेकिन भारत के मिजो अब खुशहाल हैं और अन्य देशों के अपनी ही जनजाति के लोगों से नृजातीय एकता नहीं महसूस करते। रम का अर्थ भूभाग है। इस तरह उस प्रदेश के नाम का अर्थ हुआ पहाड़ी लोगों का देश।
अगर आप इस इलाके में न आये हों तो इस पादप वैज्ञानिक सत्य पर यकीन न कर सकेंगे कि बाँस मूलतः घास होता है। किसी भी पहाड़ी रास्ते पर पत्थरों की संध से झाँकते, झूमते बाँस के नन्हे पौधे मिल जाते हैं। मिजोरम में लगभग हर पचास साल बाद बाँस फूलते हैं। इस घटना को वहाँ माउटम कहते हैं। यह घटना उस समाज और जगह के लिये इतनी महत्वपूर्ण होती है कि मिजोरम पर लिखे श्रीप्रकाश मिश्र के उपन्यास का नाम 'जहाँ बाँस फूलते हैं' तो है ही तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में लिखे उपन्यासों के नाम भी इससे मिलते जुलते हैं। जमीन पर गिरे इन फूलों को जब चूहे खाते हैं तो उनकी प्रजनन शक्ति बेहिसाब बढ़ जाती है। फिर ये चूहे खेतों और अन्न भंडारों में अनाज खाना शुरू करते हैं। फलतः अकाल पड़ जाता है। पिछले माउटम की पैदाइश लालडेंगा थे तब मिजोरम असम से अलग नहीं हुआ था। असम सरकार ने स्थानीय लोगों की पूर्वचेतावनियों के बावजूद कोई तैयारी नहीं की थी। विक्षुब्ध लोगों ने दो दिनों तक आइजोल पर कब्जा बनाये रखा, समस्त कार्यालय तहस नहस कर दिये और सरकारी अधिकारियों को मार डाला। राजीव गांधी ने लालडेंगा से जो समझौता किया उसके बाद से आम तौर पर इस प्रदेश में शांति है। लेकिन जितने कठिन दिन इस प्रदेश के लोगोम ने बिताये हैं उन्हें इनका ही जी जानता है।
अंग्रेजों ने शासन में भारतीयों की भागीदारी का कोई न कोई तरीका हर जगह ही खोज रखा था। मिजोरम में इन दलालों का रवैया इतना दमनकारी और उत्पीड़क था कि इस संस्था की समाप्ति शुरू से ही सारे आंदोलनों और संगठनों की माँग रही थी। आजादी के बाद माउटम आया और मिजो नेशनल फ़्रंट की भूमिगत लड़ाई का दौर शुरू हुआ। इस लड़ाई के दौरान भारत सरकार ने जालबुक ( सार्वजनिक मिलन केंद्र ) खासकर नष्ट किये। यहाँ तक कि सेना की सुविधा के लिये गाँवों को तहस नहस करके लोगों को राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसने के लिये मजबूर किया गया। यह विद्या भारत सरकार ने उसी समय वियतनाम में अमेरिकी सेना द्वारा अपनायी गयी रणनीति से सीखी थी। वहाँ भी लोगों पर निगरानी की सुविधा के लिये परंपरागत जगहों से उन्हें उजाड़कर सड़कों के किनारे बसाया गया था। मिजो लोग झूम खेती पर निर्भर थे। पहाड़ पर बसे गाँवों के इर्द गिर्द खेती करने में सुविधा होती थी। जब राजमार्ग पर बसे तो खेती कहाँ करें ! फलतः पूरा समाज केंद्र सरकार की खैरात पर निर्भर हो गया। उजाड़ने और बसाने का यह काम हफ़्तों में पूरा किया गया था। इसके लिये हेलिकाप्टर में मशीनगन लगाकर गोलियाँ बरसाई गयी थीं।
Dr. Ratan Kumar
Asstt. Professor
Deptt. of Hindi
Govt. Kamalanagar College
Chawngte, Mizoram - 796772
COMMENTS