दो कुत्तों की कथा एक कुत्ता देशी था दूसरा विदेशी । दोनों एक ही तरह भौंकते थे । गुर्राते थे । काटने में फर्क रहा होगा लेकिन उसे जानने का इ...
दो कुत्तों की कथा
एक कुत्ता देशी था दूसरा विदेशी । दोनों एक ही तरह भौंकते थे । गुर्राते थे । काटने में फर्क रहा होगा लेकिन उसे जानने का इस खाकसार को मौका ही नहीं मिला । दोनों पूंछ हिलाते थे और अगली दोनों टांगों पर खड़े होकर मालिक का सत्कार करते थे । दोनों की मां अलग-अलग थी लेकिन उनकी दोस्ती गंदे नाले के किनारे हुई थी । गंदें नाले के किनारे दोनों पिल्लावस्था में कूं...कूं.... करते हुये मिले थे । उनकी माएं न जाने किन मजबूरियों में उन्हें छोड़ गई थीं । आदमी की माएं तो अनब्याही होने के कारण छोड़ जाती हैं। कभी-कभी कन्या बालिका होने के कारण भी मांए छोड़ जाती हैं। ये दोनों ही शर्त्तें यहां लागू नहीं होतीं क्योंकि विवाह की परंपरा अभी तक कुत्तों ने अपने यहां शुरू नहीं की है। उनके समाज में लिंगभेद भी नहीं है। हो सकता है कि धोखे से दोनों छूट गये हों लेकिन अभी कूं...कूं करते तीन दिन ही हुये थे कि एक पारखी आदमी की नजर कुत्तों पर पड़ गई। वह विदेशी कुत्ते का उठाकर ले गया । देशी अपनी बारी के इंतजार मेंं आज भी उसी गंदे नाले के किनारे कूं....कूं करता है।
विदेशी कुत्ते को ले जाकर उसके मालिक को जो खुशी मिली उसकी तुलना कुबेर की दौलत मिलने से ही की जा सकती है। वह उसे गले लगाकर नाच रहा था । उसने ले जाकर उसे महंगे वाले साबुन से नहलाया । एक नौकर से कहकर उसके लिए बाजार से गोश्त मंगवाया । कुत्ते ने जीवन में पहली बार गोश्त का आनंद लिया । उसका मन मयूर नाच उठा । उसने जोर से भौं.....भौं की । उसकी आवाज ही बदल गई । कहां कल तक वह कूं....कूं किया करता था । अब भौं-भौं करने लगा । देशी कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे ही आया था लेकिन उसे अंदर नहीं आने दिया गया । वह हैरान था कि एक ही गंदे नाले से उठाये गये दो कुत्तों में यह वर्ग भेद किस लिए । यह उसके साथ क्या हो रहा है ? वह दरवाजे के बाहर ही बैठ गया । उसने भी तय कर लिया कि महलों वालों को सोने नहीं देगा । जब सबलोग आराम से सो जाते तो वह उच्च स्वर में रोने लगता। मालिक की नींद में खलल पड़ती और चौकीदार को डांट पड़ती । चौकीदार लाठी लेकर दौड़ता लेकिन गली के कुत्ते को पकड़ना इतना आसान काम नहीं था । विदेशी कुत्ते के अच्छे दिन आ गये थे । उसे नहलाने के लिए दो नौकर थे जो उसे रोज गर्म पानी से बाथ कराते थे । डॉग सोप लाया गया था । डॉग फूड लाकर उसे प्यार से पकाने के लिए महाराज था । उसका काम वैसे तो घर भर के लिए खाना पकाना था लेकिन डॉग के लिए विश्ोष व्यवस्था करता था । कहने की जरूरत नहीं कि वह कुत्ता अब डॉगी के नाम से जाना जाने लगा। यह कुत्ता कुत्ता ही रह गया ।
डॉगी के कुछ कोड अॉफ कंडक्ट भी थे । जब कोई मेहमान घर में आता तो मालिक उससे अंग्रेजी में बात करता था । पहले पहल तो उसे अंग्रेजी समझ में नहीं आई । बाद में उसने अनुमान से काम करना शुरू कर दिया । 'डॉट बार्क' मतलब भौंकना अभी नहीं है। बाद में जितना चाहे भौंक लो । 'सिट' मतलब बैठना । 'जम्प' मतलब कूदना । अर्थात वह पढ़ा-लिखा विदेशी डॉगी हो गया । अचानक एक दिन उसे पता चला कि उसकी नश्ल जर्मनी की है। उसका मालिक किसी मेहमान से परिचय करा रहा था कि डॉगी जर्मन नश्ल का है। सुबह होते ही डॉगी को उठा दिया जाता । रामु नाम का नौकर उसे बाहर ले जाकर पॉटी कराता था । युरिन भी वह बाहर ही करता । रामु करा दिया करता था । धीरे-धीरे अभ्यासवश उसे रामु को देखकर ही युरिन आने लगा । पौटी इत्यादि से निपट कर वह अपने मालिक के साथ गेट से बाहर जाता । तब उसे अपार खुशी होती । ताजी हवा में अपने मालिक के आगे वह दौड़ता चलता था । कद भी उसका काफी बड़ा हो गया था । यह कहना कठिन था कि कौन किसको लेकर जा रहा है। डॉगी मालिक को या मालिक डॉगी को । डॉगी के गले में एक महंगी बेल्ट थी जो शाायद इपोर्टेड चमड़े की थी । वह आम बोलचाल की भाषा में पट्टा कहलाता है । एक चेन थी जिसपर सोने का पानी चढ़ा था । डॉगी इन दो चीजों को देखकर बहुत खुश रहता था । दूसरे कुत्ताों के पास इतनी महंगी बेल्ट और चेन नहीं थे । उसकी खुशी का तब ठिकाना नहीं होता था जब एक लंबी सी कार में बिठाकर उसकी मालकिन उसे बाजार ले जाती थी । उसके लिए गेट खोलती । उसका चेन हाथ में लेकर दुकानों में जाती । उसके आनंद की सीमा नहीं थी । मालकिन उसे अपनी सहेलियों को दिखाती थी । वह झूम-झूम कर उनके कदम चूमता और दुम हिलाता ।
उधर देशी कुत्ता अपने चाल-चलन के कारण मार खाता और लोगों की दुत्कार सहता । उसकी सबसे बड़ी खराबी थी कि उसे भूख लगती थी । उसे खिलाने वाला तो कोई थो नहीं सो वह चोरी करने लगा । चोरी करने के दौरान उसने एक दो लोगों को काट भी लिया । उसे घर में ही घेरकर मारने की योजना बनाई जा रही थी । उसे घर में घेर भी दिया गया लेकिन वह दो चार लोगों को काट कर भाग आया । यानी वह काटना सीख गया । उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया । वह किसी को खाने-पीने का सामान ले जाते देखता तो जोर से गुर्राता । ले जाने वाला यदि डर गया तो फेंक कर भाग जाता । उसने अपना ठिकाना शुरू में तो एक पुलिया के नीचे ही बनाया था लेकिन बाद में वह मंदिर के बाहर बैठने लगा । वहीं भिखारी लोग भी रहते थे । उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता कि आदमी भी खाने के लिए हाथ फैलाता है। कम से कम उसे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता था । उसका तो मालिक भी कोई नहीं था । उसे दुम भी हिलाने की जरूरत नहीं पड़ती थी । वह बागी हो गया । उसे काटने की आदत हो गई । वह उम्मीद तो यही करता था कि भगवान के लिए ले जाने वाले प्रसाद में से उसे भी दिया जाये लेकिन ऐसा होता नहीं था । भगवान खाते नहीं हैं फिर भी उनके लिए लोग ले जाते थे । वह खाता था फिर भी उसे देने वाला कोई नहीं था । उसके काटने की ख्याति बड़ी तेजी से फैलने लगी । लोग सरकार को गालियां देने लगे जो कुत्तों पर नियंत्रण नहीं रखती । कुत्तों ने देश का चैन और हराम दोनों छीन लिया है। भक्तों की एक टोली तो एक शिष्टमंडल लेकर जिला कल्क्टर के पास भी गई । पुलिस उस आवारा कुत्ते को खोजने लगी । वह भागा-भागा घुमता । उसे भूख फिर भी लग जाती । वह बहुत कोशिश करता था कि इधर-उधर फेंकी गई सामग्री से ही उसका काम चल जाये लेकिन ऐसा हो नहीं पता था। भूख लगने पर वह भूल जाता कि लोग उसके दुश्मन हो गये हैं। वह गुर्राता-काटता और माल छीनकर भाग जाता ।
डॉग के अच्छे दिन बहुत अधिक दिन नहीं रहे । उसकी उम्र बढ़ रही थी । अब पहले की तरह चपलता उसमें नहीं रही । वह उतनी जल्दी दुम नहीं हिला पाता था । उसकी गुर्राहट में भी अब पहले वाली खनक नहीं रही । देह ढ़लने लगी । मालिक ने एक नया सुंदर , छबरैला पिल्ला खरीद लिया । उसकी मेहमानवाजी दिन-रात होने लगी । इसको कभी कोई एक रोटी दे न दे । जंजीर से बंधे बंधाये डॉगी की हालत खराब होने लगी । वह गुस्से में रहता । इतने दुलार के बाद यह अपमान !! एक दिन उसने उस नये पिल्ले को काट खाया । पिल्ला मर गया । मालिक को पांच हजार का नुकसान हो गया । उसने डॉग को मार कर घर से निकाल दिया । वह भूखा-प्यासा पुलिया के किनारे बैठा था । उधर कुत्ता भी लोगों और नगरपलिका की गाड़ी से बचता बचाता वहीं आकर बैठ गया । उसने डॉगी को पहचान लिया क्योंकि उसने बचपन से ही उस पर नजर रखी थी । बाद दुआ सलाम के जो वार्त्ता हुई वह इस प्रकार थी -
-' आदमी बहुत स्वार्थी जानवर होता है। उसे केवल अपनी खुशी से मतलब है। '
डॉग ने फिलासफी दी ।
-' हां , ये बात तो है लेकिन हमें भी रोटी के लिए अपनी आजादी दाव पर नहीं लगा देनी चाहिए । तुम्हारा नाम डॉग हो या श्ोरू रहोगे तो कुत्ते ही । उससे अच्छा तो मैं हूं कि बचपन से आजतक कुत्ता ही हूं । '
-'..........................- पर तुम्हें भी तो समाज का दुश्मन माना जाता है। सब तुम्हारी जान के पीछे पड़े हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि तुममे और मुझमें फर्क क्या है ? ' डॉग ने फिर दर्शन बघारा ।
-' सीधी बात है। तुम्हारे चमड़े का रंग मुझसे नहीं मिलता । मेरे पास तुम्हारी तरह बाल नहीं है। तुम बचपन में कितने रोबीले दिखते थे । मैं मरियल सा था । '
-' हां.....................पर भौंकने, गुर्राने, और काटने में तो तुम मुझपर बीस ही पड़ोगे । '
-' आदमी अंदर की नहीं बाहर की चमक देखते हैं। उन्हें आपस में भी इन्हीं बातों पर लड़ने की आदत है। हम तो फिर भी कुत्ते हैं ।
शशिकांत सिंह 'शशि'
जवाहर नवोदय विद्यालय , शंकरनगर, नांदेड़ महाराष्ट्र 421736
बहुत ही रोचक कहानी ...और करारा व्यंग्य .....
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