शिलान्यास जी का पत्र व्यंग्य आदरणीय नेताजी, सादर चरण वंदन मैं सकुशल बिल्कुल नहीं हूं। आप मजे में होंगे इसकी मुझे पूरी उम्मीद है। आप...
शिलान्यास जी का पत्र
व्यंग्य
आदरणीय नेताजी,
सादर चरण वंदन
मैं सकुशल बिल्कुल नहीं हूं। आप मजे में होंगे इसकी मुझे पूरी उम्मीद है। आप जिस नदी के किनारे मुझ बेचारे को छोड़ गये थे। मैं आज भी वहीं आपकी राह देख रहा हूं। आपको याद नहीं होगा। दिल्ली की आबोहवा दिमाग को कमजोर कर देती है। अधिक ए सी का सेवन भी याददाश्त को कमजोर कर देता है।
याद कीजिये, आज से चार साल पहले ,आप बिहार के चंपारण में आये थे। बूढ़ी गंडक पर पुल बनाने का ऐलान किया था। ऐलान तो खैर पिछले दस सालों से करते आ रहे थे। उस साल आपने पुल का शिलान्यास किया था। एक सुंदर सा पत्थर जिस पर आपका नाम खुदा था। मैं वही पत्थर हूं मालिक। बंदापररवर , आप तो मुझे भूल गये लेकिन मैं आपको नहीं भूला। मैं ही क्यों इस निर्वाचन क्षेत्र की जनता जिन्होंने आपको वोट दिया था। चाहकर भी नहीं भूल पाई। आप वह महान आत्मा हैं जिसने मेरे मस्तक का स्पर्श किया था। मैं फूलों से ढ़का था। मेरा चेहरा अंदर ही अंदर गुलनार हो रहा था। मैं खुश था कि मेरा नाम कल के अखबारों में आयेगा। 'बूढ़ी गंडक पुल का शिलान्यास' नेता श्री गगनराम जी के हाथों से सम्पन्न हुआ। मेरा मन पुलकित हो रहा था। भारत वर्ष में आम आदमी ही नहीं आम पत्थर भी नेताओं की निकटता चाहता है। उसके सारे काम आपलोगों के द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। यही कारण था कि आप के आने के बहुत पहले से ही आम आदमी जमा हो रहे थे। जो नहीं आना चाहते थे , उन्हें आपके एजेन्ट ला रहे थे। लोग साइकिल, बस , ट्रेक्टर , बैलगाड़ी सबपर लदे चले आ रहे थे। लोगों को लगने लगा था कि अब पुल बनकर ही रहेग। आज यदि शिलान्यास हो जा रहा है तो दो चार सालों में पुल बन ही जायेगा। यानी कि अगले चुनाव तक नदी को पार करने के लिए नाव की जरूरत खत्म हो जायेगी। उनके मन में कितनी गलतफहमियां थीं। आज यह सोचकर शर्मिंदा होना पड़ता है। आज तो कोई आवारा कुत्ता भी आकर प्राकृतिक क्रिया कर जाता है। उसकी गलती भी नहीं है। पुल आजतक बनी नहीं है। तैर कर जानवर भी जाते हैं।
महोदय, आपको याद होगा कि आपने पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर में क्या कहा था। सारे प्रश्न-उत्तर चूंकि मेरे सामने ही हुये थे इसलिए मुझे याद हैं। उतना भी पत्थर नहीं हूं कि भूल जाऊं। उन्होंने आपसे पूछा-
-' क्या आप अगले चुनावों के पूर्व इस पुल का निर्माण पूरा करा देंगे ?'
-' उसके बहुत पूर्व ही। मेरा वादा है कि दो सालों के अंदर ही लोग इस पुल पर चलने लगेंगे। '
-' आपकी सरकार यदि नहीं बनी तो आप पुल का निर्माण कैसे करा पायेंगे ?'
-' मैं अपने क्षेत्र की जनता के लिए राजनीति में हूं किसी दल या सरकार के लिए नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार मेरी ही बनेगी। आप लोग यदि साथ दे ंतो...........। '
पत्रकार ठहाके लगाने लगे। लोगों ने तालियां बजाई। आप मुदित हो रहे थे और मैं पुलकित। पत्रकारों ने मेरी भी फोटो खीचीं। मेरा माथे पर फूलों की लड़ी थी। आदमियों में शादी के लिए जाने वाले दुल्हे को जैसे तैयार करते हैं , वैसे ही मुझे भी सजाया गया था। लोग मुझे निहार रहे थे। मेरा रोम-रोम गदगद था। आपने मेरा चेहरा लोगों को दिखाया। मेरी छाती पर आपका नाम खुदा था, मोटे-मोटे अक्षरों में। आपने भाषण दिया। देशभक्ति के गाने बजाये गये। ढ़ोल वालों ने आपकी शान में ढ़ोल पीटे। लोगों ने तालियां बजायीं। अंत में , सारे लोग चले गये। रह गया मैं अकेला। अपने सपनों में खोया हुआ सा। मैं पुलकित था कि देश के एक महान नेता ने मेरा स्पर्श किया। मैं धन्य हो गया।
आप चुनाव जीत गये। आपसे अधिक खुशी मुझे हुई। मैं इंतजार कर रहा था कि अब आपके द्वारा भेजे गये लोग आकर काम शुरू करेंगे। ऐसा नहीं हुआ। दिन महीने गुजरते गये। आपको न आना था , न आये। मेरी निराशा बढ़ती गई। अंततः आज लाचार होकर यह पत्र लिख रहा हूं। आपको तो पता ही होगा कि यह पुल कितना आवश्यक है। यह बन जाये तो लोगों को नाव पर चढ़ने और जान गंवाने की नौबत नहीं आयेगी।
मैं बहुत कष्ट में हूं श्रीमान। कहने में भी कष्ट हो रहा है। इधर के कुत्ते बदतमीज हो गये हैं। उन्हें इतनी भी तमीज नहीं कि एक पत्थर जो कि नेता के द्वारा छुआ गया हो। उसके साथ इज्जत से पेश आयें। कहीं से भी आयेगे लेकिन मल-मुत्र विसर्जन के लिए मेरा ही चुनाव करते हैं। कौवे और कबुतरों की तो बात ही क्या है। उन्हें कौन समझाये कि बिट करने के लिए कहीं अन्यत्र जायें। उन्हें भी मालूम है कि मैं अकारण इस नदी के किनारे गाड़ा गया हूं। आपको नहीं आना हो तो एक पोस्टकार्ड डाल दें जिससे मुझे तसल्ली हो जाये। इधर एक अफवाह फैली है कि आप इस पुल के बनने ही नहीं देना चाहते। लोग कहते हैं कि आपमें और ठेकेदार में बन नहीं रही है। आप उससे पचास प्रतिशत हिस्सा मांग रहे है। वह तीस प्रतिशत ही दे रहा हे। यह ठेकेदार की हिमाकत है। वह जानता है कि आप सरकार में है। आप मंत्री है। आपके चाहने और न चाहने से ठेकेदार की सेहत पर बहुत फर्क पड़ेगा। वह अनाड़ी है। आप उसे क्षमा कर दें। आपके दुश्मन तो यह भी कहते चल रहे हैं कि आप इस पुल को बनने ही नहीं देना चाहते। आप नहीं चाहते कि इस पुल के रूप में आपके पास जो वोट मशीनरी है उसे आप खो दें। यह तो तय है कि हर साल बूढ़ी गंडक में बाढ़ आयेगी ही। आप उस बाढ़ में अपने लिए जुगाड़ बिठा लेते हैं। यह अकेला पुल आपको इतना कमा कर देता है जितना किसी का लायक बेटा भी नहीं कमायेगा। कमायेगा भी तो क्या जरूरी है कि वह अपने बाप को अपनी कमाई देगा ही। बाढ़ जब भी आती है तो पुल का उत्तरी छोर टूट जाता है। आप उसे आनन-फानन में बनवा देते हैं। बनवाने से आपको नाम भी मिलता है और नामा भी। दोनो ही आपके चुनाव में काम आ जाता है। यदि बाढ़ उतनी भीषण न हो तो केवल पुल से सटा रोड ही टूटता है। उसके मरम्मत के नाम पर भी आपको मोटी राशि मिल जाती है। कहने का तात्पर्य यह कि आपको लाखों का लाभ केवल पुल से ही हो जाता है। भला आप पुल क्यों बनवायेंगे।
मैं आपका दासनुदास हूं। आप जो चाहें निर्णय लें। मैं तो अपनी छाती पर आपका नाम ढ़ोता ही रहूंगा। इधर खबर उड़ी है कि आपके विरोधी चमनलाल जी भी पुल पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। उन्होंने तो सुना है कि एक नया शिलान्यास भी करने की ठानी है । यदि ऐसा हुआ तो मेरा क्या होगा। मैं तो कहीं नहीं रहूंगा। आम पत्थर होता तो किसी के मकान की नींव बन जाता। किसी बच्चे के गुलेल की गोली बन जाता। हो सकता है कि किसी मंदिर में डाल दिया जाता और भगवान बनने का अवसर प्राप्त हो जाता। आम आदमी और आम पत्थर में यही तो एक समानता है कि उसका आकाश खुला होता है। वह जमीन पर रहकर भी बंधा नहीं है। मेरे नसीब में तो वह भी नहीं है। मैं तो कहीं भी जाऊं , आपके नाम से ही जाना जाऊंगा। यदि दूसरा शिलान्यास का पत्थर आ गया तो मुझे उखाड़ कर नदी में फेंक देंगे। मैं नदी में फेंक दिया गया तो कोई बात नहीं। एक संभावना यह भी है कि मुझे धोबी उठाकर किसी घाट पर लिटा दे और कपड़े धोये। मुझे पीठ के बल लिटाकर यदि कपड़े धोयेगा तो आपका नाम मिट्ठी में मिल जायेगा। यदि मुझे छाती के बल लिटाकर कपडे़ पीटे तो आपके नाम को बट्ठा लगेगा। अब, आपको तय करना है कि आप आ रहे हैं कि नहीं । मैंने तो एक जागरुक पत्थर होने का फर्ज अदा कर दिया।
आपको यहां की राजनीतिक उठापटक से परिचित,
आपके द्वारा किया गया शिलान्यास.
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शशिकांत सिंह 'शशि'
जवाहर नवोदय विद्यालय , शंकरनगर, नांदेड़ महाराष्ट्र 421736
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