प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में न जाने कितनी घटनाएं घटती हैं, लेकिन प्रत्येक घटना अविस्मरणीय नहीं होती। जीवन की कुछेक घटनाएं ही ऐसी होती हें, ...
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में न जाने कितनी घटनाएं घटती हैं, लेकिन प्रत्येक घटना अविस्मरणीय नहीं होती। जीवन की कुछेक घटनाएं ही ऐसी होती हें, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। मेरे जीवन में भी कुछ ऐसा ही घटा है कि आपके साथ बांटने को मन करता है। घटना... होली के रंगीले त्यौहार से जुड़ी है। जब भी होली की बात चलती है या होली नज़दीक आती है तो यादें हरी हो जाती हंै।
कुछ वर्ष पहले की होली की ही बात है। होली के दिन ही मामाजी के लड़के की शादी थी। मैं असमंजस में था कि दोस्तों के साथ होली खेलूं या भाई की शादी में जाऊं। होली में जब दस दिन शेष रहे तो मैंने सोचा कि दोस्तों के साथ होली तो हर साल ही खेलते हैं। भाई की शादी कोई रोज-रोज थोड़े ही होती है और अंत में यही निर्णय किया कि इस बार होली नहीं खेलूंगा। जब यह तय हो गया तो मैं शादी में जाने की तैयारी करने लगा और एक कोट-पेण्ट का कपड़ा लेकर टेलर के पास पहुंचा। टेलर अपने काम में बहुत ही ज्यादा व्यस्त था, इस कारण उसने कपड़े शादी वाले दिन ही देने का वादा किया। मैंने उसे बहुत कहा कि शादी से एक दिन पहले कपड़े तैयार कर दो, लेकिन टेलर नहीं माना और उसने विश्वास दिलाते हुए मुझे आश्वस्त किया। मुझे भी कपड़े वहीं से सिलवाने थे। अत: मैं आश्वस्त होकर घर आ गया। इंतजार करते-करते दसवां दिन आ गया। उस दिन दोपहर बारह बजे भाई की बारात रवाना होनी थी। इसी दिन होली और इसी दिन बारात रवानगी। मुझे डर था कि मेरे दोस्त मुझे होली खेलने के लिए अपनी टोली में जबरदस्ती न शामिल कर लेवें। मैंने देखा कि मेरे हम उम्र लड़कों की टोलियां, रंग से सराबोर चेहरे, चंग बजाते, नाचते-गाते झुण्ड इधर-उधर गलियों से गुजर रहे थे। मेरा दिल धड़क रहा था कि दोस्तों का हुजूम आ गया तो मैं क्या करूंगा। टेलर मास्टर को फोन किया तो उसने आश्वस्त किया कि सूट तैयार है बस, सिर्फ प्रेस करनी बाकि है। सूट यहीं दुकान से पहन कर सीधे बारात में शामिल हो जाना। टेलर की दुकान नज़दीक ही थी। मैं दुकान की ओर चल पड़ा। जाते-जाते मैंने घर पर मां से कह दिया कि मेरे बारे में पूछे तो कह देना कि वह भाई की शादी में चला गया है और कल वापस आएगा।
मैंने देखा कि लाल, पीले, हरे, काले रंग से पुते बच्चे और बड़े... सब उधम मचा रहे थे। होली की रंग और गुलाल से गलियां भरी पड़ी थी। मैं डरते-डरते टेलर की दुकान की ओर बढ़ा कि कोई रंग ना डाल दे या फिर दोस्तों की टोली ना आ जाए। दोस्तों का तो इतना भय था कि कहीं भाई की शादी में जाना कैन्सिल न हो जाए। टेलर की दुकान पहुंच कर मैंने राहत की सांस ली। टेलर मास्टर ने बताया कि देख लीजिए सूट तैयार है। सिर्फ प्रेस ही बाकि है। बस बिजली आते ही दो मिनट में सूट तैयार। इतना कह कर उसने बिजली वालों को भद्दी सी गाली दी। इसी बीच दूल्हे का फोन आया। उसने मुझे बताया कि अपने दोस्तों से सचेत रहना।
मैंने भैया से कहा कि मैं टेलर की दुकान में हूं और यहीं से बारात में शामिल हो जाऊंगा। आप गाड़ी दुकान पर ही भिजवा देना। इतना कह कर मैंने फोन काट दिया और फिर कभी टेलर मास्टर की ओर देखते तो कभी बुझी हुई ट्यूब लाइट की ओर। उस दिन मुझे भी बिजली वालों पर बहुत गुस्सा आ रहा था। बारह बजने वाले थे और बिजली अब भी नहीं आई थी। टेलर मास्टर ने बिजली वालों को एक-दो और भद्दी गालियां निकाली। मैं बैठा-बैठा अ$खबार की एकाध न्यूज़ पढ़कर समय काटना चाह रहा था। लेकिन मन उचाट सा हो रहा था। इन्तज़ार करते-करते अब एक बज गए थे। इसी बीच मोबाइल पर दूल्हे भैया के चार बार फोन आ चुके थे। आखिरी फोन में भैया ने बताया कि वे अब रवाना हो चुके हैं। तुम्हारी गाड़ी बस स्टैण्ड के पास खड़ी है। ट्रैफिक व्यवस्था के कारण गाड़ी टेलर मास्टर की दुकान तक नहीं आ सकती। तभी गाड़ी के ड्राइवर का फोन आया। बोला- डीडी भैया, भगतसिंह चौक पर ट्रेफिक पुलिस वाले खड़े हैं। आप बस स्टैण्ड पर पहुंच जाओ। गाड़ी में तीन लोग और भी हैं। जल्दी करो, बारात रवाना हो चुकी है। बस, अपने ही बचे हैं।
बिजली अब भी नहीं आई थी। टेलर मास्टर ने मेरी मजबूरी समझी। आखिर मैंने दबाव बनाते हुए उससे रिक्वेस्ट की तो उसने कोयले वाली प्रेस से जैसे-तैसे सूट के प्रेस मार दी। मैंने कोट-पेण्ट पहने और अपने आपको आदमकद शीशे में निहारा। सूट वास्तव में जम रहा था। टेलर मास्टर ने भी सूट की भरपूर प्रशंसा की। तभी मोबाइल फोन की घण्टी बजी। मैैंने जैसे ही स्विच ऑन किया तो दोस्त की आवाज़ सुनाई दी- डीडी, कहां हो भई? हम सबने घर के तीन चक्कर लगा लिए। होली के मौके पर कहीं ब्लैक एण्ड व्हाइट ही घूम रहे हो या घर में छिपे बैठे हो? मैंने कहा- मैं यहां से 50-60 किलोमीटर दूर जा चुका हूं। मामाजी के लड़के की शादी जो है। इतना कह कर मैंने फोन काट दिया और टेलर मास्टर की दुकान से बस स्टैण्ड की तरफ रवाना हुआ। होली खेलने वाले लोग अपने-अपने झुण्ड बना कर अब भी नाच-गा रहे थे। सड़क पर बिखरा रंग इस बात का गवाह था कि लोगों ने खूब जम कर होली खेली है। मन तो मेरा भी था, लेकिन उस दिन मेरे लिए भाई की शादी में जाना ज्यादा जरूरी था। मैं यही सोचते-सोचते बस स्टैण्ड की तरफ बढ़ रहा था। तभी 15-20 लड़कों का एक झुण्ड मुझे मेरी तरफ आता दिखाई दिया। मैं भाग पर बस स्टैण्ड पहुंचना चाह रहा था, लेकिन मैं दौड़ता, तब तक उन्होंने मुझे घेर लिया। सबके रंग-बिदरंग चेहरे और कपड़े लीर-लीर....।
क्यों बेटा, तुम तो भाई की शादी में 50-60 किलोमीटर दूर जा चुके थे। यहां तुम थोड़े ही हो, ये तो तुम्हारा भूत है। मुझे काटो तो खून नहीं। तभी दूसरा बोला- सत्यवादी जी, होली नहीं खेलनी थी तो पहले बता देते। दोस्तों से झूठ बोलते हो। शर्म नहीं आई। सारे दोस्त अपनी-अपनी फब्तियां कस रहे थे। कोई रंग नहीं डालेगा। मैं साफ कह देता हूं। मैं बोला।
तभी दूसरा दोस्त बोला- तुम हमसे झूठ बोले थे। उसी का परिणाम है ये। तुम्हें कोट-पेण्ट चाहिए या दोस्त? बोल...... किसकी जरूरत है? यह कहते हुए उसके साथ-साथ सभी दोस्तों ने मुझे बाहों में भर लिया। दोस्तों का असीम प्यार पाकर मैं सब कुछ भूल गया था, लेकिन अब जब भी होली आती है तो यह घटना जरूर याद आती है।
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