29 अगस्त गणेशोत्सव पर विशेष... गणपति का हर स्वरूप आत्मविश्वास और समृद्धि का द्योतक भारत वर्ष के विभिन्न प्रदेशों की धर्मप्रिय जनता पर्...
29 अगस्त गणेशोत्सव पर विशेष...
गणपति का हर स्वरूप आत्मविश्वास और समृद्धि का द्योतक
भारत वर्ष के विभिन्न प्रदेशों की धर्मप्रिय जनता पर्वों की शुरूआत के साथ बुद्धि के देव भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव की तैयारी में जुटी हुई है। सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूजा का अधिकार प्राप्त भगवान गणेश ने अपनी तीव्र बुद्धि के चलते ही अन्य देवताओं को प्रथम पूज्य प्रतियोगिता में पीछे छोड़ दिया था । किसी भी पूजा और किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में गणाधिपति भगवान गणेश की पूजा का प्रावधान ऐसे ही नहीं बना दिया गया है । प्रथम पूजा के पीछे सबसे बड़ा उद्धेश्य यही है कि रिद्धि-सिद्धि देने वाले गणेश सुख, समृद्धि, वैभव और आनंदित जीवन देने के साथ ही प्रणियों के कष्टों को हरने वाले भी हैं । भगवान गणेश के अष्ट विनायकी रूप के दर्शन और नाम्मोचारण के साथ दिन की शुरूआत सुफल देते हुए हर प्रकार के कंटक को मानवीय जीवन से दूर रखता है । यही कारण है कि अपनी कला को आकार देने से पूर्व कलाकार गणाध्यक्ष को स्मरण करते हैं। विद्याध्ययन से पूर्व विद्यार्थी और शिक्षण संस्थाएँ उन्हें अपने हृदय मे उतारते हैं । किसी भी प्रकार के बड़े विनियोग को मूर्त रूप देने से पूर्व उद्योगपति अथवा व्यापारी भगवान गणेश के आशीर्वाद के लिए विनती अवश्य करते हैं। भगवान गणेश के बाहर नाम यथाः वक्रतुण्ड, एकदन्त,कृ ष्णपिंगाक्ष, गजवस्त्र,लंबोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति तथा गजानन का स्मरण मात्र कष्टों को दूर भगा देता है।
-: शारीरिक रचना मानवीय उद्धार के लिए :-
गणेश जी का स्वरूप और शारीरिक रचना हर प्रकार से अपने आराधकों को ऊर्जा और शक्ति के साथ बुद्धि-विद्या देने वाली मानी जाती है। गणेश जी का भगवा वस्त्र धारण करने वाला चित्र अथवा सूर्य की उदय की स्थिति में लालिमा का रंग लिए मूर्ति नयी ऊर्जा और उज्ज्वल मन से काम करने की प्रेरणा प्रदान करता है। उनके मुख में बाहर की ओर दिखायी देने वाला एक दन्त दक्षता का प्रतीक है जो एक ही बार में किसी भी काम की सफलता की निशानी माना जाता है। लम्बोदर का बड़ा सिर व्यापक ढंग से किसी भी बात को समझने को प्रोत्साहित करता है। इसी तरह सूप की तरह बड़े-बड़े कान व्यापक श्रवण शक्ति के साथ ग्रहण शक्ति को पुष्ट करते हैं। गणेश जी की लंबी सूंड को दूर-दर्शिता के साथ काम करने की घोतक माना जाता है। चार हाथ किसी भी कार्य को चार सूत्रों से करने की अलग-अलग पद्धति को दर्शाते हैं। गणेश जी के हाथ में धारण किये हुए पाश भक्तों एवं अराधनों को अपनी वृत्तियों को बांधकर पूरी ऊर्जा अपने काम में लगाने की प्रेरणा प्रदान करते है। इसी तरह अंकुश किसी भी काम को समय सीमा में पूरा करने का संदेश देता है। प्रथम पूज्य गणेश जी का वरमुद्रा में उठा हाथ हर काम को आत्मविश्वास के साथ करने की प्रेरणा प्रदान करता है। इसी प्रकार बड़ा पेट किसी अन्य के विचारों अथवा उसकी बुराई को पचा लेने की अमोघ शक्ति का उद्धरण है। गणेश जी को प्रिय मोदक लड्डू सात्विकता के साथ मनोस्थिति का निर्माण कर काम में जुटे रहने की अपार शक्ति का प्रेरक है। उनकी सवारी मूषक मनुष्य के चंचल मन को एकाग्रता प्रदान कर प्रत्येक कार्य के प्रति मन को स्थायित्व प्रदान करने का काम करता है।
-: विघ्न विमुक्ति के लिए मंत्र की महत्ता :-
इस पापमय संसार में विघ्नों की कमी नहीं है, जो नर-नारी अपने जीवन में आने वाले विघ्नों से छुटकारा पाना चाहते हैं उनहें विघ्न विनायक श्री गणेश जी के इस मंत्र का जप करना चाहिए :-
परं धाम परं ब्रम्ह परेशं परमीश्वरम् ।
विघ्नविघ्नकरं शान्तं पुष्टं कान्तमानन्तकम् ।।
सुरासुरेन्द्रेः सिद्धेन्द्रेः स्तुतम् स्तौमी परात्परम् ।
सुरपद्मदिनेशं च गणेशं मंगलायनम् ।।
इदं स्तोत्रं महापुण्यं विघ्नशोकहरं परम् ।
यः पठेत प्रातरूथाय सर्वविघ्नात् प्रमुच्यते ।।
अर्थात् जो परम् धाम, परब्रम्ह, परेश, परम्, ईश्वर, विघ्नों के विनायक, शान्त, पुष्ट, मनोहर और अनन्त हैं। प्रधान सुर, असुर और सिद्ध जिनका स्तवन करते हैं। जो देवरूपी कमल के लिए सूर्य और मंगलों के लिए आश्रय स्थान हैं, उन परात्पर गणेश जी की मैं स्तुति करता हूँ। यह उत्तम स्तोत्र महान पुण्यमय विघ्न और शोक को हरने वाले हैं। जो भी नर-नारी प्रातः काल इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह संपूर्ण विघ्नों से विमुक्त हो जाता है।
-: विश्व भर में मनने लगा गणेशोत्सव पर्व :-
एकदन्त मूषक वाहन भगवान गणेश महज भारतवर्ष के देव नहीं हैं वरन् विश्व विधाता के रूप में अब संपूर्ण भारत वर्ष सहित विदेशी धरती पर भी विराजने लगे हैं। यह बड़ा सुखद आश्चर्य है कि प्रथम पूज्य गणपति बप्पा की उपासना, अराधना दुनिया के कई देशों में की जाती है। इस संबंध में जानकारी मिलती है कि श्रीलंका के हिन्दु देवालयों में भगवान गणेश का पूरा आवरण बदला जाता है, उन्हें नवीन वस्त्र प्रदान किये जाते हैं। स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाले फल-फूल उन्हें अर्पित कर भक्तों द्वारा आस्था का सैलाब उमेड़ा जाता है। इसी तरह मलय प्रदेश में भगवान गणेश जी को गज्जू नाम से संबोधित किया जाता है। भगवान गणेश के जन्म दिन भाद्रपद चतुर्थी को मंदिरों में गणपति मंत्रोच्चार कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। सुमात्राद्वीप में भी गणेश पूजा का इतिहास मिलता है। कहा जाता है कि सुमात्रा का हर घर परिवार गणेश चतुर्थी के दिन गाय के गोबर से लीपा जाता है। साफ सुथरा वातावरण भगवान के आगमन के लिए तैयार करने लोग दसों दिन पूर्व से जुट जाया करते हैं। घरों के मुख्य द्वार को वृक्षों के पत्तों और फूलों से आकर्षक रूप प्रदान किया जाता है। शुभ तिथि चतुर्थी के आगमन पर मिट्टी की आकर्षक प्रतिमा स्थापित की जाती है। यहाँ एक विशेषता यह देखने में आयी है कि चौबीस घण्टे लगातार पूजन और उत्सव के बाद गणेश प्रतिमाओं को पवित्र जलाशयों में प्रवाहित कर दिया जाता है। भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल में गणपति को सूर्य विनायक, सूर्य गणेश अथवा हेरंब नाम से संबोधित कर पूजा जाता है। हेरंब गणेश की प्रतिष्ठित मूर्ति के पांच सिर और दस हाथ दिखाए जाते है। इसी तरह यूनान के अत्यंत प्राचीन ग्रंथों में विद्या के प्रदाता भगवान लंबोदर का स्वरूप मानस की प्रतिकृति में मिलता है, उक्त मूर्ति में सात सिर और एक सूंड दिखाई जाती है।
-: सामाजिक सौहार्द का प्रतीक पर्व :-
गणेश जी की पूजा का उत्सवी आयोजन अथवा गणेशोत्सव पर्व केवल धार्मिकता का प्रतीक नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द और भाईचारे को मजबूती देने वाला सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाए का संचार करने वाला उत्सव है। इस पर्व पर हर प्रकार की कला में पारंगत लोगों को अपनी कला प्रदर्शन का बेहतर अवसर प्राप्त होता है। मिट्टी से भगवान का स्वरूप गढ़ने वाले मूर्तिकार की कला का नमूना हम गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक देखते हैं। इतना ही नहीं जिस पण्डाल में गणेश जी को स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है उसकी सजावट करने वालों की कला दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर कला की तारीफ करने विवश कर देती है। पण्डालों में नयानाभिराम चलित झांकियाँ भी उन्हें बनाने वाले तकनीकी विशेषज्ञों की पारंगता की भूरि-भूरि प्रसंशा से नहीं चूकती है। विद्युत झालरों की कलात्मक सजावट आंखों को चौंधियाने के साथ ही जीवन में प्रकाश का संदेश दे जाती है। हर प्रकार के काम करने वाले लोगों को अपनी कला के माध्यम् से आय का अवसर देने वाला यह पर्व गरीब से लेकर अमीरों तक के परिवारों में खुशियों का संचार कर जाता है। विसर्जन की रात और उससे पहले दस दिनों के आयोजनों में लोककला से लेकर लोक संस्कृति का परिचय देने वाली प्रस्तुतियाँ लोक कलाकारों को नया जीवन देने का काम कर रही है।
-: राजस्थान में बन रहा खड़े गणेश जी का भव्य मंदिर :-
हिन्दुस्तान का ऐसा कोई प्रदेश नहीं जहां प्रथम पूज्य एवं विघ्न विनाशक भगवान गणेश जी का मंदिर न हो। लालबाग का बादशाह से लेकर सिद्धी विनायक मुम्बई के सिद्ध मंदिरों की चर्चा केवल देश ही नहीं वरन् विदेशों में भी हो रही है। अब इसी क्रम में राजस्थान के कोटा शहर में गबाड़ी क्षेत्र में भगवान श्री गणेश जी का मंदिर खड़े गणेश जी का मंदिर के नाम पर भव्यता लेने जा रहा है। अगस्त माह के दूसरे सप्ताह में जब मैं कोटा गया तो उस परमधाम के दर्शन का सु-अवसर प्राप्त हुआ। मंदिर के गर्भगृह में विराजित गणेश जी की प्रतिमा लगभग 5-6 फीट ऊंची है। मंदिर का गर्भगृह और दर्शनार्थी दीर्घा के चारों ओर पिण्डलियों तक पानी भरा था। जानकारों से पूछने पर पता चला कि मंदिर 1992 में बनाया गया था जिसे अब भव्यता दी जा रही है। कुछ कमरों तथा धर्मशाला का निर्माण दानदाताओं द्वारा कराया भी जा चुका है, जहां भजनों और कीर्तनों का दौर लगातार जारी है। गर्भगृह में ध्वज पताका सहित मंदिर का गुम्बज गगनचुम्भी ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है। मंदिर निर्माण में कुल 32 हजार टंकित पत्थरों को लगाया जाना है। तीन वर्गफीट के एक पत्थर की लागत 1800 रू. दानदाताओं के लिए निर्धारित की गई है। उक्त मंदिर का निर्माण तीन चरणों में अक्षरधाम की तर्ज पर किया जाना बताया गया है। वर्तमान में प्रथम चरण का कार्य जारी है। मंदिर ट्रस्ट के पास लगभग 5-7 एकड़ जमीन है जहां बाग-बगीचों सहित अन्य सौन्दर्यीकरण का कार्य चरणबद्ध रूप में पूरा किया जाना है। निःसंदेह राजस्थान के कोटा शहर में बनने जा रहा गणेश जी का मंदिर अपने आप में अद्वितीय होगा।
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
dr.skmishra_rjn@rediffmail.com
COMMENTS