राजस्थानी बाल एकाँकी - म्हारा गुरूजी दीनदयाल शर्मा अेकांकी रा भागीदार (नौ स्यूं ले’र ते’रा सालतांईं रा टाबर) महाब...
राजस्थानी बाल एकाँकी -
म्हारा गुरूजी
दीनदयाल शर्मा
अेकांकी रा भागीदार
(नौ स्यूं ले’र ते’रा सालतांईं रा टाबर)
महाबीर प्रसाद (गुरूजी) कासी, नंदू, रामलाल, दलीप, संदीप, संजय, इंदराज, सरवण अर सोहन (पढणियां टाबर)
मंच रै ऊपर लारलै पड़दै माथै इस्कूल रै नांव रौ बोरड़ लागर्यौ है अर मंच माथै अेक
कुर्सी है। अेक दरी बिछ्यौड़ी है। दरी माथै नौ बस्ता पड़्या है। बठै आठ टाबर बैठ्या है। जिण
मांय दो जणां पढै, दो जणां टीवी सीरियल री बातां करै। दो जणां सांप सीढ़ी अर दो जणां लूढौ
खेलै।
इस्कूल रौ अेक छोरौ इंदराज टण.....टण.......टण...... तीन घण्टा बजा’र भाज्यौ-भाज्यौ कक्षा
में आवै। थोड़ी ताळ पछै मंच माथै गुरूजी आवै। कीं छोरां रौ ध्यान गुरूजी कानी जावै। पछै
खेलणियां छोरा फटाफट आपरौ समान सांवटै अर बस्तां नै ठीक करै।
गुरूजी रै धोळा गा’भा। धोळा बाळ अर धोळी मूंछ्यां। आंख्यां माथै चस्मौ। गुरूजी
इन्नै-उन्नै देखै अर आपरौ चस्मौ ठीक करतां थकां कुर्सी कानी जावै। गुरूजी री आदत है कै
जद भी बात करै, आपरौ चस्मौ जरूर ठीक करै। बां रै कक्षा मांय आंवतांईं सगळा टाबर खड़्या
हो ज्यावै।
गुरूजीः (कुर्सी माथै बैठतां थकां) बैठो! (चस्मौ ठीक करतां थकां) हिन्दी री किताब का’डौ रै
छोरौ।
संजयः (खड़्यौ हो’र किताब देवै) ल्यो गुरूजी। (संजय आपरी जिग्यां बैठै)
गुरूजीः (किताब नै इन्नै-बीन्नै उळ्ट-पळ्ट’र देखै) आज कुणसौ पाठ पढाणौ है रै छोरौ ?
सगळाः सातवौं जी! (छोरा आप-आपरी पोथ्यां का’डै अर तीन छोरा दूजां री पोथ्यां मांय देखै)
गुरूजीः (चस्मौ ठीक करतां थकां) जिकौ किताब ले’र नीं आयौ.... बौ’ खड़्यौ हो ज्यावौ। (दो
छोरा खड़्या हो ज्यावै) क्यूं रै छोरौ, किताब क्यूं कोनीं ल्याया रै ? (छोरा नीचीनै देखै) चालौ
मुरगा बणौ।
दोनूंः (अेक साथै) का’ल लिआवांगा जी।
गुरूजीः आज क्यूं कोनी ल्याया ?
दोनूंः भूलग्या जी।
गुरूजीः रोटी खावणी तो को भूलौ नीं। का’ल जरूर ले’र आइयौ। जे नी ले’र आया तो म्हूं
कूट-कूट’र मूंज बणाद्यूंला....... चालौ बैठौ। (दोनूं टाबर आपसरी मांय मुळक’र बैठज्यै) सगळां
सातवौं पाठ काड लियौ कै रै?
सगळाः (अेक साथै) हां जी।
गुरूजीः तेरी किताब संजिया ?
संजयः (मुळक’र बैठ्यौ-बैठ्यौ’ई) थां कन्नै है जकी किताब म्हारी ई है जी।
गुरूजीः (चस्मौ ठीक करता थकां मुळक’र पाठ सरू करै) गांधी जी को.... अरै कासी, तूं आज दूध्
ा कोनी ल्यायौ रै ?
कासीः (खड़्यौ हो’र) गुरजी, टोगडि़यौ चूंगग्यौ जी!
गुरूजीः ठीक है..... सिंझ्या नै ले’र आई। बैठ। (कासी बैठै अर गुरूजी पाठ सरू करै) गांधी जी
को..... तूं नंदिया, ट्यूसन आळा पीसा ल्यायौ है के ?
नंदूः (बैठ्यौ-बैठ्यौ’ई) गुरजी, मेरा पिताजी गांव गयौड़ा है जी।
गुरूजीः ठीक है.... गांव स्यूं आंवतांईं ट्यूसन रा पीसा जरूर ले’र आई भलौ।
नंदूः लिआऊंगा जी।
गुरूजीः (पोथी पढै) गांधी जी को.... अरै रामला।
रामलालः (खड़्यौ हो’र) हां गुरजी।
गुरूजीः तूं ट्यूसन पढणनै कद आ सी?
रामलालः गुरजी मेरी मां कै’वै कै ट्यूसन तो पढास्यां.... पण पीसा कठैऊं देवांगा जी ?
गुरूजीः पढैगो..... तो लाडी पीसा तो देणा’ई पड़सी..... हां तो ट्यूसन पढणनै कद स्यूं आवै तूं
?
रामलालः गुरजी, मेरै बापूजी नै पूछ’र बता द्यूंगा जी।
गुरूजीः ठीक है..... बैठज्या.... (पोथी पढै) गांधी जी को..... अरै दलीपिया।
दलीपः (खड़्यौ हो’र) हां गुरजी।
गुरूजीः अरै म्हूं सुण्यौ, कै तूं सा’बराम जी कन्नै ट्यूसन लागग्यौ। आ बात साची है कांईं ?
दलीपः हां गुरजी, परस्यूं’ई लाग्यौ हूं जी।
गुरूजीः तूं फेर हिन्दी मांय कियां पास होसी लाडी ?
दलीपः थारै कन्नै भी पढ ल्यूंगा जी।
गुरूजीः पास होवणौ है तो पढ लेई..... नीं तो पास री मेरी कोई गारण्टी नीं है..... बैठ। (पोथी
पढै) गाध्ंाी जी को...... संदीप, तूं लाडी काल खेत स्यूं गवारफळी ल्याई भलौ।
संदीपः (बैठ्यौ-बैठ्यौ’ई) चंगा जी।
गुरूजीः अर साथै पांच-च्यार काचर भी घाल ल्याई..... भलौ।
संदीपः (बैठ्यौ’ई संगळियां कानी मुळक’र) लिआऊंगा जी।
गुरूजीः तैं तो काल भी कै’यौ...... ले आस्यूं..... पछै ल्यायौ क्यूं नीं ?
संदीपः (नीची नै देख’र) काल तो गुरजी, भूलग्यौ जी।
गुरूजीः चा’ पीणी तो कोनी भूलै! अबै नां भूली।
संदीपः (मुळक’र) चंगा जी।
गुरूजीः ईयां करी....... जे काचर नीं होवै नीं...... तो अेकाधौ काकडि़यौ’ई घाल ल्याई..... भलौ।
संदीपः (मुळक’र) चंगा जी।
गुरूजीः (पोथी पढै) गांधी जी को.... अरै संजिया।
संजयः हां गुरजी।
गुरूजीः तूं लाडी आधी छुट्टी मांय कीं’ लस्सी ले’र आई, भलौ।
संजयः गुरजी, लस्सी तो अबै खेत लेग्या दिसै जी।
गुरूजीः अठै बैठयै नै’ई कियां दिस्यौ! तूं महाभारत आळौ संजय है कांइं! जिकौ अठै बैठयौ-बैठ्यौ’ईर्््
बतावै।
संजयः घरां होसी तो लिआऊंगा जी !
गुरूजीः थारै नीं होवै नीं..... तो इन्नै-बीन्नै स्यूं मांग ल्याई।
संजयः गुरजी, मांग’र तो कोनी ल्याऊं जी।
गुरूजीः क्यूं रै ?
संजयः गुरजी, मेरी मां कै’वै कै मांगै जकौ मंगतौ होवै जी।
गुरूजीः चल बळन दे, तूं नां ल्याई। (पोथी पढै) गांधी जी को..... अरै इंदराज।
इंदराजः (खड़्यौ हो’र) हां गुरजी।
गुरूजीः तैं आजकाल बर्फ ल्याणी कियां बंद कर दी रै छोरा ?
इंदराजः गुरजी, बीजळी कम रै’वै जी। इण कारण बर्फ जमै’ई कोनी जी।
गुरूजीः बर्फ नीं जमै..... तो लाडी ठण्डौ पाणी’ई ल्या दिया कर। गुरूजी री आतमा ठारैगौ..... तो
गुरूजी भी तेरौ ध्यान राखसी।
इंदराजः ल्याद्यूंगा जी।
गुरूजीः (पोथी पढै) गांधी जी को...... सरवणियां, तेरै आजकाल के होग्यौ रै?
सरवणः कियां गुरजी ?
गुरूजीः बेटी रा बाप..... बीस दिनां स्यूं म्हूं देखर्यौ हूं, कै तंूं दूध रौ छांटौ’ई नीं ल्यावै।
सरवणः (खड़्यौ हो’र) गुरजी, म्है अबै दूध बेचण लागग्या जी।
गुरूजीः दूध कित्तौ’क देवै रै गायां ?
सरवणः टैम रौ च्यारेक किलौ देवै जी।
गुरूजीः अर बेचौ कित्तौक हो?
सरवणः (मुळक’र) टैम रौ पांच किलो बेचद्यां जी।
गुरूजीः वा भई वा’..... कीं’ तो घरां भी राखता होला ?
सरवणः घरां तो गुरजी..... आधौ अेक किलौ राखां जी।
गुरूजीः चल कोई बात नीं..... तूं ईंयां करी..... घरां दूध नीं होवै, तो चा’ बणा ल्याई। तेरी मा नै
कै’ देई..... कै म्हारा मोटौड़ा गुरज्यां रौ सिर फूटै।
संजयः (बैठ्यौ’ई) गुरजी, सरवणियै री मा थानै अेक दिन लिगतौ कै’वैई जी।
सरवणः कद कै’यौ रै?
संजयः बीं दिन कै’यौ नीं!
सरवणः कद ?
गुरूजीः संजय, इन्नै आ बेटा।
संजयः (गुरूजी रै कन्नै जावै) गुरजी कै’यौ जी।
गुरूजीः मन्नै बता, कांई बात है ?
संजयः (संकतौ-संकतौ) गुरजी, म्हूं है नीं...... अेक दिन सरवणियै रै घरां खेलण गयौ, जद है नीं.
.... जद गुरजी, ईं’री मा कै’यौ कै थारौ मोटौड़ो मास्टर है नीं महाबीर जी, भौत लिगतौ है !
गुरूजीः हैं रै सरवणियां ! तेरी मां मेरै खातर ईंयां कै’यौ रै ?
सरवणः नां गुरजी।
संजयः गुरजी, कै’यौ जी !
सरवणः कद कै’यौ रै ?
गुरूजीः स’ई-स’ई बता संजिया, ईंरी मा कै’यौ, का तूं तेरै कानीऊं जोड़ै।
संजयः गुरजी, कै’यौ जी.... म्हूं झूठ कोनी बोलूं जी...... हड़मान जी री सौगन जी।
गुरूजीः ठीक है बैठौ। (संजय अर सरवण दोनूं बैठै) अरै संजिया ?
संजयः (बैठ्यौ’ई) हां गुरजी।
गुरूजीः दूध तूं ले’र आई भलौ...... सरवणियै नै कोनी ल्याणौ।
संजयः (मुळक’र) चंगा जी।
गुरूजीः (पोथी पढै) गांधी जी को..... तूं कांई खुसर-फुसर करै रै सोहनियां ?
सोहनः (बैठ्यौ’ई) गुरजी, म्हैं थारै खातर आज टींडस्यां ल्यायौ जी।
गुरूजीः कठै है रै टींडस्यां ?
सोहनः (खड़्यौ हो’र) बै’ तो म्हूं रमेश गुरजी नै दे दी जी।
गुरूजीः तो ठीक है.... हिन्दी मांय तन्नै रमेश गुरजी’ई पास करैगा।
सोहनः गुरजी, आधी छुट्टी मांय थानै भी ल्याद्यूंगा जी।
गुरूजीः टींडस्यां रै’ण देई, बणी बणाई सब्जी लियाई। आज आधी छुट्टी पछै जीम लेस्यां। (पोथी
पढै) गांधीजी को..... (हाथ घड़ी कानी देख’र) अरै इंदराज।
इंदराजः हां गुरजी।
गुरूजीः जा, आधी छुट्टी री घंटी लगा दे। (इंदराज भाज्यौ-भाज्यौ जावै अर घण्टी बजावै)
टण-टण-टण-टण-टण-टण..... (आधी छुट्टी री घण्टी बाजै। टाबर गुरूजी कानी देख’र
पोथ्यां नै आपरै बस्तै मांय घालै)
संजयः (खड़्यौ हो’र) गुरजी जावां जी ?
गुरूजीः (संजय नै किताब देंवतां थकां) जाऔ। (गुरूजी कुर्सी स्यूं खड़्यां हो’र) बाकी पाठ का’ल
पढास्यां।
- दीनदयाल शर्मा, बाल साहित्यकार, हनुमानगढ़ जं. 335512 , राजस्थान.
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