गुमनाम पिथौरागढ़ी २१२२ सच कहेगा तो मरेगा दुश्मनी से घर जलेगा झूठ यारों सर धुनेगा हाल दिल का कब सुनेगा कोठरी दिल गम पलेगा दिल...
गुमनाम पिथौरागढ़ी
२१२२
सच कहेगा
तो मरेगा
दुश्मनी से
घर जलेगा
झूठ यारों
सर धुनेगा
हाल दिल का
कब सुनेगा
कोठरी दिल
गम पलेगा
दिल है दर्पण
सच कहेगा
साथ तू है
जग जलेगा
ग़ज़ल
2122 2122 222
चाँद सूरज देख के ललचाते हैं
हाथ बच्चे के जो जुगनू आते हैं
बात पूरी हो बहर में कैसे अब
भाव जोड़ू रुक्न खो से जाते हैं
आजमाता हूँ परों को जब भी मैं
हर तरफ से ही निशाने आते हैं
ऐब तो हैं यार मेरे हमजोली
रूठ जाऊं घर मनाने आते हैं
तेरा ख़त है इत्र की शीशी कोई
लफ्ज़ सारे खुश्बू ही बिखराते हैं
बूढ़ी माँ है और टपके छप्पर भी
बदरा भी तो दिल दुखाने आते हैं
--.
22 22 22 22 22 22 22 22 2
सदियों से टेडी तकली पर सुख दुख काता करती अम्माजी
सब दुःख अपने हिस्से हिस्से रख सुख चैन लुटाया करती अम्माजी
सारे दिन के चक्कर से तो सूरज भी थककर सो जाता है
जग की खातिर ही सूरज को रोज जगाया करती अम्माजी
सबसे पहली भोर किरन संग चूल्हा चौकी में जुट जाती है
सब को भरपेट खिला भूख सभी की खाया करती अम्माजी
झुर्री से पगडण्डी सी छाप पड़ी है मुखड़े पर देखो
पहने झुर्री को बाकी जेवर झुठलाया करती अम्माजी
बरगद जैसे कुनबे को जीवित रखने की खातिर ही तो वो
जड़ बनकर के पानी खाद हमेशा लाया करती अम्माजी
0000000000000000
विजय वर्मा
यशोधरा
आज भी ज़माना
चाहता है जानना --
आखिर यशोधरा का
अपराध क्या था ?
अपराध क्या है ?
तब भी परित्यक्त हुई थी
जब गौतम गए थे वन में ,
यशोधरा रह गयी थी प्रासाद में ।
और आज ---
गौतम है प्रासाद में तो,
यशोधरा रह गयी गुजरात मे.
लोक-कल्याण ही अगर
उद्देश्य है तो उसमे
यशोधरा कहाँ बाधा है ?
सबसे बड़े -लोक-नायक [कृष्णा]
के बगल में तो हमेशा ही
खड़ी उसकी राधा है।
V.K.VERMA.D.V.C.,B.T.P.S.[ chem.lab]
0000000000000000
मधुरिमा प्रसाद
तलाश
अपने घर की
पिता की चौखट सेएक लड़की की
जन्म से अर्थी तक
पालने से कुर्सी तक
माँ की गोदी से
चमचमाती डोली तक
ससुर की ड्योढ़ी तक
खोजती ही रहती है
ढूँढती ही रहती है
उस आँगन को
ड्योढ़ी और चोखट को
जिसके भीतर स
दो मजबूत लम्बी बाँहें
फैलें और कहें ---
एक ऐसे स्वर में ,
छन के जो आया हो
ह्रदय की गहरायी से ---
"आओ यह घर तुम्हारा है l "
--..
चाह अनजानी सी
मत छीनों मुझसे
मेरी वह अनमोल धरोहर
मुझे उसे अपने ही पास
अपने में समेटे
अपने आपको, उसी रंग में रंगे
चैन से जीने दो।
चैन से जीने दो मुझे
उन अनमोल यादों के संग
उनके ही बवंडरों में
चक्कर पर चक्कर
खाने दो
चक्कर घिन्नी घिन्नी की तरह
कुछ मीठी, कुछ कड़वी
हैं सभी अस्तित्ववान
मुझे खींचती हैं
खींचती ही रहती हैं सदा से,
ला कर खड़ा कर देती हैं
अतीत के गवाक्षों पर
जहाँ से देखती हूँ-- वह
जिसे कभी भी
देखना न चाहा
भोगना न चाहा
पर वही सब कुछ
सामने से गुज़रता सा
नज़र आता रहा
एक नए वजूद के साथ।
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मधुरिमा प्रसाद
तेलियरगंज
इलाहबाद पिन--२११००४
0000000000000
सुशील यादव .
दिया तले उजाला
प्यासे को पानी ,हर भूख को निवाला देने की सोच
गर तुझमें है कुवत ,दिया तले उजाला देने की सोच
ये वक्त का तकाजा है, कौम की मिन्नत, आरजू है
अस्मत-लुटेरों के पाँव बेडियाँ -ताला देने की सोच
बर्फ की तरह, जमा दिया खून का ,सियासी रिश्ता
समझ को तपिश, नर्म-गुदाज, दुशाला देने की सोच
कोई फर्क नहीं, आसमान छू ले, हर चीज के दाम
तेरे पास तर्क है, बाते हैं ,हील-हवाला देने की सोच
आज भी ठीक से, पढ़ नहीं पाते लोग, खुदगर्जों का चेहरा
इन्हें और घना अन्धेरा ,माहौल स्याह-काला देने की सोच
00000000000000000000000
पद्मा मिश्रा
पावस-राग----
बादलों के संग क्यों उड़ने लगा है मन
बादलों के संग क्यों उड़ने लगा है मन
कल्पना के जाल क्यों बुनने लगा है मन
इन्द्रधनुषी स्वप्न के संग रात भर ,
बीन के तारों सदृस बजने लगा हैं मन ?
हरित वर्णा हो गई है सांवरी धरती ,
बादलों के प्यार ने क्या चातुरी कर दी ?
रिम्झिमी बरसात की बूंदें निरंतर ,
नव प्रणय की भावभीनी अंजुरी भरतीं .
श्रावणी सन्देश लेकर यह घटा ,चमकी
नयन में मानो विरह की ज्वाल सी धधकी ,
यह हवा लाई है क्या संदेश प्रियतम का /
आ गई है याद मानो मिलन के क्षण की .
जब बरसे बादल
जाने कैसी बूंदे बरसी ,मेरे आँगन में,
भींग गया तन मन जीवन सब
भींगे सावन में.
कजरारे मेघों ने कैसा जादू कर डाला,
रिमझिम बूंदों ने, जीवन का,
हर पल रंग डाला .
शाम सुहानी आती है,सन्देश नया लेकर,
सपने सजते हैं पलकों पर,
ले इन्द्रधनुष के पर,
शीतल हवा सुना जाती है,
बात किसी पल की,
नन्हीं बूंदें दोहरा जातीं, बातें जो कल की.
जावा कुसुम के पात खिल गए,
कलियाँ मुस्काईं,
लहराया अशोक ,चमेली, -
जाने क्यों शरमाई?
तुलसी के पत्तों से बूंदें टपक रहीं टप टप,
भींगी धरती के आँचल में,
मौन हो गया सब
00000000000000000000000
बच्चन पाठक सलिल
---पावस में झारखण्ड --
कितनी शोभायमान आज गिरी चोटियां हैं,
यहाँ वहां बादलों का फ़ैल रहा जाल है,
निकली पहाड़ियों से वेग उद्वेग भरी ,
सच,इन नदियों की मस्त मस्त चाल है,
द्रुम दल झूम रहे,आज है हवा के संग,
नृत्यरता हुई आज एक एक डाल है,
धरती से अम्बर तक मचा यही शोर आज,
वर्षा में झारखंड सच ,बेमिसाल है,
जीर्ण-शीर्ण,क्षीणकाय नदियां हुई थीं,हाय,
आज पूर्ण यौवना हैं ,भरा हुआ गात है,
चादर हरीतिमा की कूल लपेटे द्रुम ,
दर्शनीय हुए आज ;पावस'-सौगात है,
दलमा पारसनाथ और नेतरहाट ,
नंदन वन से अधिक औकात है,
बिना ही बताये यह सारा जग जान गया,
'''आज झारखण्ड में आ गई बरसात है ''
--डॉ बच्चन पाठक सलिल
00000000000000000000000
राज हीरामन
मॉरीशस.Mauritius.
क्षणिकाएँ
(१) नौकरी चाही थी,
क्योंकि पैसा नहीं था !
नौकरी मिली नहीं,
क्योंकि पैसा नहीं था !
(२) आज की द्रौपदी को,
दुशासन की प्रतीक्षा है.
और वह श्रीकृष्ण का
घोर विरोध भी करती है
कि वे इस के निजी मामले मे,
अपनी नाक न डाले.
(३)उल्लू ने सूरज पर,
मुकद्दमा दायर कर दिया कि
उसे दिन में भी दिखाई नहीं देता!
सबूत में उल्लू ने न्यायाधीश को,
अपनी मोटी मोटी आँखें दिखाईं
और सूरज मामला हार गया.
जब से सूरज को जेल हुई,
तब से रात में भी,
उल्लू देखने लगा.
(४) लो उठा लेता हूँ पाल,
अपनी छोटी किश्ती का.
ए ! हवाओं
मुझे ले चल वहाँ,
जहाँ तूफां जन्म लेता हो.
(५) राम !
तेरी आग्या मेरे सर -आँखों!
मैं जानता हूँ कल भी
गली गली में लव-कुश,
आवारा भटकेंगे.
मैं यह भी जानता हूँ,
कि कल भी सीता की ,
अग्नि- परीक्षा होगी !
पर मैं यह नहीं जानता,
कि पुरुष की अग्नि -परीक्षा,
आखिर कब होगी?
०२.०७.२०१४.
मॉरीशस.Mauritius.
Pereybere,Grand Bay.
00000000000000000
मनोज 'आजिज़'
आओ वर्षा रानी आओ
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---
तपिश धरा और देह की
मिटने वाली अब है,
मौसम बरसात का है और
बादलों से भरा नभ है ।
सूखे बाग़ और पेड़ों में फिर
हरियाली काफ़ी छा जाएगी,
चातकों के दिन फिरेंगे
हवा वर्षा-गीत गा जाएगी ।
मन मलिन जो हुआ ग्रीष्म में
बूँदों के संग खिल उठेगा,
नदी-नालों की नव-धारा से
जल-जीवों का दिल खिलेगा ।
खेतों में फसलों की बहार
किसान के घर में उत्सव होगा,
धन-धान्य से भरा देश और
डाल-डाल में कलरव होगा ।
आओ वर्षा रानी आओ
नव-सृजन का बीज बो जाओ,
शीत, बसन्त और ग्रीष्म तो हैं
तुम भी जीवन संग हो जाओ ।
पता--आदित्यपुर, जमशेदपुर
00000000000000000000
रमाकांत यादव
- यार ने ही यार का घर लूटा
दिल के बीज मेँ प्यार का अँकुर फूटा
जब जोर की चोट लगी काँच जैसा टूटा!
क्या बतायेँ कितने खुशनसीब हैँ हम
गैरों की चाहत मेँ अपना नाता टूटा!
मौत का क्या भरोसा कब कहाँ आ जाये,
हर इँसान किनारोँ पर पहुँच कर डूबा!
अश्क बनकर हमारे अरमाँ बिखर गये
"रमाकाँत" यार ने ही यार का घर लूटा!
--
- पागल प्रेमी
खुशियोँ को लूटकर जहान दे रहे हैँ
जाने कैसा इम्तिहान ले रहे हैँ!
घर मेँ खुद अमन की नीँद सो रहे हैँ
और मुझ मुखलिश को थकान दे रहे हैँ!
बेवफाई की चाकू से काटकर गर्दन
जाने किसलिये जुबान दे रहे हैँ!
जमाने मेँ प्यार सिर्फ एक धोखा है
हम पागल प्रेमी ये बयान दे रहे हैँ!
--.
- किस्मत
अपने चिरागे दिल को
हमने कभी जला न पाया!
शूल मन मेँ ऐसा चुभा
किसी को दिखा न पाया!
जो रहते थे धडकनोँ मेँ
उन्हें अपना बना न पाया!
किस्मत! मेरी मैय्यत मेँ
मेरा अजीज आ न पाया!
--.
- दिल के तार छटके हैँ
वो भी मोहब्बत का शौक रखते हैँ
कल जिनके पाँव कब्र मेँ लटके हैँ!
मुझको अब और न पिलाओ साकी
हम बहुत पहले पथ से भटके हैँ!
सँसार की निगाहोँ मेँ मैं आशिक हूँ
पर मेरा अँदाज सभी से हटके है!
हम उन्हें याद करना छोड दिये
जिस पल से दिल के तार छटके हैँ!
--.
गर हर गम को सीने से लगाया जाये
वह गम ही कहाँ रहता है !
उनकी याद मेँ आँसुओँ का हर एक कतरा
लहू बनकर बहता है!
गुल तो इस जहाँ मेँ, हर जगह खिल जायेँगे
लेकिन वफा का पानी कहाँ मिलता है!
युगोँ - युगोँ से जुल्म सहकर धरा ठँडी पड गयी
तभी तो अब इँसान तपता है !
गर कर्म करे, पापी भी खुदा बन जाये
मगर वह इसे पाप समझता है !
--.
"यत्र नारी पूज्यते, तत्र रमन्ते देवता"
बँद करो
कानूनी किताबेँ
बँद करो
अदालत थाने,
हमने तो चूडियाँ पहन रखी हैँ
पर तुम तो इस लायक भी नहीँ हो,
"क्योँकि"
तुम्हेँ तो चूडियोँ का भी मोल तक नहीं पता!
क्या हम अबलाओँ का कोई
अस्तित्व ही नहीं है?
आये दिन,दुष्कर्म, अपहरण,देहब्यापार,
दहेज हत्या, कन्या भ्रूण
जैसे अपराधोँ से हमारा स्वागत किया जा रहा है!
"रमाकाँत" क्या यह वही हिँद है?
जहाँ का नारा "यत्र नारी पूजयते, तत्र रमन्ते देवता" है!
--.
1. मैंने कभी सोचा न था!
दिन को भी इतना अँधेरा होगा
मैंने कभी सोचा न था!
एक तरफ मासूम दिल दीवाना
और एक तरफ बेरहम सारा जहाँ होगा,
मैंने कभी सोचा न था!
जो दिन-रात जलाते हैँ बस्तियाँ
वो रहेँगे महलोँ में,
और हमेँ जँगल नसीब होगा;
मैंने कभी सोचा न था!
जिनकी खुशियोँ के खातिर हमने बर्बाद कर दी अपनी सारी जिन्दगी,
उनकी वजह से ही मेरी आँखें नम होगी;
मैंने कभी सोचा न था!
2. दुनिया मेँ अब कोई
ईमान-ए-धरम नहीँ रहा!
जिसकी बदौलत बदल जाती थी
इँसान की तकदीर,
अब वो करम नहीँ रहा!
आज का मानव बना है सिर्फ
नफरत का पुजारी,
चित्त मेँ मोहब्बत-ए-रहम नहीँ रहा!
आजकल के लोग दे जाते है
दिल पर जख्म ऐसे,
घाव भरने को कोई मरहम नहीँ रहा!
3. हमेँ आपसे कोई गिला नहीँ!
क्योँकि आप जैसा दोस्त
जिँदगी मेँ कभी मिला नहीँ!
आप वो एक हँसी गुल हैँ
जो आज तक,
किसी गुलशन मेँ कभी खिला नहीँ!
मेरी खुशियोँ को लूटकर
आपने मेरे दिल को दिया है जो जख्म,
वो मेरी वफाओँ का सिला नहीँ!
4. एक पल ईमानदारी जो जीना चाहा,मेरी जिँदगी खराब हो गयी!
अपना गम भुलाने को पिया था जिसे दवा जानकर,वो भी शराब हो गयी!
मेरे दर्द-ए-दिल की दास्ताँ आज सबको भायी है,ऐसा लगता है जैसे
मेरी गजलेँ शबाब हो गयी!
----.
---------
प्यार का घर जल गया!
एक तिनके मेँ आग क्या लगी
सारा शहर जल गया!
कल तक जिसे देखकर, बहल जाता था ये दिल
वह मँजर जल गया!
दिन-रात रो रोकर बनाया था जो प्यार का घर,
आज वह घर जल गया!
--.
रमाकान्त यादव , क्लास 12,नरायनपुर , बदलापुर ,जौनपुर, उ¤प्र¤
---------------00000000000000000000
अमित कुमार गौतम स्वतंत्र
गॉव का स्कूल
गॉव का स्कूल
घर से
थोड़ी दूर
लगती
बरगद वृक्ष
के नीचे
घर से
ले जाना पड़ता
चटाई और पहाड़ा
साथ में
कुछ किताबें
और
पीने का पानी
रोज गुरूजी द्वारा
प्रार्थना कराना
कितना अच्छा लगता
जय हिन्द का
नारा लगाना
खेलने का टाइम
एक धण्टे का होता
हम सब
खूब खेलते
चोर पुलिस का खेल
दूर-दूर तक
दौड लगाते
गॉव की
लम्बी पगडंडियों पर
यह खेल
सभी बच्चे
का प्रिय था।
अबोध था
फिर भी
देश के प्रति
जोश था
लगती जब
शाम की क्लास
हुआ करते
गीत और डांस
मैडम जी रोज
गांव की
चौपाल पर होती
हाथ में लिए ऊन
गांव से मिली
सब्जियॉ लेकर
वापस घर
चली जाती
गुरूजी
फिर से प्रार्थना
कराकर
बन्द कर
स्कूल का ताला
घर चले जाते
हम जब साथी
गाते हुए गीत
घर चले आते
वही दिनचर्या
चलता रहता
स्कूल पहुंचते ही
कागज पत्ते बीनकर
सफाई करना
फिर
पढ़ाई करना
कितना स्वावलंबन
होता था
गांव के स्कूलों में।
00000000000000000
देवेन्द्र सुथार
9--: ये मेरा प्यारा स्कूल :--
यह मेरा प्यारा स्कूल
नहीँ सकता मैँ इसको भूल।
मां ने मुझको जन्म दिया
और दिया ढेर सारा प्यार
स्कूल ने मेरा ज्ञान बढाकर
मेरा जीवन दिया संवार।
खूब खेलो और पढो तुम
कहती मेरी प्यारी टीचर
बडे होकर प्रण तुम करना
देश की सेवा करेँगे मिलकर।
कोई वकील कोई देश का नेता
कोई डाँक्टर,इंजीनियर होगा
भारत विश्व मेँ बनेगा अव्वल
हर कोई जब साक्षर होगा।
यह मेरा प्यारा स्कूल
नहीँ सकता मैँ इसको भूल।
--.
स्त्री मिल सकती है,पत्नी नहीँ।
प्रशंसा मिल सकती है,ळृद्धा नहीँ।
आराम मिल सकता है,शान्ति नहीँ।
ऐश्वर्य मिल सकता हैँ,आनन्द नहीँ।
भवन बन सकते है,संस्था नहीँ।
फिर भी धन का तिरस्कार मत करोँ वह
भौतिक जीवन की प्रथम आवश्यकता है।
6--: मगर कश्मीर नहीँ देँगे :--
हिन्दूस्तान की कसम जान दे देँगे
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
मस्तक देश का बचाने को
हजारोँ जनोँ की कुर्बानी दे देँगे।
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
मिटाना पडा किसी नशेमन को मिटा देँगे।
लुटाना पडा किसी खजाने का लुटा देँगे।
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
अमेरिका,चीन,पाक,अफगान
दुनियां की ताकत से टकरा लेँगे
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
खेलनी पडी हमेँ दीवाली मेँ भी होली
खेल लेँगे हम वो खून की भी होली
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
एक सिर क्या इस वतन के लिये
हजारोँ सिरोँ की मालाएं दे देँगे
मगर कश्मीर नहीँ देँगे
भूख और बरबादी से लडना पडे
तो भी इज्जत का ताज लुटने न देँगे
मगर कश्मीर नहीँ देँगे।
हिन्दुस्तान की कसम जान देँ देँगे।
दूध ले गया चावाल ले गया कोई बात नहीँ
लेकिन पकी खीर नहीँ देँगे।
अरे ढाका वाली मलमल ले गया कोई बात नहीँ
लेकिन मां का चीर नहीँ देँगे।
अब तू साफ-साफ शब्द मेँ सुन लेँ पाकिस्तान
कश्मीर तो क्या हम तुम्हे कश्मीर की
तस्वीर भी नहीँ देँगे।
7--: साहस :-
कहिये तो आसमान को जमी पर उतार लायेँ।
मुश्किल नहीँ है कुछ भी अगर ठान लिया जायेँ।
वह पेड किस काम का जो छाया नहीँ देता।
वह अन्न किस काम का जो भूख हर नहीँ लेता।
व्यर्थ समय बर्बाद न करो उस पर।
जिसे बहुत झिँझोडा पर आज तक नहीँ चेता।
उसे वक्ता कहते है जो धारा प्रवाह बोलना जानता हो।
अपने ही शब्दोँ को अपनी तुला पर तोलना जानता हो।
जीवन जीने के लिए है ढोने के लिए नहीँ।
जिन्दगी मुस्कारने के लिए है रोने के लिए नहीँ।
फूल की कीमत बाग से नहीँ,सुगंध से होती है।
व्यक्ति की कीमत धर्म से नहीँ व्यवहार से होती है।
जिन्दगी की छाई रहे बहार,बगियां फूलोँ की खिलती रहे।
जिन्दगी के हर मोड पर सफलता तुम्हे मिलती रहे।
गगन मेँ हो इतने तारे कि आकाश दिखाई न दे।
आपकी जिन्दगी मेँ हो इतनी खुशियां की गम दिखाई न दे।
8--: पान की कहानी :--
एक बनारसी पान का पत्ता
उडकर जा पहुँचा कलकत्ता
रास्ते मेँ मिल गई सुपारी
और शुरु हो गई तैयारी।
फिर वो दोनोँ पहुँचे पूना
वहां मिल गया उसको चूना।
अब हुई कत्थे से भेँट
पूछा अब पत्ते से क्योँ हो जी लेट?
कत्थे ने बोला फिर हंसकर
आया हूं मैँ कितना थककर।
--.
मैँ आंधियोँ मेँ चिराग जलाये बैठा हूँ
मैँ उनके ख्याब अभी संजाये बैठा हूँ
कुछ कह दूं यूं तो दिल बेजबा नहीँ
मैँ इक सच को छिपाए बैठा हूँ
उतरी न भी रात की खुमारी
मैँ फिर पैमाना लिए बैठा हूँ
अश्क आँखोँ से छलकते नहीँ अब
मैँ गम का दरिया दिन मेँ दबाये बैठा हूँ
भूल चुके जो अपने वादे कसमे
मैँ उनके दर पे दिवाना हुआ बैठा हूँ
वो मेरे लपजोँ की तरदीक करे या न करे
मैँ उनके दर पे दीवाना हुआ बैठा हूँ
खो गया हूँ अपने मेँ किसी से क्या वास्ता
मैँ तो दुनिया बेगाना हुआ बैठा हूँ
फरेब है उनके हर चलन मेँ
मैँ जिनसे वफा कि उम्मीद किए बैठा हूँ
2--: जरा संभलिये :--
इतने नरम मत बनो कि,लोग तुम्हे खा जायेँ॥
इतने गरम मत बनोँ कि,लोग तुम्हेँ छू भी न सके॥
इतने जटिल मत बनो कि, लोग तुम्हे समझ न सकेँ॥
इतने गंभीर मत बनो कि,लोग तुमसे ऊब जायेँ॥
इतने छिछले मत बनो कि,लोग तुम्हे माने भी नही॥
इतने महंगे मत बनो कि,लोग तुम्हे मिल भी न सके॥
इतने सस्ते भी मत बनो कि,लोग तुम्हे अंगुली पर नचाने लगे॥
आपका पल भर का क्रोध,आपका भविष्य बिगाड सकता है॥
आपका सज्जन संसर्ग,आपका भविष्य उज्जवल बना सकता है॥
3--: एक पत्र शहीदोँ के नाम :--
मेरा पत्र हैँ उन तमाम शहीदोँ के नाम।
आजाद कराने देश को,जो गये कुर्बान॥
कितने खतरे तुमने झेले,भारत मां की खातिर।
युवा वर्ग भुला बैठा है,जिन्हेँ स्वार्थ के खातिर॥
तुमने जान गवाई अपनी,देश प्रेम की खातिर।
जान दे रहा युवा आज, गर्ल फ्रैण्ड की खातिर॥
क्षमा पत्र हैँ मेरा यह,उन दीवानोँ के नाम।
आजाद कराने देश को,जो हो गये कुर्बान॥
दिलाकर आजादी तुमने,भारत माँ को किया निहाल।
आज के नेता दलबदलू हैँ,देश की पगडी रहे उछाल॥
ले ले कर्जा घी पीते है,कर दिया देश का खस्ताहाल।
कितना रोको,कितना चीखो,गेँडे सी है उनकी खाल॥
उनकी ओर से खेद पत्र, लिखता तुम्हारे नाम।
आजाद कराने देश को जो हो गये कुर्बान॥
4-: कौन क्योँ दु:खी? :--
बिन पैसे निर्धन दु:खी,तृष्णा बिन धनवान।
चन्दे बिन पण्डित दु:खी,अध्यापक बिन सम्मान।
धूप बिन धोबी दु:खी,नारी बिन सम्मान।
प्रेम हेतु भारत दु:खी,छल से पाकिस्तान।
रिश्वत बिन अफसर दु:खी,बिन सम्पत्ति विद्वान।
वोट बिन नेता दु:खी,बिन कीर्ति गुणवान।
दहेज से हर बाप दु:खी,बिन दहेज बेटी की सास।
5-: धन बल की सीमा :--
धन से दवा मिल सकती है, स्वास्थ्य नहीँ।
शय्या मिल सकती है,नीँद नहीँ।
लडका मिल सकता है,पुत्र नहीँ।
नौकर मिल सकता है,सेवक नहीँ।
--.
सर्वदेवमयी गौमाता
सर्वदेवमयी गौ गौमाता को नमन करेँ
ळृद्धा और भक्ति से वंदन करते हैँ हम।
भाव भरे मन सेँ जो जल कलश से आज
गौमाता के चरणोँ का पूजन करते हैँ हम।
ळृद्धा के सुमन तेरे चरणोँ मेँ भेँट कर
तन,मन,धन अर्पण करते हैँ हम।
मान,अभिमान,दर्प,लोभ,मोह त्यागकर
आज सर्वस्व समर्पण करते हैँ हम।
धर्म कर्म मर्म का चन्दन लगा के यहाँ
आज प्रेम का दीपक जलाते हैँ।
कोटि-कोटि देवता रमण करते तुम्हीँ मेँ
ऐसा धर्म ग्रंथ वेद पुराण बतलाते हैँ।
शब्द पुष्प अर्पित है ऐसा वरदान दे माँ
भक्त सब करुणामय वन्दन करते हैँ हम।
स्वर्गसम पावन भूमि पथमेडा धाम की
दतशरनानन्दजी को नमन करते हैँ हम।
गौमाता के रखवाले हार नहीँ स्वीकारते हम
दुष्ट कसाईयाँ को सबक सीखा देँगे हम।
मौत का नहीँ भय हम जान देने को तैयार
सब मिल बूचडखानेँ बन्द करवा देँगे हम।
एक नहीँ दो नहीँ पूरे लाखोँ करोडोँ भक्त
कामधेनू रक्षा हित घर फूँक देँगे हम।
देश के नेताओँ सुनो गौमाता पे आंच हुई तो
कसम भवानी की सरकार हिला देंगे हम।
जय गोमाता-जय गोपाल
माँ-बाप को भूलना नहीँ
भूलो सभी मगर
मां-बाप को भूलना नहीँ।
उपकार अगणित है उनके,
इस बात को भूलना नहीँ॥
पत्थर पूजे कई
तुम्हारे जन्म के खातिर अरे।
पत्थर बन मां-बाप का दिल
कभी कुचलना नहीँ॥
मुख का निवाला दे अरे
जिनने तुम्हेँ बडा किया
अमृत पिलाया तुमको
जहर उनके लिए उगलना नहीँ॥
कितने लडाए लाड,
सब अरमान भी पूरे किये।
पूरे करो अरमान उनके
बात यह भूलना नहीँ॥
लाखोँ कमाते हो भले,
मां-बाप से ज्यादा नहीँ।
सेवा बिना सब राख है
मद मेँ कभी भूलना नहीँ॥
संतान से सेवा चाहो,
संतान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी,
न्याय भूलना कभी नहीँ॥
सोकर स्वयं गीले मेँ
सुलाया तुम्हेँ सूखी जगह।
माँ की अमीमय आंखोँ को
भूलकर कभी भिगोना नहीँ॥
जिससे बिछाए फूल थे
हरदम तुम्हारी राहोँ मेँ।
उस राहदर के राह के कंटक
कभी बनना नहीँ॥
धन तो मिल जायेगा मगर
मां-बाप क्या मिल पाएंगे?
पल-पल पावन उन चरण
की चाह कभी भूलना नहीँ॥
विश्वास
किसी का विश्वास मत तोडना
तुम पर है सबका विश्वास,
इस विश्वास को यूं ही कायम रखना
ज्योँ तुम अपने पर रखते होँ।
इस बंधन को मत तोडना
जो बना है बिन धागे के,
जिसने बनाया है यह बंधन
उसे भी तो विश्वास है तुम पर।
कायम रखना यह विश्वास
जीवन मेँ बस विश्वास ही है,
जो अपने साथ चलता है।
हर कोई धोखा दे जाता है पर
अपना विश्वास कभी धोखा नहीँ देता।
वह अदृश्य बंधन हर पल साथ हैँतेरे
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बस तुम सिर्फ विश्वास करना।
उसने ही भेजा है तुम्हेँ यहां
हर किसी की मुश्किल आसान करने को,
उसने ही तो तुम्हेँ यहां जन्म दिया।
उसके विश्वास को मत तोडना
जिसने तुम्हेँ यह नाम दिया।
उसके विश्वास को जीत लेना
अपने नाम जैसा बन जाना।
कभी किसी से विश्वासघात मत करना।
माँ की पीडा
जब कोई औरत माँ बनती है
बच्चोँ के मुख से मां सुनती है।
तब वो सोचती है,मुझे सारे संसार का सुख मिल गया।
लेकिन बच्चा जैसे बडा होता है,
माँ शब्द कम,दोस्त शब्द ज्यादा बोलता है।
लेकिन फिर भी माँ सोचती है अच्छे दोस्त होँगे,
उसको नहीँ पता की वही उसको
सुपारी,बीडी,दारु की लत लगा रहे हैँ।
और धीरे-धीरे माँ को गाली देने लगता हैँ,
तो माँ रात-रात भर रोती है,और प्रभु से कहती है
मुझको ऐसी संतान क्योँ दी?
लेकिन माँ तो ममता की देवी होती है।
आज नहीँ कल फिर से
बोलने की कोशिश करती है।
लेकिन बेटा नहीँ बोलता फिर धीरे-धीरे
घर मेँ दारु पीकर आता है
मां-बहन,छोटे भाई को लकडी से मारने लगता है।
तब मां सोचती है मैँ माँ बनी ही क्योँ,
मुझे ऐसी संतान क्योँ दी?
भारत माँ का मान बढाना
भूखे को तुम भोजन देना
प्यासे को जल-पान कराना।
भटके को तुम राह दिखाकर
भारत माँ का मान बढाना॥
पडे छोडनी विषय-वासना
करते रहना ध्येय साधना।
संघर्षो से ना घबराकर
भारत मां का मान बढाना॥
सदा स्वदेशी ही अपनाना
वन्देमातरम प्रतिदिन गाना।
मस्तक पर यह धूल लगाकर,
भारत मां का मान बढाना॥
वीर शिवाजी से बन जाना
राणा को तुम भूल न जाना।
दुश्मन को तुम धूल चटाकर
भारत मां का मान बढाना॥
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पाक नहीँ तू नापाक है
नाम थारो पाकिस्तान
पर तू है पूरो गपिस्तान
पाक नहीँ तू नापाक है,
तू है आतंक रो जन्म स्थान।
नाम थारो पाकिस्तान
पर तू है पूरो गपिस्तान
तू भारत री औलाद है
भारत थारो बाप
टक्कर मत ले बाप से
तू खावे बार-बार लात
तू कश्मीर रो नाम छोड
ले खुद रो घर संभाल।
नाम थारो पाकिस्तान
पर तू है पूरो गपिस्तान
घर मेँ खावण ने दाना नहीँ
लगायी हथियार रो ढेर
इंसानियत भूल गयो
खून हो गयो जेर
बार-बार मत ले तू
परमाणु बम रो नाम
नक्शा सू मिट जावेला
ओ पाकिस्तान रो नाम।
नाम थारो पाकिस्तान
पर तू है पूरो गपिस्तान
गीदड री जद मौत आवे
शहर कानी जावे
पाकिस्तान री मौत आवे
जद भारत सामे आवे
कपडा थारा गिरवी पडया
इज्जत तार-तार
नक्कटो है रे नक्करा
कोनी थारी नाक
भारत मोटो देश है
भारत देश महान
--.
दुनिया ने शांति दिखावण वालो
अहिँसा है इणरी शान।
नाम थारो पाकिस्तान
पर तू है पूरो गपिस्तान
पाक नही तू नापाक है
तू है आतंक रो जन्म स्थान।
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कितना प्यारा है प्यार
कितना प्यारा है ये प्यार
जीवन मेँ हो इसका प्रचार
खुश रहता है इससे मानव
अच्छा करते सोच विचार
कितना प्यारा है ये प्यार
जीवन जीते अमन चैन से
मीठा बोले सदा वैण से
कान सुने नहीँ कुछ बेकार
कितना प्यारा है ये प्यार
प्रकृति हो इसका सपना
हर प्राणी को समझे अपना
प्रकृति हो जिसका संसार
मन मैँ नहीँ आते घृणा विकार
कितना प्यारा है ये प्यार
प्रकृति के रंग हजार
अपने जीवन पर उपकार
पेड न काटोँ पेड लगाओ
इस सपने को करो साकार
कितना प्यारा है ये प्यार
पेड-पौधे और सागर नदियां
इनके ही बल चलती सदियां
रिमझिम बरसे मेघ हजार
कितना प्यारा हैँ ये प्यार
होगा जब हर मन मेँ प्यार
होगा हर दिन एक त्यौहार
हर मानव होगा मिलनसार
होगा सबका आदर सत्कार
कितना प्यारा है ये प्यार
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जय जालोर
वीरम की वीर धरा के
साथी हम सब वासी है।
यही हमारा मथुरा है,
यही हमारा काशी है।
सोनगरा दुर्ग हमारा
सारे जग से न्यारा है।
सिरे मंदिर का शिवाला
हमेँ बहुत ही प्यारा है।
चित्त हरणी के दृश्य सजीले
हमेँ बहुत ही भाते है।
शंकर भोले की आरती
सुबह-शाम गाते है।
देह हमारी नश्वर है
आत्म तत्व अविनाशी है।
वीरम की वीरधरा के
साथी हम सब वासी है।
नदीश्वर मेँ स्तम्भ खडा है
सीधा सीना तान के।
नाथजी के संग चर्चे होते
कर्म,धर्म और ज्ञान के।
तोपखाना शिल्प दृष्टि से
दुनिया मेँ बेजोड है।
ग्रेनाइट उद्योग करता है
सारे जग से होड है।
इंसानियत धर्म हमारा
यही हमारी जाति है।
वीर की वीरधरा के.........।
जय वीरम,जय जालोर,जय-जय राजस्थान।
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रचनाकार साहित्य जगत की शान
शीश झुकाकर यहां मैँ करता हूँ प्रणाम,
यह हैँ विद्या रुपी देवी का देवस्थान।
ज्ञानी ज्ञान दान देकर यहां करते है अपना कल्याण,
रचनाकार साहित्य जगत की शान॥
कैसे हो समाज का समग्र विकास,
करती इस पर हर रोज नये अनुसंधान।
अनुशासन का पाठ पढाती,करता मनुष्य निर्माण,
ज्ञान-योग से निरोग बनाती,
इसके कार्य अदभूत,उल्लेखनीय है महान
रचनाकार साहित्य जगत की शान॥
एक अथक प्रयास है इसका मानवता का ही प्रसार,
सभी को मिले सही दिशा,कोई ना हो लाचार।
संस्कृति का पाठ पढाती,करती विद्या दान,
भारतीयता पर गर्व है इसको,
इससे ही हमारी है पहचान
रचनाकार साहित्य जगत की शान॥
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भारत माँ के हर जवान पर
जिसने अपना सर रखा
हिन्दूस्तान की शान पर।
किसी के होँगे सपने
कि घर बनाये गाँव मेँ,
पहुँच गई जो चिट्टठी घर मेँ
छत फटी आसमान मेँ।
किसी का सेहरा कर रहा होगा
इंतजार दूल्हे के आने का
पहुँच गई जो चिटठी घर पर
कफन ने ही काम किया।
किसी की ना निकली होगी
मेहंदी अभी हाथोँ से
पर पहुँच गई चिट्ठी घर पर
बारात निकली श्मशान से।
किसी की बूढी आँखे देख रही होगी
रास्ता अपने बेटे का आने का
पहुंच गई जो चिट्टठी घर मेँ
लाठी छुट गई हाथोँ से।
करता हूँ मैँ उन्हेँ सलाम
जिन्होने रखा ऊंचा भारत मां का नाम
व्यर्थ ना होने देंगे उनके बलिदान
करते रहेँगे हम उनको प्रणाम।
पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
अंग्रेज चले गए पर अंग्रेजी का भूत नहीँ गया।
न जाने इस भारतवासियोँ को यह क्या हो गया॥
माता-पिता,चाचा-चाची सब गायब हो गए।
उनकी जगह मम्मी-डेडी,अंकल-आंटी सब आ गए॥
भारत मेँ सब मित्र नहीँ फ्रैण्ड हो गए।
माताजी प्रणाम तो हेलो मदर हो गया॥
सच भारत,भारत नहीँ इण्डिया हो गया।
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॰ देवेन्द्र सुथार,गांधी चौक,आतमणावास,बागरा (जालोर) राजस्थान 343025 ।
devendrasuthar196@gmail.com
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लुकेश कुमार वर्मा
1
सपनों की ताबीर....
सपनों की ताबीर हसरत एक तलाश चाहिए
चंद ख्वाबों के हकीकत बहार चाहिए।
तन्हाईयो के कुछ हसीन लम्हे गुजरे जो
पास आने के यूं इंतजाम चाहिए।
गुजरा जो जमाने की कशमकश से
उन्हीं यादों की एक हसीन रात चाहिए।
धड़कती रहे जैसे दिल की धड़कन
धडकनों के लिए यादों की खुमार चाहिए।
हौसले देती है जिंदगी में जीने का मजा
संघर्शों के लिए मेहनत और थकान चाहिए।
2
मैं न रात का....
मैं न रात का ख्वाब हूं , न उजालों की हकीकत
ढूंढती है निगाहे किसी को में हूं ऐसी किस्मत।
न गीतों की आरजू थी, न चाह की हसरत
आइने में ढूंढता हूं खुद को ये है मेरी फितरत।
तलाशा मंजिल की राहे वफा में और भी मैंने
दोस्तों की बस्ती में हमसे कैसी नफरत।
3
कैसे ...
बेवक्त की तकलीफ होती मुझे कैसे
पास आ के मैं उससे दूर जाता भी तो कैसे।
उसने कहा छोड़ दो मेरा साथ
उनके बिन जीता भी तो कैसे।
तलाशा था एक साथ अपने लिए
उसने न मांगा मेरा साथ अपने लिए
याद आते हर वक्त हर कही
उनकी यादों को सीने से मिटाता तो कैसे।
4
महकता रहा .....
महकता रहा चंद सांसों में उन खुश्बुओं की तरह
आसमां में कोई तारा दिखता औरों की तरह।
रूह भी नहीं रहा ना साया भी रहा अपना
दामन बचा के जाता रहा वो दुश्मनों की तरह।
रूप भी था उसका आंचल भी उसका
हर्फ हर्फ पिघलता रहा बर्फ की तरह।
राहों में चलता रहा वो हमसफर सा
वो आंखों में समाया काजल की तरह।
किए थे वादे कभी दोस्ती के हमसे
निभाया भी वादा अपना दुश्मनों की तरह।
5
वक्त क्यूं ......
सबके लिए है वक्त उसके पास
पर मेरे लिए नहीं है वक्त क्यूं?
जानबूझकर या किसी और के लिए
चाहता हूं जानना उसको करीब से
समझना चाहता हूं अपने आपसे
पर नहीं है उसके पास वक्त क्यूं?
झूठ भी है मेरे लिए सच से कोसो दूर
घमंड भी है, नखरा भी है
स्वार्थ भी है, सादगी भी उसमें
पर नहीं है उसके पास वक्त क्यूं?
मैं अधूरेपन से जिया उसके लिए
इसी उम्मीद से ये आस लगाए
कि एक दिन मुझसे करेगी चाहत
पर नहीं है उसके पास वक्त क्यूं?
6
दिल में कोई बसा है...
रातें सुहानी शबनमी चांदनी में हवा का नशा है
कहां पे कोई खोया या दिल में कोई बसा है।
रूप भी दिखाया जब इस वक्त ने
सांसो को ठहराया हुआ दर्द भी थमा है।
बेरहम नजारे दिखाए इन जालिम दुनिया ने
दिल में तूफां उठा है, मंजर सा थमा है।
बिखरी हुई तिनको को तलाशा है हमने
जाने वो कौन से तूफां में गुम सा पड़ा है।
7
अगर यूं ही...
अगर यूं ही ये दिल सताता रहेगा
तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगा।
मैं जाता हूं दिल को तेरे पास छोड़े
मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा।
हम रहे या न रहे इस जहां में
तुम्हारे दिल में प्यार का फरियाद कराता रहेगा।
क्या खोया क्या पाया मैंने वादे निभाके
हर वक्त ये टीस सहलाता रहेगा।
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अंजली अग्रवाल
ये जीवन एक नदी है जहाँ बहते जाना है
हमें अपने रास्ते खुद ही बनाना है
अच्छे के साथ साथ बुरे रास्ते भी आना है
लाख चाहे रास्ता रोके खडे हो पहाड़, पर हमें हर रूकावटों को पार करते जाना है
बहते जाऐंगे तो साफ कहलाना है
रूके जो कहीं पर तो , पानी गंदा हो जाना है
ऊचाँईयों तक पहुँचना है ,और फिर गिर कर सम्भलना है
क्या पता किस मोड पर कौन प्यासा खड़ा है
जिस राह से निकलना है उसका हो जाना है
जो बहते जा रहा है उसका संगम हो जाना है
और जो रूक गया उसे अकेला रह जाना है
ये जीवन एक नदी है जहाँ बस बहते जाना है
(चित्र – रेखा श्रीवास्तव की कलाकृति)
rekha srivastav ji ki kalakriti chhod kuchh bhi prabhav chhodne yogya nahi
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