कहानी - जैसा बोओगे,वैसा पाओगे एक अत्यंत ईमानदार व्यापारी, जब वृद्ध हो गया तो उसने अपना कार्यभार किसी उत्तराधिकारी को सौँपना चाहा। उसने अपन...
कहानी - जैसा बोओगे,वैसा पाओगे
एक अत्यंत ईमानदार व्यापारी, जब वृद्ध हो गया तो उसने अपना कार्यभार किसी उत्तराधिकारी को सौँपना चाहा। उसने अपने व्यवस्थापकोँ,निर्देशिकोँ या बच्चोँ मेँ से चुनने की बजाय,एक अलग ढंग से सोचा। उसने अपनी कम्पनी के साथी युवा कार्यकर्ताओँ की एक सभा बुलायी, और कहा, कि 'अब मैँ अपना पद छोडना और आप लोगोँ मेँ से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी चुनना चाहता हूँ।'
सभी युवा कार्यकर्ता बहुत चकित एवं प्रसन्न भी हुए। मालिक ने कहा, 'मैँ आप सबको आज एक विशेष किस्म का बीज देने जा रहा हूं। आप उस बीज को गमले मेँ बोओ,उचित खाद-पानी दो। जब एक साल के बाद आप मेरे पास उसे लेकर आयोगे तो तुम्हारे पौधोँ को देखकर ही मैँ योग्य उत्तराधिकारी का चयन करुंगा।
'प्रेमसिंह' नामक एक व्यक्ति उन बीजोँ को घर ले गया। बडी उत्सुकता से अपनी पत्नी 'सत्या' की मदद से उन्हेँ एक गमले की मिट्टी मेँ बोया, पानी दिया और उनके बढने का इंतजार करने लगा।
तीन सप्ताह बीत गए और ये मियां-बीबी बीजा के प्रस्फुटित होने की खुशी-खुशी प्रतीक्षा करते रहे। फिर पांच सप्ताह भी बीत गए। किँतु अंकुर न फूटे और उन्हेँ असफलता का आभास होने लगा।
कार्यालय के सभी सहकर्मी अपने-अपने गमलोँ की चर्चाएं करते। पौधोँ मेँ खिले फूले की तारीफ करते। मगर छह महीने हो जाने पर भी प्रेम का गमला खाली ही रहा । वह बेचारा सोचने लगा कि दूसरे लोग सौभाग्यशाली हैँ, उनके बीज तो ऊंचे पौधे बन गए हैँ। प्रेम ने किसी को कुछ भी नहीँ बताया,मगर मालिक के निर्देशानुसार गमले मेँ उचित खाद-पानी डालता रहा।
अंतत: पूरा वर्ष बीत गया और कम्पनी के सारे कार्यकर्ता अपने सुंदर पौधे लेकर निरीक्षण कराने हेतु मालिक के पास पहुंचे। प्रेम ने सत्या से कहा कि वह खाली गमला लेकर नहीँ जाएगा लेकिन पत्नी ने समझाया कि इंसान को तथ्योँ के प्रति ईमानदार रहना चाहिए। जीवन मेँ हार-जीत मुख्य बात नहीँ है,निष्ठावान होना महत्वपूर्ण है।
पत्नी की सही सलाह मानकर प्रेम खाली गमला लेकर जब दफ्तर पहुंचा तो उसने देखा कि दूसरे कार्यकर्ता एक से बढकर एक खूबसूरत पौधे लेकर वहां पहुंचे हुए हैँ। प्रेम का खाली गमला देखकर लोग उस पर हंसने लगे,व्यंग्य करने लगे।
कंपनी के मालिक ने वहां पहुंचकर सभी कार्यकर्ताओँ का अभिवानदन किया और पौधोँ का अवलोकन करने लगा। प्रेम सहमा हुआ-सा पीछे छिपकर खडा रहा। मालिक ने जब प्रेम से पूछा कि उसके बीज का क्या हुआ तो बेचारे प्रेम ने दुःखद सच्चा स्पष्ट रुप से बता दिया।
मालिक ने तत्काल घोषणा की-'प्रेमसिँह ही मेरी कंपनी का अगला वारिस होगा।' प्रेम को तो अपने कानोँ पर भरोसा ही नहीँ हुआ। ईर्ष्या मेँ जल-जल भुन रहे दूसरे कार्यकर्ताओँ ने अचंभित होकर पूछा-' प्रेम सिँह पौधा नहीँ ठगा सका, भला कम्पनी का नया मालिक कैसे बन सकता है?
किसी ने कहा-' यह सरासर अन्याय है।' तब उस मालिक ने रहस्य उजागार किया, 'जरा भी अन्याय नहीँ है। एक साल पहले मैँने आप सबको उबले हुए बीज दिए थे। उनमेँ पौधे बनने की क्षमता की नहीँ थी। प्रेमसिँह के अतिरिक्त, आप सभी ने जब देखा कि वे बीज को नहीँ फूटे तो उनकी जगह दूसरे बीजोँ को बो दिया। अकेला प्रेम ही ऐसा व्यक्ति है जो साहस और ईमानदारी के साथ अपना खाली गमला लेकर आया है। इसलिए केवल ही मेरा उत्तराधिकारी बनने का वास्तविक हकदार है।
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आलेख - बढती आबादी : समस्या व समाधान
[आज जनसंख्या वृद्धि भारत के लिए खतरनाक साबित हो रही है। एक गणना के मुताबिक भारत सन 2028 मेँ दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा।]
आंकडोँ के आईने मेँ देखा जाए तो संसार के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2.4 प्रतिशत भू-भाग भारत के पास है जबकि दुनिया की कुल आबादी का 16.7 प्रतिशत भाग देश मेँ निवास करता है। स्पष्ट है,भारत मेँ क्षेत्रफल व जनसंख्या का अनुपात असमान है। इस कारण बढती जनसंख्या का विषय और भी जटिल हो जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या 1 अरब 21 करोड तथा जनसंख्या घनत्व 382 प्रति वर्ग कि.मी.है। इस एक अरब 20 करोड से अधिक आबादी मेँ प्रति 1000 पुरुषोँ पर 940 स्त्रियोँ का अनुपात है। प्रतिवर्ष 1.70 करोड नागरिक अतिरिक्त रुप से हमारी आबादी मेँ सम्मिलित हो जाते हैँ। 2011 की जनगणना के अनुसार 2001-2011 मेँ जनसंख्या की वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही।
हमारे देश मेँ सन 1975 मेँ कारगर तरीँको से रोकने के उपाय किए गए थे परन्तु उन उपायोँ को लेकर काफी हाय-तौबा मची थी। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ही बदल गई। जिस ढंग से परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किए गए उन्हेँ जनता ने पसन्द नहीँ किया।
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार तथा जनता दोनोँ मिलकर काम करना होगा तभी इसमेँ सफलता मिल पाएगी। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना मेँ परिवार नियोजन के लिए अपार धनराशि निर्धारित करनी पडेगी। इस बात का भी ध्यान रखना पडेगा कि परिवार नियोजन कार्यक्रमोँ के अन्तर्गत जो लाभ दिए जाने होँ,वे केवल उन्हीँ को दिए जाएं जो वास्तव मेँ परिवार नियोजन को व्यावहारिक रुप दे रहे हो। गर्भ निरोधक औषधियां,निरोध,स्वास्थ्य संबंधी परामर्श की व्यवस्था इतने अन्तर पर करनी चाहिए ताकि दम्पतियोँ को उचित सलाह लेने के लिए भागना न पडे और उनका ज्यादा समय खराब न हो।
एक अन्य उपाय और है जिसके द्वारा परिवार नियोजन को सफल बनाकर जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है वह है सरकारी लाभोँ को सीमित करना। सरकार की तरफ से ऐसा ऐलान होना चाहिए कि राशन,चिकित्सा,ऋण आदि की सुविधाएं केवल उन दम्पतियोँ को मिलेँगी जिनके दो सन्तानेँ होँगी। इससे अधिक जितनी सन्तानेँ होँगी उनके लिए माँ-बाप को अपने स्तर पर बाजार भाव से राशन खरीदना होगा। चिकित्सा खुद खर्च करके करवानी होगी। कुछ ऐसे ही कदम भारत के लिए संजीवनी बूटी का कार्य कर सकते हैँ।
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आलेख : युवावस्था एक चुनौती
आँखोँ मेँ वैभव के सपने,पग मेँ तूफानोँ सी गति हो,ऐसी ही उद्दाम आकांक्षाओँ,ह्रदय मेँ उठते ज्वार और आसमान को मुट्रठी मेँ भर लेने की चाह का नाम है यौवन। आज भारत की युवा ऊर्जा अंगडाई ले रही हैँ और भारत विश्व मेँ सर्वोधिक युवा जनसंख्या वाला देश माना जा रहा है। इसी युवा शक्ति मेँ भारत की ऊर्जा अंतर्निहित है,युवा सपनोँ को गढन भेँ से ही भारत का भविष्य झांक रहा है। इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति डाँ. अब्दुल कलाम ने इंडिया 2020 नाम अपनी कृति मेँ भारत के एक महान राष्ट्र बनने मेँ युवाओँ की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित की है। पर महत्व इस बात का है कि कोई भी राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का भविष्य के लिए निवेश किस रुप मेँ करता है।
हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व देश के युवा बेरोजगारोँ की भीड को एक बोझ मानकर उसे भारत की कमजोरी के रुप मेँ निरुपित करता है या उसे एक कुशल मानव संसाधन के रुप मेँ विकसित करके एक स्वाभिमानी,सुखी,समृद्धि और सशक्त राष्ट्र के निर्माण मेँ भागीदार बनाता है। यह हमारे राजनीतिक नेतृत्व की राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकारोँ की समझ पर तो निर्भर करता ही है,युवा पीढी अपनी ऊर्जा के सपनोँ को किस तरह सकारात्मक रुप मेँ ढालती है,यह भी बेहद महत्वपूर्ण है। देश के एक जागरुक जिम्मेदार व अच्छे नागरिक के रुप मेँ अपने व्यक्तित्व का विकास करने पर ही युवा न केवल अपने स्थानोँ को आसमान की ऊंचाइयोँ पर पंख फैलाए देख सकते हैं। बल्कि भारत के उज्ज्जवल भविष्य को आकार देने मेँ भी अपनी सक्रिय व सशक्त भूमिका निभा सकते है। हाथ मेँ मोबाईल और कंधे पर लैपटाँप लटकाए तेजी से अपने गंतव्य की और बढते नौजवान आज मानो आधुनिक युग के प्रतीक बन गए हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि आधुनिकता का अर्थ कपडोँ, खानपान, उपयोग किए जा रहे उपकरणोँ, जीवनशैली मेँ आए बदलाव और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने भर से नहीँ हैँ, बल्कि आधुनिकता तो वैचारिक अधिष्ठान पर खडा एक बिम्ब है जो जीवन को निरन्तर गति,विस्तार व ऊर्जा प्रदान करता है न कि उसे जड बनाकर सीमित दायरे मेँ कैद करता है।
जीवन का अर्थ केवल खाओ,पीओ,मौज करो के दर्शन तक सीमित नहीँ है। मनुष्य जीवन ईश्वर की एक अनुपम भेँट हैँ। उसमेँ भी युवावस्था जीवन का स्वर्णिम अवसर उसे सब प्रकार से योग्य,सक्षम,गुणवान व सेवाव्रती बनाकर न केवल अपने वैयक्तिक उत्कर्ष मेँ लगाना,बल्कि जिस परिवार,समाज व देश के लिए समर्पित व संकल्पबद्ध होकर जीवन जीना। स्वामी विवेकानंद,जिनके जन्भदिवस को भारत मेँ राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप मेँ मनाया जाता है और पूरे विश्व मेँ जिन्होँने भारतीय संस्कृति,जीवन दर्शन और गौरव की दुदुंभि बजाई,सारे यूरोप इनके चरणोँ पर लोट-पोट गया। इन्होँने ने युवावस्था को अनुपम उपहार बताते हुए उसकी ऐसी ही सार्थकता बताई हैँ। भारक का इतिहास ऐसे क्रांतिचेता युवा नायकोँ की उदात जीवन गाथाओँ से भरा पडा है,जिन्होँने हर बार भारतवर्ष को झंझावातोँ की आंधी से बाहर निकालकर सांस्कृतिक पुनरुत्थान,राष्ट्रीय पराक्रम व सामथ्य का एक नया अध्याय रचा। इसी के परिणामस्वरुप विश्वगमन मेँ भारत की विजय पताका फहराई ओर अपने ज्ञान-विज्ञान के बूते वह विश्वगुरु पद पर भी प्रतिष्ठित हुआ। विदेशी उच्छिष्ट पर चलने वाला राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य एक तथाकथित सेकुलर व प्रगतिशील बुद्धिजीवी वर्ग भले ही इसे कपोल कल्पना मानते हो,परन्तु यह अतः प्रेरणा युग-युगान्तर को पार करती हुई,आज भी हमारी युवा पीढी को दिशाबोध देती है और उससे ऊर्जस्वित भारत की युवाशक्ति विश्व मेँ भारत की कीर्तिध्वजा फहरा रही है,चाहे सूचना प्रॉद्योगिकी का क्षेत्र हो पर या उद्यम का,योग हो या आयुर्वेद अथवा खेल।
युवा प्रतिभा के दम पर भारत को उभरता देख विश्व स्तंभित है और इंग्लैण्ड,अमरीका,आस्ट्रेलिया जैसे देशोँ में तो इस गति को मंद करने के कुत्सित प्रयास भी हो रहे हैँ। पर भारत का यह युवा-प्रवाह अवरुद्ध नहीँ होगा। राष्ट्रीय चेतना से अनुप्राणित और वैश्विक कल्याण के उदात्त भाव से अभिसिँचित भारत की युवाशक्ति को समुची मानवजाति के लिए प्रगति और सूजन, शान्ति और सद्भाव का आदर्श प्रस्तुत करेगी। ब्रिटिश इतिहासकार अर्नोल्ड टायनबी ने ठीक ही कहा है कि विश्व को एक परिवार की तरह रहना है तो वह भारत से सीखेँ।
निश्चय ही भारत की युवाशक्ति विश्व मेँ अपना ज्ञान-विज्ञान,उद्यमशीलता,प्रगति और पराक्रम के मानदंड स्थापित करते हुए भारत की इस सांस्कृतिक विशेषता को अपने आचरण से और मर्मस्पर्शी बनाएगी। यह ध्यान रखने योग्य है कि युवावस्था एक चुनोती है। वह महासागर की उत्ताल तरंगोँ को फांदकर अपने उदात्त लक्ष्य का वरण कर सकती है,तो नकारात्भत ऊर्जा से संचालित व दिशाहीन होने पर अधःपतन को भी प्राप्त हो सकती है। उसमेँ ऊर्जा का अनंत स्त्रोत है,इसलिए उसका संयमन व उचित दिशा मेँ संस्कार युक्त प्रवाह बहुत आवश्यक है।
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कविताएँ
1--
मैँ आंधियोँ मेँ चिराग जलाये बैठा हूँ
मैँ उनके ख्याब अभी संजाये बैठा हूँ
कुछ कह दूं यूं तो दिल बेजबा नहीँ
मैँ इक सच को छिपाए बैठा हूँ
उतरी न भी रात की खुमारी
मैँ फिर पैमाना लिए बैठा हूँ
अश्क आँखोँ से छलकते नहीँ अब
मैँ गम का दरिया दिन मेँ दबाये बैठा हूँ
भूल चुके जो अपने वादे कसमें
मैँ उनके दर पे दिवाना हुआ बैठा हूँ
वो मेरे लपजोँ की तरदीक करे या न करे
मैँ उनके दर पे दीवाना हुआ बैठा हूँ
खो गया हूँ अपने मेँ किसी से क्या वास्ता
मैँ तो दुनिया बेगाना हुआ बैठा हूँ
फरेब है उनके हर चलन मेँ
मैँ जिनसे वफा की उम्मीद किए बैठा हूँ
2--: जरा संभलिये :--
इतने नरम मत बनो कि,लोग तुम्हें खा जायेँ॥
इतने गरम मत बनो कि,लोग तुम्हेँ छू भी न सके॥
इतने जटिल मत बनो कि, लोग तुम्हें समझ न सकेँ॥
इतने गंभीर मत बनो कि,लोग तुमसे ऊब जायेँ॥
इतने छिछले मत बनो कि,लोग तुम्हें माने भी नहीं॥
इतने महंगे मत बनो कि,लोग तुम्हें मिल भी न सके॥
इतने सस्ते भी मत बनो कि,लोग तुम्हें अंगुली पर नचाने लगे॥
आपका पल भर का क्रोध,आपका भविष्य बिगाड़ सकता है॥
आपका सज्जन संसर्ग,आपका भविष्य उज्जवल बना सकता है॥
3--: एक पत्र शहीदोँ के नाम :--
मेरा पत्र हैँ उन तमाम शहीदोँ के नाम।
आजाद कराने देश को,जो गये कुर्बान॥
कितने खतरे तुमने झेले,भारत मां की खातिर।
युवा वर्ग भुला बैठा है,जिन्हेँ स्वार्थ के खातिर॥
तुमने जान गंवाई अपनी,देश प्रेम की खातिर।
जान दे रहा युवा आज, गर्ल फ्रैण्ड की खातिर॥
क्षमा पत्र हैँ मेरा यह,उन दीवानोँ के नाम।
आजाद कराने देश को,जो हो गये कुर्बान॥
दिलाकर आजादी तुमने,भारत माँ को किया निहाल।
आज के नेता दलबदलू हैँ,देश की पगडी रहे उछाल॥
ले ले कर्जा घी पीते है,कर दिया देश का खस्ताहाल।
कितना रोको,कितना चीखो,गेँडे सी है उनकी खाल॥
उनकी ओर से खेद पत्र, लिखता तुम्हारे नाम।
आजाद कराने देश को जो हो गये कुर्बान॥
4-: कौन क्योँ दु:खी? :--
बिन पैसे निर्धन दु:खी,तृष्णा बिन धनवान।
चन्दे बिन पण्डित दु:खी,अध्यापक बिन सम्मान।
धूप बिन धोबी दु:खी,नारी बिन सम्मान।
प्रेम हेतु भारत दु:खी,छल से पाकिस्तान।
रिश्वत बिन अफसर दु:खी,बिन सम्पत्ति विद्वान।
वोट बिन नेता दु:खी,बिन कीर्ति गुणवान।
दहेज से हर बाप दु:खी,बिन दहेज बेटी की सास।
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-देवेन्द्र सुथार s/o इन्द्रमल सुथार
गांधी चौक,आतमणावास,बागरा,जालौर,राजस्थान। 343025
मेल आईडी-devendrasuthar196@gmail.com
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